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मैगी की वापसी, लेकिन अब ग्राहकों के पास विकल्प हैं

मैगी की वापसी, लेकिन अब ग्राहकों के पास विकल्प हैं

आशीष कुंमार ‘अंशु’।

मैगी की वापसी में बड़ी भूमिका अमेरिका की जनसंपर्क कंपनी एपको की मानी जा रही है। एपको से पहले जनसंपर्क का काम नेसले के लिए एपिक देखता था

जब आप यह लेख पढ़ रहे हैं, मैगी के रास्ते की सारी बाधाएं एक एक कर दूर हो चुकी होगी। बीते दीपावली पर मैगी की वापसी बाजार में एक बार फिर से हुई है। दो मिनट में बनने वाली मैगी की प्रतिबंध के बाद वापसी में पूरे छह महीने का वक्त लगा। जैसाकि हम जानते हैं, मैगी स्वीट्जरलैंड की कंपनी नेसले जो दुनिया की सबसे बड़ी पैकेज्ड फूड की कंपनी है, का उत्पाद है। जो पिछले कई महीनों से भारत में प्रतिबंधित था।

30 अप्रैल को मैगी विवाद मीडिया में आया। खबर यह थी कि मैगी के नमूने में लेड और एमएसजी (मोनो सोडियम ग्लूटमेट) जरूरत से अधिक पाया गया है। लखनऊ में आधिकारिक तौर पर कंपनी को अपना माल समेट कर वापस ले जाने का निर्देश मिला। उसके बाद मीडिया में मैगी द्वारा अपना माल वापस मंगाए जाने और उसे नष्ट किए जाने की खबर आती रही लेकिन पूरे एक महीने तक मैगी ने मीडिया से बातचीत नहीं की। एक महीने बाद मीडिया के सामने नेसले के सीईओ पॉल बुलके का बयान आया- ‘मैगी सुरक्षित है।’

जब पॉल मीडिया को यह आश्वस्त कर रहे थे कि मैगी सुरक्षित है। उस दौरान एक के बाद एक राज्य में मैगी पर प्रतिबंध लग रहा था।

मैगी के प्रतिबंधित होने के बाद नूडल्स का एक बड़ा बाजार देश से खाली हुआ। पहले नूडल्स के इस बाजार पर मैगी से टकराने वाली कोई बड़ी कंपनी नहीं थी। मैगी पर प्रतिबंध के बाद नेपाल से वाई वाई नूडल्स भारत आया और बाबा रामदेव ने पतंजली से नूडल्स तैयार किया। लगभग आधा दर्जन नई कंपनियां बाजार में नूडल्स बेचने के लिए उतर आई। अब ग्राहकों के पास विकल्प बढ़ गया था। जब बाजार में मैगी थी तो आम तौर पर ग्राहक विकल्पों की तरफ देखते नहीं थे।

मैगी की वापसी में बड़ी भूमिका अमेरिका की जनसंपर्क कंपनी एपको की मानी जा रही है। एपको से पहले जनसंपर्क का काम नेसले के लिए एपिक देखता था। एपको वही कंपनी है जिसने नरेन्द्र मोदी की 2002 के साम्प्रदायिक दंगों वाली छवि में सुधार लाकर उन्हें विकास पुरुष के तौर पर स्थापित करने में मदद की। बताया जा रहा है कि मैगी को मुसीबत से निकालने के लिए एपको ने श्रीलंका से अपनी कर्मचारी शिवानी हेगड़े को विशेष तौर से इस काम के लिए भारत बुलाया।

ताजा खबर यह है कि मैगी के सभी छह प्रकार के 90 नमूनों में लेड सुरक्षित मात्रा में पाया गया। तीन प्रयोगशालाओं में मैगी ने सभी परीक्षाएं पास कर ली है। मुम्बई उच्च न्यायालय ने मैगी के पक्ष में अपनी बात कही है। अब कर्नाटक और गुजरात की सरकार ने उसके बाद मैगी से प्रतिबंध हटाने का निर्णय ले लिया है।

मैगी की वापसी का हमें स्वागत करना चाहिए लेकिन उत्पाद की गुणवत्ता से किसी तरह के समझौते के लिए हमें तैयार नहीं होना चाहिए। मैगी को बाजार में लाने में एपको की भूमिका को लेकर कई तरह के सवाल सोशल मीडिया में उठ रहे हैं। यह बात भी आई कि मैगी क्या बाजार में उस उत्पाद को भी ला सकता है जो पुराने स्टॉक का है और किसी कारण वश जिसे अब तक नष्ट नहीं किया गया।

भारत में गुणवत्ता नियंत्रण रखने वाली संस्थाओं को खाद्य सामग्रियों के नमूनों की नियमित जांच करानी चाहिए। इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि नमूना किसी एक जगह से बार बार इकट्ठा किया गया ना हो। उन्हें नमूना अलग अलग जगहों से इकट्ठा करना चाहिए।

यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि यदि कोई कंपनी खाने पीने की सामग्री में मिलावट करती हुई या ग्राहकों के सेहत से खिलवाड़ करती हुई पाई जाती है तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाई होगी। जब एक कंपनी पर प्रतिबंध लगता है और छह महीने बाद वह बाजार में इस तरह उतर आती है जैसे कुछ हुआ नहीं था फिर समाज के बीच एक गलत संदेश जाता है। जब कंपनी के पीछे एक बहुराष्ट्रीय जनसंपर्क की कंपनी हो तो यह संदेह और गहरा हो जाता है।

अब नूडल्स को लेकर भारत में उपभोक्ता के पास विकल्प है। जरूरत है कि वह सोच समझ कर खरीददारी करे क्योंकि हम सब जानते हैं सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।

(लेखक इंडिया फाउंडेशन फॉर रुरल डेवलपमेन्ट स्टडीज से सम्बद्ध हैं)

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