About
Editorial Board
Contact Us
Tuesday, July 5, 2022
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Contemporary Issues

अख़बारों से ग़ायब होता साहित्य

अख़बारों से ग़ायब होता साहित्य

फ़िरदौस ख़ान।

साहित्य समाज का आईना होता है। जिस समाज में जो घटता है, वही उस समाज के साहित्य में दिखलाई देता है। साहित्य के ज़रिये ही लोगों को समाज की उस सच्चाई का पता चलता है, जिसका अनुभव उसे ख़ुद द नहीं हुआ है। साथ ही उस समाज की संस्कृति और सभ्यता का भी पता चलता है। जिस समाज का साहित्य जितना ज़्यादा उत्कृष्ट होगा, वह समाज उतना ही ज़्यादा सुसंस्कृत और समृद्ध होगा। प्राचीन भारत की गौरवमयी संस्कृति का पता इसके साहित्य से ही चलता है। प्राचीन काल में भी यहां के लोग सुसंस्कृत और शिक्षित थे, तभी उस समय वेद-पुराणों जैसे महान ग्रंथों की रचना हो सकी। महर्षि वाल्मीकि की रामायण और श्रीमद भागवत गीता भी इसकी बेहतरीन मिसालें हैं।

हिंदुस्तान में संस्कृत के साथ हिंदी और स्थानीय भाषाओं का भी बेहतरीन साहित्य मौजूद है। एक ज़माने में साहित्यकारों की रचनाएं अख़रों में ख़ूब प्रकाशित हुआ करती थीं। कई प्रसिद्ध साहित्यकार अख़बारों से सीधे रूप से जु़डे हुए थे। साहित्य पेज अख़बारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करता था, लेकिन बदलते वक़्त के साथ-साथ अ़खबारों और पत्रिकाओं से साहित्य ग़ायब होने लगा। इसकी एक बड़ी वजह अख़बारों में ग़ैर साहित्यिक लोगों का वर्चस्व भी रहा। उन्होंने साहित्य की बजाय सियासी विषयों और गॉसिप को ज़्यादा तरजीह देना शुरू कर दिया। अख़बारों और पत्रिकाओं में फ़िल्मी, टीवी गपशप और नायिकाओं की शरीर दिखाऊ तस्वीरें प्रमुखता से छपने लगीं।

अख़बारों से ग़ायब होते साहित्य पर मशहूर फ़िल्म गीतकार जावेद अख्तर कहते हैं कि यह एक बहुत ही परेशानी और सोच की बात है कि हमारे समाज में ज़ुबान सिकु़ड़ रही है, सिमट रही है। हमारे यहां तालीम का जो निज़ाम है, उसमें साहित्य को, कविता को वह अहमियत हासिल नहीं है, जो होनी चाहिए थी। ऐसा लगता है कि इससे क्या होगा। वही चीज़ें काम की हैं, जिससे आगे चलकर नौकरी मिल सके, आदमी पैसा कमा सके। अब कोई संस्कृति और साहित्य से पैसा थोड़े ही कमा सकता है। पैसा कमाना बहुत ज़रूरी चीज़ है। कौन पैसा कमा रहा है और ख़र्च कैसे हो रहा है, यह भी बहुत ज़रूरी चीज़ है। यह फ़ैसला इंसान का मज़हब और तहज़ीब करते हैं कि वह जो पाएगा, उसे ख़र्च कैसे करेगा। जब तक आम लोगों ख़ासकर नई नस्ल को साहित्य केबारे में, कविता के बारे में नहीं मालूम होगा, तब तक ज़िंदगी ख़ूबसूरत हो ही नहीं सकती।

अगर आम इंसान को इसके बारे में मालूम ही नहीं होगा तो फिर वह अख़बारों से भी ग़ायब होगा, क्योंकि अख़बार तो आम लोगों के लिए होते हैं। मैं समझता हूं कि हमें अपने अख़बारों पर नाराज़ होने और शिकायतें करने की बजाय अपनी शैक्षिक व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा। हमें साहित्य को स्कूलों से लेकर कॉलेजों तक महत्व देना होगा। अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी साहित्य को जगह देनी होगी। जब हम ख़ुद साहित्य की अहमियत समझेंगे तो वह किताबों से लेकर पत्र-पत्रिकाओं में भी झलकेगा। देखिए अख़बार तो बहुत हैं, लेकिन कम अख़बार हैं, जिनमें हिम्मत है सच बोलने की। जो चंद अख़बार हैं उर्दू में, हिंदी में, अंग्रेज़ी में, उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है।

वरिष्ठ साहित्यकार असग़र वज़ाहत का कहना है कि अख़बार समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। मौजूदा दौर में अख़बारों से साहित्य ग़ायब हो गया है। इसे दोबारा वापस लाया जाना चाहिए, क्योंकि आज इसकी सख्त ज़रूरत है। वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय प्रभाष जोशी का मानना था कि अख़बारों से साहित्य ग़ायब होने के लिए सिर्फ़ अख़बार वाले ही ज़िम्मेदार नहीं हैं। पहले जो पढ़ने-लिखने जाते थे, वही लोग अख़बारों के भी पाठक होते थे। पहले जो व्यक्ति पाठक रहा होगा, उसने शेक्सपियर भी पढ़ा था। उसने रवींद्रनाथ टैगोर को भी पढ़ा था। उसने प्रेमचंद, शरतचंद्र, मार्क्स और टॉलस्टाय को भी पढ़ा था। लेकिन सरकार के साक्षरता अभियान की वजह से समाज में साक्षरता तो आ गई, लेकिन पढ़ने-लिखने की प्रवृत्ति कम हो गई।

