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क्या आप जानते हैं ड्रोन 16वीं शताब्दी से हमारे बीच मौजूद हैं?

क्या आप जानते हैं ड्रोन 16वीं शताब्दी से हमारे बीच मौजूद हैं?

ड्रोन एक ऐसा यांत्रिक पक्षी है जो पॉयलट के इशारे पर आसमान में उड़ाया जाता है और उसकी मशीनी आंखों को आसमान में तैनात कर एरियल यानि ऊंचाई से वांछित दृश्यों व तसवीरों को रिकार्ड किया जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि बचपन के दौर में हम सेना के प्रदर्शनों में एयरोमॉडलिंग यानि मॉडल हवाईजहाज या हैलीकॉप्टर जिन्हें रिमोट संचालित खिलौना कहा जाता था उसकी हवाई बाजीगरी देखा करते थे जो रेडियो रिमोट की सहायता से आसमान में उड़ाया जाता था. उसी एयरमॉडल प्लेन का क्रमिक विकास हुआ और आज उसे ड्रोन के नाम से जाना जाता है. फर्क सिर्फ इतना है कि अब उसमें अत्याधुनिक कैमरा लगे होते है और उसे रिमोट ही नहीं किसी भी एंडरॉयड मोबाइल से भी संचालित किया जा सकता है. खास बात यह भी है कि ड्रोन की उड़ान के दौरान ही उससे ली जा रही ताज़ा तसवीरों को अपने मॉनीटर या स्क्रीन पर देख और रिकार्ड किया जा सकता है.

इतिहास के पन्नों में ड्रोन

दरअसल ड्रोन शब्द का उदय 16 वी शताब्दी के बाद माना जाता है जिसमें मादा मधुमक्खी को आधार बनाकर यंत्र विकसित करने के प्रयास शुरू हुए लेकिन इसकी स्पष्ट व्याख्या 1930 के बाद ही सामने आई. ब्रूक्स के मुताबिक सन् 1935 में यूनाइटेड किंगडम की रॉयल एयरफोर्स ने रेडियो तरंगों से संचालित और निर्देशित पायलट रहित हवाई विमान तैयार किया था, जिसे नाम दिया गया ‘द क्वीन बी’. वहीं ग्रूम्मन हैचेस और मालॉर्ड (1946) के मुताबिक इस प्रकार के रेडियो नियंत्रित विमानों को ड्रोन कहा जाने लगा, जिन्हें मुख्य तौर पर सैना टोह लेने के लिए इस्तेमाल करती थी. एरियल फोटोग्राफी से ड्रोन तक का सफर एरियल फोटोग्राफी की दुनिया में आज ड्रोन एक महत्वपूर्ण यंत्र है लेकिन इस दौर से पहले आसमान से दृश्यों को कैद करने की प्रक्रिया बहुत महंगी और जटिल थी.

एरियल फोटोग्राफी  ड्रान तक का सफर

पाइक (2013) और प्रोफेशनल एरियल फोटोग्राफर एसोसिएशन एन.डी. के अनुसार एक फ्र्रेंच फोटोग्राफर गॉस्पर फ्लिक्स ट्यूरनॉच जिन्हें नाडार भी कहा जाता था, आसमान में गैस के गुब्बारे के ज़रिए तसवीरें कैद करने वाले पहले व्यक्ति माने जाते हैं. जिन्होंने कबूतरों, पतंगों और रॉकेट में कैमरा लगाकर फोटोग्राफी की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई. उस समय ड्रोन जैसा न यंत्र सामने आया था, न ही नाम लेकिन धीरे-धीरे आसमान से फोटोग्राफी की कोशिशें भारी भरकम हवाई विमानों से होते हुए एयरोमॉडल्स के बाद हल्के ड्रोन तक जा पहुंची. विश्व में ड्रोन की पहली घटना का उल्लेख करते हुए ट्रेम्यान और क्लार्क (2014) लिखते हैं कि पप्पाराजी फोटोग्राफरों ने 2010 में फ्रेच रिवेरा में अभिनेत्री पेरिस हिलटन पर पहला रिपोर्ताज बनाया था. इसका उल्लेख करते हुए कलर मैग्जीन में फ्लाईंग आई के संस्थापक ऐलेग्जेंडर थॉमस ने बताया कि उन्होंने ड्रोन का इस्तेमाल कर वीज्युअल्स जुटाने का प्रयास किया था और पप्पाराजी समूह को सेवाएं दी थी. हालांकि ड्रोन का उपयोग 1945 से लेकर 1990 तक सेना ने जासूसी और यु़द्ध के लिए किया लेकिन बाद में शौकिया फोटोग्राफर्स ने भी अपने उद्देश्य के लिए इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया. आज विदेशों में तो ड्रोन को लेकर कई शोध हो चुके हैं और बाकायदा नियम और कानून भी मौजूद हैं लेकिन भारत में अब भी ड्रोन के निजी इस्तेमाल को लेकर एक तनाव और असहजता का माहोल बना हुआ है.

