डॉ. देवव्रत सिंह।
हाल ही में दूरसंचार नियामक प्राधिकरण ने भारत के सभी मोबाइल प्रदाता कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे अपने ग्राहकों को मोबाइल शिष्टाचार का पाठ पढायें। सार्वजनिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति अब ये महसूस करने लगा है कि मोबाइल सुविधा बनने के साथ-साथ असुविधाजनक भी साबित हो रहा है। दरअसल किसी भी समाज में नूतन तकनीक पहले स्वीकारी जाती है और उससे जुड़ा सलीका थोड़े समय बाद व्यवहार में आता है। दूरसंचार क्रांति निसंदेह आधुनिकता की दिशा में ही एक शुभ संकेत है लेकिन हमेशा तकनीक निरपेक्ष होती है और इसका उपयोग ही इसके चरित्र को निर्धारित करता है। इसलिए मोबाइल फोन के उपयोग संबंधी नैतिकता और शिष्टाचार पर सार्वजनिक बहस चलाना समय की मांग है।
पिछले दशक के दौरान भारतीय समाज अभूतपूर्व दूरसंचार क्रांति का गवाह बना है। लगभग 120 करोड़ की कुल भारतीय आबादी के पास 85 करोड़ मोबाइल फोन होना किसी अजूबे से कम नहीं है। पिछले 50 सालों में लैंडलाइन फोन कनेक्शनों ने जितना विस्तार किया है, उससे कई गुणा मोबाइल फोन की संख्या एक दशक में बढी है। नित नयी सुविधाएं मोबाइल फोन में जुड़ने के कारण सेलफोन अब केवल दूरसंचार का माध्यम ना रहकर संपूर्ण मल्टीमीडिया डिवाइस बन चुके हैं। जिसमें स्टिल और वीडियो कैमरा, वॉयस रिकॉर्डर, रेडियो, इंटरनेट, अलार्म, कैलक्यूलेटर, एस. एम. एस., रिमोट और टेलीविजन जैसी अनगिनित सुविधाएं शामिल हो गयी हैं। तकनीकी कनवर्जेंस के सबसे बेहतर उदाहरण बने मोबाइल सेटों के उपयोगकर्ता पर अब पहले से अधिक जिम्मेदारी का बोझ बढ़ गया है।
हमारे एक मित्र ऑफिस में अकसर अपने मोबाइल स्क्रीन पर फिल्मी गानों के क्लिप देख कर दूसरों का ध्यान बटांने में मशगूल रहते हैं। एक सज्जन मोबाइल स्पीकर को ऑन करके फोन की बातचीत सबको सुनाते रहते हैं। कुछ लोगों की आदत में अपने मोबाइल फोन पर विचित्र धुनों वाली रिंगटोंस रखना शुमार होता है। ये लोग इन टोंस का उपयोग दूसरों को चौंकाने या आकर्षित करने के लिए करते हैं। ऐसी रिंग टोंस में कुत्ते के भौंकने, बच्चे के रोने, पुलिस सायरन बजने, स्टेन गन चलने, कांच टूटना, पानी गिरना या फिर किसी धमाकेदार आयटम गीत की धुन शामिल होती है। सार्वजनिक सभाओं, गोष्ठियों और बैठकों में तो अब मोबाइल फोन समस्या बन गये हैं।
सारे शिष्टाचार को तिलांजली देकर मोबाइल धारक कभी ऊंची आवाज तो कभी खुसुर-फुसुर में फोन पर बातचीत करते हैं और अपने विशिष्ट होने का छद्म अहसास कराते हैं। आजकल रेल और बस में सफर करते समय आपको एक साथ पास खड़े कई लोग मोबाइल पर ऊंची आवाज में अपनी पसंद का संगीत सुनते मिल जाएंगे। ऐसे में सबका संगीत मिलकर अद्भुत शोर का निर्माण कर देता है। मोबाइल फोन में कैमरा और वॉयस रिकॉर्डर की सुविधा आने के बाद तो अपराधी और कुंठित प्रवृति के लोग दूसरों की निजता में खलल भी डालने लगे हैं। इन सब से मोबाइल जैसा उपयोगी यंत्र खलनायक बनता जा रहा है।
