About
Editorial Board
Contact Us
Monday, March 27, 2023
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Journalism

नए दौर की पत्रकारिता?

नए दौर की पत्रकारिता?

अतुल सिन्हा।

आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि देश में साहित्य, संस्कृति, विकास से जुड़ी खबरें या लोगों में सकारात्मक सोच भरने वाले कंटेट नहीं दिखाए जा सकते? कौन सा ऐसा दबाव है जो मीडिया को नेताओं के इर्द गिर्द घूमने या फिर रेटिंग के नाम पर जबरन ‘कुछ भी’ परोसनेको मजबूर करता है?

आम तौर पर मीडिया जगत में और खासकर टीवी पत्रकारों में ये धारणा बन गई है कि राजनीति या अपराध की ख़बरों के बगैर पत्रकारिता नहीं हो सकती। टीवी चैनलों के तकरीबन 80 फीसदी कंटेंट इन्हीं दो क्षेत्रों के इर्द गिर्द दिखाई पड़ते हैं – नेताओं के बयानों पर, उनसे जुड़े विवादों पर, अपराध से जुड़ी हर छोटी बड़ी खबर पर या फिर कुछ ऐसी घटनाओं पर जिनका रिश्ता कहीं न कहीं राजनीति या अपराध से होता है। जब आप निजी तौर पर किसी पत्रकार से बात करें तो वो अक्सर पत्रकारिता के इस ट्रेंड से दुखी नज़र आता है, लेकिन मजबूरन उसे करना वही पड़ता है।

आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि देश में साहित्य, संस्कृति, विकास से जुड़ी खबरें या लोगों में सकारात्मक सोच भरने वाले कंटेट नहीं दिखाए जा सकते? कौन सा ऐसा दबाव है जो मीडिया को नेताओं के इर्द गिर्द घूमने या फिर रेटिंग के नाम पर जबरन ‘कुछ भी’ परोसनेको मजबूर करता है? टीवी चैनलों के लिए ये बहस कोई नई नहीं है। नया अगर कुछ है तो ये कि अब टीवी इंडस्ट्री से जुड़े बड़े बड़े दिग्गज या मालिकान ये मानने लगे हैं कि कंटेंट के नाम पर जो कुछ हो रहा है वो ठीक नहीं है।

पिछले कुछ सालों में मीडिया इंडस्ट्री के कई दिग्गजों से मिलने और उन्हें सुनने समझने के कई मौके आए। बड़ी बड़ी मीटिंग्स में इंडस्ट्री के तथाकथित बड़े नाम हाथ बांधे उन्हें सुनते दिखे, हां में हां मिलाते दिखे लेकिन उस ‘दर्शन’ को व्यावहारिक जामा पहनाने की कोई कोशिश नहीं दिखी। उनकी परंपरागत कार्यशैली और सोच, नौकरी बचाए रखने की उनकी रणनीति और अपने सहकर्मियों के प्रति उनका नकारात्मक रवैया हमेशा से कंटेट के लिए घातक बनता रहा है। जो लोग वास्तव में मीडिया में बेहतर कंटेंट के हिमायती हैं, टीवी चैनलों के मौजूदा स्वरूप को बदलकर आम लोगों से जोड़ देना चाहते हैं, उन्हें देश की कला, संस्कृति, साहित्य, परंपरा और विकास की खबरों के साथ साथ कुछ घटना प्रधान और भरोसेमंद रिपोर्टिंग दिखाना चाहते हैं, उन्हें कहीं न कहीं हाशिये पर धकेलने और हतोत्साहित करने का काम बेहद सुनियोजित तरीके से चलता रहा है।

देश विदेश के बड़े बड़े होटलों में कई कई कार्यशालाएं और चैनलों के ‘आला अफ़सरों’ को दिशा देने की महंगी कोशिशें आखिर क्यों कामयाब नहीं होतीं? क्यों ये आयोजन महज पिकनिक बनकर खत्म हो जाते हैं? क्या इस बारे में सोचा नहीं जाना चाहिए ?दरअसल इंडस्ट्री में अरबों रूपए लगाने वाले ये दिग्गज ज़मीनी हक़ीकत या तो समझ नहीं पाते या फिर समझ कर भी नासमझ बने रहते हैं।

समाज के अलग अलग हिस्सों के लोगों से बात करने से साफ हो जाता है कि वे भी अब ऐसे कंटेंट से ऊब चुके हैं, उन्हें कुछ नया चाहिए। तमाम चैनल और मीडिया संस्थान इसे लेकर समय समय पर सर्वे भी करवाते रहे हैं और इनमें ये बात साफ होती है कि ज्यादातर लोग अब राजनीति और अपराध की खबरें नहीं देखना चाहते, बेवजह की बहसें नहीं सुनना चाहते और न ही बयानों पर आधारित पत्रकारिता उन्हें पसंद आती है। जब ये बात साफ हो चुकी है तो फिर ये ट्रेंड क्यों नहीं बदल पा रहा, ये एक गंभीर सवाल है ?