लिहाजा सरकारी तंत्र ने भी पिछले एक साल में ड्रोन की निजी उड़ान पर प्रारंभिक नीतियां बना दी हैं. यानि आधारभूत ढ़ांचा तो तैयार है और जल्द ही कानून बनाकर ड्रोन संचालन को नियमित वैद्यता दी जा सकेगी.

हालांकि पत्रकारिता के क्षेत्र में अभी भारत के किसी भी समाचार पत्र या न्यूज चैनल ने ड्रोन का अपने स्तर पर इस्तेमाल शुरू नहीं किया है. जैसे सीएनएन, बीबीसी, सीबीएस न्यूज़,एबीसी, एनबीसी, द टेलीग्राफ और एलेफ नामक चैनल और अखबार कुछ वर्षो से समाचार संकलन के लिए ड्रोन का उपयोग कर रहे हैं.

भारत समाचारों में ड्रोन

इससे पहले कि हम भारत में ड्रोन से जुड़े नियमों और पाबंदियों की चर्चा करें यह जानना ज़रूरी है कि आखिर ड्रोन को लेकर नियम, कानून और पाबंदियों यानि वर्जनाओं की ज़रूरत क्यों है. दरअसल मोटे तौर पर तो ड्रोन यानि आसमानी कैमरा उड़ाने को लेकर जो सबसे बड़ी दहशत हमारे देश में है, वह है निजता का हनन, जासूसी और आतंकी हमलों का बढ़ता खतरा. सवाल यह है कि आखिर आसमान में उड़ाकर ड्रोन कैमरे से क्या रिकार्ड किया जा रहा है यानि उड़ाने वाले का मक्सद क्या है. इसी असहजता के कारण हमारे देश में पुलिस ने जहां शिकायत मिली वहां ड्रोन संचालक को या तो गिरफ्तार किया या रोक दिया. सच तो यह है कि अब भी पुलिस, प्रशासन और विमानपत्तन अधिकारियों के पास ड्रोन को लेकर पुख्ता कानून तो नही हैं लेकिन आम तौर पर लोगों की आपत्ति को आधार बनाकर निषिद्ध क्षेत्र में उड़ान और दुर्घटना से नुक्सान को आधार बनाकर ही मामले दर्ज करके रोकथाम की जा रही है. वर्ष 2015 में दो या तीन मामलों में पुलिस ने संझान लिया. वहीं 2016 में दर्जन भर से अधिक मामले पुलिस ने दर्ज किए. हालांकि ड्रोन उड़ाने की घटनाएं तो कई हुई लेकिन चूंकि उसकी शिकायत नहीं मिली या जानकारी न होने से कई मामले पुलिस की पकड़ से बचे रहे. सच तो यह भी है कि देश के कई ईलाकों में तो पुलिस को भी पता नहीं था कि आखिर मामले को दर्ज कैसे किया जाए. हालांकि कई राज्यों की पुलिसने आम तौरपर इस्तेमाल की जाने वाली धाराओं में ड्रोन की उड़ान पर मामले दर्ज किए.

द हिंदू में 8 जनवरी 2015 को प्रकाशित एक समाचार के मुताबिक चेन्नई पुलिस ने एक 29 वर्षीय युवक को ड्रोन उड़ाने पर गिरफ्तार किया. खबर में कहा गया कि दो विदेशी पर्यटकों द्वारा उड़ाया गया एक ड्रोन दुर्घटनाग्रस्त हुआ. इसपर धारा 287 यानि यंत्र के गैरजिम्मेदाराना इस्तेमाल और आइपीसी की धारा 336 यानि लोगों की सुरक्षा को खतरे में डालने के तहत मामला दर्ज किया गया. इसमें शहर के पुलिस कमिशनर एस जार्ज ने बताया कि इस यंत्र के गिरने से कोई घायल हो सकता है साथ ही निजता और सुरक्षा को भी खतरा पैदा होता है. वहीं म्यालापोर के डिप्टी कमिशनर ने कहा कि ड्रोन उड़ाने के लिए नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के डॉयक्टरेट जनरल और पुलिस से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेना आवश्यक है.

