ओम प्रकाश दास।
मेरी मीकेर की एक रिपोर्ट जो इंटरनेट ट्रेंड या कहें आदतों पर आधारित है, बताती है कि भारत 117 मिलियन स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं के साथ दुनिया के शीर्ष तीन देशों में शामिल है। भारत से आगे सिर्फ चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका है। स्मार्ट फोन और इंटरनेट उपयोग करने के लिहाज़ से भी भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार होता जा रहा है। जिनके पास इंटरनेट है या नहीं भी है वो दूसरे संस्थानों की मदद से सोशल मीडिया के करीब आते जा रहे हैं। हर आयु-वर्ग के लोगों में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का पेज दिनों-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। आज सोशल नेटवर्किंग दुनिया भर में इंटरनेट पर होने वाली नंबर वन गतिविधि है। इस बीच सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार और सूचना का सशक्त का जरिया बन कर उभरा है। जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यह बात देश और दुनिया के हर कोने तक पहुँच जाती है। आप खुद के विचार रखने के साथ-साथ दूसरों की बातों पर खुलकर अपनी राय भी व्यक्त कर पाते हैं। एक परिभाषा के अनुसार, ”सोशल मीडिया को परस्पर संवाद का वेब आधारित एक ऐसा अत्यधिक गतिशील मंच कहा जा सकता है जिसके माध्यम से लोग संवाद करते हैं, आपसी जानकारियों का आदान-प्रदान करते हैं और उपयोगकर्ता जनित सामग्री को सामग्री सृजन की सहयोगात्मक प्रयिा के एक अंश के रूप में संशोधित करते हैं।”
आधार और नेशनल जीआईएस जैसे उपायों से नीति आयोजना को अधिक सक्षम और प्रभावकारी बनाने में मदद मिल रही है और इस सूचना संचार प्रौद्दोगिकी (आईसीटी) ढांचे पर निर्भर असंख्य अनुप्रयोगों से नागरिक वर्ग के विभिन स्तरों पर बदलाव हुआ है। इस नए ढांचे के सर्वव्यापक होने, लोगों और विचारों के बीच तीव्रतम ढंग से संबंध कायम होने से हम सूचना के लोकतंत्रीकरण के लिए अनिवार्य खुलेपन, पहुंच, पारदर्शिता, जवाबदेही और और विकेंद्रीकरण की वर्तमान प्रक्रियाओं में एक पीढ़ीगत परिवर्तन के दौर में हैं। सूचना का यह लोकतांत्रिकरण सत्ता के उन संरचनाओं को चुनौती दे रहा है जो सूचना नियंत्रण की प्रस्तावना पर आधारित है ताकि उन्हें अधिक पारदर्शी और जवाबदेह समाज के नए प्रितमान में परिवर्तित किया जा सके।
वास्तव में सूचना के आदान-प्रदान, जनमत तैयार करने विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों के लोगों को आपस में जोड़ने, भागीदार बनाने और सबसे महत्वपूर्ण यह कि नए ढंग से संपर्क करने में सोशल मीडिया एक सशक्त और बेजोड़ उपकरण के रूप में तेजी से उभर रहा है। यदि सरकारें सर्वोत्कृष्ट ढंग से लाभ उठाना सीख लें तो सोशल मीडिया उनके लिए अत्यंत प्रभावकारी नीति उपकरण बन सकता है।
विश्वभर में सरकारों को अधिक कारगर ढंग से संपर्क करने, नागरिकों को जोड़ने, नीतियों एवं कार्यक्रम के बारे में सही समय पर फीडबैक हासिल करने और एक अधिक भागीदारीपूर्ण शासन माडल के प्रति वचनबद्धता व्यक्त करने की आवश्यकता है। इन सभी क्षेत्रों में सोशल मीडिया प्लेटफार्म सही इंटरफेस और साधन उपलब्ध करते हैं।
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में शहरी क्षेत्र में सोशल मीडिया के प्रयोक्ताओं की संख्या दिसम्बर 2012 तक 6.2 करोड़ से ज्यादा थी। स्पष्ट है कि भारत के शहरी इलाकों में 74 प्रतिशत अर्थात् प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति सोशल मीडिया का किसी न किसी रूप में प्रयोग करते हैं। इसी रिपोर्ट में भारत के 35 प्रमुख शहरों के आंकड़ों के आधार पर यह भी बताया गया कि 1.82 करोड़ मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ता या 77 प्रतिशत उपयोगकर्ता (कुल 2.36 करोड़ में से) सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। इससे ज्यादा इस्तेमाल सिर्फ ई-मेल (83 प्रतिशत) का होता है। कुल 72 प्रतिशत इंटरनेट बेस के प्रयोक्ताओं में से 82 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया से जुड़े हुये हैं। वस्तुत: सोशल मीडिया तक पहुँच कायम करने में मोबाइल का बहुत बड़ा योगदान है और इसमें भी युवाओं की भूमिका प्रमुख है।
भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों में न सिर्फ वैयक्तिक स्तर पर बल्कि राजनैतिक दलों के साथ-साथ कई सामाजिक और गैरसरकारी संगठन भी अपने अभियानों को मजबूती देने के लिए सोशल मीडिया का बखूबी उपयोग कर रहे हैं। सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं है बल्कि इसने कई पंक्तियों और वैचारिक बहसों को भी रोचक मोड़ दिये हैं। जिन देशों में लोकतत्र का गला घोंटा जा रहा है वहाँ अपनी बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है। हाल के वर्षों में अरब जगत में हुई क्रांतियों में सोशल मीडिया की अहम भूमिका रही। लोग इसके माध्यम से एक दूसरे से जुड़े रहे और क्रांति का बिगुल बजाते रहे। इसके चलते राजसत्ताओं को यह पसंद नहीं आया। इसकी वजह से ईरान, चीन, बांग्लादेश, उबेकिस्तान, और सीरिया में इस पर प्रतिबंध भी लगाया गया। भारत में भी अन्ना आंदोलन को चरम तक ले जाने में सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही। भारत में भी समय-समय पर गूगल, टि्वटर, फेसबुक पर निगरानी की बात की जाती रही है।
बराक ओबामा, नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल की परिघटना एक सोशल मीडिया के संदर्भ में एक मिथक बन गए हैं। लेकिन आज देश मनोहर पारीकर और माणिक सरकार को भी जानता है, अन्ना हजारे को भी पहचानता है। उसने राहुल गांधी की पूरी युवा बिग्रेड के चेहरों को भी मीडिया के माध्यम से ही जाना है। यानि मीडिया ने हिंदुस्तानी राजनीति में किसी युवा का नेता होना भी संभव किया है। मीडिया का सही, रणनीतिक इस्तेमाल इस देश में भी, प्रदेश में भी ओबामा जैसी घटनाओं को संभव बना सकता है। अखिलेश यादव को आज पूरा हिंदुस्तान पहचानता है तो इसमें मुलायम पुत्र होने के साथ –साथ टीवी और सोशल मीडिया की देश व्यापी उपस्थिति का योगदान भी है।
अण्णा हजारे का पूरा आंदोलन इस सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द घूमा। लोगों को ये भी समझ आया कि केवल अपने मोबाइल या कंप्यूटर से कमेंट करने से कुछ नहीं होगा, सड़कों पर उतरना होगा। और लोग उतरे भी। हाल की दिल्ली की बलात्कार वाली घटना (16 दिसंबर 2012) में भी लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे, मगर उनको सड़कों पर उतारने में भी सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई।
