डॉ॰ राम प्रवेश राय।
जन संचार के सिद्धांतों को लेकर अक्सर ये बहस चलती रहती है कि ये पुराने सिद्धांत व्यवहार मे महत्वहीन साबित होते है और पत्रकारिता शिक्षण मे इन सिद्धांतों पर अधिक ज़ोर नहीं देना चाहिए। ऐसा ही एक सिद्धांत है बुलेट या हाइपोडर्मिक निडल थ्योरी इसको एक चरणीय संचार मॉडल के रूप मे भी जाना जाता है। इस सिद्धांत का आशय यह है कि किसी जन माध्यम से प्रसारित संदेश सीधे श्रोताओं द्वारा ग्रहण कर ली जाती है और उसका प्रभाव सर्वाधिक होता है। अर्थात जन माध्यमों द्वारा सूचना प्रेषित करने और श्रोताओ द्वारा सूचना प्राप्त करने के बीच अन्य कोई चरण नहीं होता। जिस प्रकार बंदूक से निकली गोली सीधे निशाने पर पहुँचती है उसी प्रकार जन माध्यमों से निकला संदेश भी सीधे श्रोताओ तक पहुंचता है। यहाँ ध्यान देने के दो प्रमुख बिन्दु है- एक तो जन माध्यम की शक्ति यानि इसके अनुसार जन माध्यम इतने शक्तिशाली है कि उनकी पहुँच प्रत्येक श्रोता तक सीधी है और यह जब चाहे श्रोता तक अपनी बात पहुंचा सकता है। दूसरा श्रोताओं का अत्यधिक तत्पर और उत्सुक होना जिससे जन माध्यमों द्वारा प्रसारित कोई भी संदेश वह तुरंत प्राप्त कर लें।
(Source: Communication theories and models by N. Andal, Himalaya Publishing House, 2011, page-119)
उपरोक्त मॉडल से यह स्पष्ट होता है कि ट्रांसमीटर द्वारा प्रेषित संदेश होमोजीनियस (समरूप) जनता द्वारा ग्रहण किया जाता है और ट्रांसमीटर तथा जनता के मध्य अन्य कोई चरण मौजूद नहीं है अतः इसको एक चरणीय संचार या बुलेट सिद्धांत कहा जाता है। हाइपोडर्मिक निडल थ्योरी संचार के एक चरण के साथ-साथ इसके प्रभाव को भी महत्व देती है जिसको निम्न चित्र के अनुसार समझा सकता है –
जन माध्यम इंजेक्शन कि भांति श्रोताओ के दिमाग मे संदेश भरते है और श्रोता तुरंत ही इसपर प्रतिक्रिया करते है। हाइपोडर्मिक एक ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ सिरिन्ज है और इसीलिए इस मॉडल का नाम हाइपोडर्मिक रखा गया है। इसके अनुसार तीन प्रमुख बिन्दु प्रमुख सामने आते है-
1- लिनियर कमुनिकेशन- अर्थात ये एक रेखीय संचार मॉडल है जो जन माध्यम से सीधे श्रोता तक पहुंचता है।
2- पैसिव आडिएन्स- अर्थात निष्क्रिय श्रोता, जन माध्यम जो भी संदेश चाहे श्रोता के दिमाग मे भर सकता है और श्रोता उसका कोई विरोध नहीं करेगा।
3- नो इंडिविजुयल डिफ़ेरेन्स- सभी श्रोता एक समान होते है जिनमे कोई वैयक्तिक अंतर नहीं होता। इसलिए जो भी संदेश प्रसारित किए जाते है सभी श्रोता उस संदेश को एक जैसे ही समझते है। जैसे यदि किसी माध्यम से डॉग प्रसारित किया गया है तो सभी श्रोता उसको डॉग ही समझेगे कोई भी पेट स्ट्रे डॉग आदि नहीं समझेगा।
इस सिद्धांत का विकास 1930 के आस पास हुआ था और 40 के दशक के अध्ययनो मे जन माध्यमों को अत्यंत शक्तिशाली और जनता के विचारो को त्वरित प्रभावित करने वाला बताया गया। शायद जन माध्यमों के इस शक्तिशाली प्रभाव को सहयोग प्रदान करने वाले निंलिखित कारण थे-
• रेडियो और टीवी का उदय एवं त्वरित गति से उसका विकास
• पर्सुएशन इंडस्ट्री जैसे विज्ञापन और प्रोपोगंडा व्यवसाय का उदय
• पयान फंड (Payne Fund) का अध्ययन जो 1930 मे किया गया और बच्चो पर मोशन पिक्चर्स का प्रभाव देखा गया
• द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर की जन माध्यमों पर मोनोपोली आदि
यह मॉडल भी बुलेट सिधान्त का ही समर्थन करता है क्योंकि यह भी मीडिया की त्वरित पहुँच और उसके शक्तिशाली प्रभाव को ही बताता है। इस मॉडल को संचार वैज्ञानिको ने निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया है-
