About
Editorial Board
Contact Us
Tuesday, July 5, 2022
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Journalism

प्राकृतिक आपदा की रिपोर्टिंग : संवेदनशीलता और समझदारी नहीं, सनसनी और शोर ज्यादा

प्राकृतिक आपदा की रिपोर्टिंग : संवेदनशीलता और समझदारी नहीं, सनसनी और शोर ज्यादा

आनंद प्रधान।

भारतीय न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनल एक बार फिर गलत कारणों से अंतर्राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में हैं। 25 अप्रैल को नेपाल में आए जबरदस्त भूकंप के बाद वहां कवरेज करने पहुंचे भारतीय न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनलों के एक बड़े हिस्से के असंवेदनशील और कई मामलों में गैर जिम्मेदाराना कवरेज से नेपाली नागरिकों के अच्छे-खासे हिस्से में गुस्सा भड़क उठा। उनकी शिकायत थी कि भारतीय मीडिया खासकर न्यूज चैनलों का कवरेज न सिर्फ असंवेदनशील, सनसनीखेज, गैर-जिम्मेदार और बचकाना था बल्कि भारत के बचाव और राहत कार्यों का अतिरेकपूर्ण प्रचार था।

कुछ इस हद तक कि वहां राहत और बचाव जो भी काम हो रहा है, वह भारत कर रहा है। नेपाल खुद राहत और बचाव का काम करने में अक्षम है। यह भी कि भारत न होता तो इस भयंकर भूकंप के बाद नेपाल का हाल कितना बुरा होता? साफ़ है कि यह जले पर नमक छिडकने की तरह था। यह सही है कि नेपाल जिस मानवीय त्रासदी और संकट से गुजर रहा था, वह अभूतपूर्व और अत्यंत गंभीर थी। यह भी सही है कि वह एक छोटा और गरीब मुल्क है जिसके लिए अकेले इतनी बड़ी प्राकृतिक त्रासदी से निपटना संभव नहीं था।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस संकट में एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में उसकी कोई गरिमा और प्रतिष्ठा नहीं है। सच यह है कि नेपाल की राजनीति और समाज के बारे में थोडा भी जानने वाले जानते हैं कि नेपाल अपनी आज़ादी, गरिमा और प्रतिष्ठा को लेकर अत्यधिक संवेदनशील, सतर्क और मुखर देश है। हाल के वर्षों में अनेक ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिनमें किसी भारतीय नेता या सेलिब्रिटी के विवादस्पद बयान के बाद नेपाल में सार्वजनिक विरोध और आन्दोलन हुए हैं। इन बयानों में नेताओं या सेलिब्रिटीज की जाने-अनजाने में नेपाल के प्रति अज्ञानता से लेकर ‘बड़े भाई’ वाला या नेपाली नागरिकों के लिए हिकारतवाली भावना का इजहार था जिसे लेकर नेपाल में काफी गुस्सा दिखाई पड़ा।

लेकिन लगता है कि इन घटनाओं को रिपोर्ट करनेवाले और नेपाल की इस संवेदनशीलता से वाकिफ भारतीय न्यूज मीडिया और न्यूज चैनलों ने कोई सबक नहीं सीखा। नतीजा, भूकंप कवर करने पहुंचे भारतीय न्यूज मीडिया और खासकर न्यूज चैनलों के कवरेज के तौर-तरीकों और उसके कंटेंट को लेकर नेपाली लोगों खासकर शहरी मध्यवर्ग के सब्र का बाँध टूट गया। नेपाली मीडिया और सिविल सोसायटी में भारतीय के कवरेज की आलोचना होने लगी और 4 मई आते-आते ट्विट्टर पर #GoHomeIndianMedia (भारतीय मीडिया वापस जाओ) हैशटैग ट्रेंड करने लगा। यह भारतीय न्यूज मीडिया के लिए किसी तमाचे से कम नहीं था।

