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Home Journalism

…तो क्या आप भी विज्ञान लेखक बनना चाहते हैं?

संपादक आपसे विज्ञान के किसी मुद्दे पर तत्काल संपादकीय लिखने को कहे तो ?

देवेंद्र मेवाड़ी।

पहले बताएंगे कि आप विज्ञान लेखक ही क्यों बनना चाहते हैं?
लेखन का क्षेत्र बहुत विशाल है। आप तमाम माध्यमों के लिए विविध प्रकार का लेखन कर सकते हैं। पत्रकार, लेखक, कवि, नाटककार, पटकथाकार कुछ भी बन सकते हैं। फिर, विज्ञान लेखक ही क्यों?

जवाब में अगर आप यही सवाल मुझसे पूछ रहे हैं, तो मैं अपने लेखन की शुरूआत के दिनों में लौट कर आपको बताना चाहता हूं कि हां मैं विज्ञान लेखक बनना चाहता हूं क्योंकि मैं जानना चाहता हूं कि मेरे आसपास मेरी दुनिया में, मेरी धरती और मेरे आकाश में, यह जो कुछ है वह ऐसा क्यों है। इसमें जो कुछ होता है वह क्यों होता है? मैं एक बच्चे की तरह अपनी इस दुनिया को देख कर इसके बारे में जानना चाहता हूं। मैं इसके बारे में सवाल-दर-सवाल पूछना चाहता हूं और उन सवालों के जवाब जानना चाहता हूं।

क्या कहा, इसके लिए मुझे पढ़ना चाहिए?
मैं भी यह महसूस करता हूं कि इसके लिए मुझे (और हां आपको भी) पढ़ना होगा। लगातार पढ़ते रहना होगा। लेकिन, मेरा मन पढ़ कर केवल अपनी जिज्ञासा का समाधन करना, अपने सवालों का उत्तर खोज लेना नहीं है। मेरा मन है कि मुझे अपनी दुनिया, अपनी प्रकृति और इस विशाल ब्रह्मांड के बारे में जो कुछ पता लगे उसे में आपको और दूसरों को भी बता सकूं। बता सकूं कि हर रोज सूरज क्यों निकलता है, क्यों डूबता है, क्यों शीतल चांद निकलता है, तारे क्यों टिमटिमाते हैं, आकाश में कहीं कोई तारा क्यों टूटता है, आकाश इतना अनंत क्यों है? पौधे क्यों उगते हैं, क्या उनमें भी प्राण हैं, फूल क्यों खिलते हैं, मनुष्य कहां आया, चिड़ियां क्यों उड़ती हैं, पशु-पक्षी कहां से आए, कीड़े-मकोड़े कहां से आए, जुगुनू क्यों चमकते हैं, मछलियां पानी में कैसे सांस लेती हैं, नदियां क्यों बहती हैं, सागर कैसे बनते हैं, बादल क्यों बनते हैं, वर्षा क्यों होती है, क्यों बर्फ गिरती है।

और भी न जाने कितना कुछ।
तो, मैं पढ़ना चाहता हूं लेकिन मैं वह सब कुछ आपको और दूसरों को बताना भी चाहता हूं। इस तरह बताना चाहता हूं कि आप मेरी बात ध्यान से सुनें, गौर से पढ़ें और उसे समझ कर चेहरे की चमक के साथ कह सकें- अच्छा तो ऐसा? तब मेरा मकसद पूरा होगा। मैंने एक रहस्य को, एक बात को जाना और उसे अपने तरीके से आपको समझा दिया। इसलिए मेरे लिखने का मतलब है कि प्रकृति के रहस्यों के ‘क्यों, क्या और कैसे’ को आप तक पहुंचा देना, इस तरह पहुंचा देना कि:

अपना कहा आप ही समझे तो क्या समझे
मज़ा कहने का जब है एक कहे और दूसरा समझे   -(गालिब)

तो क्या आप मुझसे सहमत हैं? बल्कि, क्या आप मेरे साथ इस लेखन यात्रा में चलने के लिए तैयार हैं? अगर हां, तो चलिए आगे बढ़ें।

