आज अतुल माहेश्वरी की सातवीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन, साल 2011 को वह हम सबको अचानक छोड़कर चले गए थे। यह आलेख उनकी यादों को समर्पित करते हुए, 2011 में लिखा गया था। उनकी याद में 2011 में अनुराग बत्रा, चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ, एक्सचेंज4मीडिया समूह द्वारा लिखा गया यह संस्मरण आपके साथ शेयर कर रहे हैं…
अतुल माहेश्वरी को हिंदी मीडिया में एक भलामानुष ही नहीं, एक ऐसे उद्योगपति के तौर पर जाना जाता रहा, जो हर किसी के सुख-दु:ख में समान तौर पर भागीदार रहा करते थे। वह अपने सहकर्मियों के साथ हमेशा इस तरह से पेश आते थे, जैसे वह परिवार का सदस्य हों। हर किसी के बारे में जानकारी लेना और उसकी समस्याओं को अपने स्तर पर निपटाना उनकी बहुत सारी खूबियों में शामिल था। आज उन्हें याद करते हुए आंखें, एक बार फिर से नम हो रही हैं। जब हम किसी को खो देते हैं, तभी हमें यह महसूस होता है कि उसकी उपस्थिति हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण थी।
मैंने, प्रार्थना सभा के विज्ञापनों में और प्रार्थना सभा की मीटिंग में अतुल जी के चित्र को देखा और मैं अभी तक, विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि वह अब हमारे बीच नहीं रहे। जी.बी.शॉ ने एक बार कहा था, “भद्र पुरुष वह है जो विश्व को बहुत कुछ देकर जाता है और बदले में थोड़ा-सा लेता है।” अतुल जी के बारे में शायद यह सच था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह सब लिखूंगा और कम से कम नए वर्ष के आगमन पर तो ऐसा बिल्कुल नहीं सोचा था। मैंने कभी नहीं सोचा कि नया साल मेरे लिए और संपूर्ण मीडिया इंडस्ट्री के लिए इतनी बड़ी क्षति लेकर आएगा। इस सच को महसूस करते हुए, काफी दर्द और पीड़ा का अनुभव हो रहा है कि अतुल जी (जैसा कि मैं उन्हें कहा करता था) जो मेरे बड़े भाई, मित्र, मीडिया के बड़े लीडर और उससे बढ़कर एक दयालु इंसान थे, अब हमारे बीच नहीं रहे।
कभी-कभी हमारे नजदीकी और प्यारे लोग जिनकी हम बहुत इज्जत करते हैं, हमें छोड़कर चले जाते हैं और हम, अपने जीवन के कर्म करने को अकेले रह जाते हैं। सच को स्वीकारना बहुत दुखद है। जिंदगी यूं ही चलती रहती है। मैं, अतुल जी से मेरठ में लगभग 10 साल पहले ‘अमर उजाला’ के पुराने कार्यालय में मिला था। उन दिनों बी.के सिन्हा ‘अमर उजाला’ के ऐडवरटाइजिंग और मार्केटिंग विभाग के प्रमुख हुआ करते थे। ‘अमर उजाला’ उन दिनों तेजी से विकास कर रहा था और सफलता की ओर अग्रसर था। मुझे, पल्लव मोइत्रा और साजल मुखर्जी ने अतुल जी से मिलवाया था। मेरे मन में उस मुलाकात की यादें अभी भी ताजा हैं। उस मुलाकात के बाद, मैं लगभग नियमित रूप से, हर महीने उनसे मिला करता था और मैं कह सकता हूं कि इतना कुछ हासिल करने के बाद भी उन्हें इसका तनिक भी गुमान नहीं था।
अतुल जी ने एक बार मुझसे कहा था कि उनका संघर्ष उस दिन से शुरू हुआ जब श्री डोरी लाल अग्रवाल के बड़े बेटे अनिल अग्रवाल जो उन दिनों ‘अमर उजाला’ को चला रहे थे की अचानक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई, तब उनके अंतिम संस्कार में शामिल लोगों ने चर्चा शुरू कर दी कि अब यह समाचार पत्र खत्म हो जाएगा। अतुल जी तत्काल अपने ऑफिस इस संकल्प के साथ दौड़े गए कि वे इस व्यवसाय को आगे बढ़ाएंगे और हम सभी जानते हैं कि किस तरह से अतुल जी के नेतृत्व में ‘अमर उजाला’ आगे बढ़ा। वह एक ऐसे पुत्र थे जिन्होंने अपने पिता के सपनों को साकार किया। इन वर्षों में, हमने उनका कई बार इंटरव्यू किया। उनके विनम्र और शांत व्यक्तित्व के पीछे उद्देश्य की स्पष्टता थी। व्यवसाय के बारे में उनका नजरिया स्पष्ट था।