लेकिन इसके लिए भारतीय मीडिया खासकर न्यूज चैनल जिम्मेदार थे। उनके कवरेज के तौर-तरीकों और रिपोर्टों से ऐसा नहीं लगा कि भारतीय न्यूज मीडिया के बड़े हिस्से और उसके ज्यादातर रिपोर्टरों/पत्रकारों को भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा को कवर करने की कोई ट्रेनिंग या अनुभव है। कहने की जरूरत नहीं है कि प्राकृतिक आपदाओं को कवर करने के लिए न सिर्फ अतिरिक्त संवेदनशीलता, समझदारी, जानकारी और तैयारी की जरूरत होती है बल्कि उसके लिए विशेष प्रशिक्षण और अनुभव की भी जरूरत होती है।

इसकी वजह यह है कि प्राकृतिक आपदाएं खासकर नेपाल जैसे भयावह भूकंप अपने साथ ऐसी मानवीय त्रासदी और संकट लेकर आते हैं जिसमें पीड़ित लोगों को राहत और बचाव के साथ सबसे अधिक जरूरत सूचनाओं की होती है। पीड़ित लोगों के साथ-साथ दूर बैठे लोगों की निगाहें और कान भी समाचार माध्यमों की तरफ लगे होते हैं। संकट और त्रासदी से प्रभावित लोगों के साथ दुनिया भर के खासकर देशवासियों और पड़ोसियों की गहरी भावनाएं जुडी होती हैं। आश्चर्य नहीं कि बड़ी प्राकृतिक आपदाओं के वक्त न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनलों/रेडियो के दर्शकों/श्रोताओं और पाठकों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। लोग ताजा हालात के बारे में जानना चाहते हैं।

असल में, समाचार की सबसे ज्यादा जरूरत संकट के समय ही होती है। इससे जहाँ एक ओर संकट में फंसे और प्रभावित लोगों को उससे निपटने और उसका सामना करने में आसानी होती है, वहीँ दूसरी ओर, बाकी लोगों के लिए यह एक सबक और खुद को ऐसे किसी भी संकट का सामना करने के लिए तैयार करना होता है। जाहिर है कि ऐसे संकट और त्रासदी के समय न्यूज मीडिया की जिम्मेदारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि उससे उसके दर्शकों-श्रोताओं-पाठकों की अपेक्षाएं भी बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं। इसीलिए प्राकृतिक आपदाओं को कवर करने के लिए न सिर्फ न्यूजरूम में अतिरिक्त तैयारी की जाती है बल्कि रिपोर्टिंग के लिए भी अनुभवी रिपोर्टरों को भेजा जाता है।

ऐसी स्थिति में, निश्चय ही, रिपोर्टिंग आसान नहीं होती है। यही नहीं, रिपोर्टिंग करते हुए यह भी ध्यान रखना होता है कि रिपोर्टर की मौजूदगी से राहत और बचाव के कामों में कोई दिक्कत नहीं हो। दोहराने की जरूरत नहीं है कि ऐसी स्थिति में सबसे पहली प्राथमिकता राहत और बचाव होती है। दूसरी ओर, संकट और त्रासदी का सामना कर रहे लोगों के साथ अतिरिक्त संवेदनशीलता, समझदारी और मानवीय व्यवहार की अपेक्षा होती है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह न्यूज मीडिया और उसके रिपोर्टरों की परिपक्वता, संवेदनशीलता, अनुभव, कौशल और कठिन परिस्थितियों में काम करने की क्षमता की भी परीक्षा होती है।

लेकिन अफ़सोस और चिंता की बात यह है कि भारतीय न्यूज मीडिया का बड़ा हिस्सा इस परीक्षा में फेल हो गया। यही नहीं, उसकी नाकामी न सिर्फ खुद और सभी भारतीयों के लिए शर्म का विषय बन गई बल्कि उसके कारण भारत के राहत-बचाव दलों के अच्छे काम पर भी पानी फिरने की स्थिति पैदा हो गई। असल में, भारतीय न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनलों ने जिस तरह से नेपाल के भूकंप को कवर किया, उससे ऐसा लग रहा था कि वे प्राकृतिक आपदा की विभीषिका और उसकी मानवीय त्रासदी को कवर करने नहीं बल्कि आपदा पर्यटन पर पहुंचे हैं। इस कवरेज में असंवेदनशीलता, नासमझी और अज्ञानता के साथ-साथ तैयारी और अनुभव की कमी साफ़ दिख रही थी।

