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आवाज़ का ही दूसरा नाम है प्रसारण

आवाज़ का ही दूसरा नाम है प्रसारण

हर्ष रंजन।

अगर हम कहें कि आवाज़ का ही दूसरा नाम प्रसारण है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आवाज़ ही प्रसारण के लिए सब कुछ है। प्रसारण की दुनिया में काम करने की पहली और आखिरी शर्त आवाज़ ही होती है। आपकी आवाज़ प्रसारण योग्य हो तभी रेडियो जॉकी या समाचार वाचक या उद्घोषक के तौर पर कॅरियर बनाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन विद्यार्थियों को यह सोचकर कदापि निराश होने की ज़रूरत नहीं है कि पता नहीं मेरी आवाज़ प्रसारण योग्य है कि नहीं। सिर्फ इतना ध्यान रखें कि किसी की आवाज़ को प्रैक्टिस से बेहतर बनाया जा सकता है।

वैसे भी ज़रूरी नहीं कि सिर्फ प्रसारण के क्षेत्र में जाने के लिए ही आवाज़ पर ध्यान दिया जाय। अच्छी और खनकदार आवाज़ आपको किसी भी क्षेत्र में सिर्फ फायदा ही पहुंचाएगी। आपकी आवाज़ की क्वालिटी, बेहतर शब्द चुनने की क्षमता और बोलने की अदायगी दूसरों पर आपके व्यक्तित्व की गहरी छाप छोड़ते हैं और मुश्किल से मुश्किल काम को भी आसान बना देते हैं।

अब हम चर्चा करेंगे कि आवाज़ को दमदार कैसे बनाया जाय। इसके लिए आवाज़ से संबंधित कुछ आधारभूत चीज़ों को समझने की ज़रूरत है।

हम किसी को देखे बिना उसे उसकी आवाज़ से पहचान लेते हैं। बताईये – हां या ना? तो सबका जवाब हां है। इसका मतलब हुआ कि हमारे चेहरों की तरह हम अलग-अलग लोगों की आवाज़ भी अलग-अलग है, तभी तो हम बिना किसी को देखे उसे उसकी आवाज़ से पहचान लेते हैं। तो वो कौन-कौन से कारक हैं जो आपकी आवाज़ को आपकी आवाज़ बनाते हैं और दूसरों से अलग करते हैं।

निम्नलिखित सात कारक हैं जो हमारी आवाज़ के लिए उत्तरदायी हैं।

  • Pitch पिच
  • Volume & Resonance वॉल्यूम और रेसोनेंस
  • Tempo गति
  • Vitality or energy ऊर्जा
  • Voice quality आवाज़ की गुणवत्ता
  • Pronunciation उच्चारण
  • Articulation बोलने का अंदाज़

पिच
हर व्यक्ति एक निश्चित पिच पर बोलता है। आसान शब्दों में कहें तो आप कितना धीमे और आहिस्ता या फिर कितना चिल्ला कर बोलते हैं, यही आपके बोलने की पिच होती है। पिच का निर्धारण आपकी आवाज़ की फ्रीक्वेंसी यानी आवृति द्वारा तय किया जाता है। जितनी तेज़ी से आपके वोकल कॉर्ड यानी स्वर यंत्र वाईब्रेट (स्पंदन) करेगा उतना ही ऊंचा आपकी आवाज़ का पिच होगा। किसी भी महिला का स्वर यंत्र पुरुषों की अपेक्षा दोगुनी गति से स्पंदित होता है, इसीलिए महिलाएं ऊंचे पिच पर बोलती हैं और उनकी आवाज़ पुरुषों के मुकाबले पतली होती है।

पिच जितनी ज़्यादा होगी आवाज़ उतनी ही पतली और पिच जितनी कम होगी आवाज़ उतनी ही मोटी और बुलंद होगी।

वॉल्यूम और रेसोनेंस
वाल्यूम यानी आवाज़ की तीव्रता से हम सब वाकिफ़ हैं। रेडियो या टीवी सेट के वॉल्यूम को हम अपनी सुविधानुसार घटाते बढ़ाते रहते हैं। अपनी आवाज़ की तीव्रता को भी हम कम या ज़्यादा करते रहते हैं। किसी को दूर से आवाज़ लगानी हो तो हम अपना वॉल्यूम बढ़ा देते हैं। कोई बिल्कुल पास में बैठा हो तो हम कम वॉल्यूम पर बात करते हैं।
प्रसारण की दुनिया में वॉल्यूम का महत्व बहुत ज़्यादा नहीं है, क्योंकि यहां हम माईक्रोफोन से मुखातिब रहते हैं। ज़रूरत के हिसाब से साउंड रिकार्डिस्ट (ध्वनि इंजीनियर) मशीनों द्वारा हमारी आवाज़ के वॉल्यूम को घटा बढ़ा सकता है। प्रसारण की दुनिया में आम तौर पर अपने वॉल्यूम को उतना ही रखना श्रेयस्कर होता है जितना हम किसी पास बैठे व्यक्ति से बात करते समय रखते हैं।

