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बी.बी.सी. टेलीविज़नः शुरुआत का संघर्ष

बी.बी.सी. टेलीविज़नः शुरुआत का संघर्ष

ओमप्रकाश दास

(भाग-2)

दुनिया के बेहतरीन प्रसारकों में से एक ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन यानी बीबीसी अपने टेलीविज़न प्रसारण को लेकर कई मानक स्थापित कर चुका है। जिसे दुनिया भर के पेशेवर एक पैमाना मानकर सीखते – अपनाते हैं। इस लेख श्रृंखला के पहले भाग में हमने देखा कि कैसे बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक तक रेडियो प्रसारण में स्थापित हो चुकी बीबीसी टेलीविज़न प्रसारण को लेकर न सिर्फ भारी असमंजस में थी बल्कि टेलीविज़न पर प्रयोग करने वाले जॉन बेयर्ड को हतोत्साहित भी कर रही थी। फिलहाल आगे बढ़ते हैं और देखते हैं कि कैसे बीबीसी के टेलीविज़न प्रसारण को हरी झंडी मिली।

जॉन एल. बेयर्ड टेलीविज़न प्रसारण को लेकर लंबे समय से प्रयोग तो कर रहे थे लेकिन उन्हें इसके व्यापक प्रदर्शन के लिए बीबीसी के तकनीकी ढांचा का इस्तेमाल करना बेहद ज़रूरी था। बेयर्ड लगातार बीबीसी से इस बात का अनुरोध कर भी रहे थे। यह घटनाएं 1927 से 1928 के दौरान की हैं, लंबी कोशिशों के बाद बीबीसी एक अपने एक स्टेशन को बेयर्ड के प्रयोग के लिए तैयार हो गया था।

बीबीसी के असमंजस की एक वजह यह भी थी कि इस वक्त तक वह गुणवत्तापूर्ण रेडियो प्रसारण में महारथ हासिल कर चुका था और अपनी पहुंच तेज़ी से बढ़ा रहा था और टेलीविज़न की तकनीकी दक्षता को लेकर पक्का नहीं था। तय हुआ कि अक्टूबर 1928 में यह जॉन बेयर्ड को प्रयोग करने की इजाज़त दी जाए।

लेकिन इस सहमती को अभी कुछ महीने बीते थे कि बीबीसी फिर इस प्रयोग को टालने की कोशिशों में लग गया और इस फैसले की समीक्षा शुरु हो गई। लेकिन चुकी जॉन बेयर्ड को इंग्लैंड के पोस्ट-मास्टर जनरल विभाग से मंजूरी मिल चुकी थी जो प्रसारण की गतिविधियों को रेगुलेट करता था, उसने बीबीसी को चेतावनी देनी शुरु की। पोस्ट-मास्टर जनरल विभाग ने बीबीसी को कहा कि वह बेयर्ड को बीबीसी के तकनीकी उपकरणों और एक निजी प्रसारण को करने में सहयोग करें नहीं तो विभाग बेयर्ड को अलग से प्रसारण लाइसेंस दे देगा, जिसमें ध्वनि प्रसारण भी शामिल होगा।

यहां एक बात गौर करने वाली है कि बीबीसी जहां किसी नए प्रयोग को लेकर असमंजस में था और जॉन बेयर्ड की कोशिशों को पलीता लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा था तो सरकार का ही एक विभाग खुद लालफीताशाही का शिकार हो रहा था। यह तब हो रहा था जब अमेरिका सहित युरोप में भी टेलीविज़न प्रसारण को लेकर कई स्तरों पर कोशिशें चल रही थीं। असा ब्रिग्गस अपनी किताब में लेखते हैं, दरअसल में बीबीसी की इस देरी का निहितार्थ टेलीविज़न कंपनियों के बीच व्यावसायिक जंग और बीबीसी की टेलीविज़न कंपनियों के साथ मिलीभगत में भी छिपा था।

जॉन बेयर्ड के प्रयोग और बीबीसी के साथ उनके टकराव के मामले में एक नया मोड़ तब आया जब सत्ता के गलियारों  में यह अफवाहें फैलने लगीं कि दरअसल में मामला यह है कि कई टेलीविज़न कंपनियां, जिसमें मारकोनी की कंपनी भी शामिल हैं, यह कंपनियां बीबीसी के ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारियों को प्रभावित कर रहें हैं, जो बेयर्ड के प्रयोग को टालने की वजह बन रहा है।

यह मामला इतना बढ़ा कि 29 जनवरी 1929 को यह मुद्दा ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में भी उठा। संसद में आरोपो-प्रत्यारोपों की कड़वाहट भरे बहस के बाद, पहली बार बीबीसी इस बात पर राज़ी हुआ कि अगस्त 1929 से बीबीसी बेयर्ड की टेलीविज़न प्रसारण को हर हफ्ते साढ़े पांच घंटे प्रसारण के लिए उपलब्ध करायगा। यह मंज़ूरी एक प्रयोगात्मक प्रसारण के लिए मील का पत्थर साबित होने वाला था। बीबीसी ने मंज़ूरी तो दे दी थी लेकिन भारी दबाव में, ऐसे में बीबीसी लगातार ये मंथन कर रहा था कि क्या टेलीविज़न प्रसारण की तकनीक इस स्तर पर आ चुकी है कि इसे जनता के लिए नियमित रूप से प्रसारित किया जाए?

इसी बीच, कुछ ऐसा घटा जिसने इस पूरे घटनाक्रम को एक अलग ही आयाम दे दिया। जॉन बेयर्ड इस वक्त तक बीबीसी की तकनीकी सेवाएं लेने के क़रीब पहुंच गए थें, ताकि वह बीबीसी की फ्रिक्वेंसी और दूसरी सुविधाओं का इस्तेमाल अपने टेलीविज़न प्रसारण के लिए कर सकें। यही वह वक्त था जब इलेक्ट्रिक एंड म्युज़िकल इंडस्ट्री लिमिटेड (ई.एम.आई.) नाम की कंपनी ने भी टेलीविज़न प्रसारण के लिए बीबीसी के सामने अपना दावा ठोंक दिया।

यह टेलीविज़न प्रसारण के क्षेत्र में होने वाली कॉरपोरेट जंग की एक तरह से शुरुआत थी। नवंबर 1931 तक बीबीसी ने नीतिगत स्तर पर एक बड़े बदलाव को अंजाम दिया। बीबीसी ने तय किया कि टेलीविज़न प्रसारण में किसी एक के एकाधिकार को बढ़ावा नहीं देगी बल्कि वह दूसरी कंपनियों और टेलीविज़न प्रसारण की तकनीक को भी बढ़ावा देगी। यह एक तरह से जॉन बेयर्ड की कंपनी को करारा झटका थी, सवाल यह था कि उनका प्रसारण आगे बढ़ पाएगा या नहीं।

ई.एम.आई. के पास उस वक्त तक बेयर्ड से बेहतर तकनीक पहुंच चुकी थी इसके अलावा उसके पास कई दूसरी सुविधाएं मौजूद थीं, जिसमें कैथेड-रे ट्युब का बेहतर इस्तेमाल और हाई-डेफिनिशन टेलीविज़न प्रसारण की क्षमता भी थी। साल 1932 के अंत में ई.एम.आई. ने बीबीसी से अपने तकनीक का प्रदर्शन करने की इजाज़त मांगी, क्योंकि उनका दावा था कि उनका प्रसारण जॉन बेयर्ड के टेलीविज़न प्रसारण के मुकाबले गुणवत्ता के मामले में कई गुणा बेहतर है।

इस कॉरपोरेट प्रतिद्वंद्विता का नज़ारा आज भी साफ तौर से देखा जा सकता है, कुछ कुछ वैसा ही जनवरी 1933 में भी हुआ, जब बीबीसी और ई.एम.आई. ने एक समझौते के लिए बातचीत शुरु की। लेकिन बीबीसी बेयर्ड को मना नहीं कर सकती थी, क्योंकि एक तो जॉन बेयर्ड के पास राजनीतिक समर्थन था तो दूसरी ओर बीबीसी और बेयर्ड की कंपनी के बीच अभी भी पहले का हुआ समझौता अभी भी प्रभावी था। यह तय था कि जिस कंपनी को सबसे पहले हाई-डिफिनिशन टेलीविज़न का विकास करने की मंजूरी मिलेगी, बाज़ार में उसी का एकाधिकार हो जाएगा।

संदर्भ

  • Briggs, Asa. The BBC: The First Fifty Years. Oxford University Press, 1985.
  • Briggs, Asa. The History of Broadcasting in the United Kingdom: Volume II: The Golden Age of Wireless. Oxford University Press, UK, 1965.
  • Parks, Lisa and Kumar, Shanti. Planet TV: A Global Television Reader, NYU Press, 2003.
  • Radio Times – The Journal of the BBC, issue dated 27 October 1957: The 21st Anniversary of BBC Television.
  • Burns, R.W. (1998). Television: An International History of the Formative Years. London: The Institution of Electrical Engineers.

संपर्कः omsdas2006@gmail.com

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