नव साक्षरों की तरह ही नव पत्रकारों को भी साहित्य की ज़्यादा जानकारी नहीं है। पहले भी साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों को अख़बारों से पर्याप्त साहित्य पढ़ने को कहां मिलता था। वे साहित्य पढ़ने की शुरुआत तो अख़बारों से करते थे, लेकिन साहित्यिक किताबों से ही उनकी पढ़ने की ललक पूरी होती थी। अब लोग अख़बार पढ़ने की बजाय टीवी देखना ज़्यादा पसंद करते हैं। ऐसे में अख़बारों से साहित्य ग़ायब होगा ही।

माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रकाशन अधिकारी डॉ। सौरभ मालवीय कहते हैं कि वर्तमान में मीडिया समाज के लिए मज़बूत कड़ी साबित हो रहा है। अख़बारों की प्रासंगिकता हमेशा से रही है और आगे भी रहेगी। मीडिया में बदलाव युगानुकूल है, जो स्वाभाविक है, लेकिन भाषा की दृष्टि से अख़बारों में गिरावट देखने को मिल रही है। इसका बड़ा कारण यही लगता है कि आज के परिवेश में अ़खबारों से साहित्य लोप हो रहा है, जबकि साहित्य को समृद्ध करने में अ़खबारों की महती भूमिका रही है। मगर आज अ़खबारों ने ही खुद को साहित्य से दूर कर लिया है, जो अच्छा संकेत नहीं है। आज ज़रूरत है कि अख़बारों में साहित्य का समावेश हो और वे अपनी परंपरा को समृद्ध बनाएं। युवा लेखक अमित शर्मा का कहना है कि राजेंद्र माथुर अख़बार को साहित्य से दूर नहीं मानते थे, बल्कि त्वरित साहित्य का दर्जा देते थे। अब न उस तरह के संपादक रहे, न अ़खबारों में साहित्य के लिए स्थान।

साहित्य महज़ साप्ताहिक छपने वाले सप्लीमेंट्‌स में सिमट गया है। अब वह भी ब्रांडिंग साहित्य की भेंट चढ़ रहे हैं। पहला पेज रोचक कहानी और विज्ञापन में खप जाता है। अंतिम पेज को भी विज्ञापन और रोचक जानकारियां सरीखे कॉलम ले डूबते हैं। भीतर के पेज 2-3 में साप्ताहिक राशिफल आदि स्तंभ देने के बाद कहानी-कविता के नाम कुछ ही हिस्सा आ पाता है। ऐसे में साहित्य सिर्फ़ कहानी-कविता को मानने की भूल भी हो जाती है। निबंध, रिपोर्ताज, नाटक जैसी अन्य विधाएं तो हाशिये पर ही फेंक दी गई हैं।

इस सबके बीच अच्छी बात यह है कि आज भी चंद अख़बार साहित्य को अपने में संजोए हुए हैं। वक़्त बदलता रहता है, हो सकता है कि आने वाले दिनों में अख़बारों में फिर से साहित्य पढ़ने को मिलने लगे। कहते हैं, उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।

फ़िरदौस ख़ान वह पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं। वह कई भाषाओं की जानकार हैं। उन्होंने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल तक सेवाएं दीं। उन्होंने अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का संपादन भी किया। ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर उनके कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहा है। वह देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फीचर्स एजेंसी के लिए लिखती रही हैं। उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। वह कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी वह शिरकत करती रही हैं। कई बरसों तक उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली। उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में उनकी ख़ास दिलचस्पी है। वह मासिक पैग़ामे-मादरे-वतन की भी संपादक रही हैं। वह स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं। ‘स्टार न्यूज़ एजेंसी’ और ‘स्टार वेब मीडिया’ नाम से उनके दो न्यूज़ पॉर्टल भी हैं। सूफ़ी-संतों के जीवन दर्शन पर आधारित एक किताब ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ लिखी है।

Tags: Firdaus KhanLiteraturemediaNews PaperPoetअखबारऑल इंडिया रेडियोकहानीकारपत्रकारफ़िरदौस ख़ानशायरासाहित्य
Previous Post

टीवी न्यूज का पर्दा: खबर लिखना किसी बढ़ई का कुर्सी या एक मेज बनाने जैसा

Next Post

Sport Reporting: Accurate Description is Vital

Next Post
Sport Reporting: Accurate Description is Vital

Sport Reporting: Accurate Description is Vital

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

The Age of Fractured Truth

July 3, 2022

Growing Trend of Loss of Public Trust in Journalism

July 3, 2022

How to Curb Misleading Advertising?

June 22, 2022

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार, सिद्धांत और अवधारणा: समाचार क्‍या है?

समाचार : अवधारणा और मूल्य

Rural Reporting

Recent Post

The Age of Fractured Truth

Growing Trend of Loss of Public Trust in Journalism

How to Curb Misleading Advertising?

Camera Circus Blows Up Diplomatic Row: Why channels should not be held responsible as well?

The Art of Editing: Enhancing Quality of the Content

Certificate Course on Data Storytelling

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.