About
Editorial Board
Contact Us
Friday, March 31, 2023
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal
No Result
View All Result
NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India
Home Communication

सोशल मीडिया : खबरों की चौपाल

सोशल मीडिया एवं हिन्दी विमर्श

धनंजय चोपड़ा।

माना जा रहा है कि वर्ष 2040 में प्रिंट न्यूज पेपर दुनिया से विदा हो जायेगा। दुनिया का कोई भी कागजी अखबार तब तक नहीं बचेगा। सब कुछ डिजिटल हो चुका होगा।

बीसवीं सदी के मध्य में संचार शास्त्री मार्शल मैक्लुहान ने घोषणा की थी कि संचार माध्यम पूरी दुनिया की चेतना बदल कर रख देंगें। ‘मीडियम ही मैसेज है’ का सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए मैक्लुहान ने कहा था कि- ‘‘अखबार, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा आदि ही नहीं हम स्वयं मीडियम हैं। हमारा शरीर, मन-मस्तिष्क और हमारी चेतना लगातार अपने को सम्प्रेषित करने में लगी रहती हैं। अपने को सम्प्रेषित करने की यह कोशिश ही इन बाहरी उपकरणों के द्वारा टेवनोलॉजिकल विस्तार के रूप में व्यक्त होती है। यानी मीडिया अन्ततरू हमारी चेतना का ही विस्तार है, वैसे ही जेसे वस्त्र हमारी त्वचा का विस्तार है। घर हमारी सर्दी और गर्मी को अनकूलित करने की कोशिश का विस्तार है और साइकिल, कार आदि हमारे पैरों का विस्तार हैं।

मुद्रण हमारी वाणी और स्पीच का विस्तार है। मुद्रित सामग्री, टेलीग्राफ आदि हमें दूर-दूराज के लोगों से जोड़ते हैं। यहां मीडिया एक युग्म का रूप ले लेती है। यानी एक मैं हूं और एक दूसरा या अदर है। मीडिया मैं को दूसरे से जोड़ती है। आई को अदर से। यहीं मीडिया मैसेज का रूप ग्रहण कर लेती है।’’ मैक्लुहान के इस कथन को सोशल मीडिया सच साबित करती है। वास्तव में इक्कीसवीं सदी में लगातार विस्तार पाती सोशल नेटवर्किंग मनुष्य की सामाजिक चेतना का ही विस्तार है। हम यह भी कह सकते हैं कि यही वह मीडिया है जो अपने आप में मैसेज भी है।

यह मैक्लुहान ही थे जिन्होंने शायद सबसे पहले ‘ग्लोबल विलेज’ की संकल्पना प्रस्तुत की थी। उनकी इस संकल्पना को आज वेब की पैहृलती-पसरती दुनिया में सोशल नेटवर्किंग या यूं कहें कि सोशल मीडिया ने साकार कर दिया है। याद कीजिये वे पुराने दिन जब किसी गांव में कोई एक अखबार लेकर चौपाल पर बैठकर बांचता था और सबके सब खबरों को जानने और समझने की ललक लिए उसे ध्यान से सुनते थे। चौपाल होती थी, सो सब के सब खबर सुनते हुए या खबरें सुनने के बाद अपनी-अपनी प्रतिक्रिया देते थे। यही तो थी हमारे अपने समाज के अंदरूनी हिस्से में रची-बसी ‘सामाजिकता’। ऐसा नहीं है कि अब हमारे पास चौपाल नहीं है और वैसी सामाजिकता नहीं है। दोनों ही हैं, बस उनके होने और हमारा उनसे जुड़ने का तरीका व स्वरूप बदल गया है। अब हम उसे ‘सोशल मीडिया’ कहते हैं और इससे जड़ने की प्रक्रिया सोशल नेटवर्किंग कहलाती है।

‘सोशल मीडिया’ यानी एक ऐसा मीडिया जो लोगों को न केवल खबरें गढ़ने का मौका देता है बल्कि खबरों से जुड़ने, उन्हें आगे बढ़ाने, उन पर प्रतिक्रिया देने और उन्हें नई-नई जानकारियों से लैस करने को भी प्रेरित करता है। यह अनायास नहीं है कि अपने देश के ढेर सारे राजनेता, बॉलीवुड के सितारे और कई औद्योगिक सूरमा अपने ‘सोशल’ होने के तरीकों में सोशल नेटवर्किंग को शामिल कर चुके हैं।

अमिताभ बच्चन, प्रियंका चोपड़ा, सुषमा स्वराज, शशि थुरूर या फिर कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला – और इन सरीखे सब अपनी कई-कई बातें सोशल साइटों पर शेयर करते हैं और यही बातें खबरों की शक्ल में हम तक पहुंच जाती हैं। सच तो यह है कि सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात कहने वाले सेलेब्रिटी की संख्या लगातार बढ़ रही है। कई बार तो इनके द्वारा देश-दुनिया या उनकी खुद की निजता से जुड़े किसी मसले पर दिया बयान बड़ी खबर का रूप धरकर हम तक पहुंचते हैं। ये सेलेब्रिटी अपना ब्लाग भी लिख रहे हैं, ताकि इंटरनेट पर मौजूद दुनिया तक अपनी बात पहुंचाई जा सके और अपने कहे पर लोगों की प्रतिक्रिया हासिल की जा सके।

दूसरी तरफ यदि पिछले दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो दुनिया में होने वाली क्रांतियों और बदलावों के पीछे सोशल मीडिया की सक्रियता ही सामने आती है। मिस्र, ट्यूनीशिया, लीबिया, इंग्लैण्ड और अमेरिका के बाद भारत, शायद ही विश्व का कोई ऐसा देश बचा है, जहां इंटरनेट पर अगर बात कहने की आजादी मिली हो और वहां पर सोशल मीडिया ने खबरों को गढ़ने, उसे फैलाने और लोगों को जोड़ने का जिम्मा न उठाया हो। यदि ऐसा न हुआ होता तो शायद इंटरनेट को मानव अधिकार बनाने की बात भी न उठी होती।

पिछले दिनों विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायनों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में जब इंटरनेट सेवा से लोगों को वंचित करने और आनलाइन सूचनाओं के मुक्त प्रसार में बाधा पहुंचाने को मानव अधिकारों का उल्लंघन कहा गया तो कई देशों की सरकारें चौंक पड़ीं। खासकर वे, जिन्होंने अपने यहां इंटरनेट पर पूर्णतरू या आंशिक प्रतिबन्ध लगा रखा है। रोचक यह कि जहां एक ओर चीन लगातार यह कोशिश कर रहा है कि ‘वेब न्यूज’ का प्रसार उसके देश में न हो सके, वहीं फिनलैण्ड ऐसा पहला देश बन गया है, जहां इंटरनेट के इस्तेमाल को नागरिकों के मौलिक अधिकारों में शामिल कर लिया गया है। अपने देश भारत में नाममात्र पाबंदियों के साथ इंटरनेट प्रयोग करने की स्वतंत्रता मिली हुई है।

यहां यह बता देना जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार यूनियन के आंकड़ों के अनुसार विश्व में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में 77 करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई है। रोचक यह है कि इंटरनेट की दुनिया में विकासशील देशों ने अपनी पैठ गहरी करनी शुरू कर दी है। बोस्टन वंकसल्टिंग समूह की रिपोर्ट ‘‘इंटरनेट न्यू बिलियन’’ के अनुसार ब्राजील, रूस, भारत, चीन और इंडोनेशिया में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 2015 तक 1.2 अरब को पार कर जायी। यह संख्या जापान और अमेरिका के कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं से तीन गुना से भी अधिक होगी। 2015 के अन्त तक भारत की तीन चौथाई जनसंख्या इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगेगी। दूसरी तरफ एक अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि भारत में अकेले ‘फेसबुक’ सोशल साइट्स से साढ़े तीन करोड़ से भी अधिक लोग जुड़ चुके हैं और लगातार जुड़ते जा रहे हैं।

अपने देश में सोशल नेटवर्किंग और हमारी लोकतंत्रात्मक सोच ने मिलकर इंटरनेट में एक नये सामाजिक ताने-बाने को बुनना शुरू कर दिया है। समाज, सामाजिक व्यवस्थाओं, संस्कृति और संस्कारों के साथ सोशल मीडिया का पारस्परिक सम्बन्ध कुछ इस तरह हमारे सामने है कि हम स्वतरू इसे और बेहतर व सहयोगी बनाने में जुट जाते हैं। फेसबुक और ट्विटर के भारतीय उपयोगकर्ताओं ने जिस तरह सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने का काम किया है, वह अद्वितीय है। इन दोनों ही साइटों पर सामाजिकता की जो नई-नई परिभाषायें गढ़ी जा रही हैं, उन्हीं से प्रेरित हो शासन-प्रशासन भी इनसे जुड़ने का मन बना रहा है।

मुझे याद है कि पिछली तेरह जुलाई को मुम्बई में बम धमाकों के बाद फेसबुक और ट्विटर पर संदेशों की बाढ़ सी आ गई। इन दोनों साइटों पर न केवल धमाकों से जुड़ी खबरें आ रही थीं, बल्कि मदद की गुहार के साथ-साथ मदद के लिए बढ़ते हाथ भी दिखाई दे रहे थे। बहुतों ने अपनों की खैर-खबर लेने के लिए इन सोशल साइटों का सहारा ले रखा था। पिछले दिनों ही एक और खबर पढ़ने को मिली। मुम्बई के नजदीक डोंबिवली के तिलकनगर के एक स्कूल के बच्चों ने अपने स्कूल के गरीब चौकीदार के इलाज के लिए रकम जुटाने का काम फेसबुक पर किया और वे सफल रहे।

अपने देश में सोशल नेटवर्किंग की ताकत को पहचानने और उसे वैविध्य से जोड़ने के काम में युवाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। अब यह अनायास तो नहीं था कि अन्ना के हालिया आंदोलन से जुड़ी जानकारी देने के लिए बनाई गई वेबसाइट इंडिया अगेंस्ट करप्शन डाट ओ.आर.जी. पर अनशन प्रारम्भ होते ही समर्थन करने वालों की संख्या दस लाख तक पहुंच गई थी। एक सर्वे एजेंसी की मानें तो अन्ना के अनशन के पहले तीन दिन के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ 8,26,000 लोगों ने 44 लाख से अधिक ट्वीट किये थे। कामस्कोर की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में माइक्रो ब्लागिंग साइट ‘ट्विटर’ पर 82 लाख लोग थे, जबकि इसके पहले वर्ष में यह संख्या 40 लाख थी। जाहिर है कि यह संख्या 2011 में करोड़ में पहुंच चुकी है।

सोशल नेटवर्किंग की लोकप्रियता का हाल तो यह है कि अब युवाओं ने यह कहना शुरू कर दिया है कि फेसबुक है तभी करेंगे नौकरी। नेटवर्किंग की प्रसिद्ध कम्पनी सिस्को ने दुनिया के 18 देशों में कालेज जाने वाले युवाओं में इस बात को लेकर अध्ययन किया कि वे अपने संभावित कार्यालय में क्या-क्या चाहते हैं। भारत में 81 प्रतिशत युवाओं ने कहा है कि वे लैपटाप, टैबलेट या स्मार्टफोन के जरिये ही काम करना पसंद करेंगे। 56 प्रतिशत युवाओं ने कहा कि वे ऐसी कम्पनी में काम करना पसन्द करेंगे जहां सोशल मीडिया या मोबाइल फोन पर पाबंदी हो। यह अध्ययन ऐसे समय में हमारे सामने आया है जब बिहार के दो कर्मचारियों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है, क्योंकि उन्होंने फेसबुक पर अपने विभागों में व्याप्त लालफीताशाही और भ्रष्टाचार पर कमेंट कर दिया था।

नये तरह के पत्रकारों की फौज खड़ी हो रही है, इसे आखिर नाम क्या दिया जाये? जर्नलिस्ट, नहीं। यह शायद कुछ ज्यादा ही भारी-भरकम शब्द है।’’ बहस जारी है… शायद जल्दी ही सभी कुछ तय हो जायेगा।

बात सोशल मीडिया पर खबरों की चौपाल की हो और मीडिया ट्रायल पर चर्चा ही न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। यह सोशल मीडिया ट्रायल की ही धमक थी कि माइकल जैक्सन के डाक्टर पर लगे आरोपों की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश ने जूरी सदस्यों से अपील की थी कि वे सोशल नेटवर्किंग पर केस को लेकर चलने वाली बयानबाजी पर ध्यान न दें। सोशल मीडिया के लिए यह पहला मौका था, जब दुनिया भर में प्रसिद्ध किसी सेलिब्रिटी को लेकर लोग अपने-अपने निर्णय दे रहे हों यानी सोशल मीडिया ट्रायल करने में लगे हों। वास्तव में सोशल मीडिया ट्रायल दुनिया में विस्तार पाता मानवीय सभ्यता का नया शगल है। याद कीजिए कि कुछ ही महीनों पहले कनाडा में स्टेनली कप आइस हाकी मुकाबले में एक टीम के हारने के बाद दंगा भड़क गया था और लोगों ने अपने मोबाइल फोन से दंगाइयों और उनकी हरकतों की तस्वीरें लेकर फेसबुक पर अपलोड कर दी थीं। इसके बाद तो सोशल मीडिया ट्रायल की होड़ मच गयी। तस्वीरें सोशल नेटवर्किंग की कई साइटों पर डाल दी गयीं। देखते ही देखते दंगाइयों के नाम-पते सार्वजनिक हो गये। कई पकड़े गये, कई नौकरी से निकाले गये और कई को स्कूल-कालेज से निकाल दिया गया। अपने देश में सोशल मीडिया ट्रायल का प्रभाव बहुचर्चित नीरज ग्रोवर हत्याकाण्ड के निर्णय आने के बाद देखने को मिला। इस निर्णय में कन्नड़ अभिनेत्री मारिया की सजा कम होने को लेकर लोग भड़क गये थे। लोगों ने अपने निर्णय में मारिया को फांसी पर लटका देने तक की बात कही।

वास्तव में मारिया पर अपने कथित प्रेमी के साथ नीरज ग्रोवर के तीन सौ टुकड़े कर देने का आरोप ही लोगों का खून खौलाने के लिए काफी था। लोगों को सोशल मीडिया का मंच मिला और अपने-अपने तरीके से लोगों ने ट्रायल जारी रख कर ‘जनता का निर्णय’ सुना दिया। सोशल मीडिया ट्रायल की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण यह जरूरी होता जा रहा है कि सोशल मीडिया पॉलिसी बनाते समय इस पहले का भी ध्यान रखा जाये।

इन दिनों किसी बड़ी घटना के फोटोग्राफ और उससे जुड़ी प्राथमिक जानकारी पलक झपकते ही सोशल साइटों पर तैर जाती हैं। इक्कीसवीं सदी के दशक में ही मेच्योर हो गया ‘सिटीजन जर्नलिज्म’ का फण्डा अब सोशल नेटवर्किंग के रास्ते नये-नये आयाम ग्रहण कर रहा है। विचारों को विस्तार मिल रहा है और लोग नई-नई जानकारियों से लैस होकर परम्परागत मीडिया यानी कास्टिंग के अन्य प्रचलित सिस्टम के लिए चुनौती पैदा कर रहे हैं।

