About
Editorial Board
Contact Us
Saturday, April 1, 2023
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Journalism

इंटरनेट : जीवन शैली में तेजी से बदलाव का दौर

इंटरनेट : जीवन शैली में तेजी से बदलाव का दौर

मुकुल श्रीवास्तव।

इंटरनेट नित नयी तरक्की कर रहा है, इंटरनेट ने जबसे अपने पाँव भारत में पसारे हैं तबसे हर जगत में तरक्की के सिक्के गाड़ रहा है। इंटरनेट न सिर्फ संचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव लाने में सफल हुआ है बल्कि हमारे जीवन जीने के सलीके और जीवन शैली में भी बदलाव लाया है। शिक्षा, मेडिकल, हेल्थ, मनोरंजन की फील्ड में तो इंटरनेट अपने कारनामे दिखा ही रहा है, साथ ही अब इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिये ऐसे कारनामे करने को तैयार है जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते। मूलत भारत जैसे देश में इंटरनेट अब स्मार्ट फोन का पर्याय बनता जा रहा है क्योंकि यहां स्मार्ट फोन धारकों की संख्या बढ़ती जा रही है। इंटरनेट मुख्यता कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है पर स्मार्ट फोन के आगमन के साथ ही यह धारणा तेजी से ख़त्म होने लग गयी और जिस तेजी से मोबाईल पर इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है वह साफ़ इशारा कर रहा है की भविष्य में इंटरनेट आधारित सेवाएँ कंप्यूटर नहीं बल्कि मोबाईल को ध्यान में रखकर उपलब्ध कराई जायेंगी। स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के लिहाज से विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। आईटी क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी सिस्को ने अनुमान लागाया है कि सन 2019 तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 65 करोड़ हो जाएगी। सिस्को के मुताबिक वर्ष 2014 में मोबाइल डेटा ट्रैफिक 69 प्रतिशत तक बढ़ा. साथ ही वर्ष 2014 में विश्व में मोबाइल उपकरणों एवं कनेक्शनों की संख्या बढ़कर 7.4 बिलियन तक पहुँच गयी.स्मार्टफोन की इस बढ़त में 88 प्रतशित हिस्सेदारी रही और उनकी कुल संख्या बढ़कर 439 मिलियन हो गयी।

स्मार्ट फोन से तात्पर्य ऐसे फोन से जिन पर इंटरनेट के वो सारे काम अंजाम दिए जा सकते हैं जो पहले किसी कंप्यूटर पर किये जाते थे। इंटरनेट से जुड़ा स्मार्ट फोन हमारे जीवन में कई मूलभूत बदलाव लाया पर यह बदलाव ज्यादातर संचार आधारित रहा पर अब यह अपने विकास के अगले चरण में जा रहा है ,जहां फोन ही नहीं ,घर से लेकर हमारी गाड़ी ,किचन तक सब स्मार्ट होंगे। इसको आप यूँ समझ सकते हैं आप कहीं बाहर से घर लौटे आपको बहुत गर्मी लग रही है आप तुरंत अपना ए सी ऑन करते हैं कि गर्मी से कुछ राहत मिले। पर ए सी कमरा ठंडा करने में कुछ वक्त लेता है। ए सी अगर आधा घंटा पहले कोई ऑन कर देता तो जब आप घर पहुंचते आपको कमरा ठंडा मिलता। उसके लिए घर में किसी का होना जरूरी है पर इंटरनेट ऑफ थिंग्स आपकी जिंदगी आसान कर रहा है। आपका स्मार्ट ए सी आपके स्मार्ट फोन से जुड़ा हुआ आप बगैर घर आये दुनिया के किसी कोने से इंटरनेट की मदद से अपने ए सी को ऑन या ऑफ कर सकते हैं।