आरंभिक दिनों में अधिकांश कंपनियों ने मोबाइल फोन को रोमांस के अचूक अस्त्र के रूप में प्रचारित किया। क्योंकि मोबाइल बनाने वाली कंपनियों ने अपने उत्पाद का पहला लक्षित उपभोक्ता युवाओं को ही बनाया। जल्दी ही युवाओं के बीच सेलफोन स्टेटस सिंबल बन गया। स्वाभाविक रूप से अधिकांश युवाओं ने इसे जरूरत के लिए कम, दूसरों को प्रभावित करने के लिए अधिक अपनाया। जब पहला कैमरा फोन आया तो विज्ञापन में एक लड़के को किसी अनजान लड़की की फोटो अपने मोबाइल में कैद करते हुए दिखाया गया। किसी ने इस विज्ञापन पर आपत्ति नहीं उठायी। अब अनेक युवा जब इसी प्रकार मोबाइल का उपयोग करते हैं तो हमें खराब लगता है। किसी भी तकनीक की प्रकृति या उपयोग को जब विज्ञापन के जरिये समाज में स्थापित किया जाता है तो उसके मायने गहरे होते हैं।
रोचक पहलू ये है कि मोबाइल क्रांति में पूर्व और पश्चिम के समाज लगभग एक ही धरातल पर खड़े हैं और यही हाल मोबाइल उपयोग से जुड़े नैतिक पहलूओं का भी है। पश्चिमी देशों में मोबाइल माध्यमों की पैठ अधिक है वहां थ्री जी मोबाइल पहले आ गये थे। इसलिए समस्याओं और सवालों से उनका वास्ता हमसे पहले का है। मोबाइल से जुड़े आचार-व्यवहार के मसले पर पश्चिम और पूर्व में आधारभूत प्रश्न एक जैसे हैं। जैसे किसी भी समाज में नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ ही दूसरों की सुविधा का ध्यान रखने की जिम्मेदारी भी जुड़ी है। ये मूलभूत सिद्धांत कि आपके मोबाइल उपयोग से किसी भी दूसरे को असुविधा ना हो, बुरा ना लगे, परेशानी ना हो, उसके सम्मान को ठेस ना लगे बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार मोबाइल के उपयोग के दौरान आप दूसरों की आवश्यकताओं और सुविधाओं के प्रति भी संवेदनशील रहें।
किसी को फोन करने का भी अपना सलीका है। जैसे आप किसी व्यक्ति को फोन कब करें इस सवाल के जवाब में उसकी सुविधा का ध्यान जरूर रखा जाये। देर रात या बहुत सबेरे फोन सुनना किसी के लिये भी तकलीफदेय हो सकता है। दूसरों से फोन पर बात करते समय भी उंची आवाज में ना बोला जाये। क्योंकि बस, रेल, सिनेमा हॉल, अस्पताल इत्यादि में आपकी व्यक्तिगत बातचीत में अन्य लोगों को कोई दिलचस्पी नहीं है ये सब उनके लिए परेशानी का सबब ही है। कोई भी वाहन चलाते समय मोबाइल फोन पर बातचीत ना की जाये। दरअसल जब हम वाहन चला रहे होते हैं तो ये सार्वजनिक जिम्मेदारी का काम है। हमारी गलती से अनेक बेकसूर लोगों की जान जा सकती है। हैंड्स फ्री होने के बावजूद अनेक बार वाहन चलाते समय फोन पर बात करना घातक है। हैरानी की बात तो ये है कि इतनी सरल सी बात को लागू करवाने के लिए भी सरकार को पुलिस और जुर्माने की मदद लेनी पड़ती है।