अब यह सोशल मीडिया की ही धमक है कि दुनिया के एक बड़े अखबार ने अपने संवाददाताओं से कहा है कि वे सब सोशल मीडिया का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें और लोगों से जुड़ें, ताकि वहां गढ़ी जाने वाली खबरों का अक्स अखबार में लिखी जाने वाली खबरों में दिख सके। इस अखबार के सम्पादक मण्डल का मानना है कि लोगों को अपने अखबार से जोड़ने का इससे अधिक कारगर उपाय इन दिनों कुछ और हो ही नहीं सकता। वास्तव में विश्व के कई देशों में मुफ्त आनलाइन खबरों ने अखबारों की बिक्री पर असर डाला है। ए.बी.सी. की रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में ब्रिटेन में करीब साढ़े तीन लाख लोगों ने अखबार पढ़ना बंद कर दिया। ऐसी ही खबरें कई और देशों से आ रही हैं।

यह भी अनायास नहीं है कि आई-पैड पर अखबारों की लांचिंग शुरू हो गई है। रही बात भारत में अखबारों की दुनिया की तो यहां इंटरनेट के फैलाव ने अभी उतना बड़ा रूप नहीं लिया है कि अखबार उद्योग को भय सताये। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मीडिया डिजाइनर कहे जाने वाले मारियो गर्सिया ने पिछले दिनों भारत की यात्रा के दौरान जो कुछ कहा वह प्रिंट मीडिया इण्डस्ट्री के लिए उत्साहवर्धक नहीं रहा। गर्सिया का कहना है- ‘‘…..माना जा रहा है कि वर्ष 2040 में प्रिंट न्यूज पेपर दुनिया से विदा हो जायेगा। दुनिया का कोई भी कागजी अखबार तब तक नहीं बचेगा। सब कुछ डिजिटल हो चुका होगा। कई मुल्कों में, कई अंग्रेजी अखबार पहले ही अपना मृत्युलेख छाप चुके हैं। मैं यह कह रहा हूं कि हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषाओं के अखबार सम्भवतः दुनिया के सबसे अंतिम कागजी अखबार होंगे। अभी भारत में बमुश्किल एक करोड़ लोग वेबसाइट या मोबाइल के जरिए समाचार पढ़ते हैं। मोबाइल के साथ अभी फोंट वगैरह की दिक्कतें जुड़ी हैं। इंटरनेट पर डाटा फ्लो भी उतना तेज नहीं है। अभी सिर्फ एक दक्षिण भारतीय अखबार जो टेबलेट पर अपना संस्करण लाने की कोशिश कर रहा है। इसका मतलब ? यही कि भाषाई मीडिया में कुछ हिस्सों में डिजिटल ज्वार आता नहीं दिखता। तब तक कागज पर छपे अखबार खूब लहलहायेंगे।’’ गर्सिया की बात पर गौर करें तो वह भी डिजिटल ज्वार आने पर छपे अखबारों की मृत्यु की ओर इशारा करते हैं। लगभग यही हाल टेलीकास्टिंग और ब्राडकास्टिंग सिस्टम का भी है। फिलहाल टेलीविजन और रेडियो के कई चैनल वेब पर पहले ही आकर अपने को अपग्रेड कर चुके हैं और वेब यूजर के बीच अपनी पैठ बनाने में लगे हैं।

बहरहाल पूरी दुनिया में सोशल नेटवर्किंग पर लगने वाली खबरों की चौपाल के साथ-साथ छपे हुए अखबारों के खत्म होने और टेलीविजन से न्यूज चौनलों के गायब होते जाने पर चर्चा-बहस शुरू हो चुकी है। इस सम्बन्ध में दो वक्तव्यों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। पहला वक्तव्य नोम चोम्स्की का, जिसमें उन्होंने कहा है- ‘‘इस बात पर बहुत सारी चर्चा हो रही है कि इंटरनेट के दौर में मीडिया अपने अस्तित्व को बचा नहीं पायेगा। मुझे इसके बारे में शंकाएं हैं।’’ दूसरा बयान नाइट सेंटर फॉर डिजिटल मीडिया इंटरप्रेनयोरशिप के निदेशक का है, जिसमें वे प्रश्न उठाते हैं कि ‘‘यह जो नये तरह के पत्रकारों की फौज खड़ी हो रही है, इसे आखिर नाम क्या दिया जाये? जर्नलिस्ट, नहीं। यह शायद कुछ ज्यादा ही भारी-भरकम शब्द है।’’ बहस जारी है… शायद जल्दी ही सभी कुछ तय हो जायेगा।