पिछले दस सालों में इंटरनेट का प्रसार कई गुना बढ़ चुका है और यह अधिक स्थानीकृत बन गया है, अतः सोशल मीडिया अधिक से अधिक लोगों को संबद्ध करने में सक्षम हो रहा है। भारत में दूरसंचार के कायापलट करने वाले पिरोधाओं में से एक सैम पित्रोदा कहते हैं कि लोगों के पास संदेश भेजने और उनसे संपर्क करने के लिए सोशल मीडिया मीडिया मंचों का लाभ उठाने का प्रयास किया जा रहा है। समय-समय पर कार्यक्रमों से संबंधित वीडियो और सूचना कई वेबसाइटों और यू ट्यूब पर पोस्ट किया जा रहा है।
सोशल मीडिया अभी विकासोन्मुखी चरण में है और विश्वभर में समुदायों द्वारा संवाद एवं संचार को प्रभावित करने की इस माध्यम की क्षमता को समझने की दिशा में अभी एक शुरुआत भर की जा रही है। उदाहरण के लिए सरकार में संचार की प्रचलित पद्धतियों और प्रेस विज्ञप्ति आदि परंपरागत पद्धतियों को फेसबुक, ट्वियर, यू ट्यूब में बदला जा रहा है। इसके अलावा परंपरागत मीडिया मौद्रिक निर्णयों और स्थापित विचारों से निरंतर अधिशासित हैं इसलिए सोशल मीडिया नागरिकों की अधिक निष्कलंक आवाज के रूप में उभर चुका है और सही अर्थों में लोकमंच बनेगा, जिसके पास अपने कार्यों को रूपांतरित करने और सरकार के साथ इंटरफेस करने की शक्ति होगी।
क्या है सोशल मीडियाः-
सोशल मीडिया की परिभाषा वैसे तो अपने निर्माण के दौर में है, लेकिन विकिपीडिया इस माध्यम की व्याख्या कुछ इस तरह करता है।
“सामाजिक मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च इंटरैक्टिव प्लेटफार्म बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है”।
स्वरूपः-
सामाजिक मीडिया के कई रूप हैं जिनमें कि इन्टरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई वेब साइट्स उपलब्ध हैं। कुछ सोशल मीडिया के उदाहरण इस तरह हैं।
- फेसबुक – विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल साइट
- सहयोगी परियोजना (उदाहरण के लिए, विकिपीडिया)
- ब्लॉग और माइक्रोब्लॉग (उदाहरण के लिए, ट्विटर)
- सोशल खबर नेटवर्किंग साइट्स (उदाहरण के लिए डिग और लेकरनेट)
- सामग्री समुदाय (उदाहरण के लिए, यूट्यूब और डेली मोशन)
- सामाजिक नेटवर्किंग साइट (उदाहरण के लिए, फेसबुक)
- आभासी खेल दुनिया (जैसे, वर्ल्ड ऑफ़ वॉरक्राफ्ट)
- आभासी सामाजिक दुनिया (जैसे सेकंड लाइफ)
सोशल मीडिया की विशेषताः-
सामाजिक मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुँच, आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी और स्थायित्व आदि तत्व शामिल हैं। इन्टरनेट के प्रयोग से कई प्रकार के प्रभाव होते हैं। निएलसन के अनुसार ‘इन्टरनेट प्रयोक्ता अन्य साइट्स की अपेक्षा सामाजिक मीडिया साइट्स पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं’।
दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन का दौर शुरू हो चुका है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी अंतर्जाल पर होगी। दरअसल, अंतर्जाल एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया हैं, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यही से सामाजिक मीडिया का स्वरूप विकसित हुआ है। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उपभोक्ताओं का वर्गीकरण विभिन्न मानकों के अनुसार किया जाता है जिसमें उनकी आयु, रूचि, लिंग, गतिविधियों आदि को ध्यान में रखते हुए उसके अनुरूप विज्ञापन दिखाए जाते हैं। इस विज्ञापन के सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं साथ ही साथ आलोचना भी की जा रही है।
सारणीः1
उम्र के अनुसार इंटरनेट उपयोगकर्ता | हर घंटे में उपयोगकर्ताओं की औसत संख्या के आधार पर |
उम्र-वर्ग | इंटरनेट इस्तेमाल की अवधि (मिनट प्रति घंटे) |
15-24 साल | 13.2 |
25-34 साल | 12.4 |
35-44 साल | 12.2 |
45-54 साल | 11.4 |
55 साल से ज्यादा | 10.7 |
स्रोतः comscore media metrix, March 2011 |
# भारत में युवा इंटरनेट उभोक्ताओं की संख्या अलग अलग उम्र वर्गों में सबसे ज्यादा
# भारत में 15 से 24 साल तक के युवा औसतन हर घंटे 13 मिनट से ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।
# लेकिन हर घंटे में इंटनेट इस्तेमाल करने के मामले में भारत दुनिया में अभी भी काफी पीछे।
IT क़ानून की धारा 66A के दुरुपयोग का मुद्दाः-
24 मार्च 2014 का दिन भारत में सोशल मीडिया के इतिहास में एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जायेगा। इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में आई टी एक्ट की धारा 66ए को असंवैधानिक करार देते हुए उसे रद्ध कर दिया। कई लोगों ने इसे एक नयी आजादी का नाम दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से लोगों में यह विश्वास पुख़्ता होगा कि इंटरनेट पर उनके लिखने पढ़ने की छूट संविधान के अनुरूप होगी, उसे किसी उलझे हुए और अस्पष्ट क़ानूनी व्याख्या से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66ए को पूरी तरह ख़त्म इस आधार पर कर दिया कि यह संविधान की धारा 19 (1) का उल्लंघन करती है।
क्या हुआ बदलाव : –
1. इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी से छेड़छाड़ किसी भी क़ीमत में नहीं की जा सकती. इस पर उचित नियंत्रण संविधान की धारा 19 (2) के तहत ही किया जा सकता है।
2. अभिव्यक्ति की आज़ादी को किसी अस्पष्ट सरकारी प्रावधान से नहीं रोका जा सकता।
3. किसी क़ानूनी प्रावधान में किसी तरह की अस्पष्टता से यदि उस क़ानून का दुरुपयोग होने लगे तो विधि सम्मत नहीं है।
4. लोगों को जानने का हक़ महत्वपूर्ण है। यह हक़ बोलने की छूट को कुचलने के लिए बने किसी सरकारी प्रावधान के अधीन नहीं है।
6. धारा 66ए के तहत जिन लोगों पर मुक़दमा चल रहा है, उन्हें राहत मिलेगी.
7. डिजिटल दुनिया में दूसरे पर ग़लत तरीकों से हमले करने वालों को जो कुछ थोड़ा बहुत डर होता था, अब वह भी नहीं होगा।
8. यह फ़ैसला सरकार के लिए एक चेतावनी भी है। वे ऐसा कोई क़ानून न बनाएं जो संविधान के मुख्य सिद्धातों के ख़िलाफ़ जाता हो।
9. सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून 2000 के तहत इंटरमीडियरी लाएबिलिटी के सिद्धांत को जायज़ ठहराया गया है. इसलिए इस तरह के लोग तयशुदा नियमों का सही सही पालन करें।
10. सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून में संशोधन करते वक़्त सरकार को यह ध्यान में रखना होगा कि यह समय की ज़रूरतों और बदलती हुई तकनीक के अनुरूप हो।
11. अब तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जा सकेगी।
अब क्या होगा : –
आईटी एक्ट 66A की धारा खत्म होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का खतरा तो खत्म हो गया है, लेकिन अभी भी कई ऐसे प्रावधान हैं जो किसी को भी मनमर्जी से रोकते हैं।