हर आवाज़ की एक प्रतिध्वनि होती है जो उस आवाज़ को पूर्ण बनाती है। यह प्रतिध्वनि उस आवाज़ की यूनिक प्रापर्टी होती है जिसे बदला या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। अच्छी आवाज़ में प्रतिध्वनि और कंपन का थोड़ा मिश्रण होना चाहिये। अंग्रेज़ी में इसे Resonance कहते हैं।

गति
बोलने की गति को अंग्रेज़ी में टेंपो कहते हैं। हमारी आवाज़ की गति का निर्धारण आम तौर पर इस बात से होता है कि एक निश्चित समय सीमा के अंदर हम कितने शब्द बोलते हैं। मौके और मिज़ाज को देखते हुए हमारी बोलने की गति परिवर्तित होती रहती है। उत्तेजक और रोमांचक क्षणों में हम स्वत: ही तेज़ बोलने लगते हैं। तसल्ली से की जाने वाली बातचीत के समय हमारी आवाज़ की गति सामान्य रहती है। विद्यार्थियों क्या आपने गौर किया है कि क्रिकेट कंमेटरी करने वाले लोग मैच के रोमांचक क्षणों में बुलेट की गति से बोलने लगते हैं।

सामान्य गति से बोलने पर हम एक सेंकेंड में तीन शब्द बोलते हैं। यानी एक मिनट में 180 शब्द। औसतन एक मिनट में 150 से 200 शब्द बोलने पर समान्य गति का अहसास होता है।

ऊर्जा
ऊर्जा से हम सब परिचित हैं। जब हमारे शरीर में ऊर्जा होती है तो हम ताकत का अनुभव करते हैं। ऊर्जा हो तो बोलने का अंदाज़ बदल जाता है। विद्यार्थियों आप इसे एक उदाहरण द्वारा अनुभव करें। जब आप थके और बीमार होते हैं तो क्या आपका मन बोलने का करता है? नहीं। आपका मन बोलने का इसलिए नहीं करता है, क्योंकि आपके अंदर ऊर्जा की मात्रा कम हो गई होती है और बची-खुची ऊर्जा को आप बोल कर खर्च नहीं करना चाहते, बल्कि बचाकर रखना चाहते हैं।

इससे एक बात साफ है कि बोलने में ऊर्जा का ह्रास होता है। तो बोलने के लिए ऊर्जा बचाकर रखा जाना ज़रूरी है। अच्छी आवाज़ के लिए ज़रूरी है कि हम हर शब्द ऊर्जा से बोलें। कई नेताओं के भाषण हमें ओजस्वी लगते हैं क्योंकि वो ऊर्जा से बोले गए होते हैं। वहीं दूसरी तरफ बगैर ऊर्जा के दिए गए भाषण हमें प्रभावित नहीं करते और ऐसे भाषणों में किसी की भी दिलचस्पी नहीं रहती।

आवाज़ की गुणवत्ता
आवाज़ की गुणवत्ता कुदरती देन है। फिर भी हम प्रयास से इसे और बेहतर कर सकते हैं। आजकल ऐसे-ऐसे माईक्रोफोन और रिकार्डिंग सॉफ्टवेयर आ गए हैं जो हमारी आवाज़ को बेहतर बना देते हैं। लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि मशीनें तभी हमारी मदद करती हैं जब हमारी आधारभूत आवाज़ में कुछ दम हो।

आवाज़ की गुणवत्ता कई कारकों पर निर्भर करती है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण कारक है, गले का हमेशा तर रहना यानी गले को कभी खुश्क न होने दें। आवाज़ की तरंगे हवा में सफर करती हैं। सांसो के माध्यम से हम अपने शरीर में हवा भरते हैं, फिर सांस छोड़ते समय इन्हीं हवाओं पर ध्वनि की तरंगे सफर करती हैं। जैसा कि हम जानते हैं हवा पानी को सुखा देती है। इसीलिए लगातार बोलने से हमारा गला खुश्क हो जाता है। गला जैसे-जैसे खुश्क होता रहता है, वैसे-वैसे हमारी आवाज़ की गुणवत्ता का भी ह्रास होता है।

हमारी कोशिश हर वक्त गले को तर रखने की होनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हम थोड़े-थोड़े समय पर अल्प मात्रा में पानी पीते रहें। साथ ही गहरी सांस लेने की प्रैक्टिस करनी चाहिए ताकि बोलते वक्त हमारी सांस उखड़ने न लगें।

उच्चारण
आवाज़ की दुनिया में उच्चारण का क्या महत्व है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आकाशवाणी में गलत उच्चारण की वजह से कई लोगों को नोटिस मिल जाते हैं और कई लोगों को उनके पदों से हटाया भी जा चुका है। सही उच्चारण हमारे पूरे संवाद में जान फूंक देता है।