भारतीय करते हैं सबसे ज्यादा स्मार्ट फोन का इस्तेमाल
इस बीच टेलीकॉम कंपनी एरिक्सन ने अपने एक शोध के नतीजे प्रकाशित किए हैं, जो काफी दिलचस्प हैं। इससे पता चलता है कि स्मार्टफोन पर समय बिताने में भारतीय पूरी दुनिया में सबसे आगे हैं। एक औसत भारतीय स्मार्टफोन प्रयोगकर्ता रोजाना तीन घंटा 18 मिनट इसका इस्तेमाल करता है। इस समय का एक तिहाई हिस्सा विभिन्न तरह के एप के इस्तेमाल में बीतता है। एप इस्तेमाल में बिताया जाने वाला समय पिछले दो साल की तुलना में 63 फीसदी बढ़ा है। स्मार्टफोन का प्रयोग सिर्फ चैटिंग एप या सोशल नेटवर्किंग के इस्तेमाल तक सीमित नहीं है, लोग ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर तरह-तरह के व्यावसायिक कार्यों को स्मार्टफोन से निपटा रहे हैं।

मोबाइल पर वीडियो देखने का बढ़ता चलन टेलीविजन के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आ रहा है। अमेरिका में टेलीविजन देखने के समय में गिरावट दर्ज की जा रही है और भारत भी उसी रास्ते पर चल पड़ा है। इस शोध के मुताबिक, स्मार्टफोन के 40 प्रतिशत प्रयोगकर्ता बिस्तर पर देर रात तक वीडियो देख रहे हैं। 25 प्रतिशत चलते वक्त, 23 प्रतिशत खाना खाते वक्त और 20 प्रतिशत खरीदारी करते वक्त भी वीडियो देखते हैं। इसके साथ ही कॉम स्कोर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेट ट्रैफिक का 60 प्रतिशत हिस्सा मोबाइल फोन व टेबलेट से पैदा हो रहा है और इस मोबाइल ट्रैफिक का करीब 50 प्रतिशत भाग मोबाइल एप से आ रहा है।

मोबाइल का बढ़ता इस्तेमाल भारतीय परिस्थितियों के लिए ज्यादा सुविधाजनक है। बिजली की समस्या से जूझते देश में मोबाइल टीवी के मुकाबले कम बिजली खर्च करता है। यह एक निजी माध्यम है, जबकि टीवी और मनोरंजन के अन्य माध्यम इसके मुकाबले कम व्यक्तिगत हैं। दूसरे आप इनका लुत्फ अपनी जरूरत के हिसाब से जब चाहे उठा सकते हैं, यह सुविधा टेलीविजन के परंपरागत रूप में इस तरह से उपलब्ध नहीं है। सस्ते होते स्मार्टफोन, बड़े होते स्क्रीन के आकार, निरंतर बढ़ती इंटरनेट स्पीड और घटती मोबाइल इंटरनेट दरें इस बात की तरफ इशारा कर रही हैं कि आने वाले वक्त में स्मार्टफोन ही मनोरंजन और सूचना का बड़ा साधन बन जाएगा।

क्या है इंटरनेट ऑफ थिंग्स ?
केविन एश्टन ने सन 1999 में पहली बार इंटरनेट ऑफ थिंग्स शब्द का इस्तेमाल किया था। इंटरनेट ऑफ थिंग्स इंटरनेट जगत में एक ऐसा विकास है जिसके जरिये हमारे जीवन शैली में तेजी से बदलाव आएगा , हमारे काम आसान हो जायेंगे जिससे न सिर्फ मैनपावर की बचत होगी बल्कि हमारा समय भी बचेगा जिसे हम किसी और कामों में उपयोग कर सकते हैं। इंटरनेट ऑफ थिंग्स को इंटरनेट ऑफ ऑब्जेक्ट्स भी कहा जाता है, या इसे इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग और मशीन टू मशीन एरा कह कर भी सम्बोधित कर सकते हैं। यह ऑब्जेक्ट्स के बीच वायरलेस नेटवर्क क्रिएट करेगा जिससे वो अप्लाइंस खुद ही काम करेगा। यह इस मिथ को हटाएगा कि इंटरनेट सिर्फ लोगों के बीच ही कम्युनिकेशन आसान बनाता है। अब अप्लायंस और अन्य इलेक्ट्रॉनिक आइटम भी आपस में वायरलेस नेटवर्क के जरिये जुड़ेंगे और काम करेंगे। इंटरनेट औफ थिंग्स को हैंडल करने के लिए कई ऐसे ग्रेजुएट्स की जरूरत पड़ेगी जिन्हें सॉफ्टवेयर की अच्छी नॉलेज है। कंप्यूटर की दुनिया में समझ रखने वाले ऐसे ग्रेजुएट्स तैयार किये जाएंगे। ऐसे लोग जिन्हें कंप्यूटर इंजीनियरिंग के साथ साथ मैक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर कोडिंग तक की अच्छी समझ होगी।