1. 24 मार्च 2015 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 69ए को खत्म करने की मांग ठुकरा दी। इस धारा के तहत इंटरनेट पर किसी भी सामग्री को ब्लॉक करने का हक जारी रहेगा।
2. एक्ट ऑफ डिफेमेशन, IPC 499, सद्भाव बिगाड़ने पर लगने वाली धारा 153 A, धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर लगने वाली धारा 295A, और CrPC 95A, अश्लीलता से संबंधित धारा 292 अभी अपनी जगह मौजूद हैं।
3. कंटेप्ट ऑफ कोर्ट और पार्लियामेंटरी प्रिवेलेज के प्रावधान भी जारी हैं।
4. मानहानि के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 499 भी आपके गलत इरादों पर लगाम लगाने के लिए खड़ी है।
आईटी एक्ट 66A का ये पूरा मामल अपने आप में ये दिखाता है कि सोशल मीडिया के लोकतांत्रिकरण, अभिव्यक्ति और उसकी पहुंच को लेकर हम कहां खड़े हैं। प्रेस से आगे बढ़ते हुए आज हम तकनीक के दौर में पंहुचे हैं, जहां प्रेस अब मीडिया हो गया है। लेकिन ये आज भी लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। यह केवल बाजार में बिकने वाला माल न होकर बल्कि जनता की राय भी बदलता है। पिछले कुछ वर्षों में 24 घंटे के न्यूज़ चैनलों के प्रसारण के बाद टी.आर.पी (Television Rating Point (TRP) की होड़ में चैंनलों के स्वरूप,चरित्र और गुणवत्ता में काफी परिवर्तन आया है।
आम चुनाव 2014:-
आंकड़े बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव की करें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रचार अभियान व उनकी विजय में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है। देखा जाए तो सोशल मीडिया आज लोकतंत्र के पाँचवे स्तम्भ के रूप में अपनी जगह मजबूत कर चूका है।
बेहतर चुनाव कराने की चुनाव आयोग की लंबी कवायद, राजनीतिक दलों का अभूतपूर्व उत्साह,मीडिया सहभागिता और सोशल मीडिया की धमाकेदार उपस्थिति ने लोकसभा चुनाव 2014 को वास्तव में एक अभूतपूर्व चुनाव में बदल दिया है। चुनाव आयोग के कड़ाई भरे रवैये से अब दिखने में तो उस तरह का प्रचार नजर नहीं आता, जिससे पता चले कि चुनाव कोई उत्सव भी है, पर मीडिया की सर्वव्यापी और सर्वग्राही उपस्थित ने इस कमी को भी पाट दिया। 90 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोनों से लैस हिंदुस्तानी अपने कान से ही अपने नेता की वाणी सुन रहा था।
मतदाता का उत्साह देखिए वह कहता है ‘मुझे रमन सिंह का फोन आया।’ तो अगला कहता है ‘मेरे पास नरेंद्र मोदी का फोन आ चुका है।’ शायद कुछ को राहुल गांधी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल का भी फोन आया हो। यानि यह चुनाव मीडिया के कंधों पर लड़ा जा रहा है। एक टीवी स्क्रीन पर जैसे ही नरेंद्र मोदी प्रकट होते हैं, तुरंत दूसरा चैनल राहुल गांधी का इंटरव्यू प्रसारित करने लगता है। इसके बाद सबके लिए सोशल मीडिया का मैदान खुलता है, जहां इन दोनों साक्षात्कारों की समीक्षा कई दिनों तक चलती रहती है। वास्तव में इस चुनाव में सोशल मीडिया ने जैसी भूमिका निभाई है, उसे रेखांकित किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया की इतनी ताकतवर उपस्थिति कभी देखने को नहीं मिली।
भारत में इंटरनेटलगभग 25 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता2018 तक 50 करोड़ होंगे इंटरनेट उपयोगकर्ता |