‘अमर उजाला’ शुरुआत में चार पेज का समाचार पत्र था और इसका प्रकाशन आगरा से शुरू हुआ था। यह आज देश का प्रमुख दैनिक समाचार पत्र है। ‘अमर उजाला’ के विस्तार में काफी उतार-चढ़ाव आए। अतुल जी के बारे में उल्लेखनीय है कि मीडिया के कारोबार में होते हुए उन्होंने कभी अपना विनम्र रवैया नहीं छोड़ा और मूल्यों के साथ जुड़े रहे। मैं, उनके शांत आचरण को काफी पसंद करता था। कोई उनके पास मदद के लिए संपर्क करने आता था तो वह उसके प्रति चिंतित और संवेदनशील होते थे और उसका सम्मान करते थे। अतुल जी जैसे व्यक्ति के लिए सफलता का अर्थ सिर्फ पैसा नहीं था। सफलता का मतलब मूल्य और नैतिकता से था। और जब समाज ऐसे व्यक्ति को खो देता है तो यह सिर्फ एक व्यक्ति का नुकसान नहीं है। यह एक नेतृत्वकर्ता का अवसान है जो कई की जिंदगी और करियर को बना सकता था। अतुल जी के जाने से न सिर्फ बड़े भाई या प्रिय मित्र का अवसान हुआ है, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति का निधन हुआ है जिनके पास स्पष्ट दृष्टिकोण और क्षमता थी जो न्यूज इंडस्ट्री को एक आकार देने में सक्षम थे। आने वाले वर्षों में, वह न्यूज इंडस्ट्री में एक बड़े बदलाव के वाहक थे।
मुझे, अब भी याद है कि अतुल जी के बड़े भाई के निधन पर दो साल पहले जब मैं उनसे मिला था तो उन्होंने चुटकी ली थी कि हमारे यहां तो लोग जल्दी चले जाते हैं। उस समय, मैंने नहीं सोचा था कि मैं इस अद्भुत व्यक्ति को इतनी जल्दी खो दूंगा। मैंने अतुल जी और उनके पुराने सहयोगियों से जिनके साथ उनका भावनात्मक संबंध था, साझा बातचीत की है। राजीव सिंह जिन्होंने ‘अमर उजाला’ में सेल्स और मार्केटिंग के प्रमुख के रूप में कार्य किया था, अतुल जी के साथ बिताए पलों के बारे में प्यार से बात करते हैं। ‘अमर उजाला’ के अनुभवी संपादक और पत्रकार शशि शेखर जो सात वर्षों तक ‘अमर उजाला’ के संपादक रह चुके हैं और अब ‘हिन्दुस्तान’ के एडिटर-इन-चीफ हैं, बड़ी दुविधा में थे जब उन्होंने ‘अमर उजाला’ से ‘हिन्दुस्तान’ में जाने का निर्णय किया क्योंकि अतुल जी के साथ उनका आत्मीय व्यवहार था। अतुल जी के अचानक निधन से उन्हें सदमा पहुंचा। शशि जी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, “मेरा तो फ्यूज उड़ गया है।”
वरुण कोहली जो ‘अमर उजाला’ में कई वर्षों तक ऐड सेल्स के प्रमुख के तौर पर थे, अतुल जी को बॉस की अपेक्षा पिता-तुल्य मानते थे। गोपीनाथ मेनन, पी. वी नारायणमूर्ति सभी अतुल जी को विनम्र व्यक्तित्व का धनी मानते थे। सुनील मुतरेजा जो ‘अमर उजाला’ के सेल्स और मार्केटिंग प्रेसिडेंट रहे हैं मेरे साथ निजी बातचीत में अतुल जी के नेतृत्व की सराहना करते थे और कहा करते थे कि वह ऐसे बॉस हैं जिनके साथ डील करने में आसानी होती है। अतुल जी प्रगतिशील और आगे की सोच रखने वाले लोगों में से थे। अतुल जी ने मेरे सलाह देने के बाद एक शैक्षिक उद्यम में भागीदारी की और जब उम्मीद के अनुसार, संयुक्त उद्यम नहीं चला तो अतुल जी ने इसे एक दार्शनिक की तरह स्वीकार किया और कहा कि अब शिक्षा, बौद्धिक मॉडल बिजनेस न होकर रियल एस्टेट बिजनेस मॉडल हो गया है।
मैं एक बार भाग्य से अतुल जी के साथ सुभाष चंद्रा से मिला और कह सकता हूं कि इस मीटिंग से मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। दो उद्यमियों से मिलना, मीडिया महारथियों की बातचीत और अंतर्दृष्टि साझा करना जिंदगी का एक अद्वितीय क्षण था। अतुल जी के साथ हमने उनकी आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं को खो दिया है। ‘अमर उजाला’ विकास के दौर से गुजर रहा था और संस्थान बड़ा एवं बेहतर हो रहा था। मैं अतुल जी के परिवार में उनके पुत्र तन्मय, पत्नी नेहाजी और पुत्री अदिति से मिला हूं। उनके भाई राजुल माहेश्वरी अतुल जी की छाया में कार्य करते थे और उनकी दूरदृष्टि को कार्यान्वित करते थे। उन्हें अपने भाई से काफी कुछ सीखने का मौका मिला जो उनकी विरासत को आगे ले जाने में सहायक होगा। मैंने उनके पुत्र तन्मय को काफी करीब से जाना और देखा है। तन्मय, ‘फुलक्रम माइंडशेयर’ में कार्य करते थे। फेसबुक पर उनका पसंदीदा बोल “ग्रेटेस्ट जर्नी ऑफ द लाइफ इज़ द वन विच ब्रिंग्स यू बैक टू द होम” (जीवन की सबसे बड़ी यात्रा वह है जो तुम्हें अपने घर वापस लाती है) है।
भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे राजुल और तन्मय को शक्ति प्रदान करें जिससे कि वे अपने पिता के सपनों को साकार करें और संस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं। साभार -समाचार 4 मीडिया