इसी प्रकार इंडियन एक्सप्रेस में 8 जुलाई 2015 को छपी एक खबर में मुम्बई पुलिस द्वारा रियल एस्टेट के दो कर्मचारियों को चैम्बूर के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेस परिसर के पास बगैर पुलिस अनुमति ड्रोन उड़ाने पर हिरासत में लेकर सीआरपीसी की घारा 144 के तहत मामला दर्ज किया गया. इसमें ज्वाइंट पुलिस कमिशनर देवेन भारती ने कहा कि हमने गृह विभाग को ड्रोन व पैराग्लइडर के इस्तेमाल को नियमित और अनुमति के दायरे में लाने बाबत एक पत्र लिखा है. हालांकि इस समाचार में पुलिस ने यह भी कहा है कि इस हवाई यंत्र के माध्यम से विस्फोटक ले जाने और जासूसी का अंदेशा होता है. मुम्बई के जूहू में भी इसी तरह का एक और मामला एशियन एज ने 1 मार्च 2016 को प्रकाशित किया. जिसमें नोवोटल होटल के स्क्वेयर रेस्टोरेंट में एक विवाह समारोह को ड्रोन से फिल्माने की एक शिकायत पर मामला दर्ज कर जयदीप शाक्रिया, इसरानी ओर शिव करमानी को थाने ले जाया गया और उनका ड्रोन व आई-पैड जब्त करते हुए मामला दर्ज किया.
इसी प्रकार इंडिया टुडे में 6 फरवरी 2016 को पीटीआई के हवाले से छपी खबर के मुताबिक दिल्ली के करोल बाग में एक 23 साल के फोटोग्राफर राहुल को ड्रोन उड़ाने पर पुलिस ने धारा 188 यानि लोकसेवक द्वारा प्रख्यापित आदेश की अवहेलना करना और घारा 336 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार करते हुए ड्रोन जब्त कर लिया. वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित समाचार में बताया गया कि 9 फरवरी 2016 को राजस्थान की जोधपुर पुलिस ने फोटोग्राफर दीपक वैष्णव को तब गिरफ्तार किया जब ऐतिहासिक किला मेहरानगढ की वीडियो रिकार्ड करते हुए उनका ड्रोन एक घर की छत पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. हालांकि दीपक के विरूद्ध आइपीसी की धारा 336 के तहत मामला तो दर्ज हुआ लेकिन जयपुर के एडिशनल पुलिस कमिशनर क्राइम, प्रफुल्ल कुमार ने यह भी माना कि ड्रोन उड़ाने को लेकर नियम-कानून अब भी अस्पष्ट हैं.

इसी तरह 23 फरवरी 2016 को हिंदुस्तान टाइम्स की खबर में बताया गया कि मध्यप्रदेश में फोटोग्राफी निषिद्ध क्षेत्र खजुराहो के मंदिरों की ड्रोन से वीडियोग्राफी करने वाले अमेरिकी पर्यटक डेरेक बेसिमिर को गिरफ्तार किया गया. समाचार में खजुराहों पुलिस स्टेशन के इंचार्ज के जी शुक्ला ने बताया कि अक्टूबर 2014 में नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के डॉयक्टरेट जनरल ने एक सार्वजनिक सूचना में सुरक्षा में खतरे का उल्लेख करते हुए अगले आदेश तक ड्रोन की उड़ान को भारत में प्रतिबंधित कर दिया है. वहीं द हिंदू में 21 अप्रेल 2016 को हैदराबाद के साइबराबाद में एक विवाह में ड्रोन के इस्तेमाल की शिकायत की खबर में रूप कुमार, युगांधर, कृष्ण कांत रेड्डी की गिरफ्तारी की खबर छपी. जिसमें बताया गया कि उनके ड्रोन जब्त कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया.

