About
Editorial Board
Contact Us
Sunday, March 26, 2023
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Contemporary Issues

संसद में ख़बरें कैसे घूमती हैं?

संसद में ख़बरें कैसे घूमती हैं?

ओम प्रकाश दास…

साठवें दशक में टाईम्स आफ इंडिया समूह के हिन्दी अखबार नवभारत टाईम्स के लिए एक अलग ब्यूरो का गठन किया गया। ब्यूरो बनाने के पीछे टाईम्स ग्रुप के अध्यॿ शाहू शांतिलाल जैन का तर्क था कि संसद और विभिन्न मंत्रालयों की अलग से और विशिष्ट रिपोर्टिंग के लिए ब्यूरो का होना जरूरी है। उसके बाद कई अखबारों ने संसद की रिपोर्टिंग के लिए विशिष्ट अनुभव वाले पत्रकारों को ही इस काम पर लगाना शुरू किया। संसद की रिपोर्टिंग के लिए बाकायदा प्रशिक्षण की भी व्यवस्था होती थी। लेकिन धीरे-धीरे ये व्यवस्था ख़त्म होती चली गई।  लेकिन संसद की कार्यवाही को कवर करने के लिए कुछ विशेष तैयारियों का मुद्दा ख़त्म नहीं हुआ। यहां तक की ख़ुद संसद भी पत्रकारों के लिए कई तरह के कार्यशालाओं का आयोजन करता रहता है, जिनका उद्देश्य ही पत्रकारों को संसदीय नियम क़ानूनों और रोज़मर्रा की कार्यवाही को बेहतर ढंग से समझाना होता है।
इसमें कोई शक नहीं कि आज हालात बदले हैं। राजनीति में बदलाव राजनीतिक पार्टियों या क्षेत्रिय दलों की बढ़ती भूमिका ने संसद में काफी कुछ बदला है। ख़बरों के लिहाज़ से संसद अब ज्यादा संवेदनशील हो गया है। लेकिन, इसका दूसरा पॿ भी है।
लोकसभा हो या राज्यसभा संसद का उद्देश्य ही है जनता की आवाज़ उठाना। क़ानून बनाना संसद का मुख्य काम तो है ही लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं। संसद बीट पर रिपोर्टिंग करने से पहले देखना होगा कि यहां किन चीज़ों को लक्षय करना है। संसद सरकार पर एक तरह से राजनैतिक नियंत्रण रखता है, ये नियंत्रण राजनैतिक भी है और वित्तीय भी। संसद जानकारी पाने का भी स्रोत है, जो पत्रकारों के लिए भी एक तरह से ख़बरों का मुख्य स्रोत होता है।
न्यूज़ चैनलों के शोर और अख़बारों की सुर्खियों से शायद संसद की कोई गंभीर छवि न बनती दिखती हो। ऐसा लग सकता है कि शायद संसद का कोई कामकाज नहीं बल्कि हंगामा और उठापटक ही ख़बर बनती है। चाहे वो प्रशनकाल का स्थगन या ठीक से न चलना हो या फिर सदन से वाॅक आउट। ये बात दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा दोनों के लिए कही जा सकती है। आम जनता से लेकर मीडिया तक जहां इन सबके लिए सांसदों के आचरण पर सवाल उठाती है वहीं कई बार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और कई राज्यसभा के सभापतियों ने इस बात को कहा है कि सांसद मीडिया की मौजूदगी और संसदीय कार्यवाही के सीधे प्रसारण का लाभ लेने के लिए संसद में हंगामा को अपना हथियार बनाते हैं। संसद से या संसदीय कार्यावाही की रिपोर्टिंग को लेकर ये चिंता बढ़ती जा रही है कि ये सिर्फ सनसनी तक ही तो नहीं सिमट रही। लेकिन, ये विशलेषण सच का सिर्फ आंशिक हिस्सा ही है। क्योंकि, आज संसद की भूमिका ज्यादा व्यापक हुई है। कुछ घंटों का शोर शराबा भले ही ब्रेकिंग न्यूज़ बनाता हो, लेकिन सदन का घंटों देर तक बैठना शायद ही कभी सुर्ख़ियां बनती हो।

क्या है संसदीय रिपोर्टिंग—

बीट रिपोर्टिंग के केंद्र में ही है निरंतरता। निरंतरता किसी एक क्षेत्र या विषय पर नज़र रखने की। लेकिन, ये सिर्फ रिपोर्टर और एक अच्छी रिपोर्ट के लिए ही ज़रुरी नहीं, ख़बरों के स्रोत के लिए भी ज़रुरी होती हैं। स्रोत को पता होता है कि ख़बर किस तक पहुंचानी है, उसे ये भरोसा होना चाहिए कि कोई दी गई ख़बर सही हाथों में पहुंच रही है। संसदीय रिपोर्टिंग इस निरंतरता का एक अच्छा उदाहरण है। लेकिन ये सिर्फ संसदीय कार्यवाही तक ही सीमित नहीं है।
जानकार कहते हैं कि रिपोर्टिंग और संसदीय रिपोर्टिंग में अंतर वैसे तो ज्यादा नहीं। लेकिन जो  थोड़ा अंतर मौजूद है वो काफी महत्वपूर्ण है। लोकसभा हो या राज्यसभा संसद की बीट पर रिपोर्टिंग करना ज्यादा जागरुकता, संसदीय प्रणाली, संसदीय कार्यवाही की बुनियादी समझ की मांग करता है। आम तौर पर देखा गया है कि मीडिया संस्थान लोकसभा और राज्यसभा के लिए अलग अलग रिपोर्टरों को भेजते हैं।  ये संख्या दो से चार तक भी हो सकती है।
संसदीय रिपोर्टिंग के दौरान कई बार लगता है कि संसद से ख़बर निकालना सूचनाओं के भंडार से चुनी हुई सूचनाओं को छांटना और आकर्षक ढंग से रख देना है। ऐसा इसलिए क्योंकि सिर्फ एक घंटे के प्रश्नकाल में ही इतने आंकड़े और संदर्भ मिल जाते हैं कि उसे व्यवस्थित करना, क्या ख़बर है इसे समझना किसी भी रिपोर्टर के लिए एक बड़ा काम होता है। संसदीय रिपोर्टिंग के लिहाज़ से सबसे बड़ी बात यही है कि सरकार के अलग अलग मंत्रालय कई ऐसे तथ्य और आंकड़े सामने रखती है जो आम तौर पर उपलब्ध होना मुश्किल है। उससे भी आगे बढ़कर ये बात कि संसद में प्रस्तुत सारे आंकड़े सरकार के आधिकारिक आंकड़े होते हैं, जिस पर कोई विवाद या मतभेद की संभावना बेहद कम होती है।
जुलाई, 2008 के उस समय को भुलाया नहीं जा सकता जब तात्कालिक यूपीए सरकार से वामदलों ने अपना समर्थन वापस ले लिया था। सरकार अल्पमत में नज़र आ रही थी। तय हुआ कि 21और 22 जुलाई 2009 को सरकार सदन में विश्वास मत लाएगी। 21 जुलाई को जब लोकसभा में विश्वस मत पर बहस शुरु होने से लेकर 22 जुलाई के विश्वास मत पर मतों के विभाजन तक कई तरह के राजनैतिक समीकरण बने बिगड़े। लोकसभा में नोटों की गड्डियां लहराई गईं। ये चर्चा इसलिए है क्योंकि इस दौरान संसदीय रिपोर्टिंग सिर्फ संसदीय कार्यवाही तक ही सीमित नहीं थी बल्कि उसके पीछे चल रहे राजनीतिक जोड़ तोड़ ख़ास ख़बरों में जगह पा रही थी। यहां तक कि किस पार्टी के सांसद ने किससे मुलाकात की सदन में किस पार्टी ने अपना स्टैंड बदला किसने फैसला किया कि वो विश्वास मत के मत विभाजन में भाग ही नहीं लेगा ये तमाम बातें कहे और लिखे शब्दों के बीच की ख़बरों की ओर इशारा करती हैं।
कहां हो सकती हैं ख़बरें —

प्रश्नकाल के सवाल जवाब, स्थायी समिति के प्रतिवेदन, शून्यकाल के मुद्दे, नियम 377 के तहत उठाए गए मुद्दे, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, संसदीय चर्चाएं, विधेयक पर चर्चा, रेल बजट, आम बजट, बजट पर चर्चा, राष्ट्रपति का संबोधन। मुख्य रुप से संसदीय कार्यवाही में ये वो महत्वपूर्ण क्षण होते हैं जब संसद में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के लिए सतर्क रहने का समय होता है। कुछ लोग आज ये चिंता ज़रुर जताते हैं कि संसदीय समाचारों को मीडिया में पर्याप्त जगह नहीं मिलती। इसके पक्ष में टीआरपी और लोकप्रियता की दलीलें रखी जाती हैं। लेकिन जिस तरह से पिछले 15-16 सालों में क्षेत्रिय पत्रकारिता ने प्रिंट के साथ साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी पकड़ बनाई है उसने संसदीय रिपोर्टिंग या कहें संसद की ख़बरों का दायरा काफी बढ़ा है।
आज अगर झारखंड की नक्सली समस्या को लेकर कोई सवाल लोकसभा या राज्यसभा में उठता है तो राष्ट्रीय अख़बारों में भले ही उसे अपेक्षित जगह न मिले लेकिन हो सकता है कि प्रभात ख़बर या रांची एक्सप्रेस और इनाडु टीवी झारखंड या सहारा झारखंड में ये खबर सुर्ख़ियां लूट ले। सबसे पहले ये समझना होगा किसंसदीय रिपोर्टिंग का मतलब क्या है। लोगों के प्रतिनिधियों की सर्वोच्चसंस्था के लिए रिपोर्टिंग करने का मतलब ही है कि वो इस संस्था और जनता के बीच सूत्र का काम कर रहा है। एक सांसद के सवाल सिर्फ किसी राजनेता के सवाल नहीं वो उस सांसद विशेष के ॿेत्र के जनता की आकंक्षा और उम्मीदों को भी सामने रखता है। उसी तरह सरकार का जवाब भी किसी सवाल को लेकर उसकी मंशा को दिखाता है।
सवाल ये उठता है कि ख़बर कहां होती है? संसद में चाहे वो राज्यसभा हो या लोकसभा ख़बरों का मुख्य स्रोत होता है Parliament proceeding यानी संसदीय कार्यवाही। संसदीय कार्यवाही वैसे तो कई हिस्सों में बंटा होता है जो अमूमन प्रश्नकाल, शून्यकाल, विधेयक पर चर्चा आदि के रुप में हम जानते हैं। ख़बर यहीं छुपी होती है। उदाहरण के लिए प्रश्नकाल को लेते हैं। बिना किसी मतभेद के प्रश्नकाल को संसदीय कार्यावाही के सबसे ख़ास हिस्सा कह सकते हैं। ये वो क्षण होता है जब सांसदों के सवालों का जवाब सरकार और उसके मंत्रियों को मौखिक रुप से देना होता है। किसी सवाल के जवाब में कोई मंत्री कोई ऐसे तथ्य सदन के सामने रखता है जो किसी मुद्दे पर नई रोशनी डालता हो। साथ ही जिसका जनता पर अपना व्यापक असर डालने की क्षमता रखता हो ख़बरों में सुर्खि़यां बन सकती हैं।
14 जुलाई 2009 के राष्ट्रीय अख़बारों में एक ख़बर ने बड़ा ख़ुलासा किया कि देश में सिर्फ 1411 बाघ बचे हैं। उसमें से भी मध्यप्रदेश के पन्ना बाघ अभयारण्य में शिकारियों ने किसी बाघ को ज़िंदा नहीं छोड़ा है। ये चिंता पैदा करने वाले आंकड़े किसी और के नहीं बल्कि राज्यसभा में एक सवाल का जवाब में ये आंकड़े ख़ुद पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री ने दिए। किसी ग़ैर-सरकारी संगठन या किसी गै़र सरकारी संस्था के इन चौंकाने वाले आंकड़ों पर सवालिया निशान उठाए जा सकते थे, लेकिन सरकार के इन आंकड़े पूरी तरह अधिकृत बताया जा सकता है। ये सूचना एक लिखित जवाब में दिए गए थे, जो पत्रकारों के लिए भी उपलब्ध होते हैं। इस तरह लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल का जवाब देते हुए श्रम एवं रोज़गार राज्यमंत्री हरिश रावत ने बताया कि साल 2009 से 2012 तक देश में लगभग 6 करोड़ नौकरियां पैदा होगीं।
सिर्फ प्रश्नकाल ही नहीं इस तरह की चौंकाने वाली सूचनाएं शून्यकाल से लेकर संसद के दूसरी चर्चाओं में भी सामने आते हैं।  अभी हाल ही में दाउद इब्राहिम की पाकिस्तान में होने के मुद्दे पर हुआ हंगामा तो एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं, लेकिन यहां भी सनसनी ज्यादा पैदा की गई।

कैसे हों तैयार —

संसदीय कार्यवाही की बारीकियों के अलावा कई ऐसी चीज़े है जो बेहतर संसदीय रिपोर्टिंग के लिए ज़रुरी हैं। संसदीय सचिवालय अपनी तरफ से प्रेस को कई तरह की सूचनाएं उपलब्ध कराता है। चाहे वो संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट हो या कोई विशेष बयान। काग़जी सूचनाओं तक पहुंच तो बन जाती है लेकिन इन बातों के अलावा कई सूचनाओं तक पहुंच किसी संवाददाता को तैयारी का बेहतर अवसर देती हैं। ऐसे ही कुछ तथ्यों पर नज़र डालते हैं।

एजेंडा- एजेंडा एक ऐसी कार्यसूची होती है जो किसी भी सदन के किसी कार्यवाही वाले दिन विशेष में क्या क्या होगा इसकी सूचना देता है। मसलन, कौन विधेयक सदन में रखा जाएगा या किस स्थाई समिति की रिपोर्ट रखी जाएगी। एजेंडा ये भी बताता है कि किस मुद्दे पर किस नियम के तहत चर्चा होनी तय की गई है। आम तौर पर किसी दिन की संसदीय कार्यवाही के लिए राज्यसभा और लोकसभा सचिवालय उससे पहले दिन शाम तक कार्यवाही का एजेंडा तैयार कर लेते हैं। लेकिन अगर संसदीयसत्र के दौरान किसी दिन कार्यवाही शाम को देर तक चलती है तो कार्यवाही का एजेंडा या तो देर रात तक आता है या फिर कार्यवाही वाले दिन की सुबह। यानी किसी दिन कोई पत्रकार संसदीय कार्यवाही के पहले अपनी स्टोरी की तैयारी कर सकते हैं।

किस दिन कौन मंत्रालय- आम तौर पर ये प्रशनकाल की परंपरा बनी है कि सप्ताह के किस दिन को कौन मंत्रालय के संबंधित सवाल प्रश्नकाल में पूछे जाएगें। दरअसल ये एक सुविधा है जो ज़रुरत के अनुसार बदली भी जा सकती है। लेकिन मोटे तौर पर प्रश्नकाल में मंत्रालयों का बंटवारा पहले से तय रहता है। ये सूची कुछ इस तरह है।

सोमवार— वाणिज्य और उद्योग, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी, रॿा, मानव संसाधन विकास, श्रम और रोज़गार, सामाजिक न्याय और अधिकारिता, पोत परिवहन मंत्रालय

मंगलवार— कृषि, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, गृह, सूचना और प्रसारण, सूक्षम, लघु और मध्यम उद्यम, ख़ान, उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास, सड़क परिवहन और राजमार्ग, युवक कार्यक्रम और खेल मंत्रालय

बुधवार— प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा, कोयला, संस्कृति, पृथ्वी विज्ञान, पर्यावरण और वन, विदेश, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, प्रवासी भारतीय कार्य,संसदीय कार्य, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन, योजना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन, जल संसाधन मंत्रालय।

गुरुवार–– रसायन और उर्वरक, नागर विमानन, कारपोरेट कार्य, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, भारी उद्योग और लोक उद्यम, विधि और न्याय, अल्पसंख्यक मामले, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, रेल, इस्पात, वस्त्र मंत्रालय

शुक्रवार— वित्त, आवास और शहरी गरीबी उपशमन, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा, पंचायती राज, विद्युत, ग्रामीण विकास, पर्यटन, जनजातीय कार्य, शहरी विकास, महिला और बाल विकास मंत्रालय

सवालों की सूची भी मोटे तौर पर पहले से तैयार रहती है जिसे संसद के अलग अलग सचिवालय प्रेस प्रतिनिधियों के लिए पहले से ही जारी कर देते हैं। लेकिन, इंटरनेट की सुविधा ने इसे और भी आसान कर दिया है। लोकसभा की वेब साइट पर कई बार तो चार पांच दिन आगे के प्रश्नों की सूची उपलब्ध होती है। इसे इंटरनेट पर ढूंढने का पता ये हैः  लाॅग इन करें.   http://164.100.47.132/LssNew/Questions/questionlist.aspx

सवालों के जवाब— प्रेस गैलरी में बैठकर कई बार किसी सवाल के जवाब की बारीकियां हो सकता है आप से छूट जाएं। मसलन, कोई महत्वपूर्ण आंकड़ा या तथ्य। ऐसे में प्रश्नकाल के शुरु होते ही मौखिक, लिखित और शाॅर्ट नोटिस सवालों के उत्तर भी लिखित रुप में सचिवालय के पब्लिक-प्रेस रिलेशन विभाग में उपलब्ध होता है। ऐसा नहीं होने की हालत में इसकी व्यवस्था विशेष अनुरोध पर हो सकती है।

स्थाई समिति और दूसरी समितियों की रिपोर्ट— आमतौर पर संसद के दोनों सदनों में परंपरा यही है कि प्रश्नकाल के तुरंत बाद संसदीय स्थाई समिति के प्रतिवेदन यानी रिपोर्ट रखी जाती हैं। इसके अलावा कई दूसरी समितियों की रिपोर्ट भी रखी जाती है। उदाहरण के लिए संसदीय कार्यसमिति की रिपोर्ट या फिर देश में अल्पसंख्यकों की सामाजिक – आर्थिक हालात के आकलन के लिए बनी सच्चर कमिटि की रिपोर्ट हो। कई बार जांच आयोग की रिपोर्ट भी सबसे पहले संसद के पटल पर रखी जाती है इसके बाद ही वो सार्वजनिक की जाती है।  ये रिपोर्ट अपने आप में कई ख़बरों का स्रोत बनती हैं। सच्चर समिति की रिपोर्ट से कई बड़ी ख़बरें निकली जिसने न सिर्फ राजनीतिक बहसों को एक अलग दिशा दी बल्कि पत्रकारों के लिए रिपोर्ट में से प्रासंगिक तथ्यों को ढूंढ कर ख़बर बनाना एक बड़े मौके और चुनौती की तरह था।

विशेष बयान या रिपोर्ट— संसदीय कार्यवाही में कई बार देखा गया है जब कोई मंत्री या खु़द प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर देश और सरकार की स्थिति या पॿ सांसदों के सामने स्पष्ट करते हैं। इस तरह के ज्यादातर मौकों पर देखा गया है कि इस तरह के बयान अपने साथ ब्रेकिंग न्यूज़ लेकर आते हैं।

राजनीतिक पार्टिंयों की प्रेस वार्ता— संसद सत्र के दौरान प्रमुख राजनीतिक पार्टियां संसद भवन में ही अपनी प्रेस वार्ता करते हैं। ये प्रेस वार्ता आमतौर पर संसदीयकार्यवाही पर पार्टी विशेष के रुख के बारे में होती हैं। पत्रकार यहां संसद के किसी मुद्दे विशेष पर राजनीतिक पार्टियों की राय ले सकते हैं। आमतौर यहां से रिपोर्टर संसद की किसी घटना के तह में जाने की कोशिश करता है।

सत्र समाप्ति पर प्रेस वार्ता— संसदीय सत्र के अंत में संसदीय कार्यमंत्री और ज्यादातर मौक़ों पर ख़ुद लोकसभा अध्यॿ प्रेस को संबोधित करते हैं। किसी भी संसदीयरिपोर्टर के लिए ये ख़ास मौक़ा होता है। यहां न सिर्फ पूरे सत्र का संॿेप में आकलन हो जाता है बल्कि संसद में उठे मुद्दों पर सीधे सवाल भी पूछे जा सकते हैं। ख़बरों के लिहाज़ ये प्रेस वार्ता संसदीय पत्रकार के लिए बड़ा मौका होता है।

Tags: parliament and newsओम प्रकाश दास
Previous Post

Sources of News Ideas

Next Post

Yellow Journalism: Facts Combined With Fiction

Next Post
Yellow Journalism: Facts Combined With Fiction

Yellow Journalism: Facts Combined With Fiction

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Development of Local Journalism

March 22, 2023

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

Evolution of PR in India and its present status

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

आर्थिक-पत्रकारिता क्या है?

Recent Post

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

Fashion and Lifestyle Journalism Course

Development of Local Journalism

Audio Storytelling and Podcast Online Course

आज भी बरक़रार है रेडियो का जलवा

Fashion and Lifestyle Journalism Course

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.