क्या है तकनीक ?
इंटरनेट ऑफ थिंग्स का मतलब है इंटरनेट नेटवर्क और इलेक्ट्रॉनिक अप्लाइंस का समूह।यह एक ग्लोबल नेटवर्क संरचना है जिसमें लोग क्लाउड कंम्यूटिंग, डाटा कैप्चर व नेटवर्क कम्यूनिकेशन के जरिए वस्तुओं से जुड़े होते हैं। ऐसा पहला प्रोडक्ट तो 1982 में ही आया जब इंटरनेट से कनेक्ट किया हुआ कोक मशीन बना इसकी खासियत यह थी कि यह इंटरनेट के जरिये कनेक्ट था जिसमें यह टेस्ट किया गया था कि नयी लोड की हुई कोल्ड्रिंक ठंडी होती है या नहीं। इंटरनेट ऑफ थिंग्स सेंसर द्वारा काम करेगा जो जरूरत पड़ने पर अलर्ट हो जाएगा। आईपी अड्रेस से चलाया जाएगा जो नेटवर्क के जरिये कनेक्ट होगा। इंटरनेट ऑफ थिंग्स की आवश्यकता पड़ने का एक कारण इंसान की व्यस्तता भी है। इंटरनेट बिना इंसान के क्लिक करे, कोई इंफोर्मेशन नहीं देता। इसीलिए ऐसे टेक्नोलॉजी की शुरुआत की जा रही जिसमें सब कुछ ऑटो मोड पर होगा। इंटरनेट ऑफ थिंग्स का कॉन्सेप्ट यहीं से आया। टेक्नोलॉजी रिसर्च के शोध की मानें तो साल 2020 तक 26 बिलियन डिवाइस इंटरनेट ऑफ थिंग्स से बन जाएंगी और 30 बिलियन डिवाइस इंटरनेट के जरिये वायरलेस रूप में कनेक्ट होने की संभावना है।

अन्य देशों में बहुत है उत्सुकता
यूके चांसलर बताते हैं कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स सूचना के जगत में क्रांति लाएगा। न सिर्फ आईटी विभाग में बल्कि मेडिकल, होममेड अप्लाइंस और उर्बन ट्रांसपोर्ट में भी मदद करेगा। विदेशी देशों में इंटरनेट ऑफ थिंग्स को लेकर उत्सुकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूके गवर्न्मेंट ने साल 2015 के बजट से तकरीबन 40 मिलियन यूरो इंटरनेट ऑफ थिंग्स पर रिसर्च के लिए लगाया है। भारत में इसकी शुरुआत हो चुकी है। दक्षिण के कई हॉस्पिटल्स में इसका उपयोग होना शुरू हो चुका है और अच्छे रिजल्ट्स भी दे रहा है। हेल्थकेयर की क्वालिटी में सुधार लाने के लिए आईओटी का प्रयोग मेडिकल इंडस्ट्री में हो रहा है।

