मुकुल व्यास।
करीब 30 साल पहले अपने अखबार के मुख्य डेस्क पर रात्रि शिफ्ट में काम करते हुए मेरे सामने एक न्यूज फ्लैश आया, जिसे पढ़कर मैं चौंक गया। यह फ्लैश उत्तराखंड के एक प्रमुख तीर्थ स्थल पर रेल दुर्घटना के बारे में था, जहां कोई रेल लाइन नहीं है। मैंने तत्काल संबद्ध न्यूज एजेंसी को फोन लगाकर उसे इस भूल से अवगत कराया। यह मानवीय भूल थी।
दरअसल यह समाचार डाक के मेल वैन की दुर्घटना के बारे में था। यहां मेल को ट्रेन समझ लिया गया। एक अन्य मौके पर विदेशी डेटलाइन की एक खबर में छत पर सारस गिरने से कुछ लोगों के मरने का जिक्र था। यहां क्रेन को सारस समझ लिया गया, जिससे अनर्थ हो गया। यह भी एक मानवीय भूल थी।
इस तरह की भूल समाचार एजेंसियों और अख़बारों के सम्पादकीय कार्यालयों में कभी-कभी हो सकती हैं, हालांकि दिन भर न्यूज चैनलों के सक्रिय रहने से अब इस तरह की चूकों का खतरा बहुत कम है। फिर भी डेस्क पर कार्य करने वाले पत्रकारों को हर दम सतर्क रहना पड़ता है। भूल कई तरह से हो सकती है। मसलन एक ही खबर दो अलग-अलग पेजों पर एक ही शीर्षक के साथ या दो अलग-अलग शीर्षकों के साथ छप सकती है।
इसी तरह चित्रों के चयन में भी गड़बड़ी हो सकती है। एक ही नाम के दो व्यक्ति होने पर गलत व्यक्ति का चित्र छप सकता है। एक बार एक प्रमुख समाचार एजेंसी की वेबसाइट ने भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी के फोटो के स्थान पर पाकिस्तानी क्रिकेटर मोहम्मद सामी की फोटो लगा दी थी। अतः हर तरह के डेस्क पर निरंतर सतर्कता बहुत जरूरी है।
लेखक नवभारत टाइम्स में समाचार संपादक रह चुके हैं।