डॉ. धनंजय चोपड़ा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेन्टर आफ मीडिया स्टडीज के कोर्स कोआर्डिनेटर हैं, मोबाइल: 9415235113
ई-मेल: c.dhananjai@gmail.com

Tags: Allahabad UniversityBroadcast JournalismCorporate JournalismDr. Dhananjay ChopraEconomic JournalismEnglish MediaFacebookHindi MediaInternet JournalismJournalisnNew MediaNews HeadlineNews PlatformNews writersOnline JournalismPRPrint JournalismPrint NewsPublic RelationSenior Journalistsocial mediaSports JournalismtranslationTV JournalistTV NewsTwitterWeb Journalismweb newsअंग्रेजी मीडियाआर्थिक पत्रकारिताइंटरनेट जर्नलिज्मइलाहाबाद विश्वविद्यालयकॉर्पोरेट पत्रकारिताखेल पत्रकारिताजन संपर्कटीवी मीडियाट्रांसलेशनट्विटरडॉ. धनंजय चोपड़ान्यू मीडियान्यूज राइटर्सन्यूड हेडलाइनपत्रकारपब्लिक रिलेशनपीआरप्रिंट मीडियाफेसबुकवेब न्यूजवेब मीडियासीनियर जर्नलिस्टसोशल माडियासोशल मीडियास्पोर्ट्स जर्नलिज्महिन्दी मीडिया
Previous Post

पत्रकारिता की विसंगतियों के केंद्र में है उसका कारोबार

Next Post

हिंदी पत्रकारिता की सदाबहार गलतियां

Next Post
हिंदी पत्रकारिता की सदाबहार गलतियां

हिंदी पत्रकारिता की सदाबहार गलतियां

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

No Result
View All Result

Recent News

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Fashion and Lifestyle Journalism Course

March 22, 2023

Development of Local Journalism

March 22, 2023

SCAN NOW FOR DONATIONS

NewsWriters.in – पत्रकारिता-जनसंचार | Hindi Journalism India

यह वेबसाइट एक सामूहिक, स्वयंसेवी पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों और प्रोफेशनलों को पत्रकारिता, संचार माध्यमों तथा सामयिक विषयों से सम्बंधित उच्चस्तरीय पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है. हमारा कंटेंट पत्रकारीय लेखन के शिल्प और सूचना के मूल्यांकन हेतु बौद्धिक कौशल के विकास पर केन्द्रित रहेगा. हमारा प्रयास यह भी है कि डिजिटल क्रान्ति के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और संचार से सम्बंधित समकालीन मुद्दों पर समालोचनात्मक विचार की सर्जना की जाय.

Popular Post

हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता

टेलीविज़न पत्रकारिता

समाचार: सिद्धांत और अवधारणा – समाचार लेखन के सिद्धांत

Evolution of PR in India and its present status

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

आर्थिक-पत्रकारिता क्या है?

Recent Post

 Fashion and Lifestyle Journalism Course

Fashion and Lifestyle Journalism Course

Development of Local Journalism

Audio Storytelling and Podcast Online Course

आज भी बरक़रार है रेडियो का जलवा

Fashion and Lifestyle Journalism Course

  • About
  • Editorial Board
  • Contact Us

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Journalism
    • Print Journalism
    • Multimedia / Digital Journalism
    • Radio and Television Journalism
  • Communication
    • Communication: Concepts and Process
    • International Communication
    • Development Communication
  • Contemporary Issues
    • Communication and Media
    • Political and Economic Issues
    • Global Politics
  • Open Forum
  • Students Forum
  • Training Programmes
    • Journalism
    • Multimedia and Content Development
    • Social Media
    • Digital Marketing
    • Workshops
  • Research Journal

© 2022 News Writers. All Rights Reserved.