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रोमांच है आर्थिक पत्रकारिता

रोमांच है आर्थिक पत्रकारिता

नीरज कुमार।

हम विकास की राजनीति करते हैं। राजनीतिक पार्टियों में यह जुमला इन दिनों आम है। मई 2014 में लोकसभा चुनाव में विकास के मुद्दे के ईर्द-गिर्द लड़ागया। विकास का संबंध ऐसी अर्थव्यवस्था से है, जिसमें समाज के हर वर्ग को आर्थिक रूप से सशक्त होने का मौक़ा मिले। ऐसे में पत्रकारिता को समाज के आर्थिक पहलू से अलग करकेनहीं देखा जा सकता है। मौजूदा दौर में आर्थिक पत्रकारिता की अहमियत काफी बढ़ गई है। सरकार अवाम से किया वादा पूरा कर रही है या नहीं, यह जानने के लिए सरकार के आर्थिक फैसलों और कामकाज को कसौटी पर कसा जाना चाहिए। लिहाजा, मौजूदा दौर में प्रभावशाली पत्रकारिता के लिए आर्थिक पत्रकारिता की बारीकियां समझना ज़रूरी है।

पॉलिटिकल, स्पोर्ट्स, अपराध पत्रकारिता की तरह आर्थिक रिपोर्टिंग करते समय अच्छी तैयारीनिहायत ज़रूरी है। रिपोर्टिंग के दौरान यह बात जेहन में रखनी चाहिए कि लोगों तक ऐसी रिपोर्ट पहुंचे, जिसे अवाम आसानीसे समझ सके।आर्थिक पत्रकारिता के लिए तीन बुनियादी दक्षता ज़रुरी है। पहला, आंकड़े से खेलने की कला होनी चाहिए। दूसरा, आर्थिक नीतियों की समझ और तीसरा, आर्थिक जगत में संपर्क।

सबसे पहले बात आंकड़े की अहमियत कीकहते हैं कि एक तस्वीर हज़ारों शब्द बयानकरती है। ठीक उसी तरह कोई एक आंकड़ा पूरी कहानी कहने के लिए कभी-कभी काफी होता है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि केंद्र सरकार के खर्च किए गए हर 1 रुपए में से केवल 15 पैसा ही गांव तक पहुंचता है। राजीव गांधी के बयान मेंजिस आंकड़ा का जिक्र है, वह कई बातें कहता है। मसलन, सिस्टम में भ्रष्टाचार जड़े जमाए हुए है। सरकारी योजनाओं का पैसा गांव के ज़रुरतमंदों तक नहीं पहुंचता है। लेकिन इससे यह पता नहीं चलता है कि सरकार कितने पैसे गांवोंपर खर्च करती है और कितना गांवों तक पहुंचता है। लिहाजा, जहां तक संभव हो पूरे आंकड़े देने की कोशिश करनी चाहिए। अगर हम यह कहते हैं कि सरकार गरीबों के लिए हर साल एक लाख करोड़ रुपए खर्चकरती है, लेकिन सिर्फ इसका 15 फ़ीसदी यानि 15 हज़ार करोड़ ही गांवों तक पहुंचता है। यह तथ्य ज़्यादा प्रभावशाली ढंग से भ्रष्टाचार की बात उजागर करता है।

रिपोर्टिंग में आंकड़े तभी प्रभावशाली होंगे जब उनका इस्तेमाल सरल और स्पष्ट तरीके से किया जाए। लिहाजा, रिपोर्ट में ज़्यादा ब्यौरा देने की बजाय यह सुनिश्चित करना कि सरल आंकड़े के साथ पूरी बात कही जाए। उदाहरण के तौर पर अगर हम मॉनसून पर एक रिपोर्ट तैयार करते वक्तयह कहते हैं कि मॉनसून के दौरान सामान्य से कम बारिश होगी। यहां हमें भी बताना चाहिए कि मॉनसून की बारिश कितनी कम होगी। सामान्य से कितनी कम बारिश होने पर सरकार सूखे का ऐलान करती है। कम बारिश का पैदावार और अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा। कमज़ोर मॉनसून से निपटने के लिए सरकार की क्या तैयारी है। ऐसी तमाम तथ्यों से उम्दा रिपोर्ट तैयार होगी।रिपोर्ट मेंIMD के अध्ययनों और दूसरे अनुमानों का हवाला दिया जा सकता है। जैसा किमौसम विभाग के ताजा अनुमान के मुताबिक इस सालदक्षिण पश्चिम मानसून सामान्य का 88 फ़ीसदी रहेगा।

आर्थिक रिपोर्टिंग में अलग-अलग मानकों को समझना ज़रूरी है। मान लीजिए कि, किसी महीने के इंपोर्ट-एक्सपोर्ट आंकड़े पर स्टोरीकरनी है, तो हमें आंकड़े को सरल शब्दों में पेश करना चाहिए। हम रिपोर्ट में बताते हैं कि अप्रैल 2015 में एक्सपोर्ट 22054 मिलियन डॉलर, तो इंपोर्ट 3304.7 करोड़ डॉलर रहा। यहां पाठकों की सुविधा के लिए हम लिख सकते हैं कि भारत ने अप्रैल 2015 के दौरान कुल 2205 करोड़ डॉलर का एक्सपोर्ट किया और इंपोर्ट 3304 करोड़ डॉलर का। पूरी स्टोरी के दौरान समान मानक काइस्तेमाल करना चाहिए। कहीं कोई आंकड़ा डॉलर में तो कोई आंकड़ा रुपए में देने से परहेज करना चाहिए। लिहाजा, तथ्यों को सरल बनाने के लिए ही सिर्फ मानकों को कंवर्ट करना चाहिए।

आर्थिक रिपोर्ट के दौरान आंकड़े का बारीक विश्लेषण और उनके स्रोत का जिक्र भी ज़रुरी है। जो आंकड़े आपको खुद समझ ना आए, उन्हें रिपोर्ट में शामिल न करें। अगर कहीं आंकड़े को लेकर कोई शंका हो तो उन्हें छोड़ दे या फिर समझे फिर उनका जिक्र करें। उदाहरण के लिए, सरकार ने दावा किया कि साल 2014-15 में जीडीपी दर दर 7.3 फ़ीसदी रही है, जो कि पिछले वित्त वर्ष के मुक़ाबले काफी ज़्यादा है। वित्त वर्ष 2013-14 में विकास दर पहले 5 फ़ीसदी से कम बताई जा रही थी। बतौर रिपोर्टर आपको यह पड़ताल करनी चाहिए कि यकायक जीडीपी में इतना ज़्यादा उछाल कैसे आया है। अध्ययन से पता चलेगा कि पिछले वित्त वर्ष के लिए जीडीपी दर के आंकलन आधार वर्ष बदलकर 2004-05 से 2011-12 कर दिया गया। नए आधार पर 2013-14 के लिए जीडीपी ग्रोथ 6.9 परसेंट है। साफ जाहिर है कि आधार वर्ष बदलने से आंकड़े अलग तथ्य पेश करते हैं। आर्थिक अनुमानों का जिक्र करते वक़्त स्रोत बताना ज़रुरी है।

अक्सर सरकार, निजी कंपनियां अनुमानित आंकड़े पेश करती हैं, जिनके भविष्य के वास्तविक आंकड़े से विपरित होने का जोख़िम होता है। मान लीजिए कि रेटिंग एजेंसी गोल्डमैन सैक्सकहती है कि FY15-16 में निफ्टी 10000 का लक्ष्य पा लेगा। लेकिन FY15-16 के अंत में निफ्टी में 8000 से नीचे फिसल जाता है। ऐसे में निफ्टी के संभावित लक्ष्य का जिक्र करते हुए गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट का ज्रिक ज़रूर करना चाहिए। कभी-कभी निजी कंपनियां दावा करती हैं कि अमुख साल में 500 लोगों को नौकरियां दी गईं। लेकिन कंपनियां यह नहीं बताती कि उसी साल 500 लोगों की छंटनी भी कर दी थी। हो सकता है प्रमोशन के लिए कंपनी सिर्फ सकारात्मक तथ्य चीजों का जिक्र करें। ऐसे में आर्थिक रिपोर्टर को ऐसे प्रमोशनल चीजों से बचना चाहिए और सच्चाई की पड़ताल करनी चाहिए।

