About
Editorial Board
Contact Us
Saturday, April 1, 2023
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Communication

तकनीक के बियाबान में ‘सच’ कहाँ तलाशें ?

तकनीक के बियाबान में ‘सच’ कहाँ  तलाशें ?

ओमप्रकाश दास

जब ख़बरें या कोई सूचना, कोई संदेश वाहक एक जगह से दूसरी जगह ले जाता था और उसे सुनाता था तो निश्चित रूप से उसमें उस संदेशवाहक के अपने ज्ञान का समाजशास्त्र शामिल हो जाता होगा। यह भी हम सब जानते हैं कि जब कोई बात आप कहते हैं उसकी संरचना और प्रस्तुति, उसी कथ्य को लिखने के बाद कितनी बदल जाती है। यहां याद रखना होगा कि लिखना भी एक तकनीक है

जन माध्यम (मास मीडिया) का मूलभूत काम क्या होता है? कई लोग कह सकते हैं कि इससे उन्हें मनोरंजन मिलता है तो कोई कह सकता है कि जन माध्यम से उन्हें किसी न किसी तरह की ज्ञान की प्राप्ति होती है। लेकिन अर्थ के स्तर पर थोड़ा गहरे उतरें तो मीडिया शब्द ही ‘मध्यस्थता’ की मुनादी करता है। जिसे अंग्रेज़ी में मिडियशन कहा जाता है। यानी ये दो बिंदुओं को जोड़ने की प्रक्रिया। ये मीडियशन है, जो एक की बात को दूसरों तक पहुंचाती है। टेलीविज़न के संदर्भ में बात करें तो इसे भी मध्यस्थता का साधन मानना ही होगा। जब टेलीविज़न मध्यस्थता का ज़रिया है तो उसके ज़रिए जो संदेश मिल रहा है उसे भी ‘माध्यम का संदेश’ मानना होगा। यानी टेलीविज़न के ज़रिए, जो भी संदेश आप देखते या सुनते हैं, वो मीडियेटेड है जो मूल संदेश एक माध्यम के ज़रिए प्रसारित होती है। लेकिन तकनीक की भूमिका यहां महत्वपूर्ण है, क्योंकि तकनीक के अपने मूल्य होते हैं, जो संदेश के साथ अपने आप नत्थी हो जाते हैं।

तकनीक और मध्यस्थता के उपकरण के बारे में, कार्ल मार्क्स ने करीब 150 साल पहले ही कहा था कि तकनीकी उपकरण दरअसल में एक सांस्कृतिक उपकरण हैं जो एक बड़े पूंजीवादी ढांचे का हिस्सा हैं। तकनीक का यह सांस्कृतिक उपकरण, समाज में उस मीडियेटेड संदेश को दर्शकों के सामने रखता है जो वर्चस्ववादी वर्ग के मूल्य होते हैं। क्योंकि मूल रुप से तकनीक के ढांचें पर आर्थिक रूप से वर्चस्व वाला समूह ही मालिकाना हक़ रखता है। मार्क्स इसे ‘रूलिंग क्लास’ कहते हैं, यानी वो वर्ग जो हमेशा शासन में या शासन के क़रीब ही रहता है। तकनीक सिर्फ एक तरह से हमारे जीवन पर असर नहीं डालती बल्कि इसके भी कई आयाम हैं। एंड्रयू फिनबर्ग तकनीक के दर्शन को समझाते हुए कहते हैं कि उपकरणवाद या तकनीकवाद के मूल और उसके असर को ऐसे समझा जा सकता है कि तकनीक निरपेक्ष तो है नहीं, साथ ही इसके साधन और साध्य आपस में जुड़े हुए हैं। इसे सीधे समझा जा सकता है टेलीविजन समाचार के कथ्य के ज़रिए। तकनीक जीवन से लगातार जुड़ रहा है, चाहे वह किसी उपकरण या गैजेट के ज़रिए ही हो। उसका असर जीवन की विस्तृत संरचना पर पड़ता है। यह विस्तृत संरचना, जीवन का हिस्सा नहीं बल्कि जीवन जीने का तरीका ही बन जाती है, और जब हम इस स्तर पर पहुंचते हैं तो टेलीविज़न में समाचार की प्रोसेसिंग या सूचना से खबरों के निर्माण तक, संदेश तकनीक के अलग अलग उपकरणों से गुज़रता है। ख़बरों के निर्माण का मतलब उसे गढ़ना नहीं है बल्कि सूचना को तस्वीरों, दृश्यों, ध्वनि प्रभावों के इस्तेमाल से टेलीविजन के अनुकूल बनाने की प्रक्रिया है।

जब ख़बरें या कोई सूचना, कोई संदेश वाहक एक जगह से दूसरी जगह ले जाता था और उसे सुनाता था तो निश्चित रूप से उसमें उस संदेशवाहक के अपने ज्ञान का समाजशास्त्र शामिल हो जाता होगा। यह भी हम सब जानते हैं कि जब कोई बात आप कहते हैं उसकी संरचना और प्रस्तुति, उसी कथ्य को लिखने के बाद कितनी बदल जाती है। यहां याद रखना होगा कि लिखना भी एक तकनीक है। लेकिन मीडिया से प्रसारित कथ्य में एक और बदलाव तब हुआ जब प्रिंटिंग का आविष्कार हुआ। यहां तकनीक का एक और दखल हुआ, जिसने मीडिया टेक्स्ट यानी कथ्य पर एक और बड़ा असर डाला। ऐसे में याद आते हैं मार्शल मैक्लूहान जैसे संचार विशेषज्ञ, जो तकनीकी निर्धारण की बात जोर-शोर से करते हैं। उनका विचार ‘माध्यम ही संदेश है’, ने तो तकनीक के निर्धारणवाद को चरम तक पहूंचाया, जहां तकनीक और संचार की प्रणाली पूरी दुनिया को एक गांव में तब्दील करने की बाद करती है। आज हम उसके गवाह हैं, जहां एक क्लिक पर आप दुनिया के किसी कोने से जुड़ सकते हैं।