किसके लिए लिखें?
चलिए लिखें तो सही लेकिन किसके लिए लिखें? यह जानना बहुत जरूरी है कि हम किसके लिए लिखें। हमारे पाठक, हमारे श्रोता और दर्शक कौन हैं? मैं समझता हूं, हम लोगों के आसपास, समाज में कम-से कम तीन तरह के पाठक, श्रोता, दर्शक तो हैं ही- वैज्ञानिक, छात्र व शिक्षक और जन सामान्य। इनमें से हमारा लक्ष्य वर्ग कौन है? मतलब हम इनमें से किस पाठक, श्रोता या दर्शक वर्ग के लिए लिखना चाहते हैं? लेखन के लक्ष्य वेध के लिए लक्ष्य को जानना निहायत ही जरूरी है।

पहले लक्ष्य वर्ग में वैज्ञानिक हैं, जो वैज्ञानिक भाषा में लिखते हैं और अन्य वैज्ञानिक उस भाषा को समझते हैं। ‘खग ही जाने खग की भाषा’ की स्थिति होती है। इस प्रकार के लेखन में तकनीकी शब्दों का प्रयोग किया जाता है। तकनीकी तथा अनुसंधान पत्रिकाओं के लिए वैज्ञानिक इसी प्रकार का तकनीकी लेखन करते हैं।

दूसरा लक्ष्य वर्ग है- शिक्षक व छात्र। इनके लिए वैज्ञानिक पाठ्य पुस्तकें तथा वैज्ञानिक लेख लिखे जाते हैं जिनमें अर्द्ध तकनीकी भाषा का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार का वैज्ञानिक लेखन शिक्षकों के ‘लेक्चर नोट्स’ या ‘क्लासरूम नोट्स’ की लीक पर चलता है। छात्र उसी अर्र्द्ध तकनीकी भाषा को पढ़ते-पढ़ते स्नातक स्तर पर वैज्ञानिकों की तकनीकी भाषा समझने में समर्थ होने लगते हैं। धीरे-धीरे वे भी ‘खग भाषा’ समझने-बूझने और लिखने में समर्थ हो जाते हैं। वैज्ञानिक बन जाने पर वे तकनीकी और शिक्षक बन जाने पर विशेष एकेडमिक अर्द्ध तकनीकी भाषा का प्रयोग करने लगते हैं। यहां पर एक बात बड़ी शिद्दत से याद आती है। कामनवेल्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इंटोमोलॉजी, लंदन के निदेशक रहे प्रसिद्ध कीट वैज्ञानिक डॉ. एन. सी. पंत कहा करते थे- आम स्कूलों में हाईस्कूल, इंटरमीडिएट तक हम अपनी मातृभाषा में पुस्तकें पढ़ रहे होते हैं। लेकिन, उसके बाद अचानक भाषा बदलती है। हम एक अनजान भाषा के जटिल लोक में पहुंच जाते हैं। उसे पढ़ने, समझने-बूझने में हम एक प्रकार से मूक होते जाते हैं। अब हम जो कुछ पढ़ रहे हैं उसे प्यार से अपनी भाषा में नहीं कह पाते। आगे बढ़ते-बढ़ते हम अपनी भाषा से दूर होते जाते हैं।

आप ध्यान से सोचें तो इस बात की सच्चाई और गहराई को आप जरूर महसूस करेंगे। बहरहाल, भाषा पर आगे पिफर बात करेंगे।

अब रहा तीसरा वर्ग। करोड़ों लोगों का वर्ग। इनमें घर और घर से बाहर काम करते लोग हैं, गृहणियां हैं, खेत-खलिहानों में काम करने वाले किसान हैं, कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारी, कल-कारखानों में काम करने वाले मजदूर हैं। और हां, इनमें प्रयोगशाला से घर लौटे वैज्ञानिक तथा कक्षाओं से लौटे छात्रा भी हैं। इन करोड़ों लोगों को अपने खाली वत्तफ में पढ़ने, सुनने और देखने के लिए जानकारी चाहिए। वे तरह-तरह की जानकारी चाहते हैं। हम इस विशाल वर्ग को विज्ञान की जानकारी देकर इनमें वैज्ञानिक चेतना जगा सकते हैं। इनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करने में मदद कर सकते हैं। समाज में कैसा सोच पनप रहा है, किस प्रकार की परंपराएं जन्म ले रही हैं- यह मुख्यरूप से इसी वर्ग पर निर्भर करता है। यही कारण है कि वैज्ञानिक जानकारी के अभाव में इसी वर्ग में भूत-प्रेत और चुड़ैलों की आवाजाही चलती रहती है, मूखतयों के दूध पीने की खबर जंगल की आग की तरह फैल जाती है, रातों को पत्थर बरसते हैं और गरीब असहाय औरतें डायन मान कर मार दी जाती हैं। केवल लड़कियों को जन्म देने पर औरत की ज़िदगी नरक बना दी जाती है। हर होनी-अनहोनी को दैवी इच्छा मान लिया जाता है। डॉ. दत्त प्रसाद दाभोलकर ने अपनी लोकप्रिय विज्ञान की पुस्तक ‘विज्ञानेश्वरी’ में हम सबके लिए बहुत अच्छी बात लिखी हैः

‘कोई हांक ले जाए कहीं भी
ऐसी गूंगी और बेचारी
भेड़-बकरियां मत बनना….मत बनना।’…..

मतलब अपने आसपास की घटनाओं को आंख बंद कर चुपचाप स्वीकार नहीं कर लेना चाहिए। हमें सोचना चाहिए, तर्क करना चाहिए। अपने तर्क के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहलाता है। यह, विज्ञान की जानकारी और वैज्ञानिक सोच से पैदा होता है।

इसलिए इस विशाल वर्ग तक विज्ञान लेखन के जरिए विज्ञान की अधिक से अधिक जानकारी पहुंचाना अनिवार्य है। और, हम जो विज्ञान लेखक बनना चाहते हैं, इस सामाजिक जिम्मेदारी को समझें। उसे अपना लक्ष्य बनाएं। विज्ञान लेखक के लिए यह सबसे बड़ी समाज सेवा है।

पहले किताबी कीड़ा बनें
मैं समझता हूं कि विज्ञान लेखन शुरू करने से पहले और इसके साथ-साथ हमें किताबी कीड़ा बनना चाहिए। विज्ञान अनुमान पर नहीं चलता। न इसके बारे में अनुमान से बताया जा सकता है। विज्ञान सच कहता है। उस सच की जानकारी हमें होनी चाहिए। सच जानेंगे तो सच बताएंगे। विज्ञान के हर तथ्य, हर घटना, हर आविष्कार को समझने के लिए हमें ‘बहुश्रुत बहुपठित’ होना चाहिए। विज्ञान के बारे में जितना अध्कि सुनेंगे, जितना अध्कि पढ़ेंगे- उतनी ही अच्छी तरह विज्ञान की बातें अपने पाठकों और श्रोताओं को समझा सकेंगे। अन्यथा ‘झाड़ी पीटते रह जाएंगे।’ (मैं जानबूझ कर ‘बीटिंग अबाउट द बुश’ की झाड़ी पीट रहा हूं ताकि हम यह समझ सकें कि दूसरी भाषा में कही गई बात को हम हिंदी में महज उल्टा करके न रख दें।) ऐसा विज्ञान लेखन कोई नहीं समझेगा। खैर भाषा की बात बाद में इसलिए पहले पढ़िए, गुनिए, समझिए। फिर आम आदमी को मन में बैठा कर, उसे समझाते हुए लिखिए।

विज्ञान समाचार हो या लेख या विज्ञान लेखन का कोई और रूप, उसके विषय को समझना जरूरी है। और, यह तभी होगा जब आप आदतन विज्ञान की पुस्तकें पढ़ते रहेंगे, विज्ञान समाचार पढ़ते-सुनते रहेंगे, विज्ञान की जानकारी देने वाले कार्यक्रम देखते रहेंगे। अन्यथा शहर में तो इतनी-सी मामूली बात का भी उत्तर देते नहीं बनेगा कि बड़ी इलायची पौधे पर कहां लगती है, या मूंगफली जमीन में लगती है तो इसके फूल कहां खिलते हैं।