इस कवरेज में संवेदनशीलता और समझदारी नहीं, सनसनी और शोर ज्यादा था। इसमें जरूरी सूचनाएं और जानकारियां कम और हवाबाजी ज्यादा थी। खासकर न्यूज चैनलों ने तो हद कर दी। भूकंप के अगले दिन तक काठमांडू में भारतीय न्यूज चैनलों के रिपोर्टरों और कैमरामैनों की भीड़ जमा हो गई। इसके साथ ही, उनके बीच ब्रेकिंग न्यूज से लेकर एक्सक्लूसिव की होड़ शुरू हो गई। सबसे पहले खबर देने और घटनास्थल से रिपोर्ट करने के दावों के बीच न्यूज चैनलों की होड़ जल्दी ही जानी-पहचानी टीआरपी दौड़ में पतित होने लगी। इसके साथ ही कवरेज को ज्यादा से ज्यादा सनसनीखेज बनाने के लिए उसमें नाटकीयता के सभी तत्वों जैसे फ़िल्मी संगीत, सीसीटीवी के फुटेज, अनुप्रास अलंकार और विशेषणों से लैस शीर्षक और सुपर/एस्टन, डेस्क पर “कल्पना-सृजनात्मकता” से सजी कापी और हाँफते-उत्तेजित रिपोर्टरों के पीटूसी का छौंक लगाने की होड़ शुरू हो गई।

नेपाली मूल की लेखक सुनीता शाक्य के मुताबिक, “भारतीय मीडिया और रिपोर्टर कुछ इस तरह से व्यवहार कर रहे थे, गोया वे किसी पारिवारिक धारावाहिक की शूटिंग कर रहे हों।” (http://ireport.cnn.com/docs/DOC-1238314 ) न्यूज चैनलों की रिपोर्टिंग से नाराज कई नेपाली और भारतीय आलोचकों के मुताबिक, चैनलों के रिपोर्टर पीड़ित लोगों से बचकाना सवाल कर रहे थे और उसमें अत्यधिक असंवेदनशीलता थी। उनका व्यवहार ऐसा था जिससे लग रहा था कि उन्हें भूकंप की विभीषिका और त्रासदी से दुखी, शोक और तकलीफ में डूबे लोगों से ज्यादा ‘एक्सक्लूसिव’ रिपोर्टों, इंटरव्यूज और नाटकीय विजुअल्स की तलाश थी। उसमें ड्रामा के एलिमेंट ज्यादा थे और तथ्यों/सूचनाओं की भरपाई कृत्रिम भावुकता से की जा रही थी। (रोंजन बैनर्जी, http://scroll.in/article/725067/gohomeindianmedia-was-an-international-disaster-waiting-to-happen और http://www.firstpost.com/world/gohomeindianmedia-heres-why-nepalis-are-mad-as-hell-at-the-indian-press-2225958.html )

आरोप यह भी है कि चैनलों की अति-सक्रियता के कारण राहत-बचाव के कामों में भी बाधा पड़ रही थी। चैनलों और उनके रिपोर्टरों और कैमरामैनों की भीड़ राहत-बचाव के काम में लगे कर्मियों और उनके अधिकारियों को काम से हटाकर उनसे जिस तरह से इंटरव्यू कर रहे थे, उसकी वजह से निश्चित ही राहतकर्मियों का ध्यान भंग हो रहा था। राहत और बचाव के काम पर असर पड़ रहा था। दूसरे, कुछ चैनलों/अखबारों की रिपोर्टिंग में एकबार फिर वैज्ञानिक तथ्यों के बजाय अतार्किक और अंधविश्वास फैलानेवाले कथित चमत्कारों को प्रमुखता दी गई। जैसे, जबरदस्त भूकंप के बावजूद पशुपतिनाथ मंदिर को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा। ये चैनल ऐसी ही रिपोर्टिंग उत्तराखंड के केदारनाथ बाढ़ और भू-स्खलन के दौरान कर चुके हैं।

लेकिन भारतीय न्यूज चैनलों के कवरेज में अपनी पीठ खुद थपथपाने और ढिंढोरा पीटने जैसा लगने लगा। इस कवरेज में प्रचार बहुत ज्यादा और साफ़-साफ़ दिख रहा था। संकट और त्रासदी में किसी भी अच्छे पडोसी से सहायता की उम्मीद की जाती है लेकिन इस सहायता में हमेशा यह ध्यान रखना पड़ता है कि वह दिखे नहीं, उसका ढिंढोरा न पीटा जाए और जिसकी मदद की जा रही है, उसके सम्मान और गरिमा को ठेस नहीं लगे।

लेकिन अफ़सोस यह कि भारतीय न्यूज मीडिया खासकर चैनलों ने इस बुनियादी उसूल का ध्यान नहीं रखा। न्यूज मीडिया खासकर चैनलों के एक बड़े हिस्से ने भूकंप के बाद राहत-बचाव कार्यों की रिपोर्टिंग के नामपर भारत के राहत-बचाव कार्यों का ऐसे प्रचार किया, जैसे वहां भारत के अलावा और राहत-बचाव टीमें नहीं थीं। इस रिपोर्टिंग का मुख्य स्वर यह था कि अगर भारत नहीं होता तो नेपाल में राहत-बचाव कार्य चलाने की क्षमता नहीं थी या भारत ने राहत-बचाव के लिए खजाना खोल दिया है।

साफ़ है कि यह तथ्यपूर्ण, वस्तुनिष्ठ और संतुलित रिपोर्टिंग के बजाय पीआर रिपोर्टिंग ज्यादा थी। इसमें नेपाल के प्रति जाने-अनजाने एक पूर्वाग्रह और भारत के ‘बड़े भाई’ (बिग ब्रदर) रवैये को महसूस किया जा सकता था। चाहे-अनचाहे या अति-उत्साह में या फिर जानते-बूझते भारत के राहत-बचाव को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने और नेपाल के खुद के राहत-बचाव कार्यों को अनदेखा करने और उसे उसके नाकाबिल बताने की प्रवृत्ति हावी थी।

यही नहीं, कुछ चैनलों ने इस त्रासदी और संकट के बीच विवाद के छिछले मुद्दे खोज निकाले। इन चैनलों ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि उसने राहत सामग्री में ‘बीफ मसाला’ भेजा है जो हिन्दू बहुल नेपाल की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचानेवाला है। इन चैनलों ने इसे उछालने की कोशिश की लेकिन नेपाल सरकार और वहां की सिविल सोसायटी के ठन्डे रवैये के कारण सफल नहीं हो पाए। इसी तरह राहत-बचाव कार्यों में चीन की सक्रियता के कथित उद्देश्यों पर भी दबी-छुपी जुबान में ऊँगली उठाने की कोशिश की गई।

जाहिर है कि स्वाभिमानी नेपाली लोगों को यह सब पसंद नहीं आया। इसकी प्रतिक्रिया ट्विट्टर पर #GoHomeIndianMedia (गोहोमइंडियनमीडिया) और नेपाली समाचार माध्यमों में तीखी आलोचना के रूप में सामने आई। अफसोस की बात यह है कि भारतीय न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनलों के एक बड़े हिस्से के इस गैर जिम्मेदार रवैये के कारण एक ओर जहाँ भारत के राहत-बचाव कार्यों के प्रति नेपाली जनता में आमतौर पर प्रशंसा भाव होने के बावजूद उसकी खासी किरकिरी हो गई, वहीँ दूसरी ओर, भारतीय न्यूज मीडिया के एक हिस्से की बेहतर और साफ़-सुथरी रिपोर्टिंग पर भी पानी फिर गया। इससे भारतीय न्यूज मीडिया की नेपाल में ही नहीं, दुनिया भर में भद्द पिट गई।