अगर गहराई से विश्लेषण करें तो साफ़ हो जाता है कि मीडिया इंडस्ट्री और राजनीति का इतना गहरा रिश्ता बन चुका है कि दोनों एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते। बयान आधारित पत्रकारिता के पीछे, कहीं न कहीं ‘पीआर’ वाली सोच काम करती है। बातें आप भले ही बड़ी बड़ी कर लें, मीडिया को स्वच्छ करने के दावे कर लें लेकिन कहीं न कहीं नेताओं और असरदार लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश नज़र आ ही जाती है। हर चैनल का संपादक एक बड़े अफ़सर की तरह कुछ हस्तियों से इंटरव्यू करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है और इस इंटरव्यू के बहाने चैनल के और खुद उन संपादक महोदय के कितने हित साधे जाते हैं, ये कहने की बात नहीं है। कुछ और फ़ायदा हो न हो, खुद को कुछ खास लोगों के बीच स्थापित करने और अपना सामाजिक कद बढ़ाने के आत्मसुख का आनंद तो संपादक महोदय ले ही लेते हैं। जबकि इन इन्टरव्यू को लाइनअप करने, नेताओं और हस्तियों से समय लेने, उनके बीच अपने संपादक महोदय का महिमामंडन करने में रिपोर्टर और स्ट्रिंगर की ही अहम भूमिका होती है। इंटरव्यू करने के नाम पर चैनल की एक पूरी टीम इसी काम में लग जाती है। मीडिया इंडस्ट्री का ये ट्रेंड कोई नया नहीं है क्योंकि अगर इसे ‘इंडस्ट्री’ मान लियागया है तो फिर इसके ‘बिज़नेस इंट्रेस्ट’ को भी साफ़ तौर पर समझा जा सकता है। शायद इसीलिए जनपक्षधर पत्रकारिता अब किताबी बात रह गई है या यूं कहिए कि जो लोग इसकी बात करते हैं वो इस पूरे माहौल में खुद को हाशिये पर पाते हैं।

बड़े बड़े चैनल और बड़ी बड़ी मीडिया कंपनी के कर्ता धर्ता मीडिया के बारे में बड़े बड़े आदर्श वाक्य गढ़ते हैं और ईमानदारी के साथ साथ देश की कला संस्कृति और‘पॉजिटिव जर्नलिज़्म’ की बातें ज़रूर करते हैं लेकिन हकीकत यही है कि अगर आपको मीडिया में बने रहना है तो ट्रेंड के साथ चलना सीखना पड़ेगा। शायद यही आज के दौर की ‘पत्रकारिता’ है।

अतुल सिन्हा पिछले करीब तीस वर्षों से प्रिंट और टीवी पत्रकारिता में सक्रिय। लगभग सभी राष्ट्रीय अखबारों में विभिन्न विषयों पर लेखन। अमर उजाला, स्वतंत्र भारत, चौथी दुनिया के अलावा टीवीआई, बीएजी फिल्म्स, आज तक, इंडिया टीवी, नेपाल वन और ज़ी मीडिया के विभिन्न चैनलों में काम। अमर उजाला के ब्यूरो में करीब दस वर्षों तक काम और विभिन्न विषयों पर रिपोर्टिंग। आकाशवाणी के कुछ समसामयिक कार्यक्रमों का प्रस्तुतिकरण। दैनिक जागरण के पत्रकारिता संस्थान में तकरीबन एक साल तक काम और गेस्ट फैकल्टी के तौर पर कई संस्थानों में काम। एनसीईआरटी के लिए संचार माध्यमों से जुड़ी एक पुस्तक के लेखक मंडल में शामिल और टीवी पत्रकारिता से जुड़े अध्याय का लेखन। हाल ही तक ज़ी मीडिया के राजस्थान चैनल में आउटपुट हेड।

Tags: ‘आज तकAajtakAtul SinhaBSG FilmsIndia TVJournalismNew EraTV JournalistZee Newsअतुल सिन्हाअमर उजालाइंडिया टीवीचौथी दुनियाज़ी मीडियाटीवी पत्रकारिताटीवीआईनेपाल वनपत्रकारिताप्रिंटबीएजी फिल्म्सस्वतंत्र भारत
Previous Post

विज्ञापन अब मांग पैदा करते हैं

Next Post

समकालीन हिन्‍दी मीडिया की चुनौतियां

Next Post
समकालीन हिन्‍दी मीडिया की चुनौतियां

समकालीन हिन्‍दी मीडिया की चुनौतियां

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Development of Local Journalism

March 22, 2023

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

Evolution of PR in India and its present status

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

आर्थिक-पत्रकारिता क्या है?

Recent Post

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

Fashion and Lifestyle Journalism Course

Development of Local Journalism

Audio Storytelling and Podcast Online Course

आज भी बरक़रार है रेडियो का जलवा

Fashion and Lifestyle Journalism Course

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.