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Wednesday, March 29, 2023
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बदलते दौर के साथ सोशल मीडिया का सामाजिक दायरा

सोशल मीडिया: लिखिए अवश्य पर जोखिम समझते हुए, न्यायालय से तो मिली आजादी

विजय प्रताप।

तकनीकी विकास के हर दौर में मीडिया का सत्ता और सरकार से अहम रिश्ता रहा है। भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय प्रिंट मीडिया यानी प्रेस की भूमिका का जिक्र हो या अंग्रेजों के जाने के बाद दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिये सरकारी योजनाओं व नीतियों का प्रचार प्रसार की बात हो, मीडिया सरकार की नीतियों व योजनाओं को व्यापक लोगों तक पहुंचाने में अहम योगदान करती रही है। इसमें निजी व सरकारी दोनों ही तरह की मीडिया शामिल रही है। सरकार की तरफ से भी मीडिया के साथ रिश्ता कायम रखा जाता है। अलग-अलग मीडिया माध्यमों का अलग-अलग समय में सरकार के साथ गहरी साझेदारी का इतिहास है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक के बाद अब ऑनलाइन मीडिया ने समाज में अपनी जगह पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी है। इसे भारत में सोशल मीडिया के प्रसार के रूप में देखा जा सकता है। साथ ही सरकार के स्तर पर भी ऑनलाइन मीडिया खासतौर से सोशल मीडिया व नेटवर्किंग साइटों को प्रोत्साहित करने की नीति दिख रही है। इस अध्ययन में सोशल मीडिया और सरकार के रिश्ते और उसके व्यापक समाज पर प्रभाव का मूल्यांकन किया गया है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संचार के विकास का रिश्ता उसके इस्तेमाल करने वाले सामाजिक वर्ग से जुड़ा है। इतिहास में संचार के विकास पर नजर डाले तो यह पाते हैं कि उन संचार तकनीकों को ज्यादा जल्दी स्वीकारोक्ति मिल गई जिन्हें समाज के नेतृत्वकारी तबके ने इस्तेमाल किया। जर्मनी के सुनार जॉन गुटनबर्ग ने 1445 ईं के आस-पास छपाई की तकनीक विकसित की। इससे अखबारों, पर्चों और इश्तेहार का प्रकाशन आसान हो गया। उस समय तात्कालिक राजनीति पर वर्चस्व रखने वाली शक्तियों ने इसे इस्तेमाल और परिष्कृत किया। धार्मिक प्रचार में लगे संगठनों ने अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिए छापेखाने का इस्तेमाल किया। लेकिन अखबार, पर्चे या किताबें समाज के हर वर्ग के इस्तेमाल की चीज नहीं थीं। पर्चे और अखबार में छपी सूचनाओं को पढ़ने के लिए शिक्षित होना जरूरी था। अखबारों को खरीद पाने के लिए उसके दाम का भुगतान कर पाने में सक्षम होना जरूरी था। यानि इन माध्यमों के जरिये समाज का एक छोटा सा हिस्सा आपस में संवाद करते था और उनकी बातें बाकी लोगों तक धीरे-धीरे रिस कर पहुंचती थीं।

इस तरह से अखबार और प्रिंट माध्यम ने अपना एक वर्ग तैयार कर लिया। राजनीतिक सत्ता ने इस माध्यम के उच्चवर्गीय चरित्र को तब तक यथासंभव कायम रखा जब तक की उच्चवर्ग के लिए दूसरी संचार तकनीक नहीं आ गई। प्रिंट के बाद टेलीफोन(1876) का अविष्कार हुआ और जल्द ही यह उच्च शहरी तबके, सरकारी कामकाज और व्यापारिक कामों में इस्तेमाल होना शुरू हो गया। रेडियो(1907) का इस्तेमाल अमेरिका की जल सेना (नेवी) ने शुरू किया और फिर यह निजी रेडियो क्लबों से होते हुए आम लोगों तक संचार का माध्यम बना। टेलीविजन(1927) को भी कई सालों तक सेट और लाइसेंस या सब्सक्रिप्शन फीस के भुगतान ने इसे खास वर्ग तक सीमित किए रहा। संचारविद हरबर्ट आई.शीलर ने अपनी पुस्तक “संचार माध्यम और सांस्कृतिक वर्चस्व” में उपग्रह संचार की उत्पति के बारे में कुछ यूं टिप्पणी की है- “उपग्रह संचार का मामला बड़ा शिक्षाप्रद है। सबसे आक्रामक अमरीकी पूंजीवाद के एक छोटे समूह के मन में यह खयाल आया। उन्हीं लोगों ने इस पर शोध कराया और उपग्रह का निर्माण हुआ। उपग्रहों को दुनिया के पैमाने पर संचार तंत्र के रूप में खड़ा किया गया जिससे अमरीकी औजार निर्माताओं, इलेक्ट्रॉनिक निगमों, सैन्य संस्थानों तथा सामान्यतया विज्ञापन और व्यापारिक समूहों को लाभ हुआ।1

मौजूदा परिदृश्य
2014 के आम चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के गठन के तत्काल बाद ही संपादकों के संगठन एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बयान जारी कर कहा कि मीडिया को सरकार के मंत्रालयों तक पहुंचने और खबर करने में रुकावट डाली जा रही है। गिल्ड ने सरकार से मीडिया और सरकार के बीच रुकावटों को खत्म करने की अपील की।2 इससे पहले सरकार की तरफ से सभी मंत्रालयों को यह निर्देश दिया गया था कि कोई भी अधिकारी बिना अनुमति के मीडिया से बातचीत या कोई खबर साझा नहीं करेगा।3