इंटरनेट ऑफ थिंग्स से बनेगा ‘स्मार्ट सिटी’, भविष्य में कई उम्मीदें हैं
इंटरनेट औफ थिंग्स से उम्मीदें बहुत हैं, इससे स्मार्ट सिटी, स्मार्ट होम, स्मार्ट हेल्थ और इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन होने की संभावना है। यह ऐसी तकनीक है जिसमें स्मार्ट होम हैं, स्मार्ट एप्लाइंसेस हैं, स्मार्ट प्रोडक्शन लाइंस हैं, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट डिवाइसेस के साथ स्मार्ट आदमी भी हैं।इंटरनेट ऑफ थिंग्स से सीधा सा मतलब यह है कि जिन कामों को हमें मैनुअली करना पड़ता था, अब वह ऑटो मोड पर होगा, जिसके लिए हमें वहां मौजूद होने की भी जरुरत नहीं होगी। इंटरनेट ऑफ थिंग्स जीवन शैली को बेहतर बनाने के लिए टेक्नोलॉजी जगत का एक अच्छा कदम है। मानव श्रम को गैर उत्पादक कार्यों से हटा कर उत्पादक कार्यों से जोड़ा जाएगा और ऐसे गैर उत्पादक कार्य जो अर्थव्यवस्था में सीधे कोई योगदान नहीं दे रहे हैं आई ओ टी के जिम्मे छोड़ दिए जायेंगे। इससे हम ऐसे अप्लाइंस को आसानी से मैनेज कर पाएंगे जिन्हें हम रोजमर्रा की जिदंगी में इस्तेमाल करते हैं। इससे कॉस्ट और रिसोर्स दोनों की ही बचत हो सकेगी।

आईओटी बनाएगा स्मार्ट होम- यदि हम घर से दूर कहीं जा रहे तो हम घर में किसी न किसी को छोड़कर जाते हैं, यहसोचकर की कहीं हमारी गैरमौजूदगी में चोरी न हो। पर अब हम इस डर को इंटरनेट ऑफ थिंग्स की मदद से दूर कर सकेंगे। इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिये हम स्मार्टफोन से अपने घर में कनेक्ट हो सकते हैं, और न होते हुए भी घर पर नजर रख सकते हैं। इससे स्मार्ट होम की शुरुआत होगी।

मेडिकल जगत में भी लाएगा क्रांति- भारतीय हॉस्पिटल्स भी इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। दक्षिण भारत के एक हॉस्पिटल ने इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिये एक ऐसा एप बनाया है जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे की पल्स रेट की लगातार अपडेट मिलती रहती है,इसका फायदा माँ और डॉक्टर दोनों को होता है। दूरदराज बैठा डॉक्टर दोनों की सेहत और नजर रख सकता है और कोई अनहोनी होने से पहले ही उसपर काबू पा सकता है। इसकी मदद से रूटीन चेकअप के लिए नहीं जाना पड़ता, इससे पैसे और समय दोनों की ही बचत होती है।

साईबर सेंधमारी बन सकती है विकास में बाधा
जिस तरह से हर माँ बाप को अपने बच्चों की अच्छाई बुराई की फ़िक्र होती है, उसी तरह फादर औफ इंटरनेट कहलाये जाने वाले विन्ट सर्फ को भी आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) को लेकर थोड़ा डरे हुए है। जर्मनी में हुए एक प्रेस कोन्फेरेंस के दौरान विन्ट ने बताया कि चूँकि आईओटी अप्लाइंस और सॉफ्टवेयर से मिलकर बना है, इसीलिए उन्हें डर हैं, सॉफ्टवेयर्स को लेकर शुरुआत से ही उन्हें चिंता रही है। सॉफ्टवेयर को हैक कर लेना एक बड़ा मुद्दा है। भारत जैसे देश में जहां तकनीक पहले आ रही है और उससे जुड़े कानून बाद में बन रहे हैं। इसके लिए तैयार रहने की जरुरतहै। देश को सायबर हमले से बचाने की जिम्मेदारी साल 2004 में बनी इन्डियन कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पोंस टीम (सी ई आर टी -इन )के जिम्मे थी। साल 2004 से 2011 तक आधिकारिक तौर पर सायबर हमलों की संख्या 23 से बढ़कर 13,301तक पहुँच गयी और वास्तविक संख्या इन आंकड़ों से कई गुना ज्यादा हो सकती है। पिछले वर्ष सरकार ने सी ई आर टी को दो भागों में बाँट दिया अब ज्यादा महत्वपूर्ण मामलों के लिए नेशनल क्रिटीकल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर की एक नयी इकाई बना दी गयी है जो रक्षा,दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है।

