About
Editorial Board
Contact Us
Sunday, March 26, 2023
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Journalism

आर्थिक पत्रकारिता: राजनीति पर अर्थव्यवस्था का बोलबाला

आर्थिक पत्रकारिता: राजनीति पर अर्थव्यवस्था का बोलबाला

शिखा शालिनी |

एक दौर था जब देश में राजनीति और राजनीतिक व्यवस्था सबको नियंत्रित करती थी। लेकिन अब हालात कुछ और हैं अब राजनीति से ज्यादा अर्थव्यवस्था का बोलबाला है क्योंकि इससे सभी प्रभावित हो रहे हैं। यह बात दमदार तरीके से स्थापित हो रही है कि दुनिया के विकसित, विकासशील और अल्पविकसित देश विभिन्न देशों के साथ आर्थिक संबंधों को धार दिए बिना विकास की रफ़्तार को बढ़ा नहीं सकते या विकास की दौड़ में आगे नहीं जा सकते हैं। दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्र अमेरिका की बात करें तो वह भी राजनीतिक रूप से इसलिए शक्तिशाली है क्योंकि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर उसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नियंत्रण है। अमेरिकी डॉलर में उतार-चढ़ाव का असर दुनिया की विभिन्न मुद्राओं और अर्थव्यवस्थाओं पर देखा जाने लगा है।

अरब देशों के पास अपार तेल-संपदा है लेकिन इसके बावजूद उनका राजनीतिक भविष्य यूरोपीय और पश्चिमी देश करते हैं। अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिनके पास आर्थिक सत्ता है वे ही दुनिया की राजनीति और संस्कृति को भी नियंत्रित करने लगे हैं। चीन जैसे साम्यवादी देश को भी अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कुछ दशक पहले ही उदारीकरण की राह पर चलना पड़ा जिसके नतीजे भी उसे सकारात्मक तौर पर देखने को मिले। यह और बात है कि अब चीन की वृद्धि दर को लेकर आशंकाओं के बादल मंडरा रहे हैं।

भारत में इस वक्त किसानों की स्थिति दयनीय है और उन्हें लागत के हिसाब से मुनाफा पाने की कल्पना भी बेमानी लगती है। लेकिन इन हकीकतों के बीच यह स्वीकारा जा सकता है कि दुनिया में कई देश खेती को उद्योग के तौर पर देख रहे हैं और इसका भविष्य भी दुनिया के बाजारों से तय हो रहा है। ऐसे में लाजिमी है कि किसान भी वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनें और वे अपनी फसल के बलबूते मुनाफा कमाएं तभी उनकी स्थिति में सुधार होगा लेकिन इसके लिए सरकार की आर्थिक नीतियां अहम होंगी।

ऐसे दौर में जब शिक्षा, तकनीक, ऊर्जा सहित कई नए क्षेत्रों में विकास हो रहा है तो छात्रों के लिए भी अहम है कि वे इन सभी पहलुओं से अच्छी तरह वाकिफ हों। निसंदेह अब दुनिया भर की आने वाली पीढ़ियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनना होगा और उसमें उनकी भूमिका भी तय होगी। छात्र अर्थव्यवस्था और उसकी जटिलताओं को समझें तो बेहतर होगा। यह दौर ऐसा है जब आप तकनीक से अछूते नहीं रह सकते हैं। अब लोगों की जिंदगी की लगभग ज़्यादातर चीज़ें तकनीक से प्रभावित हो रही हैं। ठीक इसी तरह पत्रकारिता के पेशे में राजनीति और अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को समझे बिना काम नहीं चल सकता है।

देश में आर्थिक पत्रकारिता के आगाज के दौर को भी याद करें तो उसमें अर्थव्यवस्था और राजनीतिक अनिश्चितता की भूमिका बड़ी प्रबल रही है। बात 1960-70 के दशक की है जब देश में आर्थिक अस्थिरता और राजनीतिक अनिश्चतता का माहौल था। देश को इस दौरान चीन-पाकिस्तान से युद्ध और सूखा पड़ने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना भी करना पड़ा। इसी दौर में आर्थिक पत्रकारिता का विकास होने लगा था। आर्थिक पत्रकारिता को आधार देने के लिए आर्थिक अख़बारों की शुरुआत हुई। हालांकि ये अख़बार अंग्रेजी भाषा में थे। दरअसल मुख्यधारा के अंग्रेजी अख़बारों को इन वर्षों के दौरान आर्थिक अख़बार की नींव रखने के लिए वजहें मिलीं थीं। उन दिनों हिंदी अख़बारों में जिंसों के भाव भर ही छपा करते थे। जब देश में 1990 के दशक में उदारीकरण का दौर शुरू हुआ तो इन आर्थिक अख़बारों के विस्तार के लिए पर्याप्त गुंजाइश बनने लगी।