मोबाइल इस कदर हमारी आदत बन गया है कि कुछ मिनट के लिये भी इसे बंद कर देने से हमें बेचैनी होने लगती है। लेकिन सच तो ये भी है कि मोबाइल आने से पहले जीवन था। शोध बताती हैं कि मोबाइल आधुनिक जीवन में एक बड़े विघनकारी का रूप ले चुका है। सार्वजनिक कार्यक्रमों विशेषकर संगीत सभाओं, गोष्ठियों, पुस्तकालयों, धार्मिक स्थानों, ध्यान केन्द्रों, सार्वजनिक आराम घरों, अस्पतालों में मोबाइल या तो बंद कर दिये जायें नहीं तो उन्हें शांत करके रखा जाये। अपने मोबाइल की रिंग टोन तीखी, ऊंची, परेशान या हैरान करने वाली ना रखी जाये। कुछ लोग कोई भी संदेश, तस्वीर, संगीत, ग्राफिक्स दूसरों को भेजने से पहले जरा भी इस बात का ध्यान नहीं रखते कि ये सब अगले व्यक्ति को कैसा लगेगा। क्या कोई शेर या चुटकला उसकी पसंद के अनुकूल रहेगा।
निजता का प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण है। बिना अनुमति के अपने मोबाइल कैमरे से किसी की तसवीरें खींचना तो फिर भी दूसरों की पकड़ में आसानी से आ जाएगा लेकिन वॉयस रिकॉर्डिंग तो छुपे हुए तरीके से भी की जा सकती है। ऑफिसों में अनेक घटनाएं ऐसी सामने आ रही हैं जिनको सुनने के बाद सहजता से दोस्तों के बीच बातचीत करना भी मुश्किल होने लगा है। एक मित्र की आदत थी कि वो शराब के नशे में अपने साथियों के बारे में कुछ ज्यादा ही बोल जाते थे। उनके विरोधियों ने एक बार उनकी सारी बाते रिकोर्ड करके बॉस को सुना दी और उन्हें नौकरी से निकलवा दिया।
कुछ लोगों की आदत होती है कि वे दूसरों के मोबाइल फोन उठा लेते हैं और उससे छेड़छाड़ शुरू कर देते हैं। जैसे मैसेज पढ़ना, तसवीरें देखना या फिर कॉल रजिस्टर देखना इत्यादि। हद तो तब होती है जब इस बीच कोई कॉल आ जाती है और वे जनाब कॉल भी अटैंड कर लेते हैं। मोबाइल सेट निहायत व्यक्तिगत यंत्र है जिसे दूसरों के हवाले करना अनेक लोग शायद पसंद नहीं करेंगे।
मेरे एक मित्र मीटिंग में लगातार किसी को मैसेज करते रहते हैं। इससे वे दूसरों को व्यस्त होने का संदेश देना चाहते हैं। यही नहीं वे हमेशा दो-तीन फोन अपने साथ रखते हैं और जब भी किसी से फोन पर बात करते समय दूसरा फोन आ जाता है तो वे पहले वाले को हॉल्ड करने के लिए कहते हैं और दूसरे से बात करने लगते हैं। उनका ये निराला तरीका अकसर दोस्तों को बड़ा अखरता है। दरअसल, प्रत्येक व्यक्ति का आत्म सम्मान होता है। मोबाइल शिष्टाचार के अनुसार जब आप किसी से बात कर रहे हैं तो केवल उसी से बात करें। इस बीच को दूसरी जरूरी कॉल आती है तो दोस्त से बाकी बात बाद में करने का निवेदन किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार मीटिंग में जब आप बैठे हों तो सबकी आप से ये आशा रहती है कि आप केवल मीटिंग में ही हों ना कि दो तीन दूर बैठे व्यक्तियों से संदेशों का आदान-प्रदान कर रहे हों।
आजकल हैंड्स फ्री का चलन युवाओं में काफी है। संगीतप्रेमी युवा ईयरफोन लगाये आपको व्यस्त सड़कों पर मिल जाएंगे जो दुर्घटना को आमंत्रण है। पश्चिम में लंबे समय तक ऊंची आवाज में इयर फोन से संगीत सुनने के कारण कान के पर्दे की गंभीर बीमारियां सामने आने लगी हैं।
लेखक झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं।