भाषा सिंह।
पत्रकारिता की दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। सोशल मीडिया, वेब, मोबाइल ऐप्स में खबरें सरपट दौड़ती हुई नजर आती हैं। पल-पल की खबर देने के दावों से बाजार अटे पड़े हैं। जैसे ही खबर मिले, वैसे ही इसे जनता-जनार्दन तक पहुंचाने का जबर्दस्त क्रेज है। ऐसे में क्या गंभीर-विश्लेषणात्मक खबरों-विश्लेषणों की जगह कुछ बची हुई है? यह सवाल बहुतेरे लोगों के जेहन में कुलबुला रहा है।
इस सवाल का जवाब खोजते हुए इस बात पर भी चर्चा करना जरूरी हो उठता है कि अलग माध्यमों की पत्रकारिता के लिए क्या हमारे पास औजार भी अलग होने चाहिए और यदि हां तो उनका चुनाव कैसे किया जाए। कुछ भी लिखने से पहले जरूरी है यह ध्यान रखना कि आपका पाठक वर्ग कौन है और माध्यम क्या है। मिसाल के लिए अगर हम कोई खबर वेब या उससे जुड़े मोबाइल ऐप्स के लिए लिख रहे हैं तो हमें पता है कि इसे पढ़ने वाले के पास समय ज्यादा नहीं है। वह तेजी में हो सकता है।
लिहाजा, खबर को छोटा और तुरंत संप्रेषित होने वाले अंदाज में लिखा जाना चाहिए। वाक्य छोटे, खबरें सीधी-सीधी पहुंचने वाली विधा में और अंत में एक या दो पंक्ति में टिप्पणी। इस तरह से लिखने में बहुत ज्यादा विस्तार में आंकड़ें देना फायदेमंद नहीं होता। इसकी जगह अलग से ग्राफ या छोटा टेबल उपयोगी हो सकता है। कोशिश यह होनी चाहिए कि पाठक की जिज्ञासा बरकरार रहे। वरना वह तुरंत दूसरे पेज या दूसरी वेबसाइट पर चला जाएगा।
इसलिए इस विधा के पत्रकार के ऊपर पाठक को बांधे रखने का भी काम आन पड़ता है, जो प्रिंट यानी अखबार और चैनल के पत्रकारिता की उस तरह से नहीं होती। टीवी पत्रकारिता में जहां विजुअल और ज्यादा से ज्यादा बाइट्स का खेल होता है, वहीं प्रिंट मीडिया में जोर तथ्यों और एक्सक्लूसिव पर होता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अब चूंकि हर समय ब्रेकिंग न्यूज चलती रहती है और कड़ी प्रतिस्पर्धा की वजह से एक चैनल पर चल रही खबर मिनटों में दूसरे चैनल पर आ जाती है, लिहाजा उनकी अपनी खासियत और यूएसपी कम हो जाती है।
इन तमाम माध्यमों की तुलना में मैगजीन पत्रकारिता अलग ढंग के मानदंड और अनुशासन की मांग करती है। मैगजीन में पल-पल उपलब्ध खबरों को बिल्कुल अलग अंदाज में पाठक तक पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है। रोजमर्रा और रूटीन की खबरों के अलावा मैगजीन पत्रकारिता की पहली शर्त है विश्लेषण और दूसरा एक्सक्लूसिव खबरें। पिछले एक दशक में बड़ी हंगामेदार खबरों-घोटालों का पर्दाफाश करने का काम मैगजीन पत्रकारिता ने किया है। चाहे वह गुजरात नरसंहार के दौरान बाबू बजरंगी की करतूतों का पर्दाफाश, कैश फॉर वोट. कोयला घोटाला हो या स्कॉरपियन डील का मामला हो या फिर राडिया टेप्स या 2जी घोटाला।
इस तरह के अनगिनत मामलों पर गंभीर काम करने का जोखिम मैगजीन पत्रकारिता उठाती रही है और यही जोखिम उसे लगातार नया जीवन प्रदान करता रहा है। ऐसा नहीं कि ये तमाम जोखिम पत्रकारिता के बाकी माध्यम नहीं उठाते। खोजी रिपोर्ट-एक्सक्लूसिव की तलाश मीडिया के तमाम माध्यमों को एक बराबर होती है। मैगजीन में बाकी सारे माध्यमों से अलग हटकर करने का दबाव ज्यादा रहता है। इसी के आधार पर उनका प्रचार-प्रसार टिका होता है।
यानी मैगजीन पत्रकारिता करने के लिए खबरों पर पैनी नजर होने के साथ-साथ, लिखने का स्टाइल भी अलग रखना जरूरी है। खबरें जो घटित हो रही हैं, उनके पीछे की कहानी क्या है, उसे पाठक के सामने लाना भी एक चुनौती रहती है। इसे अंग्रेजी में वेल्यू एडिशन कहते हैं और हिंदी में मूल्य संवर्धन। इससे अखबार, न्यूज चैनल में दिखाई जाने वाली खबर से मैगजीन की रिपोर्ट अलग दिखाई देती है।
खबर लिखने का अंदाज और स्टाइल भी अलग-अलग किस्म का होता है। मैगजीन में रिपोर्ट की शुरुआत और अंत पर खासा जोर होता है। शुरुआत दिलचस्प और अलहदा अंदाज में करने की कोशिश करनी चाहिए। इसी तरह से सामान्य तौर पर अंत में कोशिश होती है कि पाठक किसी निष्कर्ष पर पहुंचे या किसी संबंधित विषय पर एक स्पष्ट समझदारी पर पहुंचे।
पत्रकारिता के तेजी से विस्तार के साथ नित-नए स्वरूप में खबरों को पेश करने की कवायद बढ़ती जा रही है। यह एक सकारात्मक पहल है और इससे विविधता बढ़ेगी।
भाषा सिंह आउटलुक हिंदी में ब्यूरो चीफ हैं. उनका पत्रकारिता में 16 साल का अनुभव है. आउटलुक से पहले वे नवभारत टाइम्स, नई दुनिया, अमर उजाला और भास्कर में काम कर चुकीं हैं।