पिछले एक-दो दशक के दौरान जब देश की राजनीति में व्यापक परिवर्तन देखा गया है तो ऐसे वक्त में यह ज़रूरत महसूस की गई कि मीडिया अहम घटनाओं की जानकारी देने के साथ ही आर्थिक महत्व की जानकारियों से भी पाठकों को रूबरू कराए। इसी वजह से मुख्यधारा के अख़बारों के मुकाबले आर्थिक अख़बारों ने शेयर बाजार, जिंस बाज़ार, वित्तीय संस्थानों और कॉरपोरेट जगत के प्रदर्शन के बारे में मध्यम वर्ग के निवेशकों को शिक्षित करना शुरू कर दिया। मीडिया जगत की शीर्ष स्तर की कंपनियों ने मध्यम वर्ग के हिंदीभाषी पाठकों, दर्शकों के लिए हिंदी भाषा में चैनल और आर्थिक अख़बार शुरू किए। जिसमें ज़ी समूह और नेटवर्क 18 के बिज़नेस चैनल, टाइम्स समूह, भास्कर समूह का हिंदी भाषा में आर्थिक अख़बार शामिल है। बिज़नेस स्टैंडर्ड देश में हिंदी का पहला आर्थिक अख़बार है जिसके आठ संस्करण फिलहाल प्रकाशित होते हैं। हालांकि बाकी आर्थिक अख़बारों का हाल उतना अच्छा नहीं कहा जा सकता है लेकिन इतना ज़रूर है कि आम उपभोक्ता और निवेशक आर्थिक जगत की ख़बरों से ख़ुद को अपडेट रखना चाहता है जिसे मीडिया जगत की कंपनियां अच्छी तरह भुनाने की फ़िराक में हैं।

अब यह आलम है कि आर्थिक अख़बारों के अलावा कई पत्रिकाएं, टीवी चैनल और कई इंटरनेट वेबसाइटें भी आर्थिक पत्रकारिता के लिए ही समर्पित नज़र आ रही हैं जिन पर वैश्विक स्तर की आर्थिक संस्थाओं के आंकड़ों की भरमार, वैश्विक आर्थिक संस्थाओं का विश्लेषण और शेयर बाज़ार की गतिविधियों का ब्योरा चलता हुआ नज़र आता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आर्थिक नीतियों और विकास योजनाओं में आर्थिक पत्रकारिता की भूमिका अप्रत्यक्ष तरीके से ही सही नज़र आती है।

आर्थिक पत्रकारिता करने वाले छात्रों के लिए यह अहम होगा कि वे वित्त क्षेत्र और बाजार चाल तथा उसको प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों को समझें। आम लोगों की ज़िंदगी में वित्तीय प्रबंधन से जुड़े पहलू के लिए पर्सनल फ़ाइनैंस पर ध्यान देना भी ज़रूरी है। इसके अलावा कई अहम क्षेत्र हैं जो अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं मसलन बैंकिंग, रिटेल, रियल एस्टेट, जिंस, रेल, नागरिक विमानन, ऊर्जा, दूरसंचार। इन क्षेत्रों की प्रमुख कंपनियों और नियामक संस्थाओं की जानकारी रखनी ज़रूरी होगी। उद्योग और आर्थिक संगठनों की कार्यप्रणाली और उनके बारे में जानकारी रखें तो बेहतर होगा। इसके अलावा वैधानिक शब्दावली की समझ भी होनी ज़रूरी है क्योंकि रिपोर्टिंग के दौरान इन पर ग़ौर करना ज़रूरी होगा।

2008-09 से शुरू वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर से अब तक की स्थिति पर गौर करें तो राजकोषीय घाटे, कम वृद्धि दर, बढ़ती महंगाई दर के बीच भी भारतीय बाजार की स्थिति अपेक्षाकृत सुदृढ़ ही रही है। विदेशी निवेशकों के लिए उभरती अर्थव्यवस्थाएं आकर्षण का केंद्र बन रही हैं। ऐसे में पत्रकारिता के क्षेत्र में उतर रहे छात्रों को राजनीति और अर्थव्यवस्था के बीच बढ़ते सामंजस्य को समझना ज़रूरी है। बाज़ार और उसकी मांग आर्थिक नीतियों को भी प्रभावित करते प्रतीत हो रहे हैं। ऐसे दौर में पत्रकारिता में अर्थव्यवस्था, कारोबार की अहमियत आने वाले दिनों में और बढ़ेगी इसमें कोई संदेह नहीं है जिसके लिए पत्रकारिता के छात्रों को खु़द को तैयार करना चाहिए। पत्रकारिता का प्रशिक्षण दे रहे संस्थानों को भी इस पर पूरा ध्यान देना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था में निरंतर हो रहे परिवर्तन की अद्यतन जानकारी छात्रों को उपलब्ध कराई जा सके। पाठ्यक्रम में भी इसे शामिल करना बेहद ज़रूरी है।

शिखा शालिनी ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन प्रशिक्षण प्राप्त किया है. अभी वे बिज़नस स्टैण्डर्ड में कार्यरत हैं.

Tags: Economic JournalismShikha Shalini
Previous Post

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा - समाचार लेखन के सिद्धांत

Next Post

समाचार : अवधारणा और मूल्य

Next Post
समाचार : अवधारणा और मूल्य

समाचार : अवधारणा और मूल्य

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Development of Local Journalism

March 22, 2023

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

Evolution of PR in India and its present status

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

आर्थिक-पत्रकारिता क्या है?

Recent Post

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

Fashion and Lifestyle Journalism Course

Development of Local Journalism

Audio Storytelling and Podcast Online Course

आज भी बरक़रार है रेडियो का जलवा

Fashion and Lifestyle Journalism Course

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.