आर्थिक रिपोर्टिंग के दौरान आर्थिक शब्दावली समझ काफी सहायक होती है। आर्थिक रिपोर्टिंग के लिए इकोनॉमी के बड़े सूचकांकों को समझना ज़रूरी है। आर्थिक रिपोर्टिंग सरकार के आर्थिक फैसले की पड़ताल जैसा है। महंगाई, जीडीपी, आईआईपी जैसे आंकड़े इकोनॉमी की वास्तविक तस्वीर पेश करते हैं।इन आंकड़ों से इकोनॉमी की दशा और दिशा का अंदाजा मिलता है। इन्हीं आंकड़ों के बीच रिपोर्टर को स्टोरी मिलती है। अब महंगाई के आंकड़े को ही लीजिए, अप्रैल-मई के दौरान आंकड़ों के हिसाब से महंगाई घटी है। लेकिन इसी समय दाल की कीमतों में क़रीब 25 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ। ऐसे में सरकार महंगाई के काबू में रहने का दावा सरकार कैसे कर सकती है। एक रिपोर्टर के लिए ऐसे तथ्य स्टोरी हो सकते हैं।

कितनी नई ख़बरें आपको मिलेगी, यह आपके लोगों से संपर्क करने की क्षमता पर निर्भर करता है। आर्थिक रिपोर्टिंग के लिए जनसंपर्क अच्छा होना जरूरी है। वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक, छोटी-बड़ी कंपनियों में आपकी पैठ होनी चाहिए, ताकि समय-समय पर ख़बरें मिल सके। आर्थिक विश्लेषकों से भी पहचान कारगर साबित हो सकते हैं क्योंकि वो आर्थिक पहलुओं को गहराई से अध्ययन करतेहैं, उनकी राय से नई स्टोरी मिलने की संभावना होती है। अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की समझ होनी ज़रुरी है। मसलन, वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ जैसी संस्थाएं आर्थिक रिपोर्ट जारी करती है, जिनसे स्टोरी निकलने की संभावना होती है।

नीचे लिखे गएमंत्रालयों और विभागों की बेवसाइट आर्थिक रिपोर्टिग के दौरान मददगार साबित होंगे। Assocham, CII, Finance minister, Minister of Commerce, Indian stastical organisation, IMD, Open govt data (plateform india), Ministery of statistics and programe implementation, India.gov. in

References

[i]Gupta R K, Bist, H.D., ” Corruption in India: Origin, causes and solutions”, Anamika

publishers & distributors Pvt. Ltd., NewDelhi, 2007, P. 256

[ii]http://www.imd.gov.in/section/nhac/dynamic/eng_lrf2.pdf

[iii]http://commerce.nic.in/tradestats/filedisplay.aspx?id=1

[iv]http://www.newindianexpress.com/business/news/Indias-GDP-Grows-by-7.3-Percent-in-2014-15/2015/05/29/article2839340.ece

[v]http://articles.economictimes.indiatimes.com/2014-12-04/news/56723173_1_investment-bank-timothy-moe-nifty-target

नीरज कुमार इस वक़्त ज़ी बिजनेस में प्रोड्यूसर हैं। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन से 2005 में डिप्लोमा करने के बाद उन्होंने दैनिक भास्कर, इंडिया न्यूज़ और न्यूज़ नेशन में काम किया। नीरज जर्नलिज्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं।

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