About
Editorial Board
Contact Us
Tuesday, March 28, 2023
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Contemporary Issues

हिन्दी पत्रकारिता में अनुवाद धर्म

हिन्दी पत्रकारिता में अनुवाद धर्म

प्रियदर्शन

‘फेबुलस फोर’ को हिन्दीध में क्या लिखेंगे? ‘यूजर फ्रेंडली’ के लिए क्यों शब्दफ इस्तेकमाल करना चाहिए? क्या ‘पोलिटिकली करेक्ट ‘ के लिए कोई कायदे का अनुवाद नहीं है? ऐसे कई सवालों से इन दिनों हिंदी पत्रकारिता रोज जूझ रही है। अक्सरर उसे बिल्कु ल सटीक अनुवाद नहीं मिलता और वह थक-हार कर अंग्रेजी के शब्दोंल का इस्ते माल करने को बाध्य होती है। इस लेख का उद्देश्ये यह शुद्धतावादी विलाप नहीं है कि हिंदी में अंग्रेजी के शब्द घुल-मिल रहे हैं, बस यह याद दिलाना है कि इन दिनों हमारी पूरी भाषा अंग्रेजी के वाकय विन्या-स और संस्का र से बुरी तरह संक्रमित है। जो वाक्ये शुद्ध और निरी हिंदी के लगते हैं, उनकी संरचना पर भी ध्याजन दें तो समझ में आता है कि वे मूलत: अंग्रेजी में सोचे गए हैं और अनजाने में मस्तिष्क ने उनका हिंदी अनुवाद कर डाला है।

मीडिया की भाषा पर अंग्रेजी के इस प्रभाव की दो वजहें बेहद साफ हैं। एक तो यह कि जो लोग इन दिनों पत्रकारिता या किसी भी किस्मद का प्रशिक्षण प्राप्तग करके आ रहे हैं, उनके समूचे अभ्या स में यह अनुवादधर्मी भाषा शामिल है। दूसरी बात यह कि हमारी वर्तमान पत्रकारिता के ज्यादातर सरोकार और संदर्भ बाहर से आ रहे हैं, जो अपने साथ सिर्फ भाषा नहीं, एक पूरा संसार ला रहे हैं। ऐसे विजा‍तीय संदर्भों के लिए अंग्रेजी शब्दोंस का सहारा लेने के अलावा और कोई रास्तात नहीं है, लेकिन क्यां हमारी पूरी पत्रकारिता ही नहीं, पूरी आधुनिक जीवन पद्धति इस बाहरी अभ्याकस की देन नहीं है? और क्योंकि इसका वास्ताद बीते एक-दो दशकों में दिखाई पड़ने वाले भूमंडलीकरण भर से है या इसका कोई अतीत भी है?

इस सवाल पर विचार करें तो वह संकट नजर आता है, जो एक भाषा और समाज के तौर पर हमारे सामने है और जिसे हम देख नहीं पा रहे। भाषाओं में लेन-देन नयी बात नहीं है। जो भाषाएं ऐसे लेन-देन से बचती हैं और अपनी परिशुद्धता के अहन्मबन्य घेरे में रहना चाहती हैं, वे मरने को अभिशप्ती होती हैं। दुनिया की सारी भाषाओं में यह लेन-देन दिखता है, जो शब्दों से लेकर वाक्यी रचनाओं तक जाता है, लेकिन हर भाषा की अपनी एक प्रकृति होती है। उसमें जब दूसरी भाषा के शब्दय आते हैं तो उनका रूप बदलता है, उनसे जुड़े उच्चाशरण बदलते हैं, कई बार मानी भी बदल जाते हैं। हिन्दी, ने उसी तर्क से ऑफिसर से अफसर बनाया, रिपोर्ट से रपट बनाई और साइकिल को एक दूसरे अर्थ में इस्तेामाल किया। कार और बस ही नहीं, स्कूदल और कॉलेज हमारे शब्दइ हो चुके हैं और उन पर व्याीकरण के हमारे ही नियम लगते हैं। उर्दू ने भी ब्राह्मण को अपनी प्रकृति के हिसाब से बिरहमन में बदल है और ऋतु को रुत में ढाला है। अंग्रेजी में भी ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे।

लेकिन हिंदी पत्रकारिता में अब आकर जो नयी चिंताजनक प्रवृत्ि म दिख रही है, वह अंग्रेजी के शब्दोंच को ज्यों का त्यों स्वीनकार और इस्ते माल करने की है। इसमें किसी शब्दर के साथ खेलने, उसको अपनी प्रकृति में ढालने, उससे मुठभेड़ करने और एक नयी तरह का, अपनी जरूरत की टकसाल में ढला शब्दस बनाने की कोशिश नहीं दिखती, बल्कि एक वैचारिक शैथिल्यब नजर आता है, जिसमें अपनी आत्मबहीनता का एहसास भी शामिल है।

कोई चाहे तो यह वाजिब सवाल पूछ सकता है कि किसी भी भाषा के शब्दोंह या नामों को ठीक उसी तरह अपनाने और बोलने में क्याब हर्ज है? अगर कनाडा को कैनेडा बोलें और अवाडर्स का इस्ते्माल करें तो क्याो हमारा काम नहीं चलता? निस्संदेह काम चल जाता है, लेकिन धीरे-धीरे हम पाते हैं कि यह भाषिक परजीविता एक वैचारिक परजीविता में भी बदल रही है। और इस परजीविता का सबसे करुण पक्ष यह है कि हम अपने पोषण के लिए कुछ चुनने को स्वसतंत्र नहीं हैं, बल्कि एक दी हुई शब्दावली के आसपास जो कुछ मिल रहा है, उसे चरते हुए जीने को मजबूर हैं।