हिन्दी में उच्चारण को समझना और करना दोनों ही बड़े आसान काम हैं। अक्षर और कई अक्षरों को मिलाकर बने शब्द वैसे ही उच्चरित किए जाएंगे जैसे कि वे लिखे गए हैं। अंग्रेज़ी में हमें यह स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है क्योंकि अंग्रेज़ी के कई शब्द लिखे एक तरह से ही जाते हैं लेकिन उनके उच्चारण भिन्न होते हैं। हिन्दी में उच्चारण दुरुस्त करने का सबसे आसान और सहज तरीका है “ क ख ग घ….च छ ज झ…प फ ब भ म….” यानी ककहरा ज़ोर-ज़ोर से पढ़ने का। ध्यान देने वाली बात यह है कि क और ख का उच्चारण और प और फ का उच्चारण एक तरीके से ही होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि क कहते समय वायु की मात्रा ख के मुकाबले कम निकलती है। जहां वायु की मात्रा कम निकालने की ज़रूरत हो उसे हम अल्पप्राण कहते हैं और जहां वायु की मात्रा ज़्यादा निकालने की ज़रूरत हो उसे हम महाप्राण कहते हैं।

हिन्दी के उच्चारण में अल्पप्राण और महाप्राण का निष्ठापूर्वक प्रयोग कर हम अपने उच्चारण को श्रेष्ठ बना सकते हैं।

बोलने का अंदाज़
छात्रो, अंत में बारी आती है आपके बोलने के अंदाज़ की। हर व्यक्ति के बोलने का अंदाज़ अलग-अलग होता है। इसे आप अपने तरीके से विकसित करते हैं। आम तौर पर हम अपने बोलने के अंदाज़ को पंक्चुएशन के माध्यम से बनाते हैं। पंक्चुएशन मतलब जहां कॉमा लगा हो वहां हमें अल्प विराम लेना चाहिए। जहां प्रश्नवाचक चिह्न लगा हो वहां अंदाज़ सवाल पूछने का होना चाहिए। जहां चौंकने की ज़रूरत हो वहां चौंकना चाहिए, इत्यादि।

बोलने का अंदाज़ विकसित करने कि लिए सबसे आसान तरीका है- रोज़ आधा घंटे ज़ोर-ज़ोर से अखबार पढ़ने का।

हर्ष रंजन शारदा विश्वविद्यालय मे प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता और जनसंचार विभाग हैं। उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन में समाचार वाचक के रूप में करियर की शुरुआत की। समाचार वाचक बनने के बाद हर्ष को तुरंत ही महसूस होने लगा कि अगर इस दिशा में आगे बढ़ना है तो पहले पत्रकार बनना होगा। दूरदर्शन से पहचान तो मिल ही चुकी थी इसलिए समाचार एजेंसी यूएनआई से जुड़ने में ज़्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। डेस्क पर काम करने से जी भरा तो फिर रिपोर्टिंग की और रुख कर लिया। टीवी तब नया-नया आ ही रहा था। कुछ अलग करने का जज़्बा ही था कि हर्ष रंजन जल्द ही प्रिंट से उब गए और उन्हें लगा कि बेहतर होगा टीवी के साथ काम करना।

फिर 1994 में हर्ष ने अपनी पारी टीवी न्यूज़ एजेंसी एएनआई के साथ शुरू की। बिहार में ब्यूरो चीफ बनाये गए। टीवी के लोग तब कम थे इसीलिए पहचान जल्दी मिल गई। 1997 में वे दिल्ली में टीवीआई से जुड़े तो एंकर बनकर। फिर साथ मिला आजतक का। पहले डेस्क फिर कोलकाता में ब्यूरो प्रमुख, फिर एसाईन्मेंट डेस्क पर बड़ी ज़िम्मेदारी और फिर आजतक के अंतरराष्ट्रीय प्रसारण के संपादकीय प्रभारी। बाद में हर्ष रंजन ने आजतक मीडिया इंस्टीट्यूट की भी ज़िम्मेदारी लगभग छह वर्षों तक संभाली और तब के न्यूज़ डॉयरेक्टर क़मर वहीद नक़वी के नेतृत्व में 300 से अधिक पत्रकारों की ऐसी पौध तैयार की जो आज देश के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानो में प्रमुख ज़िम्मेदारियां निभा रहे हैं। हर्ष रंजन ने बीच के कुछ साल सहारा समय, इंडिया टीवी और लाईव इंडिया के एडिटर-डिजिटल के तौर पर भी बिताए। कुछ नया करने की तमन्ना ही है कि अब हर्ष पूर्ण रूप से पठन-पाठन के क्षेत्र में आ गए हैं। वर्तमान में शारदा विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में फ्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं।

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