Hypodermic model uses the same idea of shooting paradigm. It suggests that the media injects its message straight into the passive audience. ——– Croteau Hones, 1997
This passive audience is immediately affected by these messages. The public essentially cannot escape from the media’s influence and is therefore considered a “sitting duck” ——– Croteau Hones, 1997
Both models suggest that the public is vulnerable to the message shot at them because of the limited communication tools and the studies of media effect on the masses at the time. ——– Davis, Baron 1981
व्यावहारिक पक्ष :
नए माध्यमों के प्रति जनता का जुड़ाव काफी अधिक होता है और जब 30 के दशक मे इस सिद्धांत का विकास हुआ तो रेडियो सबसे नया माध्यम था फलतः लोगो का जुड़ाव भी रेडियो के प्रति सर्वाधिक था इसी सं विज्ञापन इंडस्ट्री का भी उदय हुआ था तो विज्ञापन कंपनियाँ भी लोगो को लुभाने के लिए नए नए प्रयोग कर रही थी। इन माध्यमों का कितना असर लोगो पर था इसका उदाहरण 30 अक्तूबर 1938 को मिलता है जब आसीन वेल्स और मर्करी थियेटर ने एच॰ जी॰ वेल्स “War of the world” रेडियो संस्करण प्रसारित किया। पहली बार किसी रेडियो कार्यक्रम के बीच एक समाचार बुलेटिन प्रसारित किया गया, इस न्यूज़ बुलेटिन को श्रोताओं ने क्या सुना वह इस प्रकार था-
“Martians had begun an invasion of earth in a place called Grover’s Mil, New Jersey”
ये समाचार श्रोताओ के लिए एक भयानक समाचार साबित हुआ। इस समाचार ने सोशल साइकलोजी, सिविल डिफ़ेंस और ब्राडकास्ट इतिहास को बदल कर रखा दिया। लगभग 12 मिलियन अमेरिकियो ने यह प्रसारण सुना जिसके कारण ट्रैफिक, संचार प्रणाली, धार्मिक सेवाएँ ठप पड़ गई, एक अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया था और लोगो को लग रहा था कि वास्तव मे कोई एलियन आक्रमण हुआ है। लोग अपने शहर को छोड़ कर गाँव की ओर भागने लगे, राशन की दुकानों पर लंबी लाइन लग गई। अमेरिका अचानक से बेहाल हालत मे आ गया था। जबकि ये प्रसारण रेडियो नाटक ही हिस्सा था। इस घटना के बाद संचार वैज्ञानिको ने “war of the world” को मैजिक बुलेट सिधान्त के मुख्य उदाहरण के रूप मे प्रस्तुत किया।
अब इस सिद्धांत को वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे देखे तो मुज्जफरपुर की घटना बुलेट थ्योरी का ही उदाहरण है, जहा फेसबुक पर कोई आपत्तीजनक कंटेन्ट अपलोड होने पर दंगे भड़क गए और बाद मे ये भी खबर आई कि जो विडियो फेसबुक पर अपलोड हुआ था वो भारत का नहीं था। ऐसा कुछ मंज़र उस दिन भी था जब बाबरी मस्जिद केस का फैसला आना था सरकारी ओफिसेज बंद हो गए सभी शहरो मे कौकसी बढ़ा दी गई बाज़ार भी खाली हो गए, ऐसा इसलिए था कि यदि किसी भी पक्ष के खिलाफ फैसला आया और वह जैसे ही मीडिया मे प्रसारित होगा दंगे भड़क उठेंगे अर्थात इस सिद्धांत के पूर्वानुमान के आधार पर ही ऐसे कदम उठाए गए लेकिन कोर्ट का फैसला आने और मीडिया मे प्रसारित होने के बाद भी सब कुछ शांत रहा और किसी भी अप्रिय घटना की कोई खबर नहीं मिली। भारत पाकिस्तान के क्रिकेट मच के दौरान इस सिद्धांत के असर को देखा जा सकता है। इस चर्चा से एक बात तो साफ है कि इस पुराने सिद्धांत की प्रासंगिकता आज भी है लेकिन इसका प्रभाव व्यापक स्तर पर नहीं देखने को मिलता है ऐसा शायद इसलिए है कि अब मीडिया का स्वरूप खुद इतना व्यापक हो गया है कि अब मीडिया कंटेन्ट वर्ग विशेष के लिए तैयार हो रहे है न कि सामान्य श्रोता के लिए।
डॉ॰ राम प्रवेश राय हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में न्यू मीडिया के सहायक प्रोफेसर हैं