एक मीडिया दूसरे मीडिया को ताकत दे रहा है और सभी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए प्रतीत हो रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने शायद इसीलिए अपने एक साक्षात्कार में यह कहा कि “सोशल मीडिया नहीं होता तो आम हिंदुस्तानी की क्रियेटिविटी का पता ही नहीं चलता।” आप देखें तो यहां रचनात्मकता कैसे प्रकट होकर लोकव्यापी हो रही है। यहां लेखक, संपादक और रिर्पोटर नहीं हैं, किंतु सृजन जारी है। प्रतिक्रिया जारी है और इस बहाने एक विमर्श भी खड़ा हो रहा है, जिसे आप लोकविमर्श कह सकते हैं। सामाजिक बदलाव ने काफी हाउस, चाय की दूकानों, पटिए और ठीहों पर नजर गड़ा दी है, वे टूट रहे हैं या अपनी विमर्श की ताकत को खो रहे हैं। किंतु समानांतर माध्यमों ने इस कमी को काफी हद तक पूरा किया है। मोबाइल के स्मार्ट होते जाने ने इसे व्यापक और संभव बनाया है।
सारणीः- सोशल मीडिया पर राजनीतिक नेताओं की लोकप्रियता
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पिछले लोकसभा (2014) से लेकर उसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों तक मतदान प्रतिशत में औसतन 8-10 फीसदी तक का उछाल आया है। तो इसके पीछे भी सोशल मीडिया में लगातार चल रहे मतदाता जागरुकता अभियाना या एक दूसरे को भेजे जाने वाले संदेश भी रहे हैं। सोशल मीडिया में मतदान करने के बाद लगने वाली स्याही के साथ सेल्फी तो जैसे स्टाईल स्टेटमेंट ही बन गया। वोट देने को सोशल मीडिया ने एक फैशन की तरह भी बढ़ाया। इस जागरूकता के लिए चुनाव आयोग के साथ सोशल मीडिया को भी सलाम भेजिए।
‘कोऊ नृप होय हमें का हानि’ का मंत्रजाप करने वाले हमारे समाज में एक समय में ज्यादातर लोग वोट देकर कृपा ही कर रहे थे। बहाने भी गजब थे पर्ची नहीं मिली, धूप बहुत है, लाइन लंबी है, मेरे वोट देने से क्या होगा? पर इस समय की सूचनाएं अलग हैं, लोग विदेशों से अपनी सरकार बनाने आए हैं। दूल्हा मंडप में जाने से पहले मतदान को हाजिर है। जाहिर तौर पर ये उदाहरण एक समर्थ होते लोकतंत्र में अपनी उपस्थिति जताने और बताने की कवायद से कुछ ज्यादा हैं। वरना वोट निकलवाना तो राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं का ही काम हुआ करता था। वो ही अपने मतदाता को मतदान केंद्र तक ले जाने के लिए जिम्मेदार हुआ करते थे। लेकिन बदलते दौर में समाज में अपेक्षित चेतना का विस्तार हुआ है।
पिछले आम चुनाव (2014) में चुनाव आयोग ने यू-ट्यूब पर बजाप्ता एक चैनल खोला जिसका नाम रखा गया ‘वोटर एजुकेशन चैनल’। जिस पर शुरुआती दौर में ही करीब 22 घंटे का दृश्य-श्रव्य प्रस्तुतियां अपलोड यानी डाली गईं, जिसपर लोग के हिट्स तेज़ी से आने लगे, विशेषकर युवा जो 25 साल से कम उम्र के हैं। एक अलग यू-ट्यूब चैनल ‘ईसी चैनल’ भी खोला गया। इस चैनल पर चुनावी प्रक्रिया के साथ साथ नोटा जैसे नए प्रावधानों पर भी प्रस्तुतियां अपलोड की गईं।
ये भी सच है कि जिसने पहले इस सोशल मीडिया की शक्ति को पहचना उसे इस रेस में बढ़त मिली। नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल का नाम इस सूची में लिया जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में बराक ओबामा ने सोशल मीडिया का राजनीति में इस्तेमाल करके पूरी दुनिया का दिखाया।
निष्कर्ष