भारत में ड्रोन की उड़ान के नियम-कायदे

बिज़नेस स्टेंडर्ड में 25 अप्रेल 2016 को और मीडियानामा में 26 मई 2016 को प्रकाशित समाचार के मुताबिक भारत में ड्रोन को उड़ाने के लिए (DGCA) यानि नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के डॉयक्टरेट जनरल द्वारा नीति निर्देश तय कर उसका प्रारूप जारी किया. इसके तहत ड्रोन उड़ाने के लिए एक व्यक्ति की उम्र 18 साल हो, वह भारतीय नागरिक होना चाहिए, उसे ड्रोन उड़ाने के लिए अपना (UIN) यानि यूनीक आइडेंटीफिकेशन नंबर प्राप्त कर पंजीकरण व पहंचान संख्या लेनी होगी. यूआइएन प्राप्त ड्रोन को बिना अनुमति बेचा या खुर्द-बुर्द नहीं किया जा सकेगा, साथ ही (UAOP) यानि अनमैन्ड एयरक्राफ्ट ऑपरेटर परमिट लेकर ड्रोन पर फायरप्रूफ आइडी प्लेट लगानी होगी. इसके लिए 90 दिन पहले आवेदन करना होगा. ड्रोन संचालक को (BCAS) यानि ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी से अनुमति व मंज़ूरी भी लेनी होगी और प्रति उड़ान की सूचना (ATC) यानि एयर ट्रेफिक कंट्रोलर को देनी होगी. नियमों के तहत नियंत्रित आकाश में ड्रोन उड़ान प्रतिबंधित रहेगी लेकिन मुक्त आकाश में ड्रोन उड़ाने की इजाज़त मिलेगी जिसकी जिला प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य होगा लेकिन किसी भी स्थिति में ड्रोन पायलट की आंखों से ओझल नही होना चाहिए यानि उसके निगाह में रखने की हिदायत दी गई है. ड्रोन को 200 फीट तक उड़ाया जा सकेगा साथ ही उसे तयशुदा ऊंचाई से अधिक उड़ाने के लिए भी सूचना देना और अनुमति लेने की प्रक्रिया को पूरा करना पड़ेगा. ड्रोन की रात्रि में उड़ान को अनुमति नहीं दी जाएगी. नियमों में कहा गया है ड्रोन यंत्र का बीमा कराना होगा साथ ही दुर्घटना होने पर डीजीसीए, बीसीएएस और नागरिक उड्डयन सुरक्षा से संबंधिक निदेशक को 24 घंटे के भीतर सूचित करना होगा. इसमें बताया गया है कि ड्रोन संचालक उड़ान में प्रशिक्षित हो और उसके पास (FRTOL) यानि फ्लाइट रेडियो टेलीफोन ऑपरेटर लाइसेंस जैसा निजी विमान उड़ाने का लाइसेंस होना चाहिए. खास बात यह है कि नियमों में यह भी कहा गया है कि ड्रोन में संचार या संपर्क टूटने पर घर वापसी का फीचर या प्रोग्राम होना ज़रूरी है.
उल्लेखनीय है कि डीजीसीए ने दो से डेढ सौ किलो के ड्रोन के पैमाने भी तय कर दिए हैं. हालांकि प्रतिबंधों का दायरे में कुछ स्थाई क्षेत्र भी आते हैं जैसे देश के सरहदी ईलाके, सैन्य क्षेत्र, वायुसेना क्षेत्र, ऐतिहासिक इमारतें, सरकारी भवन, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, रेलवे आरक्षित क्षेत्र सहित अन्य वर्गीकृत सरकारी कार्यालय और विज्ञान, तकनीक व शोध से जुड़े सरकारी परिसर आदि.

बताया जाता है कि ड्रोन से संबंधित इन आधारभूत नियमों को सरकार के विमानन सलाहकार मार्क मार्टिन ने तैयार किया.

भारत में पहला ड्रोन

हमारे देश में भी ड्रोन को रिपोर्टिंग के लिए आजमाया जा चुका है. यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का लिनकॉलिनस की ड्रोन जर्नलिज्म लैब के शोधकर्ता बेन क्रीमर ने अपने ‘डीजेआई फैंटम क्वाडकॉप्टर’ यानि ड्रोन के जरिए पहली बार गुजरात के बडौदा जिले में खेलों की वीडियाग्राफी की और फोटो खींची. खास बात यह रही कि बेन ने बड़ौदा ओपन सॉकर मैच में खींची गई अपनी तसवीरों को टाईम्स ऑफ इंडिया को उपहार में दे दिया. अपने आपमें इस अनूठे प्रयास को टाईम्स ऑफ इंडिया ने 14 दिसंबर 2013 को अपने प्रकाशित करते हुए बेन को इसका श्रेय दिया, यही नहीं उसमें बेन के साथ-साथ फोटो खींचने वाले ड्रोन को भी इन्सेट में दिखाया गया.