इसका सबसे अच्छा प्रमाण आज के मीडिया की भाषा है, जो लगभग सारे चेनलों, सारे संवाददाताओं और सारे एंकरों की बिलकुल एक हो गई है। हर जगह ‘सनसनीखेज खुलासा’ दिखता है, हर जगहर ‘सीरियल ब्लाहस्ट में दहली दिल्ली ‘ नजर आता है, हर तरु ‘सिंगूर को टाटा’ मिल जाता है। जो लोग इस भाषिक इकहरेपन को मीडिया की मजबूरी बताते हैं और इसे आम बोलचाल तक पहुंचने की कोशिश से जोड़ते हैं, वे न मीडिया में कोई संभावना खोजना चाहते हैं, न आम बोलचाल में कोई समझ देखना चाहते हैं। दरअसल इस भाषिक पराश्रय का ही नतीजा है कि पहले हम नहीं सोचते, कोई और सोचता है, जिनकी हम नकल करते हैं। कह सकते हैं कि यह सिर्फ पत्रकारिता की नहीं, भारत में इन दिनों दिख रहे समूचे वैचारिक उद्यम की मजबूरी है, लेकिन क्यो खुद पत्रकारिता ही इस मजबूरी के पार का रास्ता नहीं खोज सकती?

दरअसल भाषा सिर्फ माध्यीम नहीं होती, वह एक पूरा संदर्भ भी होती है। आज अगर मीडिया की भाषा में हमारी कोई जातीय अनगूंज नहीं दिखती, उससे हमारे भीतर बना कोई भाषिक तार नहीं हिलता तो खबर भी हमारे लिए मायने नहीं पैदा करती। शायद यही वजह है कि कोसी की बाढ़ से बेदखल हुए 25 लाख लोगों की तबाही पीछे छूट जाती है और ‘आईटी सेक्टमर’ के 25000 ‘प्रोफेशनल्सै’ के ‘जॉबलेस’ हा जाने के अंदेशे से अमेरिका का आर्थिक संकट बड़ा हो जाता है। (4 अप्रैल, 2008 : हिन्दुकस्ताकन)

प्रियदर्शन ‘एनडीटीवी इंडिया’ में 2003 से सीनियर एडिटर के रूप में काम कर रहें हैं. इससे पहले वे हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ में सहायक संपादक और हिंदी दैनिक ‘रांची एक्सप्रेस’ में काम कर चुकें हैं.उनकी प्रकाशित किताबों में ज़िंदगी लाइव (उपन्यास), उसके हिस्से का जादू (कहानी संग्रह), बारिश, धुआं और दोस्त (कहानी संग्रह), नष्ट कुछ भी नहीं होता (कविता संग्रह), इतिहास गढ़ता समय (आलेख संग्रह), ख़बर बेख़बर (पत्रकारिता पर केंद्रित किताब), ग्लोबल समय में कविता (आलोचना), ग्लोबल समय में गद्य (आलोचना), नए दौर का नया सिनेमा (सिने केंद्रित पुस्तक), कविता संग्रह मराठी अनुवाद में प्रकाशित और उपन्यास ज़िंदगी लाइव (अंग्रेज़ी में अनूदित) शामिल हैं.

उन्होंने कई पुस्तकों का अनुवाद भी किया है न जिनमे आधी रात की संतानें (उपन्यास, मिडनाइट्स चिल्ड्रेन, सलमान रुश्दी), क़त्लगाह (उपन्यास, टॉर्चर्ड ऐंड डैम्ड, रॉबर्ट पेन), बहुजन हिताय (द ग्रेटर कॉमन गुड, अरुंधती रॉय), पर्यावरणवादी पीटर स्कॉट की जीवनी, पर्यावरण प्रहरी (लेखों का संग्रह- द ग्रीन टीचर) और कुछ ग़मे दौरां (लेख संग्रह, के बिक्रम सिंह) शामिल हैं .उन्होंने कहानियां रिश्तों की: बड़े बुज़ुर्ग और पत्रकारिता में अनुवाद पुस्तकों का संपतान भी किया है. पत्रकारिता और साहित्य में उन्हें अनेक पुरस्कार भी मिले हैं जिनमें कहानी संग्रह ‘उसके हिस्से का जादू’ के लिए स्पंदन पुरस्कार 2009, हिंदी अकादमी पत्रकारिता पुरस्कार 2015 और विजय वर्मा कथा सम्मान 2016 शामिल हैं.

Tags: hindi journalismPriyadarshanTranslation Challenges
Previous Post

पूंजी की पत्रकारिता

Next Post

INTRODUCTION TO COMMUNICATION RESEARCH

Next Post
हिन्दी पत्रकारिता में अनुवाद धर्म

INTRODUCTION TO COMMUNICATION RESEARCH

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Development of Local Journalism

March 22, 2023

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

Evolution of PR in India and its present status

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

आर्थिक-पत्रकारिता क्या है?

Recent Post

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

Fashion and Lifestyle Journalism Course

Development of Local Journalism

Audio Storytelling and Podcast Online Course

आज भी बरक़रार है रेडियो का जलवा

Fashion and Lifestyle Journalism Course

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.