एक सार्वजनिक आयोजन में समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह का बयान उद्धृत करने वाला है। उन्होंने कहा कि “अब सोशल मीडिया को लोकतंत्र का सबसे सशक्त माध्यम कहा जा सकता है। पिछले एक दशक में भारतीय राजनीति में जो भो बदलाव आयें उनमे सोशल मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। समाजवादी विचारधारा और मिशन को बढ़ाने का काम भी सोशल मीडिया ने ही किया हैं। वर्तमान दौर में सोशल मीडिया की उपेक्षा करके कोई भी राजनैतिक दल उभर नहीं सकता”। याद रखिए कि यह एक ऐसे राजनेता का बयान है जो अंग्रेज़ी के विरोध के लिए जाने जाते हैं, जो महिलाओं के विधायिका में आरक्षण के विरोध में खड़े रहे हैं।
इस उभरती हुई गतिशीलता में सोशल मीडिया का मध्यवर्ती भूमिका है, जो उसे सूचना व्यवस्था के लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया में निभानी है। नागरिक पहले से ही हर तरफ सोशल मीडिया के वैकल्पिक स्थान में एक-दूसरे से जुड़े हैं, वार्तालाप कर रहे हैं और जानकारी बांट रहे हैं और अपने को अभिव्यक्त कर रहे हैं। अभिव्यक्ति के ये मंच, जिनकी शुरुआत हाशियों में हुई, अब निरंतर संस्कृति की मुख्यधारा में सन्निहित हो रहे हैं और हमारे भौतिक जगत में क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं को प्रेरित कर रहे हैं। अरब स्प्रिंग उन उदाहरणों में से एक है जो बताते हैं कि यह नया मीडिया किस तरह विश्व की व्यावहारिक राजनीति में गतिविधियों को आकार प्रदान कर रहा है।
इंटरनेट के उड़न खटोले पर सवाल सोशल मीडिया पर दलित से लेकर ब्राह्मण तक समस्त हिन्दू जातियां-जनजातियों ,मुस्लिम ,सिख ,जैन ,बौद्ध ,ईसाई,पारसी ,यहूदी विभिन्न भाषा-भाषी और आदि कई तरह के लोग चाहे आस्तिक हो या नास्तिक, इस मंच ने बिना भेदभाव के सबको स्वीकार किया है। संविधान हमें आज़ादी देता है अपने को अभिव्यक्त करने का और अब न्यू मीडिया का प्रमुख साझीदार सोशल मीडिया अब हम सबको लोकतंत्र में भागीदार बना रहा है।
भारत सरकार के कई अन्य विभाग भी सोशल मीडिया का लाभ उठाने और सूचनाओं को साझा करने के लिए आगे बढ़े हैं। विदेश मंत्रालय, नीति आयोग और प्रधानमंत्री कार्यालय सहित अनेक मंत्रालय, संगठन सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर निरंतर अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। उदाहरण के लिए वित्त मंत्रालय ने देश के लोगों के समक्ष बजट को स्पष्ट करने के लिए एक गूगल हैंगआउट आयोजित किए जा रहे हैं जो अपने आप में अनोखा है। नीति आयोग से पहले 12वीं पंचवर्षीय योजना के बारे में सोशल मीडिया के जरिए लोगों को जानकारी देना इन्हीं प्रयासों का हिस्सा था।
अभी हाल के कुछ वर्षों में सुचना क्रांति व इंटरनेट क्रांति के प्रसार के बाद एक बहुत बड़ी संख्या में युवा वर्ग सोशल मीडिया से जुड़ा है। यह युवा वर्ग स्वतन्त्र विचारों का समर्थक है और हर एक विषय पर बेबाकी से अपनी राय रखता है। सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव से पहले जनता को न्यूज़ चैनलों व अखबारों की खबरों पर पूर्ण रूपेण निर्भर रहना पड़ता था जिनकी तटस्थता पर भी सवाल उठते रहे हैं। सोशल मीडिया हर व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपनी बात बेबाकी से रखने का मौका देता है।
ओम प्रकाश दास दूरदर्शन में एंकर और वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं