About
Editorial Board
Contact Us
Wednesday, March 29, 2023
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Contemporary Issues

विज्ञान का प्रसार और मीडिया की सहभागिता

विज्ञान का प्रसार और मीडिया की सहभागिता

रश्मि वर्मा।
विज्ञान हमारे जीवन के हर पहलू से जुड़ा है। आज विज्ञान ने न केवल मानव जीवन को सरल व सुगम बनाया है अपितु भविष्य के अगत सत्य को खोजने का साहस भी दिया है। प्रकृति के रहस्यों को समझने के लिए जहां विज्ञान एक साधन बनता है वहीं उन अनावृत सत्योa को जन-जन तक पहुंचाने का काम करता है मीडिया। वर्तमान समय में जनसंचार के विविध साधनों ने जनता को विज्ञान से जोड़ने का प्रयास किया है। यह सभी जानते हैं कि विज्ञान समाज के हर व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग है परन्तु विरले ही इसे समझने में रूचि दिखाते हैं। ऐसे में मीडिया के जरिए विज्ञान और जन के बीच व्यापी इस दूरी को पाटा जा सकता है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते मीडिया न केवल जनता को सूचित करने‚ शिक्षित करने व मनोरंजन करने का काम करता है बल्कि लोकजागृति पैदा करने‚ सामाजिक विकृतियों को दूर करने‚ आदर्श मूल्य और मानदंड स्थापित करने‚ उचित दिशा-निर्देश देने‚ सर्जनात्मकता पैदा करने‚ रूचि का परिष्कार कर एक जन-जीवन के नियामक की भांति काम करता है। जनता का महत्वपूर्ण मुद्दों के प्रति ध्यान आकर्षित कर उन्हें जानरूक व सजग बनाने का काम भी मीडिया का ही है। ऐसे में मीडिया जनमत नेता यानी ओपिनियन लीडर की तरह काम करता है और एक ओेपिनियन लीडर द्वारा किए गए विज्ञान संचार (विज्ञान और समाज के बीच दूरी घटाने का प्रयास) की ग्राहयता भी ज्यादा होगी। इसलिए वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आवश्‍यक है कि जनसंचार माध्यमों के जरिए विज्ञान संप्रेषण की विविध संभावनाओं को तराशा जाए।

भारतीय संदर्भ में विज्ञान प्रसार
वर्तमान युग तकनीक का युग है। जहां ज्ञान और विज्ञान किसी देश की दिशा और दशा निर्धारित करते हैं। जो जितना ज्यादा जानकारी और तकनीक से लैस है उतना ही शक्ति संपन्न है। सूचना क्रांति के मौजूदा दौर में विज्ञान ने ही सूचना व ज्ञान के परस्पर प्रवाह को संभव बनाया। सर्वविदित है कि किस तरह विज्ञान ने हमारी जीवनशैली को पूर्ण-रूपेण प्रभावित किया है। जहां इसमें मानव जीवन को सरल‚ सुविधाजनक बनाया वहीं संपूर्ण विश्‍व को पल-भर में खत्म करने की विनाशक शक्ति भी दी है। लेकिन इसका सही प्रयोग आज के समय की जरूरत है।

पुरातन संदर्भ में देखें तो विज्ञान और विज्ञान संचार हमारे ग्रंथों से गहरे जुड़ा है। हमारे देश में ज्ञान के वृहद स्रोतों के रूप में धर्मग्रंथों को बांचने की प्रथा रही है। प्राचीन काल में कई महान् ग्रंधों का सृजन हुआ जिसमें विज्ञान और विज्ञान से जुड़े विविध पक्षों की व्याख्या थी। तब भी उसे जन-जन तक न पहुंचाकर एक विशिष्ट वर्ग तक ही सीमित कर दिया गया। आमतौर पर ज्ञान विज्ञान के ज्यादातर ग्रंथ आम बोलचाल की भाषा में न लिखकर‚ शास्त्रीय भाषा में ही लिखे गए। जिन्हें बांचने का अधिकार भी ब्राहम्ण‚ पुरोहित वर्ग को ही था। जिनका आशय वह अपने यजमान व राज के लोगों को समझाते लेकिन फिर भी समाज का काफी बड़ा तबका इस ज्ञान से अछूता रहा। हमारे पौराणिक ग्रंथों की ऐतिहासिक संपदा को काफी नुक्सान तो आताताईयों के चलते हुआ। कई ग्रंथ तो सहेजे न जाने के चलते विलुप्त हो गए‚ कुछ जान-बूझकर समाप्त कर दिए गए‚ तो कुछ विदेशों में चले गए। इतिहास के पन्नों पर केवल उनका नाम ही रह गया।