हालांकि कई विश्वविद्यालय आज ड्रोन के जरिए अपनी एरियल फिल्म और प्रचार सामग्री बना रहे हैं. लेकिन बेन ने अपने भारत दौरे के समय बड़ौदा की एमएस यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के सहयोग से यूनिवर्सिटी की एरियल फोटोग्राफी और वीडियाग्राफी कर एक प्रचार फिल्म बनाई. वहां ड्रोन के जरिए यूनिवर्सिटी के भीतर और बाहर के कई एरियल दृश्य फिल्माए गए. ड्रोन के जरिए बनाई गई इस फिल्म को बेन ने गांधीनगर में आयोजित हुए राष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन, वाईब्रंट गुजरात 2014 में प्रदर्शित किया. इसी प्रकार हिन्दुस्तान समाचार-पत्र के एक समाचार में बताया गया है कि आईआईटी दिल्ली के फिजिक्स इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों ने एक ऐसा छोटा ड्रोन तैयार किया है जो चार हज़ार फीट तक उड़ान भर सकता है. खास बात यह भी है कि यह अत्याधुनिक सेंसर से लैस है और यह तसवीरें खींचने में सक्षम तो है ही साथ ही रिमोट के जरिए आदेश दिए जाने पर इसमें लगी छोटी बंदूकों से हमला भी कर सकता है.

भविष्य में पत्रकारिता को नया आयम देगा ड्रोन

19वीं शताद्धी के मध्य में पॉल रिउटर ने स्टॉक मार्केट की खबरें भेजने के लिए जर्मनी के आचिन और बेल्जियम के ब्रूसेल्स के बीच कबूतरों का इस्तेमाल किया था और द टैलीग्राफ ने भी खबरों के आदान-प्रदान के लिए कबूतरों को ही माध्यम बनाया था. लेकिन कोई नहीं जानता था कि अलगाववादी क्षेत्रों में बतौर हथियार इस्तेमाल किया जाने वाला युद्धक ड्रोन मीडिया और संचार के क्षेत्र में एक क्रांति पैदा कर देगा.

आने वाले समय में ड्रोन पत्रकारिता, टीवी चौनल की पूरी तसवीर ही बदलकर रख देगी. हो सकता है कि ड्रोन के साथ कैमरा ही नहीं माइक भी लगा हो और न्यूजरूम से समाचार पढ़ता एंकर चुनाव या रैलियों में बयान देने आए नेताओं से बिना रिपोर्टर ही संपर्क बनाने में कामयाब हो जाए. वहां ड्रोन नेताओं के आगे हवा में ही स्थिर हो जाए और एंकर स्टूडियो से सीधे ही नेता या मंत्री से सवाल-जवाब करने में सक्षम हो जाए. यही नहीं आपात स्थितियों में पत्रकार और पुलिस सभी ड्रोन पर ही आश्रित हो जाएं. कहीं बम फटने की खबर हो, कोई हादसा हो या दुर्गम क्षेत्रों में किसी नेता या मंत्री का दौरा सभी जगह ड्रोन यानि आंखे तैनात हो जाएं. यह वाकई होता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि सबसे पहला कारण कि यह कम खर्चीला है और दूसरा यह कि इसके जरिए मीडिया अनियंत्रित क्षेत्रों या स्थितियों में भी अपनी पहुंच बना सकता है और आसानी से दृश्य हासिल कर सकता है.

रॉयटर्स इन्सटीट्यूट फॉर स्टडी ऑफ जर्नलिज्म की रिपोर्ट रिमोटली पॉयलेटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम एण्ड जर्नलिज्म अपॉर्च्युनिटीज एण्ड चौलेंजेस ऑफ ड्रोन इन न्यूज गैदरिंग के मुताबिक यह तब तक एक ही सामयिक प्रश्न है जब तक यह उड़ने वाले वाहन प्रिंट और वीज्युअल मीडिया के दफ्तरों में खड़े नहीं दिखाई देते.