आप कुछ पूछना चाहते हैं? शायद यह कि विज्ञान लेखक बनने के लिए क्या विज्ञान का विद्यार्थी होना अनिवार्य है? मैं भी आपसे यह पूछना चाहता हूं। आपका क्या जवाब है? मेरे विचार से विज्ञान का विद्यार्थी होने या न होने से ज्यादा जरूरी यह है कि आप में विज्ञान के प्रति रूचि हो, विज्ञान की बातें बताने में रूचि हो और विज्ञान को समझने का धैर्य हो। आप विज्ञान की कई बातें आसानी से समझ लेंगे और समझा सकेंगे। अगर आप विज्ञान के विद्यार्थी नहीं रहे हैं तो अब बन जाइए। स्वयं के बलबूते पर विज्ञान पढ़िए। इस तरह स्वाध्याय से विज्ञान समझिए और समझाइए।

आप भाग्यशाली हैं। पढ़ने के लिए आपके पास पुस्तकालयों और बाजारों में विज्ञान की पुस्तकों के भंडार हैं, हमारे पास इतनी सुविधा नहीं थी। लेकिन, एक बात के लिए हम भी भाग्यशाली हैं। तब हमारे पास पढ़ने के लिए गांव में प्रकृति थी जहां हम बीजों को उगते, पौधें को बढ़ते, फूलों को खिलते, कीड़ों को उड़ते, चिड़ियों को चहकते, बादलों को घिरते, वर्षा को बरसते, नदियों को उफनते हुए देखते थे। जंगलों में जीवन की हलचल देख सकते थे। ‘ऐसा क्यों’ और ‘कैसे’ पूछते ही रहते थे। कुछ उत्तर मिलते, कुछ नहीं मिलते। वे प्रश्न मन में रह जाते। आगे, धीरे-धीरे हमें पुस्तकों, शिक्षकों से उनके उत्तर मिलते गए। इसलिए, हमारा सुझाव है कि जहां भी और जितना भी संभव हो आप भी प्रकृति को पढ़ने की कोशिश कीजिए। प्रकृति सबसे बड़ी किताब है।

अच्छा, आप हैं कौन?
विज्ञान लेखन के लिए तैयार हैं लेकिन पहले यह तो बताइए कि आप हैं कौन? क्या आप विज्ञान पत्रकार हैं? या स्वतंत्र लेखक या पत्रकार? विद्यार्थी हैं या शिक्षक? या पिफर वैज्ञानिक? हो सकता है आप नौकरी या व्यवसाय करते हों लेकिन मन में ललक हो कि विज्ञान के बारे में लिखें? बहरहाल, सच यह है कि आप सभी विज्ञान लेखन कर सकते हैं। अगर विज्ञान लेखन की लौ जग गई है तो लिखना शुरू कर दीजिए। अगर अभी मन बना रहे हैं तो विज्ञान लेखन की लौ जगाइए और विज्ञान के सच का प्रकाश फैलाइए।

क्या कहा, मैंने कैसे शुरू किया?

संपर्क : देवेंद्र मेवाड़ी, फोनः 28080602, 9818346064,
E-mail: dmewari@yahoo.com

Tags: Broadcast JournalismCorporate JournalismDevendra MewariEconomic JournalismEnglish MediaFacebookHindi MediaInternet JournalismJournalisnNew MediaNews HeadlineNews writersOnline JournalismPRPrint JournalismPrint NewsPublic RelationScience WritingSenior Journalistsocial mediaSports JournalismtranslationTV JournalistTV NewsTwitterWeb Journalismweb newsyellow-journalismअंग्रेजी मीडियाआर्थिक पत्रकारिताइंटरनेट जर्नलिज्मकॉर्पोरेट पत्रकारिताखेल पत्रकारिताजन संपर्कटीवी मीडियाट्रांसलेशनट्विटरदेवेंद्र मेवाड़ीन्यू मीडियान्यूज राइटर्सन्यूड हेडलाइनपत्रकारपब्लिक रिलेशनपीआरपीत पत्रकारिताप्रिंट मीडियाफेसबुकलेखकविज्ञान पत्रकारितावेब न्यूजवेब मीडियासीनियर जर्नलिस्टसोशल माडियास्पोर्ट्स जर्नलिज्महिन्दी मीडिया
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