यहां मूल मुद्दा है टेलीविज़न की तकनीक का प्रभाव, जो दर्शकों पर तो बाद में पड़ता है, लेकिन उससे पहले तो कही जाने वाली बात और सूचना ही तकनीक लेपित हो जाती है। जो एक मीडियेटेड रूप में हम तक पहूंचती है। टेलीविज़न से प्रसारित ख़बरों की बात करें तो यह स्पष्ट है कि ख़बरों को चुनने में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है, जिसमें अब मोबाईल फोन तक इस्तेमाल हो रहा है। ब्रॉडबैंड की 3जी और 4जी तकनीक तो काफी पहले ही इस्तेमाल हो रही है, जिसे 4K जैसी तकनीक ने नए स्तर पर पहुंचा दिया है। तो ख़बरों के चुनने में जब तकनीक अपनी नई भूमिका निभा रहा है, वहीं उसके संपादन-प्रोसेसिंग और प्रसारण में भी बदलती तकनीक ने बदलाव किया है। यहां यह बात काफी सरल तरीके के हमारे सामने आती है कि जब प्रसारण टीवी पर होगा और अब मोबाईल पर भी होगा तो संदेश या कहें ख़बरों के कथ्य और प्रस्तुति में अंतर तो आना ही है क्योंकि सारे उपकरणों की अपनी तकनीकी सीमाएं भी तो हैं।

आम उपभोक्ता के लिहाज़ से समझें तो इस बात से सभी सहमत होंगे कि इस तकनीकी बदलाव ने टेलीविज़न के चरित्र को बदल दिया है और जिन चैनलों ने अपने आपको नहीं बदला है, उन्हें देर सबेर बदलना पड़ेगा। एक छोटा सा उदाहरण चैनलों के दो फॉरमेट, अब आपके सामने है। एच.डी. यानी हाई डेफिनिशन और स्टैंडर्ड डेफिनिशन। अब ये समझा जा सकता है कि हमें दो डेफिनिशन एक ही ख़बरों की क्यों चाहिए? यहां पर याद आते हैं जीन बौड्रियाल्ड जो टेलीविज़न तकनीक के ज़रिए एक हाईपर रियलिटी यानी उच्च स्तरीय सच की बात करते हैं। ऐसे में समझना ज़रूरी हो जाता है कि एक तो सूचना या तथाकथित सच पहले ही तकनीक के माध्यम से मिडियटेड संदेश के रूप में हम तक पहुंच रही है, उसके ऊपर तकनीक उसे हाई डेफिनिशन बनाना चाहता है, और ऐसा इसलिए है ताकि सच को सनसनीख़ेज बनाया जा सके। जो काफी कुछ छुपा जाता है। यानी, इस प्रक्रिया के अपने संदेश है और अपने निहितार्थ भी।

संदर्भः

फिनबर्ग, एंड्रयू. व्हाट इज़ फिलॉसफी ऑफ टेक्नॉलजी? (https://www.sfu.ca/~andrewf/books/What_is_Philosophy_of_Technology.pdf)

फ्रेडरिक, एडवर्ड. एन इंट्रोडक्शन टू डिजिटल फिलॉसिफी, इंटरनेशन जनरल ऑफ थ्योरेटिकल फिजिक्स – 42 (2003)

बौद्रिलार्ड, जीन. सिम्युलेकरा एंड सिम्युलेशन. युनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन प्रेस, मिशीगन (1994)

मार्क्स, कार्ल. सेलेक्टेड राइटिंग्स इन सोशियलॉजी एंड सोशल फिलॉसफी. मैकग्रियू हिल, लंदन (1964)

मैक्लूहान, मार्शल. द मीडियम इज़ द मैसेज. अंडरस्टैंडिंग मीडियाः द एक्सटेंशन ऑफ मैन. मैक्ग्रीयू-हिल, न्यू-यॉर्क (1964)

विलियम, रेमंड. टेलिविज़नः टेक्नलॉजी एंड कल्चर फॉर्म. संपादक- ई. विलियम. रॉटलएज़, लंदन (1992)

लेखक ओमप्रकाश दास एक टेलीविज़न पत्रकार हैं और मीडिया शोधार्थी हैं. टेलीविज़न पत्रकारिता में अपने दो दशक से भी  अधिक करियर के दौरान उन्होंने अनेक कार्यकर्मों का प्रोडक्शन किया है और टेलीविज़न एंकरिंग में अपना एक विशेष स्थान बनाया है

संपर्कः omsdas2006@gmail.com, +91-9717925557

 

Previous Post

लॉकडाउन: न्यूज़ चैनलों को खूब देख रहें हैं लोग

Next Post

Coronavirus: State measures must not allow surveillance of journalists and their sources

Next Post
Coronavirus: State measures must not allow surveillance of journalists and their sources

Coronavirus: State measures must not allow surveillance of journalists and their sources

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

Citizen Journalism for hyper-local coverage in print newspapers

March 31, 2023

Uncertainty in classrooms amid ChatGPT disruptions

March 31, 2023

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

Evolution of PR in India and its present status

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

आर्थिक-पत्रकारिता क्या है?

Recent Post

Citizen Journalism for hyper-local coverage in print newspapers

Uncertainty in classrooms amid ChatGPT disruptions

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

Fashion and Lifestyle Journalism Course

Development of Local Journalism

Audio Storytelling and Podcast Online Course

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.