प्रबुद्ध जैन।
इस दौर की पत्रकारिता से अगर गूगल को निकाल दिया जाए या यूं कहा जाए कि एक दिन बिना गूगल के काम करना है तो यकीन मानिए कइयों के दिल की धड़कन बेकाबू हो जाएगी…कई को एसी दफ़्तर में भी पसीना आ सकता है।
दरअसल, आज के पत्रकार के लिए, फिर चाहे वो रिपोर्टर हो या डेस्क का व्यक्ति, गूगल अलादीन का चिराग है जिसमें बैठा जिन्न हर आदेश को चुटकी बजाते पूरा कर देता है, सूचना की हर ख़्वाहिश को कुछ पलों में सामने ला देता है यानी कुल मिलाकर गूगल एक ऐसा दोस्त बन चुका है जिसकी सोहबत के बिना अब गुज़ारा नहीं।
सच पूछा जाए तो इसमें कोई बुराई भी नहीं…बस एक खटका ज़रूर है। वैसे तो गूगल के इस्तेमाल को लेकर कई हिदायतें हो सकती हैं लेकिन इस हिस्से में हम ख़ास तौर पर गूगल के ज़रिए तस्वीरों की तलाश औऱ संभावित ग़लतियों से बचने पर ध्यान देंगे। यही वजह है कि इस लेख को पहली किस्त की तरह पेश किया जा रहा है।
साल था 2008। टाइम्स नाउ ने प्रोविडेंट फंड घोटाले में आरोपी जजों की ख़बर चलाई जिसमें शामिल तस्वीरों में एक तस्वीर थी जस्टिस पीबी सावंत की। अब तस्वीर इस्तेमाल होनी थी किन्हीं सामंत साहब की और ऑन एयर हो गई जस्टिस सावंत की। 15 सेकेंड चली तस्वीर का नतीजा 100 करोड़ के मानहानि दावे के तौर पर सामने आया।
साफ़ है, चूक तो हुई थी और बहुत मुमकिन है कि इसके लिए गूगल महाराज ज़िम्मेदार रहे हों। आख़िर जिस शख़्स को आप पहचानते भी न हों और टीवी के ज़बर्दस्त दबाव के बीच विजुअल दिखाने की जल्दबाजी भी हो तो क्या करेंगे.. कुछ ऐहतियात बरतेंगे तो ऐसी चूक होने की संभावना न के बराबर रह जाएगी।
सबसे पहला सबक ये कि गूगल इमेज पर जिस शख़्स की तस्वीर चाहिए उसे सिर्फ नाम से सर्च न करें। नाम के साथ जिस ख़बर के साथ उसका संबंध है, वो ज़रूर लिखें। इसे एक उदाहरण से समझते हैं जिसमें एक चैनल पर ग़लत तस्वीर चली…ये अलग बात है कि ख़बर का संदर्भ ऐसा नहीं था कि किसी को मानहानि जैसा कुछ लगे।
ख़बर दिल्ली एंटी करप्शन ब्यूरो में एस एस यादव की तैनाती को लेकर थी। अब पैकेजिंग डिपार्टमेंट में किसी ने फटाफट गूगल पर एसएस यादव टाइप किया और पहली तस्वीर सेव करके पैकेज में लगवा दी। पैकेज ऑन एयर हुआ तो रिपोर्टर ने तुरंत अलर्ट किया और तब जाकर ग़लती पकड़ में आई।
अगर पैकेज प्रोड्यूसर एसएस यादव के साथ दिल्ली एसीबी भी टाइप करता तो सही तस्वीर सामने आ सकती थी।
लेकिन इसमें भी एक पेच है। जब आप शख्स को पहचानते ही न हों तो सही सर्च टाइप करके जो नतीजे आए हैं उन्हें कैसे पहचानेंगे।
इसके लिए करना ये है कि जो तस्वीर आप चुनने जा रहे हैं उस पर क्लिक करें। इसके बाद एक पेज खुलता है जिस पर बायीं ओर तस्वीर होती है और दायीं और संदर्भ और दो लिंक पहला विजिट पेज और दूसरा व्यू इमेज।
बिना भूले विजिट पेज पर क्लिक जरूर करें। ये लिंक आपको तस्वीर से जुड़ी ख़बर पर ले जाएगा। और जब ख़बर सामने होगी तो ग़लती की कोई गुंजाइश ही नहीं बचेगी।
यानी, थोड़ी सी एहतियात बरतकर आप बडी ग़लतियों से आसानी से बच सकते हैं। वरना, जल्दबाज़ी के चक्कर में ऐसा न हो कि आपको लेने के देने पड़ जाएं।
सबक यही है कि गूगल का इस्तेमाल ज़रूर करें लेकिन इस गली में चलें संभलकर ही।
ख़बरिया चैनलों में काम करने वाले ऐसे न जाने कितने दिलचस्प किस्सों के गवाह रहे होंगे…वो इन्हें कमेंट सेक्शन में ज़रूर डाल दें ताकि सबको सीखने का मौका मिले।
प्रबुद्ध जैन, एसिस्टेंट प्रोफेसर, जनसंचार विभाग, शारदा विश्वविद्यालय, 8 साल तक ख़बरिया चैनलों में रिपोर्टिंग और आउटपुट पर अनुभव के बाद एकेडमिक दुनिया का रुख़। टीवी टुडे, न्यूज़ एक्स, न्यूज़ नेशन और आईबीएन-7 में हज़ारों ख़बरों को बनते ‘बिगड़ते’ देखा। टीवी को जिया है, अब उसी तजुर्बे से छात्रों को रू-ब-रू कराने की चुनौती।