अब तक हमारे देश में सरहदों की सुरक्षा और निगरानी के लिए ही ड्रोन का उपयोग किया जाता रहा है. हाल ही में भारतीय सेना का नया हमलावर ड्रोन रूस्तम चर्चा का विषय बना. लेकिन अब सेना के बाद पुलिस-प्रशासन भी ड्रोन को निगरानी के लिए प्रयोग में ला रहे हैं. सहारनपुर में हुए सामूहिक संघर्ष के दौरान पुलिस प्रशासन ने अनमैन्ड एरियल व्हीकल यानि कैमरे वाले ड्रोन की सहायता से तंग गलियों का जायज़ा लिया था. वर्ष 2014 में वहां ड्रोन की मदद से ऐसे क्षेत्रों की निगरानी की जहां पुलिस को खतरा था. ऐसे में जहां पुलिस की गाड़ियां नहीं जा सकती थीं या घात लगाकर हमले का खतरा लगा, वहां ड्रोन से निगरानी की गई. खैर, उत्तर प्रदेश में पुलिस और प्रशासन ने इसे प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल करते हुए निगरानी यंत्रों के इस्तेमाल में अपनी पहल दर्ज कर दी. उसके बाद राजस्थान सरकार के विज्ञापनों में ड्रोन से फिल्माए दृश्य देखने को मिले और नोएडा पुलिस ने ट्रॉफिक नियंत्रण व उल्लंघन के मामले दर्ज करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया. लेकिन विश्व के कई देश, सेना के अलावा ड्रोन को मौसम की जानकारी, प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत कार्य करने, आगजनी की घटनाओं में बचाव कार्य करने और भौगोलिक परिवर्तन के अध्ययन में इस्तेमाल कर रहे है. ड्रोन के अपने फायदे हैं और इसीलिए दुनियां भर में इस यंत्र के उपयोग में तेज़ी आई है.

दरअसल ड्रोन रिपोर्टिंग के लिए एक सस्ता, सटीक और मारक यंत्र है. खास बात यह है कि आम तौर पर शहरों में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान टीवी कैमरामैनों को बड़ी परेशानी आती है. जाहिर है ऐसे में पुलिस तैनात होती है और दृश्य बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है. यही नहीं अगर कहीं बाढ़ आ जाए या आग लगी हो या फिर कोई ईमारत दुर्घटनाग्रस्त हो गई हो. तब मीडियाकर्मियों को भी अपनी जान जोखिम पर रखते हुए समाचार संकलन करना पड़ता है. लेकिन ड्रोन पत्रकारिता इन सभी परेशानियों का समाधान मानी जा रही है. क्योंकि अगर आपके पास ड्रोन है तो आपको पुलिस से उलझने की जरूरत नहीं है, न ही अग्निकाण्ड जैसे हादसों में अलग-अलग कोण से दृश्य बनाने में समय और परिश्रम करना होगा यही नहीं बाढ़ जैसी आपदा के दौरान नाव की मदद लेने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. सच तो यह है कि इस प्रकार की आपदाओं और दुर्घटनाओं में ड्रोन की मदद से बेहतर दृश्यों का संकलन किया जा सकता है. उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही भारतीय समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में सक्रीय रूप से ड्रोन पत्रकारिता देखने को मिलेगी.

– प्रोफेसर (डॉ.) सचिन बत्रा
 
 
लेखक परिचयः प्रोफेसर (डॉ.) सचिन बत्रा एमिटी विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन में डीन और डॉयरेक्टर पब्लिक रिलेशन कार्यरत हैं। उन्होंने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में एमए और किया है और हिन्दी पत्रकारिता मेंपीएचडी की है, साथ ही फ्रेंच में डिप्लोमा भी प्राप्त किया है। उन्होंने आरडब्लूजेयू और इंटरनेश्नल इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म, ब्रेडनबर्ग, बर्लिन के विशेषज्ञ से पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया है। वे दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और दैनिक नवज्योति जैसे समाचार पत्रों में विभिन्नपदों पर काम कर चुके हैं और उन्होंने राजस्थान पत्रिका की अनुसंधान व खोजी पत्रिका नैनो में भी अपनी सेवाएं दी हैं। इसके अलावा वे सहारा समय के जोधपुर केंद्र में ब्यूरो इनचार्ज भी रहे हैं। इस दौरान उनकी कई खोजपूर्ण खबरें प्रकाशित और प्रसारित हुई जिनमें सलमान खान काहिरण शिकार मामला भी शामिल है। उन्होंने एक तांत्रिका का स्टिंग ऑपरेशन भी किया था। डॉ. सचिन ने एक किताब और कई शोध पत्र लिखे हैं, इसके अलावा वे प्रोफेशनल सोसाइटी ऑफ़ ड्रोन जर्नलिस्टस, अमेरिका के सदस्य भी हैं। वे गृह मंत्रालय के नेशलन इंस्टीट्यूट ऑफ़डिज़ास्टर मैनेजमेंट में पब्लिक इंफार्मेशन ऑफिसर्स के प्रशिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध हैं। उन्होंने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 15 वर्ष काम किया और पिछले 6 वर्षों से मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

 

 

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