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Home Contemporary Issues

राजनीतिक-आर्थिक शक्ति और भाषा

राजनीतिक-आर्थिक शक्ति और भाषा

प्रमोद जोशी।

करीब डेढ़ हजार साल पहले यूरोप में उत्तरी और पश्चिम जर्मनी के एंग्लो सैक्सन कबीले और कुछ रोमन फौजियों ने इंग्लैंड और पूर्वी स्कॉटलैंड के आसपास रिहाइश शुरू की तो संवाद की कुछ अनगढ़ और गँवारू बोलियाँ विकसित हुईं। इनमें एक अंग्रेजी भी थी, जो ग्रीक और लैटिन जैसी शास्त्रीय भाषाओं के सामने तो गरीब थी, स्पेनिश और फ्रेंच के सामने भी हल्की थी। सन 1066 में उत्तरी फ्रांस के नॉर्मेंडी इलाके के लोगों के हमले और उनके आधिपत्य के बाद ओल्ड इंग्लिश वर्नाक्यूलर की शक्ल बदली। जर्मन, डच और फिर नॉर्मन लोगों के असर से इंग्लिश में बदलाव आया। वह ज्ञान-विज्ञान की भाषा नहीं थी। उसके मुकाबले लैटिन मूल से निकली रोमानी भाषाएं फ्रेंच, इतालवी, स्पेनिश, पोर्चुगीज़ और कैटेलन वगैरह समृद्ध थीं।

सन 927 के पहले इंग्लैंड एक सुगठित देश नहीं था। इंग्लैंड के किंगडम और उसके बाद उसके युनाइटेड किंगडम बनने के समानांतर एक ओर राजनैतिक क्षेत्र विस्तार की आकांक्षाएं छिपी हैं, वहीं कई संस्कृतियों के समागम और ज्ञान के विस्तार की कहानी भी है। अंग्रेजी भाषा की आधुनिक शक्ल पन्द्रहवीं सदी में बनी, जिसे ‘एज ऑफ डिस्कवरी’ कहते हैं। उसके बाद युनाइटेड किंगडम के साम्राज्य विस्तार और फिर पराभव के प्रसंग हैं। किसी भाषा के विकास में राजनैतिक-आर्थिक शक्ति और ज्ञान-विज्ञान की क्या भूमिका है, यह बात अंग्रेजी के सहारे रेखांकित होती है।

कुछ साल पहले अखबारों में खबर थी कि भारत में अंग्रेजी में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या(12.53 करोड़) हिन्दी भाषियों (55.14 करोड़) के बाद दूसरे नम्बर पर है। यह भी बताया गया कि यह संख्या ग्रेट ब्रिटेन के लोगों की संख्या की दुगनी है। यह खबर भारतीय जनगणना 2001 के आँकड़ों के विश्लेषण पर आधारित थी। सन 2011 की जनगणना का भाषा विश्लेषण अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। बहरहाल इससे पता लगता है कि देश में कितने लोग एक से अधिक यानी दो या तीन भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं। चूंकि खबर अंग्रेजी दृष्टिकोण से लिखी गई थी, इसलिए उसमें अंग्रेजी के प्रति अतिरिक्त उत्साह था। इससे यह भी तो ज़ाहिर होता है कि देश में हिन्दी बोलने वालों की संख्या अंग्रेजी समझने वालों की संख्या से चार गुनी, इंग्लैंड के लोगों से आठ गुनी और अमेरिका की समूची आबादी से दुगनी है। जनगणना आँकड़ों के अनुसार 2001 में हिन्दी को अपनी भाषा बताने वालों की संख्या 42.2 करोड़ थी। यानी 13 करोड़ लोग इसमें गैर-हिन्दी भाषी और जुड़े जो हिन्दी बोल पाते हैं। हिन्दी का सरप्लस अंग्रेजी के टोटल के बराबर है। अभी हमने 5.2 करोड़ उर्दू भाषियों को अलग रखा है, वस्तुत: वे हिन्दी ही बोलते हैं।

हिन्दी का आधार बढ़ा
भारत में हिन्दी की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है। खासतौर से दक्षिण भारत में हिन्दी का उस तरह का विरोध नहीं है, जैसा किसी जमाने में होता था। इसका एक बड़ा कारण यह है कि नौकरियों के कारण दक्षिण भारत के नौजवान उत्तर आ रहे हैं और उत्तर के नौजवान दक्षिण जा रहे हैं। दोनों के बीच सम्पर्क की भाषा हिन्दी है। इसी कारण से हिन्दी का वैश्विक विस्तार भी हो रहा है। हमने देखा कि अमेरिका में एक दशक के भीतर हिन्दी बोलने वालों की संख्या में 105 फीसदी का इजाफा हुआ है। भारत से लोग बाहर जा रहे हैं तो बाहर से लोग भारत आ रहे हैं। आज दुनिया में केवल एक भाषा से काम नहीं चलता। केवल अंग्रेजी जानना अब लंदन में भी काम नहीं आता।

हाल के वर्षों में एक नया शब्द सामने आया है ‘एनआरआई’ यानी अनिवासी भारतीय। सॉफ्टवेयर उद्योग के विकास ने भारतीय नौजवानों के सामने सम्भावनाओं के नए दरवाजे खोले हैं। वे दुनिया के तमाम देशों में जाकर काम कर रहे हैं। दुनिया के डेढ़ सौ से ज्यादा देशों में दो करोड़ से ज्यादा भारतीय काम कर रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या हिन्दी भाषियों की है। हिन्दी भाषी नहीं भी हैं तो हिन्दी जानते जरूर हैं। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, चीन और यूरोप के देशों में हिन्दी को आधुनिक भाषा के रूप में पढ़ाया भी जाता है। मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, गयाना और अफ्रीका तथा खाड़ी के देशों में परम्परा से हिन्दी बोलने वालों की बड़ी संख्या निवास करती है।

मॉरिशस में भारतीय मूल के लोगों की जनसंख्या कुल आबादी की 52 फीसदी से ज्यादा है। वहाँ की सरकारी भाषा अंग्रेजी है। शिक्षा प्रणाली मे अंग्रेजी के साथ फ़्रांसीसी का भी इस्तेमाल किया जाता है। देश मे मॉरिशियन क्रेयोल बोली जाती है। हिन्दी भी वहाँ के एक बड़े वर्ग की बोली है। मॉरिशस में भारतीयों का आगमन 1834 में यहाँ चीनी उद्योग की स्थापना के साथ हुआ था। ज्यादातर लोग बिहार और उत्तर प्रदेश से गए हैं। यहाँ से हिन्दी के कई पत्र भी प्रकाशित होते हैं और सन 2001 में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना यहाँ होने के बाद से वैश्विक हिन्दी का मुख्यालय एक तरह से मॉरिशस बन गया है।

फिजी दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित 322 द्वीपों का समूह है। देश की आबादी में 44 प्रतिशत भारतीय मूल के लोग हैं। यहाँ भी हिन्दी से जुड़ी संस्थाएं हैं। इनमें हिन्दी कार्यक्रम होते हैं। मानक हिन्दी का प्रयोग पाठशाला के अलावा शादी, पूजन, सभा आदि के अवसरों पर होता है। स्कूलों में हिन्दी एक विषय के रूप में पढाई जाती है। संविधान में हिन्दी भाषा को मान्यता प्राप्त है। कोई भी व्यक्ति सरकारी कामकाज,अदालत और संसद में भी फ़िजियन हिन्दी का प्रयोग कर सकता है। इसे फ़िजियन हिन्दी या फ़िजियन हिन्दुस्तानी भी कहते हैं। यह देवनागरी और रोमन दोनों में लिखी जाती है। इसमें मुख्य रूप से अवधी, भोजपुरी और हिन्दी की अन्य बोलियों का समावेश है।(जारी)

प्रमोद जोशी चार दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता से जुड़े हैं. करीब दस वर्षों तक वे हिंदुस्तान से जुड़े रहे और अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. इससे पहले वे स्वतंत्र भारत , नवभारत टाइम्स , सहारा टेलीविज़न से भी जुड़े रहे. हिंदी पत्रकारिता में उनका महत्वपूर्ण योगदान है. अभी उनका एक ब्लॉग है जिस पर वे समकालीन मुद्द्दों पर लिखते रहतें हैं. उनका ब्लॉग है: जिज्ञासा http://pramathesh.blogspot.com

Tags: EnglandGenmanyPolitical and Economic Dimensions of LanguagePramod Joshiइंग्लैंडजर्मनीप्रमोद जोशीराजनीतिक आर्थिक शक्ति और भाषा
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