हालाँकि भारतीय न्यूज मीडिया के लिए किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा को रिपोर्ट करने का यह पहला मौका नहीं था। भारत छोटी-बड़ी प्राकृतिक आपदाओं से जूझता ही रहता है। यहाँ तक कि पिछले डेढ़-दो दशकों में भारत में कच्छ (गुजरात), लातूर (महाराष्ट्र) और टिहरी-गढ़वाल (उत्तराखंड) में बड़े भूकंप आये। तमिलनाडु में सुनामी की यादें अब भी ताजा हैं। उड़ीसा-आंध्र प्रदेश में चक्रवात नई बात नहीं है। इसके अलावा बाढ़, भू-स्खलन, सूखा और बादल फटने की आपदाएं आम हैं। इसके बावजूद हैरानी की बात है कि भारतीय न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनलों में प्राकृतिक आपदाओं को रिपोर्ट करने की तमीज नहीं बनी है। उनमें वह तैयारी, विशेषज्ञता और संवेदनशीलता नहीं दिखाई पड़ती है जोकि इतने अनुभवों के बाद आ जानी चाहिए थी।

यही नहीं, ऐसा लगता है कि भारतीय न्यूज मीडिया खासकर चैनलों ने प्राकृतिक आपदाओं को कवर करने के दौरान हुई अपनी पिछली गलतियों से भी कुछ नहीं सीखा है। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। पिछले साल कश्मीर घाटी में आई भारी बाढ़ की रिपोर्टिंग के दौरान भी न्यूज मीडिया खासकर चैनलों ने ऐसी ही गलतियाँ की थीं। उस दौरान भी उनपर असंवेदनशील व्यवहार, कुछ खास क्षेत्रों पर ज्यादा जोर देने, सनसनीखेज और घबराहट पैदा करनेवाली रिपोर्टिंग के अलावा राहत और बचाव के कामों में जाने-अनजाने बाधा डालने के अलावा सेना के बचाव-राहत कार्यों के अतिरेकपूर्ण कवरेज या पीआर करने का आरोप लगा था। कश्मीर घाटी में भी चैनलों की इस तरह की असंतुलित और असंवेदनशील रिपोर्टिंग का खासा विरोध हुआ था।

इसके पहले उत्तराखंड की केदारनाथ घाटी में आई भीषण बाढ़ के कवरेज के दौरान भी चैनलों ने ‘एक्सक्लूसिव’ के नामपर ऐसा ही हड़बोंग मचाया था और सनसनीखेज रिपोर्टिंग की थी। लेकिन लगता नहीं कि इन हालिया अनुभवों से चैनलों ने कोई सबक सीखा। नेपाल में भी वे वही गलतियाँ दोहराते नजर आये। उन्हें इसका खामियाजा भी चुकाना पड़ा। नेपाल से उन्हें ‘बड़े बेआबरू’ होकर निकलना पड़ा। सवाल यह है कि भारतीय न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनल एक जैसी ही गलतियाँ क्यों दोहरा रहे हैं? क्या यह एक गलती भर है या एक पैटर्न बनता जा रहा है?

ये कोई मामूली और असावधानीवश हुई गलतियाँ नहीं हैं। इनमें एक निश्चित पैटर्न साफ़ देखा जा सकता है जिसका चैनलों के स्वामित्व के ढाँचे, उनके बिजनेस माडल और न्यूजरूम की आंतरिक संरचना के साथ सीधा सम्बन्ध है। न्यूज मीडिया और खासकर चैनलों के बिजनेस माडल में सारा जोर विज्ञापन राजस्व पर है। विज्ञापनदाता की नजर चैनल के दर्शकों की संख्या और उनके प्रोफाइल पर होती है जिसका मापक टीआरपी है। दोहराने की जरूरत नहीं है कि चैनल टीआरपी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि चैनलों को इस ‘टैब्लायडीकरण’ की ओर ले जाने में टीआरपी की सबसे प्रमुख भूमिका है।

टीआरपी के लिए चैनल अच्छी पत्रकारिता के उसूलों की कीमत पर सनसनी और नाटकीयता पर जोर देने से लेकर दर्शकों के ‘लोवेस्ट कमान डिनोमिनेटर’ को छूने में भी संकोच नहीं करते हैं। इसके लिए वे प्राकृतिक आपदाओं को लेकर लोगों में बैठे डर और ‘अज्ञात के भय’ को भुनाने की कोशिश करते हैं। असल में, लोगों को संकट के समय में समाचारों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इन समाचारों के जरिये ही लोग ‘अज्ञात के भय’ से बेहतर तरीके से निपट पाते हैं। यही कारण है कि संकट जितना बड़ा होता है, समाचारों की मांग उतनी ही ज्यादा होती है। प्राकृतिक आपदाएं खासकर सबसे अनिश्चित भूकंप वे परिघटनाएं हैं जिनको लेकर लोगों में सबसे ज्यादा उत्सुकता, घबराहट और डर का भाव होता है।

यही कारण है कि चैनल प्राकृतिक आपदाओं की कवरेज में इतनी दिलचस्पी लेते हैं। इसमें कोई बुराई या आपत्ति की बात नहीं है। लेकिन मुश्किल यह है कि ज्यादातर न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनल लोगों में प्राकृतिक आपदाओं को लेकर वैज्ञानिक चेतना, समझदारी, संवेदना, तैयारी और बचाव के प्रति शिक्षित करने के बजाय टीआरपी के लिए लोगों को डराने, चौंकाने, उनमें घबराहट और अन्धविश्वास फैलाने की कोशिश करते हैं। उन्हें लगता है कि इससे उनके दर्शक उनसे बंधे रहेंगे। हैरानी की बात नहीं है कि नेपाल में भूकंप की कवरेज में भी डराने का भाव ज्यादा था।

उदाहरण के लिए, नेपाल के भूकंप के बहाने दिल्ली सहित देश के कई शहरों में बड़े भूकंप से निपटने की तैयारियों का जायजा लेने और लोगों के साथ-साथ सरकार को सक्रिय करने का यह अच्छा मौका था। लेकिन इस जायजा लेने के नामपर दिल्ली सहित कई शहरों में होनेवाली तबाही की आशंका को ऐसे पेश किया गया कि लोग उससे शिक्षित होने के बजाय डर और घबरा जाएँ। हालाँकि एनडीटीवी-इंडिया पर रवीश कुमार ने भूकंप से निपटने की दिल्ली जैसे शहरों की तैयारियों और समस्याओं पर कुछ बहुत सूचनाप्रद और समझदारी बढ़ानेवाली चर्चाएँ और कार्यक्रम किए। लेकिन रवीश जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर ज्यादातर भारतीय न्यूज चैनलों खासकर हिंदी चैनलों ने जैसे अपनी भूलों से कोई सबक न सीखने की कसम खा रखी है।

इसका नतीजा हमारे सामने है। नेपाल में भारतीय न्यूज मीडिया खासकर न्यूज चैनलों की जो किरकिरी हुई है। समय आ गया है जब न्यूज मीडिया प्राकृतिक आपदाओं को कवर करने को लेकर गंभीर और संवेदनशील रवैया अख्तियार करे। इसके लिए न्यूज चैनलों के संगठन- न्यूज ब्रौडकास्टर्स एसोशियेशन और उनके संपादकों के संगठन- ब्राडकास्ट एडीटर्स एसोशियेशन को पहल करके न सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं को कवर करने का पूरा मैन्युअल और आचार संहिता तैयार करनी चाहिए बल्कि उसके लिए पत्रकारों को विशेष रूप से प्रशिक्षित भी करना चाहिए।

नेपाल में #GoHomeIndianMedia के अनुभव के बाद भारतीय न्यूज मीडिया के पास यह एक मौका है। हालाँकि उसके पास बहुत विकल्प नहीं हैं और उसके स्वामित्व के मौजूदा ढाँचे और बिजनेस माडल के रहते उसमें बहुत सुधार की उम्मीद भी नहीं है। लेकिन उसके पास एक अवसर है जब वह कम से कम प्राकृतिक आपदाओं की रिपोर्टिंग में सुधार के लिए पहल कर सकता है। आखिर इससे न जाने कितने लोगों का जीवन-मरण जुड़ा हुआ है।

आनंद प्रधान भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी), नई दिल्ली में पत्रकारिता के एसोशियेट प्रोफ़ेसर हैं। वे संस्थान में 2008 से 2013 हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम के निदेशक रहे। संस्थान की शोध पत्रिका “संचार माध्यम” के संपादक। उन्होंने मीडिया शिक्षा में आने से पहले आकाशवाणी की समाचार सेवा में सहायक समाचार संपादक के बतौर भी काम किया। वे कुछ समय तक दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में भी सीनियर लेक्चरर रहे। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डाक्टरेट। वे राजनीतिक, आर्थिक और मीडिया से जुड़े मुद्दों पर अखबारों और पत्रिकाओं में नियमित लेखन करते हैं। ‘तीसरा रास्ता’ ब्लॉग (http://teesraraasta.blogspot.in/ ) के जरिए 2007 से ब्लागिंग में भी सक्रिय। उनका ट्विटर हैंडल है: @apradhan1968 ईमल: anand.collumn@gmail.com

Tags: Anand PradhanBroadcast JournalismCorporate JournalismEconomic JournalismEnglish MediaFacebookHindi MediaIIMCInternet JournalismJournalisnNatural DisasterNew MediaNews HeadlineNews writersOnline JournalismPRPrint JournalismPrint NewsPublic RelationReportingSenior Journalistsocial mediaSports JournalismtranslationTV JournalistTV NewsTwitterWeb Journalismweb newsअंग्रेजी मीडियाआनंद प्रधानआर्थिक पत्रकारिताइंटरनेट जर्नलिज्मकॉर्पोरेट पत्रकारिताखेल पत्रकारिताजन संपर्कटीवी मीडियाट्रांसलेशनट्विटरन्यू मीडियान्यूज राइटर्सन्यूड हेडलाइनपत्रकारपब्लिक रिलेशनपीआरप्राकृतिक आपदाप्रिंट मीडियाफेसबुकरिपोर्टिंगवेब न्यूजवेब मीडियासनसनीसीनियर जर्नलिस्टसोशल माडियास्पोर्ट्स जर्नलिज्महिन्दी मीडिया
Previous Post

हैल्थ रिपोर्टिंगः एक चुनौतीपूर्ण कार्य

Next Post

टीवी रिपोर्टिंग: सबसे तेज, लेकिन कठिन और चुनौती भरा काम

Next Post
टीवी रिपोर्टिंग: सबसे तेज, लेकिन कठिन और चुनौती भरा काम

टीवी रिपोर्टिंग: सबसे तेज, लेकिन कठिन और चुनौती भरा काम

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

The Age of Fractured Truth

July 3, 2022

Growing Trend of Loss of Public Trust in Journalism

July 3, 2022

How to Curb Misleading Advertising?

June 22, 2022

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार, सिद्धांत और अवधारणा: समाचार क्‍या है?

समाचार : अवधारणा और मूल्य

Rural Reporting

Recent Post

The Age of Fractured Truth

Growing Trend of Loss of Public Trust in Journalism

How to Curb Misleading Advertising?

Camera Circus Blows Up Diplomatic Row: Why channels should not be held responsible as well?

The Art of Editing: Enhancing Quality of the Content

Certificate Course on Data Storytelling

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.