साईबर सुरक्षा के लिए 2012-13 के लिए मात्र 42.2 करोड रुपैये ही आवंटित किये गए जो कि काफी कम है। साईबर हमलों के लिए चीन भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले महीने में दुनिया में हुए बड़े सायबर हमलों के लिए चीन सरकार समर्थित पीपुल्स लिबरेशन आर्मी जिम्मेदार है जिसके हमलों में प्रमुख सोशल नेटवकिंग साइट्स फेसबक और ट्वीटर भी थीं।पिछले कई वर्षों से चीन को साइबर सेंधमारी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है जिसके निशाने पर ज्यादातर अमेरिकी सरकार और कंपनियां रहा करती हैं पर इंटरनेट के बढते विस्तार से भारत में साइबर हमले का खतरा बढ़ा है पर हमारी तैयारी उस अनुपात में नहीं है आवयश्कता समय की मांग के अनुरूप कार्यवाही करने की है।

डॉ मुकुल श्रीवास्तव: असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और संयोजक, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग ,लखनऊ विश्वविद्यालय , पिछले पन्द्रह वर्ष से पत्रकारिता शिक्षण में संलग्न हैं अब तक तीन पुस्तकें लिख चुके हैं पहली पुस्तक मानवाधिकार और मीडिया को मानवाधिकार आयोग का राष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त हुआ इटली और अमेरिका का विदेश दौरा कर चुके हैं भारत के लगभग सभी हिंदी राष्ट्रीय हिंदी दैनिकों के सम्पादकीय पेज पर छपते रहते हैं जिसमें आई नेक्स्ट हिन्दुस्तान अमर उजाला अमर उजाला कॉम्पेक्ट राष्ट्रीय सहारा ,जनसत्ता जनसंदेश टाईम्स डेली न्यूज़ एक्टीविस्ट भास्कर आदि .पिछले पांच वर्षों से बी बी सी हिंदी से भी जुड़े हुए हैं आपकी बनाई फिल्म सीधी बात नो बकवास को अमेरिका की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी से सराहना प्राप्त हुई है इंडिया टुडे अंग्रेजी के पैंतीस वर्ष पूरे होने पर छापे गए विशेषांक में पूरे भारत से पैंतीस ऐसे युवाओं में चुने गए जो अपने तरीके से देश बदल रहे हैं।इनके ब्लॉग मुकुल मीडिया को भी काफी सराहा जाता है यात्रा वृतांत लिखने और पढ़ने के शौक़ीन हैं। न्यू मीडिया और इंटरनेट जैसे विषयों पर लिखना पढ़ना पसंद है।

Tags: EducationEntertainmentHealthInternetLife StypleMedicalMukul SrivastavaRevolutionising Lifeइंटरनेटजीवन शैलीबदलाव का दौरमनोरंजनमुकुल श्रीवास्तवमेडिकलशिक्षाहेल्थ
Previous Post

10 tips for reporting conflict and abuse

Next Post

ब्रेकिंग न्यूज के बहाने...

Next Post
ब्रेकिंग न्यूज के बहाने…

ब्रेकिंग न्यूज के बहाने...

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

Citizen Journalism for hyper-local coverage in print newspapers

March 31, 2023

Uncertainty in classrooms amid ChatGPT disruptions

March 31, 2023

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

Evolution of PR in India and its present status

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

आर्थिक-पत्रकारिता क्या है?

Recent Post

Citizen Journalism for hyper-local coverage in print newspapers

Uncertainty in classrooms amid ChatGPT disruptions

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

Fashion and Lifestyle Journalism Course

Development of Local Journalism

Audio Storytelling and Podcast Online Course

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.