अब ज्ञान-विज्ञान की वही बातें जो हमारे विद्वान सदियों पहले कलमबद्ध कर गए थे‚ जब विदेशों से प्रमाणित होकर आती हैं तो उनकी ग्राहयता बढ़ जाती है। जब हमारे जड़ी-बूटियों वाले देसी नुस्खों को विदेशी अपना फार्मूला बता कर पेटेंट कर लेते हैं तो हमारी नींद खुलती है। तब हमें आभास होता है कि अपने ग्रंथों में रचे-बसे विज्ञान को हमने पहले क्यों न समझा? क्यों उसकी अहमियत को हमने पहले प्रमाणिकता दी? क्यों उस विज्ञान को सरलतम ढंग से जन-जन तक पहुंचाने का काम नहीं किया?

केवल इतना ही नहीं हमारे समाज में खासकर ग्रामीण समाज में अभी भी जीने का ढंग इतना वैज्ञानिक है। जिन मुद्दों को लेकर ग्लोबल एजेंसियां और विश्‍व के कई देश तमाम सम्मेलनों और बहसों में उलझें हैं‚ उस दिशा में तो हमारा ग्रामीण समाज आज से नहीं बल्कि सदियों से चल रहा है। जैसे ग्लोबल वार्मिग के चलते ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और क्योटो प्रोटोकाल से लेकर‚ कार्बन इर्मसन रेट में कटौती को लेकर तमाम बहसें चल रही है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट को लेकर विश्‍व के विद्वान चिंतामग्न हैं। लेकिन हमारे ग्रामीण समाज में उपयुक्त में लाए जाने वाली गोबर गैस‚ सूखे पत्तों से खाना बनाना‚ अधिकाधिक पेड़ लगाना‚ प्राकृतिक संसाधनों का समझदारी से प्रयोग करने सरीखे कई उपाय हैं। बल्कि यहां तो प्रकृति को ईश्‍वर स्वरूप पूजना और उसका संरक्षण करने की प्रथा रही है। बस जरूरत तो इस बात की है कि औद्योगिकरण की आंधी इन प्रयासों को प्रभावित न करें और इन वैज्ञानिक प्रयोगों को प्रोत्साहन मिले। इसके अलावा और भी वैज्ञानिक तौर-तरीके ग्रामीण व शहरी समाज में संप्रेषित किए जाएं। जिसके लिए मीडिया एक कारगर जरिया है।

विज्ञान संचारः अवधारणा
विज्ञान संचार दरअसल वैज्ञानिक सूचनाओं और वैज्ञानिक विचारों को उनके स्रोत से लेकर लक्ष्य वर्ग तक किसी माध्ययम के द्वारा संप्रेषित करने की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। विज्ञान संचार को हम प्रायः दो वर्गो में बांट सकते हैं‚ (क) शास्त्रीय या शोधपरक विज्ञान संचार (ख) लोकप्रिय विज्ञान संचार। शोधपरक विज्ञान दरअसल वैज्ञानिकों‚ शोधकर्ताओं से संबंधित है। क्योंकि विज्ञान का जन्म प्रयोगशालाओं‚ अनुसंधान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में होता है। नई खोजों‚ पेटेट आदि के बारे में जानकारी शोध पत्रों‚ संस्थागत वेबसाइट आदि के द्वारा होती है। यह जानकारी दरअसल तकनीकी भाषा‚ प्रारूप और अंग्रेजी में होती है। इस प्रकार के लेखन‚ प्रकाशन और संचार कोशोधपरक विज्ञान संचार की श्रेणी में रखते हैं।

लोकप्रिय विज्ञान संचार वह है जो आम जन के लिए संचार किया जाता है। इसमें ऐसे शोध‚ खबरों या मुद्दों को उठाया जाता है जो जनता के हित से जुड़े हैं। जनरूचि के ऐसे विषयों को उठाकर उन्हें मीडिया के जरिए जन-जन तक पहुंचाया जाता है। लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि शोध और विज्ञान की भाषा गूढ़ और वैज्ञानिक शब्दावली में रची होती है। जनता की भाषा में ढालना और उसे लक्षित श्रोता/दर्शक/पाठक वर्ग तक पहुंचाना ही मुख्य चुनौति है।

विज्ञान संचारः क्या हैं बाधाएं
विज्ञान जैसे सर्वव्यापी विषय के संचार में कुछ बाधाएं मार्ग अवरूद्ध करती हैं। इन्हें हम तीन श्रेणियों में रख सकते हैं- वैज्ञानिकों व प्रशासन संबंधी‚ मीडिया संबंधी और जन संबंधी।

वैज्ञानिकों व प्रशासन संबंधी बाधा- दरअसल वैज्ञानिक और शोधकर्ता अपने शोध से संबंधी ज्ञान व निष्कर्ष को सबसे साझा करने में झिझकते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं, पहली- उन्हें लगता है कि उनके काम का सही आशय नहीं लगाने से से कुछ विवाद न हो जाए‚ कोई उनके विषय को चुरा न ले या बेवजह उनके शोध में व्यवधान न हो जाए। दूसरी- वह मीडिया में बात करके बेवजह की पब्लिसिटी से बचना चाहते हैं और नाम कमाने के स्थान पर उम्दा काम करने में विश्‍वास करते हैं।

कई सरकारी प्रयोगशालाओें और शोध संस्थानों में प्रयोग के दौरान मीडिया या किसी बाहरी व्यक्ति से उस विषय में बात करने की मनाही होती है। इसके अलावा भी मीडिया तक विभिन्न शोधपरक खबरों का पहुंचना आसान नहीं होता।

मीडिया संबंधी बाधा- मीडिया अधिकतर ऐसे विषयों को उठाना पसंद करता है जिनमें उसे आसानी से टीआरपी मिल जाए। पॉलिटिक्स‚ क्राइम‚ फिल्म इंडस्ट्री जैसे विवादास्पद मुद्दों की बजाय विज्ञान के ज्ञानपरक लेकिन निरस लगने वाले विषयों को मीडिया कवर करने से बचता है। गेटकीपिंग के समय कई ऐसे मुद्दे हटा दिए जाते हैं जिनमें दर्शक वर्ग की रूचि न मिलने की संभावना लगे। दूसरी वजह यह भी है कि उसे आसानी से विज्ञान विषय पर मौलिक जानकारी देने वाले विशेषज्ञ और ऐसे प्रोग्राम तैयार करने वाले प्रोफेशनल आसानी से नहीं मिलते।

जन संबंधी बाधा- जनता को विज्ञान से जुड़े विषय निरस लगते हैं। क्योंकि वैज्ञानिक शोधों और जानकारी ज्यादातर अंग्रेजी में और वह भी वैज्ञानिक शब्दावली से रची होती है। विज्ञान को गहरे न समझने वाले व्यक्ति को इन जानकारियों और शोधों का सही‚ सरल विश्‍लेषण चाहिए होता है जो उसे नहीं मिल पाता। विषय समझ न आने की वजह से जन की रूचि इनमें नहीं रहती।

मीडिया और विज्ञान प्रसार
मीडिया समाज का दर्पण हैं। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते मीडिया न केवल जनता को सूचित करने‚ शिक्षित करने व मनोरंजन करने का काम करता है बल्कि लोकजागृति पैदा करने‚ सामाजिक विकृतियों को दूर करने‚ आदर्श मूल्य और मानदंड स्थापित करने‚ उचित दिशा-निर्देश देने‚ सर्जनात्मकता पैदा करने‚ रूचि का परिष्कार कर एक जन-जीवन के नियामक की भांति काम करता है। मीडिया अपने विविध रूपों यानी प्रिंट‚ रेडियो‚ टीवी‚ सिनेमा‚ इंटरनेट आदि के माध्यम से जनता तक सार्थक संदेष पहुंचाता रहा है।

विज्ञान संचार की महत्ता को देखते हुए यह जरूरी है कि विभिन्न मीडिया माध्यमों में विज्ञान परक विषयों को पूरी सरलता और सारगर्भिता के साथ जन के सामने रखा जाए। फिर चाहें वह प्रिंट मीडिया हो या रेडियो और टेलीविजन। इंटरनेट संजाल पर उपलब्ध विभिन्न मंच जैसे- सोशल नेटवर्किंग साइट‚ ई-पोर्टल हो या ब्लॉग। लार्जर दैन लाइफ का रंगीन पर्दा सिनेमा हो या हमारी संस्कृति में रचा-बसा फोक मीडिया जैसे- लोक-नाट्य‚ नुक्कड नाटक‚ कठपुतली आदि। यदि हम विज्ञान व स्वास्थ्य से जुड़े विषयों का सही चुनाव कर‚ उन्हें सरल लेकिन दिलचस्प भाषा में लक्षित दर्शक/श्रोता/पाठक वर्ग तक पहुंचाया जाए तो वह अपना प्रभाव अवश्‍य छोडे़गा।

दरअसल जनसंचार के विविध माध्यमों द्वारा समय-समय पर विज्ञान प्रसार का कार्य होता रहा है। फिर चाहें वह प्रिंट हो‚ टीवी हो या रेडियो लिखित व दृष्य-श्रृव्य माध्यमों के जरिए विज्ञान को जन तक पहुंचाने के कुछ ही सही लेकिन सार्थक प्रयास किए गए। अब तो न्यू मीडिया के विविध मंचों के जरिए भी विज्ञान व इससे संबंधित विषयों पर चर्चा की जाती है। आगे भी यदि मीडिया के जरिए विज्ञान संचार का कार्य निर्बाध गति से होता रहा तो समाज के लिए हितकर होगा।

संदर्भ
1. हिंदी में विज्ञान लेखनः व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयास (विज्ञान प्रसार‚ संपादक- अनुज सिन्हा‚ सुबोध महंती‚ निमिष कपूर‚ 2011)
2. विज्ञान संचारः मूल विचार (विज्ञान प्रसार‚ मनोज पटैरिया‚ 2011)
3. ब्राडकास्टिंग सांइस (यूनाईटेड नेशंस एजुकेशनल‚ सांइटिफिक एंड कल्चरल आर्गनाइजेशन‚ केपी मधू और सव्यासाची जैन‚ 2010)
4. सांइस इन इंडियन मीडिया (विज्ञान प्रसार‚ दिलीप एम साल्वी, 2002)
5. www.scitechdaily.com
6. www.scienceblogs.com
रश्मि वर्मा झारखंड केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय, जनसंचार केंन्‍द्र, रांची में असिस्‍टेंट प्रोफेसर हैं।

Tags: Broadcast JournalismCorporate JournalismEconomic JournalismEnglish MediaFacebookHindi MediaInternet JournalismJharkhand Central UniversityJournalisnmedia interactionsNew MediaNews HeadlineNews writersOnline JournalismPRPrint JournalismPrint NewsPublic RelationRanchiRashmi VermaScience CommunicationSenior Journalistsocial mediaSports JournalismtranslationTV JournalistTV NewsTwitterWeb Journalismweb newsअंग्रेजी मीडियाआर्थिक पत्रकारिताइंटरनेट जर्नलिज्मकॉर्पोरेट पत्रकारिताखेल पत्रकारिताजन संपर्कजनसंचार केंन्‍द्रझारखंड केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयटीवी मीडियाट्रांसलेशनट्विटरन्यू मीडियान्यूज राइटर्सन्यूड हेडलाइनपत्रकारपब्लिक रिलेशनपीआरप्रिंट मीडियाफेसबुकमीडिया सहभागितारश्मि वर्मारांचीविज्ञान प्रसारवेब न्यूजवेब मीडियासीनियर जर्नलिस्टसोशल माडियास्पोर्ट्स जर्नलिज्महिन्दी मीडिया
Previous Post

क्या है सोशल मीडिया की सामाजिकता?

Next Post

इंटरनेट ने बदला पत्रकारिता का स्वरूप

Next Post
इंटरनेट ने बदला पत्रकारिता का स्वरूप

इंटरनेट ने बदला पत्रकारिता का स्वरूप

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Development of Local Journalism

March 22, 2023

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

Evolution of PR in India and its present status

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

आर्थिक-पत्रकारिता क्या है?

Recent Post

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

Fashion and Lifestyle Journalism Course

Development of Local Journalism

Audio Storytelling and Podcast Online Course

आज भी बरक़रार है रेडियो का जलवा

Fashion and Lifestyle Journalism Course

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.