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग से दिल्ली में सार्वजनिक मुलाकात की और अपने डिजीटल इंडिया कार्यक्रम के बारे में चर्चा की।4 संचार एवं सूचना प्रद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को फेसबुक के साथ मिलकर फेसबुक की परियोजनाओं पर गंभीरता से काम करने के निर्देश दिए।

नई सरकार बनने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने सभी मंत्रियों को सोशल मीडिया के जरिये लोगों से सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए कहा है। मंत्रालयों को सोशल मीडिया पर एकांउट खोलने और उस पर लोगों से जुड़ने तथा उनके सवालों के जवाब देने को कहा गया। संसद में सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने बताया कि मंत्रालय के अंतर्गत ‘न्यू मीडिया विंग’ खोला गया है और सभी मंत्रालयों\विभागों को सोशल मीडिया पर सक्रियता के लिए इसका इस्तेमाल करने को कहा गया है। 11 जुलाई 2014 को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में सभी मंत्रालयों के अधिकारियों का सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।5

यह घटनाएं भारत में मीडिया के स्तर पर बदलती नीति की तरफ इशारा करती हैं। नीतियों में यह बदलाव केवल सरकार के स्तर पर लिया गया फैसला नहीं है, बल्कि एक नए माध्यम के तौर पर सोशल मीडिया को स्थापित करने का यह राजनीतिक फैसला है। राजनीतिक तौर पर वर्चस्व कायम रखना और समय के अनुसार माध्यम का चुनाव एवं उसका विस्तार एक दूसरे से जुड़े होते हैं।

सोशल मीडिया का प्रसार और भारत के मतदाता

भारत में इंटरनेट की पहुंच

क्रम संख्या(लगभग) प्रतिशत
1 भारत की जनसंख्या 1,270,000,000 100
2 कुल इंटरनेट उपभोक्ता 243,199,000 19
3 सोशल मीडिया के सक्रिय प्रयोगकर्ता 106,000,000 8
4 सक्रिय मोबाइल उपभोक्ता 886,300,000 70
5 सक्रिय मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ता 185,000,000 15
6 सक्रिय मोबाइल सोशल मीडिया प्रयोगकर्ता 92,000,000 7

भारत के गांवों में इंटरनेट की पहुंच

क्रम संख्या (लगभग) प्रतिशत
1 भारत की जनसंख्या 1,270,000,000 100
2 कुल ग्रामीण जनसंख्या 889,000,000 69
3 कुल ग्रामीण इंटरनेट उपभोक्ता 68,000,000 5.4
4 सक्रिय ग्रामीण इंटरनेट उपभोक्ता 46,000,000 3.6
5 सक्रिय ग्रामीण मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ता 21,000,000 1.6

स्रोत: i-Cube report ‘Internet in Rural India’ by the Internet and Mobile Association of India (IAMAI) and IMRB, July 2013

संसदीय लोकतंत्र का ढांचा मतदाताओं से जुड़कर तैयार होता है। लोकतंत्र में मताधिकार ही सत्ता की दिशा तय करते हैं। भारत को दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र के रूप में प्रचारित किया गया है। भारत में 14वीं लोकसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग ने 81,45,91,184 मतदाताओं को सूचीबद्ध किया। चुनाव के दौरान ये मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल व प्रतिनिधि को सत्ता सौंपते हैं। समझा जाता है कि मतदाता उस व्यक्ति या दल को चुनता है जो उनके हित में काम करे। इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिये चुनी गई सरकारों से उम्मीद की जाती है कि वो देश सभी जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र के लोगों से बिना किसी भेदभाव के उनके कल्याण के लिए काम करेगी। इससे मजबूत लोकतंत्र के निर्माण की उम्मीद बंधती है।

भारत में सोशल मीडिया व इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से यहां के मतदाताओं के बारे में कोई साफ-साफ नजरिया बनाने में मदद नहीं मिलती है। भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का चरित्र वर्चस्ववादी है। इसमें शहरी, युवा और पुरुष वर्चस्व साफ-साफ देखा जा सकता है। बहुसंख्यक ग्रामीण और अन्य आयु वर्गों की आबादी इस मीडिया का इस्तेमाल करने वालों के दायरे से बाहर हैं। इसे तालिका में दिए गए आंकड़ों के जरिये समझा जा सकता है।

भारत में मोबाइल व इंटरनेट के जरिये सोशल मीडिया की पहुंच तेजी से बढ़ रही है, लेकिन अभी भी बहुत बड़ी आबादी इस माध्यम से दूर है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक 24.3 करोड़ लोग यानि करीब 19 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ता हैं, जिसमें करीब 10.6 करोड़ लोग सक्रिय उपभोक्ता हैं। यह भारत की आबादी का महज 8 फीसदी हिस्सा है। मोबाइल की पहुंच भारत की 70 फीसदी आबादी तक है लेकिन मोबाइल पर सक्रिय रूप से इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या महज 15 फीसदी है, और जब मोबाइल पर सक्रिय रूप से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की बात आती है तो यह संख्या और कम होकर केवल 7 फीसदी रह जाती है। ब्रॉडबैंड की पहुंच भारत में 4.9 फीसदी लोगों तक है।

भारत में अभी भी 69 फीसदी आबादी यानि 88.90 करोड़ लोग गांवों में रहते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के गांवों में 5.9 करोड़ लोग ने अपने जीवन में कम से कम एक बार इंटरनेट का इस्तेमाल किया है। 4.9 करोड़ लोगों ही सक्रिय रूप से इंटनरेट का इस्तेमाल करने वाले हैं।6 एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक केवल 19 प्रतिशत ग्रामीण घरों में व 12 प्रतिशत के मोबाइल में इंटरनेट की पहुंच है। बाकी कुल ग्रामीण आबादी के आधे से ज्यादा लोगों (54%) को इंटरनेट तक पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर तक चलकर साइबर कैफे जाना पड़ता है। ग्रामीण पृष्टभूमि के इंटरनेट उपभोक्ता इसका इस्तेमाल मुख्यतः मनोरंजन (75%), संचार (56%), ऑनलाइन सेवाओं(50%), ई-कॉमर्स (34%), सोशल नेटवर्किंग (39%),ऑनलाइन वित्तिय लेनदेन (13%), ग्रामीण जरूरतों (16%) के लिए करते हैं।7 ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के लिए भाषा एक बड़ी रुकावट के रूप में देखी गई है। ऐसे इलाकों के ज्यादातर उपभोक्ता इंटरनेट का इस्तेमाल करते समय किसी ना किसी की मदद लेते हैं।

लोकतंत्र और संचार-प्रचार का रिश्ता
लोकतांत्रिक प्रणाली में सरकार और आम लोगों के बीच संवाद कायम रखने के लिए संचार और जनसंचार माध्यमों की जरूरत होती है। प्रशासन में लोगों से संचार का मकसद उनकी जरूरत के अनुरूप नीतियों का निर्माण और नीतियों/योजनाओं के प्रति आकर्षित करना होता है। विकासशील देशों में आम जन और सरकार के बीच संचार किस तरह से हो इस पर पहले काफी बहस हो चुकी है। भारत में आजादी के बाद संचार के महत्व पर काफी विमर्श हुआ। प्रसिद्ध संचारक व समाजशास्त्री पी.सी. जोशी ने अपने एक भाषण में कहा है कि “जीवन के हर क्षेत्र में सूचना अहम जानकारी होती है, जैसे कि उत्पादन, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, नियंत्रित पुनर्उत्पादन और बाल कल्याण आदि-आदि में। आम जनता की इस अहम जरूरत को कई बार छद्म संचारक, बिचौलिये और मध्यस्थ द्वारा पूरा किया जाता है जो कई बार इस स्थिति का फायदा उठाते हैं और अपने हितों के लिए उनका शोषण करते हैं। संचार की कमी की वजह से गरीबों के लिए विकास पर खर्च किए जाने वाले धन और संसाधनों का बंदरबाट होता है।… संचार को सामाजिक न्याय और मानव जीवन को समृद्ध करने वाले राष्ट्रीय विकास को प्रोत्साहित करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।”8

दुनिया में संचार के क्षेत्र में असमानताओं का अध्ययन करने के लिए यूनेस्को द्वारा गठित मैकब्राइड कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में आम आदमी के लिए संचार की जरूरत पर बल दिया गया है। “संचार का अधिकार, बुनियादी इंसानी हक के रूप में उभरा है। जिसका मतलब है कि लोगों के पास मौका है कि वो संचार नीति को प्रभावित कर सकें। एक बड़े और विविधतापूर्ण देश में संचार व्यवस्था को जवाबदेह और जिम्मेदार व्यवस्था को तौर पर काम करना चाहिए। इसमें इतनी जगह हो कि जहां समाज के हर तबके के लोग अपनी जरूरतें और बातें रचनात्मक लोगों के सामने रख सकें और नीति और कार्यक्रम बनाने में योगदान कर सकें।”9

आजादी के बाद सरकार चलाने वालों ने दो तरह के संचार माध्यमों का प्रयोग किया। इसमें आम जनता के बीच प्रचार के लिए पारंपरिक माध्यमों पर जोर दिया गया।10 जबकि समाज के ऊपरी तबके से संवाद व संचार के लिए उन माध्यमों का इस्तेमाल किया गया जो उस वक्त के प्रभावशाली माध्यम थे, मसलन अखबार व रेडियो। समाज के प्रभावशाली तबके के बीच संचार की सामग्री आम जन के बीच प्रचार की सामग्री से अलग होती है। प्रभावशाली तबके को केवल यह बताना होता है कि सरकार क्या-क्या कर रही है, जबकि आम लोगों के बीच योजनाओं की सूचना देना मुख्य मकसद होता है। प्रभावशाली तबका जनमत निर्माण में अहम भूमिका अदा करता है, इसलिए सत्ता का जोर उसे अपनी तरफ रखना होता है। सरकार और राजनीतिक दल उस तबके के बीच इस्तेमाल किए जाने वाले माध्यमों में ज्यादा से ज्यादा अपनी मौजूदगी चाहते हैं। आमतौर पर ऐसा जोर आम जनता के बीच प्रचार पाने के लिए नहीं दिखाई देता।

भारत में सत्ता की कमान संभालने वाले विभिन्न नेताओं ने समय-समय पर प्रचार माध्यमों और मीडिया के जनोन्मुख होने पर जोर दिया है। इसका एक अर्थ मीडिया में सरकार की खबरों को ज्यादा से ज्यादा जगह देना भी रहा है। इंदिरा गांधी ने 1971 के अपने एक भाषण में कहा कि “करीब तीन-चार वर्ष पहले एक जलसे में मैंने कहा था कि एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि समाचार-पत्रों में केवल पांच प्रतिशत स्थान विकास संबंधी समाचारों को दिया जाता है। कल फिर मेरे सामने यही वाक्य दोहराया गया और मैंने कहा कि निश्चित ही आप मेरे पुराने वक्तव्य के बारे में कह रहे हैं। उन्होंने कहा, नहीं। यह हाल के सर्वेक्षण के अनुसार है। इससे पता चलता है कि इन सालों में विकास संबंधी समाचारों को दिए जाने वाले स्थान के प्रतिशत में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।”11

नेताओं की तरह संचारविदों ने भी विकास संबंधी खबरों के प्रकाशन/प्रसारण पर जो दिया है लेकिन उनका मकसद केवल उन माध्यमों में ऐसी खबरों के प्रसार से नहीं रहा है जो एक खास तबके की पहुंच तक सीमित हों। पी.सी जोशी के अनुसार, “आजादी के बाद हमारे कई सारे गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों की असफलता की वजह यही रही है कि वो गरीबों से वैसा कोई संबंध कायम नहीं कर सकी।”12 इस दौर में भी गरीब और विकास की खबरों को गरीब या जरूरतमंद तक पहुंचाने की बजाय उसके मीडिया में दिखते रहने की मांग ज्यादा है। यह मांग सत्ता की विश्वसनीयता को बनाए रखने के मकसद से होता है, ना कि उस गरीब या जरूरतमंद को खबर देने के लिए जो ना तो अखबार खरीद सकता है, ना रेडियो, टीवी, मोबाइल या इंटरनेट की उस तक पहुंच है। सत्ता इसीलिए उस तरह के संचार माध्यमों के विकास पर ज्यादा जोर देती है जो समाज के ऊपरी तबके के बीच उसका संदेश पहुंचा दे। उस तबके में अक्सर समाज में मुख्य किरदार व मुखिया जैसे लोग होते हैं जिनका कि एक दायरे में लोगों पर अपना प्रभाव रहता है। अमेरिकी समाजशास्त्री और संचारविद पॉल एफ. लेजर्सफेल्ड (1940) ने अमेरिकी मतदाताओं पर जनसंचार माध्यमों के प्रभाव का अध्ययन करने के बाद ‘ओपीनियन लीडर’ की अवधारणा रखी, जिसमें कहा गया कि ‘जनसंचार माध्यम पहले ओपिनियन लीडर तक पहुंचते हैं।’ ओपिनियन लीडर जिस तरह से उस बात को ग्रहण करता वो अपने दायरे में उसे उस तरह से प्रस्तुत करता है।13 विल्बर श्रेम ने भी अपनी पुस्तक ‘द प्रोसेस एंड इफेक्ट्स ऑफ मास कम्युनिकेशन’ में ‘हाउ कम्युनिकेशन वर्क्स’ शीर्षक से जनंसचार के मॉडल को रखा। इसमें कहा गया कि मीडिया संगठनों से खबरें पहले ‘इंटरप्रेटर’ यानि व्याख्याकार के पास जाती है, और वहां से उसके दायरे में आने वाले लोगों की श्रृंखला में खबर फैलती चली जाती है।14 उन्होंने लोगों की इस श्रृंखला को ‘मास ऑडियंस’ नाम दिया। मीडिया संगठन सीधे ‘जनमानस’ (श्रेम का ‘मास ऑडियंस’) से संवाद नहीं करते बल्कि वो व्याख्याकार के जरिये लोगों तक पहुंचते हैं। ये व्याख्याकर वही होगा जो मीडिया के संपर्क में रहता हो। इस अध्ययन में जिस प्रभावशाली तबके का जिक्र किया जा रहा है वो वही है जिसे लेजर्सफेल्ड ने ‘ओपिनियन लीडर’ और श्रेम ने ‘इंटरप्रेटर’ कहा है। यह समाज का वो हिस्सा है जो जनमत निर्माण में भूमिका अदा करता है, जो कि मीडिया माध्यमों के जरिये मिलने वाली सूचना को एक समूह के बीच ले जाता है। ऐसे लोगों में गांव का एक मुखिया, पंच, किसी पार्टी का नेता, कार्यकर्ता, सरकारी कर्मचारी से लेकर परिवार के मुखिया, पुरुष और पढ़े-लिखे लोग तक शामिल हैं। सत्ता के प्रचार और संचार तंत्र का पूरा जोर इस तबके से संवाद तक ही होता है।

गुड गवर्नेंस और सोशल मीडिया
सोशल मीडिया के जरिये गुड गवर्नेंस यानि की बेहतर प्रशासन के रिश्ते को स्थापित करने की कोशिश दिखती है। ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट के प्रो. विलियम एच. डटन सोशल मीडिया को ‘फिफ्थ इस्टेट’ यानि लोकतंत्र के पांचवें खंभे के तौर पर देखते हैं।15 गुड गवर्नेंस के लिए राज्य सरकारें और वहां के विभाग तेजी से खुद को सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सक्रिय कर रहे हैं। कहा ये जा रहा है कि इससे सरकारी विभाग जनता तक सीधे पहुंच सकेंगे और लोग भी उस विभाग से संबंधित अपनी समस्याएं सीधे सरकारी अधिकारियों तक पहुंचा सकेंगे। इससे भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगी। सोशल मीडिया को ‘गुड गवर्नेंस’ के माध्यम के तौर पर पेश किया जा रहा है। इन दिनों ऐसी कई सारी खबरें देखने-पढ़ने-सुनने को मिल रही हैं जिनका सार इस तरह का होता है कि फलां विभाग अब सोशल मीडिया पर सक्रिय है और वहां लोग अपनी समस्याएं रख रहे हैं, भ्रष्ट अधिकारियों की पोल खुल रही है, भ्रष्टाचार की शिकायत करना आसान हो गया है आदि। कुछ खबरों के शीर्षक से इसे समझा जा सकता है – “जनता के सवालों का ‘बाबूओं’ को तुरंत देना होगा जवाब”16 , “फेसबुक पर करें दिल्ली में राशन के लिए शिकायत”17 , “अमूल और कस्टमर के बीच सोशल मीडिया पर वॉर”18, “तेल कंपनियों की सोशल साइट पर की जा सकेगी शिकायत”19, “मंत्रालय का निर्देश, रेलवे पर भी सोशल मीडिया का असर, फेसबुक पर दौड़ी”20, “सरकारी अमले को सोशल मीडिया पर आने के निर्देश”21

सत्ता, प्रभावशाली तबके के बीच बदलती संचार तकनीक को बढ़ावा देती है और उसके जरिये संवाद करना शुरू कर देती है। सत्ता जिस तकनीक को चुनती है, वो तकनीक ज्यादा तेजी से प्रसार पाती है। भारत में सोशल मीडिया के प्रसार को भी इसी रूप में देखा जा सकता है। सोशल मीडिया की पहुंच भारत में 10 फीसदी लोगों तक है और यहां तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया को 10 साल से ज्यादा का समय नहीं लगा। सोशल मीडिया ने जितनी तेजी से यह प्रसार हासिल किया है वो केवल इस माध्यम का लोगों के बीच स्वीकार्यता या पहुंच की वजह से नहीं है। मीडिया माध्यम को विकास करने के लिए उपयुक्त माहौल की जरूरत होती है। राष्ट्रीय व्यवस्था में किसी भी माध्यम के विकास के लिए माहौल सत्ता द्वारा तैयार किया जाता है। पिछले 10 सालों में सत्ता और उसके राजनीतिक वर्ग ने सोशल मीडिया को अपने नए माध्यम के तौर पर बढ़ावा देना शुरू किया है।

सवाल है कि क्या लोकतंत्र का आधार इस तरह की व्यवस्था हो सकती है जिसके बारे में समाज के एक बड़े तबके की कोई समझ ही ना हो या उस तक पहुंच ही ना हो? सोशल मीडिया के बारे में, जो भारत में 19 प्रतिशत लोगों तक पहुंचता है और जिसमें आधे से कम लोग उसमें सक्रिय रूप से हिस्सेदारी करते हैं, सरकार और शासन व्यवस्था की यह समझदारी कि वो इसके जरिये लोगों तक पहुंचेगी, क्या यह महज लोगों को भ्रम में रखने के लिए है? क्या यह समाज के उन थोड़े से लोगों तक पहुंच बनाकर, व्यापक समाज में वैधता पाने और सोशल मीडिया के दायरे से वंचित लोगों को वंचित रखने की कोशिश है? अगर सरकार या उसके मंत्रालय के पास लोगों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया को माध्यम के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तो इसका साफ सा अर्थ है कि जो लोग सोशल मीडिया के दायरे से बाहर हैं वो सरकार द्वारा सोशल मीडिया के जरिये दी जा रही सुविधाओं या सूचनाओं से मरहूम (वंचित) रह जाएंगे। मरहूम रह जाने का एहसास, एक बाजार तैयार करता है। जिसे ‘गुड गर्वनेंस’ कहा जा रहा है वो उन थोड़े से लोगों के लिए ही रह जाता है जो सोशल मीडिया या इंटरनेट के जरिये उस तक पहुंच पाते हैं। सोशल मीडिया व नेटवर्किंग साइटों पर होने वाली बहसों व चर्चाओं के जरिये समझा जा सकता है आखिर इसके दायरे में कौन से मुद्दे प्रमुख होते हैं।

सोशल मीडिया की बहसें
सोशल मीडिया पर होने वाली बहसें समाज के एक छोटे से हिस्से से जुड़ी होती हैं।कई बार तो बेहद छोटे से हिस्से के मनोरंजन से जुड़ी होती है। भारत में सर्वाधिक चर्चित सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म फेसबुक और ट्विटर के ट्रेंड के अध्ययन से इस बात को समझा जा सकता है। (देखें उपरोक्त तालिका) फेसबुक और ट्विटर पर बहसों के ज्यादातर विषय फिल्में, फिल्मों के अभिनेता-अभिनेत्री, खेल, टेक्नोलॉजी या कुछ तात्कालिक चर्चित राजनीतिक घटनाक्रम रहते हैं। हालांकि इसे सोशल मीडिया नाम दिया गया है लेकिन इसमें कहीं भी सोसाइटी का व्यापक तौर पर या आम समाज का प्रतिनिधित्व नहीं दिखाई देता। बल्कि इस तरह के माध्यमों पर होने वाली बहसें अन्य माध्यमों में भी इस कदर हावी रहती हैं कि वहां जो स्थान आम खबरों को मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाता। इससे ये स्पष्ट होता है कि एक समय में वर्चस्व रखने वाला मीडिया दूसरे माध्यमों या अपेक्षाकृत पुरानी तकनीक पर आधारित मीडिया को अपने प्रभाव की गिरफ्त में रखता है। सोशल मीडिया का दबाव इस तरह से है कि आज जो ट्विटर या फेसबुक ट्रेंड है वो टीवी चैनलों और कल के अखबारों की सुर्खियों का हिस्सा होते हैं। टीवी या अखबारों की सुर्खियां भी फेसबुक व ट्विटर पर नजर आती हैं लेकिन वो ‘ट्रेंड सेटर’ नहीं बन पातीं। ट्रेंड सोशल मीडिया ‘सेट’ (तय) कर रहा है और बाकी उसके ‘फालोवर’(पीछे लगने वाले) हैं। अगर ये फालोवर नहीं होंगे तो इन्हें “आउट डेटेड” (बाजार से बाहर) होने का खतरा उठाना पड़ेगा। संचार के परंपरागत माध्यमों को हम उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं जो अब “आउट डेटेड” हो चुके हैं। ऐतिहासिक रूप से परंपरागत माध्यमों की पहुंच किसी भी संचार तकनीक में सबसे ज्यादा रही है।

दुनिया भर के गुलाम मानसिकता वाले देशों में सत्ता संस्थान या राजनीति के संवाद और संचार का माध्यम कभी भी वो भाषा या संचार तकनीक नहीं रही है जो व्यापक जनता द्वारा बोली या इस्तेमाल की जाती है। वर्चस्वशाली सत्ता हमेशा अलग बोली-भाषा में काम करती है। अफ्रीकी साहित्यकार न्गुगी वा थ्यंगो इसे इस रूप में अभिव्यक्त करते हैं कि “आबादी का एक बहुमत केंद्रीय सत्ता से इसलिए वंचित कर दिया जाता है क्योंकि सत्ता की भाषा पर उसे महारत हासिल नहीं है।”22 परंपरागत संचार माध्यमों के अलावा अन्य माध्यम जिस तक लोगों की पहुंच सुगम होती जाती है, सत्ता उसे छोड़कर नई संचार तकनीक अपना लेती है। इस तरह से समाज में वर्ग आधारित व्यवस्था को बरकार रखने में मदद मिलती है।

नवंबर, 2014 के पहले 6 दिनों में फेसबुक पर हुई बहसों के 10 प्रमुख विषय

क्रम 1 नव. , 2014 2 नव. , 2014 3 नव., 2014 4 नव., 2014 5 नव., 2014 6 नव., 2014
1 बोको हराम – नाइजीरिया का आतंकवादी संगठन जिसने 200 लड़कियों को अगवा किया था जे.के.रॉलिंग- ‘हैरी पॉटर’ कहानियों की नई श्रृंखला हॉलीवुड अभिनेता टॉम क्रूज फिल्म ‘मिशन इंपॉसिब्ल-5’ में अपना स्टंट खुद करेंगे दिल्ली हाईकोर्ट के जज का रेप पर फैसले में दिए बयान पर विवाद टीवी अभिनेता पुनीत इस्सर, कलर चैनल पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ‘बिग बॉस’ के घर से बाहर किए गए जियोमी- चाइनीज सॉफ्टवेयर कंपनी टेलीविजन कंटेंट में 1 बिलियन डॉलर निवेश करेगी
2 प्रोजेक्ट आरा – गूगल द्वारा स्मार्टफोन के हार्डवेयर में बदलाव को सक्षम बनाने वाली तकनीक का वीडियो रॉबर्ट वाड्रा – जमीन खरीद के सवाल पर पत्रकार से बदतमीजी किल दिल – फिल्म और परिनिति चोपड़ा अभिनेत्री मिनियोस – अगली फिल्म ‘डेस्पीकेबल मी’ के ट्रेलर में द पाइरेट बे- के तीसरे संस्थापक फेडरिक नेइज थाइलैंड में पकड़े गए पंजाब, पाकिस्तान- ईसाई जोड़े को जिंदा जलाया
3 मलेशियाई एयरलाइंस फ्लाइट 370 – गायब हुए जहाज के परिजनों द्वारा मलेशिया सरकार के खिलाफ अनदेखी की याचिका रजनीकांत – तमिल फिल्म लिंगा में दिखेंगे मौत के अधिकार की मांग करने वाली गंभीर रूप से बीमार महिला ब्रिटानी मायनोर्ड की मौत एंड्रॉयड लॉलीपॉप – गूगल का नया मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम यूएस डॉलर – येन और यूरो के मुकाबले रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा गूगल ड्राइव – गूगल ने क्रोम ब्राउजर का विस्तार किया
4 आईएसआईएस – 40 से अधिक लोगों की हत्या फ्यूरियस 7 – फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर की मौत सॉफ्ट बैंक टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी ने भारतीय मीडिया निवेश किया स्कूपहूप शुरू किया मुहर्रम – इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना शुरू ब्लादिमिर पुतीन- फोर्ब्स ने दूसरे साल भी उन्हें दुनिया के सबसे ताकतवर नेता की श्रेणी में रखा
5 माइक टाइसन – बचपन में हुए यौन उत्पीड़न का खुलासा परिनिती चोपड़ा- फिल्म किल दिल के गाने नखरीले में नजर आएंगी रजनीकांत – तमिल फिल्म लिंगा में दिखेंगे स्टीव जॉब्स- रूस ने सेंट पीटसबर्ग से स्टीव जॉब्स का प्रतीक हटाया क्रिकेटर विराट कोहली का जन्मदिन, अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के शामिल होने की खबर बॉलीवुड- अदालत ने महिलाओं को मेकअप कलाकार बनने पर रोक को अवैध बताया
6 बांबे स्टॉक एक्सचेंज 82,000 के पार पहुंचा यूएस ग्रांड प्रिक्स – निको रोसबर्ग ने बॉयकॉट की धमकी दी वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर फिर से खुला द पाइरेट बे- फाइल शेयरिंग साइट के को-फाउंडर गोटरिड वार्ग को हैकिंग के लिए 42 महीने की जेल धूम 3- फिल्म के 138 दृश्यों में गलती दिखाने वाला वीडियो क्रिस्टियानो रोनाल्डो- तीन बार गोल्डेन बूट पाने वाले फुटबॉल खिलाड़ी
7 ऑटोडेस्क – सॉफ्टवेयर कंपनी जिसने 3डी प्रिंटर के लिए 100 मिलियन का निवेश किया है काजीरंगा नेशनल पार्क- मानसून के बाद फिर खुला सचिन तेंदुलकर आस्ट्रेलिया के ब्रेडमैन हॉल ऑफ फेम में शामिल हॉलीवुड अभिनेता टॉम क्रूज फिल्म ‘मिशन इंपॉसिब्ल-5’ में अपना स्टंट खुद करेंगे लीवरपूल एफ.सी.- फुटबॉल क्लब, चैंपियन लीग का मैच धूम 3- फिल्म के 138 दृश्यों में गलती दिखाने वाला वीडियो
8 रजनीकांत – तमिल फिल्म लिंगा में दिखेंगे वसीम अकरम – कॉमेडी नाइट्स विद कपिल के शौकीन्स एपिसोड में मिसबाह उल हक ने 56 गेंदों पर टेस्ट शतक का रिकॉर्ड बनाया रजनीकांत – तमिल फिल्म लिंगा में दिखेंगे जेम्स एंडरस- इंग्लैंड टीम के गेंदबाज जो श्रीलंका के खिलाफ मैच में चोट के कारण नहीं खेल पाएंगे कार्तिक पूर्णिमा – देश भर के श्रद्धालुओं ने बिहार की नदी में डुबकी लगाई
9 गैरी संधु- भांगड़ा म्युजिसियन का नया एलबम ‘फ्रेश ऑल द वे’ बांबे स्टॉक एक्सचेंज 82,000 पर स्थिर सिद्धारमैय्या ने बंगलुरु के स्कूलों को यौन उत्पीड़न के खिलाफ चेतावनी दी मुहर्रम – इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना शुरू राष्ट्रीय जनता दल- झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राजद के एक दूसरे के मौजूदा विधायकों का समर्थन करने का प्रस्ताव खारिज किया यूएस नेवी सील- एक कमांडो के पिता ने दावा किया कि उनके बेटे ने बिन लादेन को आखिरी गोली मारी
10 1984 सिख विरोधी दंगे- 30 साल पूरे होने पर न्याय की मांग भारत बनाम श्रीलंका का एकदिवसीय मैच नजीब जंग- दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने दिल्ली में सरकार गठन के लिए पार्टियों के बुलाया मेलबॉर्न कप- दौड़ के बाद दो घोड़ों की मौत आंग सान सू की- पहली चीन यात्रा अगले महीने मुहर्रम – इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना शुरू

नवंबर के पहले 6 दिन ट्विटर पर सबसे ज्यादा चर्चित रहे 10 ट्रेंड

क्रम 1 नव., 2014 2 नव., 2014 3 नव., 2014 4 नव., 2014 5 नव., 2014 6 नव., 2014
1 ·         #OpenYourLegs – हिंदू दक्षिणपंथी लोगों के एक समूह ने कुछ महिलाओं पर टिप्पणी के लिए इस हैशटैग का इस्तेमाल किया #LostInPleasurePromoted by MagnumIND – एक आइसक्रीम कंपनी का ट्विटर पर प्रचार अभियान #Kaththihitsfastest100cr – तमिल फिल्म कथथि के 100 करोड़ कमाने पर #AllNewAltoK10Promoted by AltoK10 मारुति आल्टो की नई कार का मॉडल ट्विटर पर प्रचार #LiarRajdeep – पत्रकार राजदीप सरदेसाई का बयान कि ‘मैं कभी भी मोदी विरोधी नहीं रहा’ पर टिप्पणियां #VibeUpMyLifePromoted by Lenovo India – लेनेवो का प्रचार अभियान
2 #3BestFriends – आपके 3 गहरे दोस्त #YesWeAreSerious – रॉबर्ट वाड्रा की एक टिप्पणी आर यू सीरियस के जवाब में #LGGetsAnIdea – दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर पर टिप्पणी #CleanPolitics – राजनीतिक दल आप का ट्विटर पर अभियान #IsSwamyRight – टाइम्स नाउ पर अर्नब गोस्वामी के कार्यक्रम में सुब्रमण्य स्वामी #CheatingCleanIndia – स्वच्छ भारत अभियान में धोखा
3 #RG4CongPresident – राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की मांग #AHealthyMind – अभिनेता आमिर खान के टीवी कार्यक्रम सत्यमेव जयते में स्वस्थ दिमाग पर चर्चा #MyAasai – तमिल फिल्म #CHEvATK भारत में फुटबॉल प्रिमियर लीग की दो टीमों के बीच मुकाबला #PlayingItMyWayLaunch – सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा पर आधारित किताब के बाजार में आने पर #BanMIM – महाराष्ट्र चुनाव में दो सीट जीतने वाले राजनीतिक दल एमआईएम पर प्रतिबंध की मांग
4 #lingaateaser- रजनीकांत की नई फिल्म लिंगा पर चर्चा #IndvsSL – भारत और श्रीलंका के बीच क्रिकेट मैच #BajrangiBhaijaanBegins – अभिनेता सलमान खान की आने वाली फिल्म #PentagonNailsPak – अमेरिकी एजेंसी पेंटागन की रिपोर्ट #HappyBirthdayVirat – क्रिकेटर विराट कोहली का जन्मदिन #BJPKiMCDLoot – आप का अभियान
5 #AFCvBFC – आर्सेनल और बर्नले फुटबॉल क्लब के बीच मैच #2yearsoflittlethings- इंग्लैंड के एक बैंड वन डाइरेक्शन का दो साल पहले आए एक गाने के बोल #RebellionHitsCong – कांग्रेस से अलग हुए नेता #Mahesh21Begins – तेलगू फिल्मों के हीरो महेश बाबू के बारे में #AUSvSA – ऑस्ट्रेलिया बनाम दक्षिण अफ्रीका का क्रिकेट मैच #FOURTAKEOVER – इंग्लिश बैंड वन डाइरेक्शन का नया एलबम फोर
6 Wasim Akram – पाकिस्तानी क्रिकेटर #MCIMUN – अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल क्लब के मैच GK Vasan – कांग्रेस से अलग हुए तमिलनाडु के नेता #ILiveNaturally – कंपनियों का प्रचार अभियान Sachin – पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर #ElementaryOnAXN  – अमेरिकी अपराध धारावाहिक जिसका भारत में एएक्सएन पर प्रसारण
7 Sanchez – चीली का फुटबॉलर जो आर्सेनल क्लब  की तरफ से खेलता है Wagah – भारत-पाकिस्तान की सीमा Congress – राजनीतिक दल Greg Chappell – पूर्व भारतीय क्रिकेट कोच Delhi – दिल्ली की राजनीति पर Happy Gurupurab – गुरुनानक जयंती
8 Theo – आर्सेनल फुटबॉल क्लब का खिलाड़ी Smalling – फुटबॉल क्लब मैन्चेस्टर यूनाइटेड का खिलाड़ी Gautam – टीवी चैनल कलर्स के कार्यक्रम बिगबॉस में एक हिस्सेदार Delhi – दिल्ली की राजनीति पर Modi – भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Ready for ANOTHER – अगले फुटबॉल मैच के बारे में
9 Rodgers – टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर Vadra – रॉबर्ट वाड्रा Karishma – टीवी चैनल कलर्स के कार्यक्रम बिगबॉस में एक हिस्सेदार Samsung Galaxy Grand 2 – सैमसंग का नया मोबाइल फोन Arnab – टाइम्स नाउ चैनल के पत्रकार अर्नब गोस्वामी The Prestige – इंग्लिश फिल्म
10 Santi – फुटबॉल खिलाड़ी Rojo – फुटबॉल क्लब मैन्चेस्टर यूनाइटेड का खिलाड़ी Modi – भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी Satish Upadhyay – भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष Mumbai – मुंबई Axar Patel – भारत की क्रिकेट टीम का नया खिलाड़ी अक्षर पटेल

फेसबुक और ट्विटर के टॉप-10 ट्रेंड 1-6 नवंबर, 2014 के दौरान शाम 7 से रात 11 बजे के बीच लिए गए।

संदर्भ
1. हरबर्ट आई.शीलर, “संचार माध्यम और सांस्कृतिक वर्चस्व”, ग्रंथ शिल्पी, पेज 86-87
2. http://timesofindia.indiatimes.com/india/Enlarge-access-to-media-Editors-Guild-tells-govt/articleshow/43269550.cms (अंतिम दर्शन 22 नवम्बर 2014)
3. http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/09/140925_modi_indian_media_analysis_aakar_patel_tk(अंतिम दर्शन 22 नवम्बर 2014)
4. http://khabar.ndtv.com/news/business/in-a-suit-meeting-pm-modi-mark-zuckerbergs-status-update-677713 (अंतिम दर्शन 22 नवम्बर 2014)
5. देखें संसद की कार्यवाही में श्री बैजयंत जय पांडा के अतारांकित प्रश्न संख्या 2889 के जवाब में, 30 जुलाई 2014
6. Social Media Users & Usage in India 2014, Status Quo Report, Report Published by eStatsIndia.com, December 2013
7. Internet in rural India, Report by IMRB, June 2012
8. पी.सी.जोशी, संचार और राष्ट्र निर्माणः नजरिया और नीति, भाग 1, जन मीडिया अंक 30 सितं. 2014
9. ‘मेनी वॉयसेज, वन वर्ल्ड’, मैकब्राइड कमीशन की रिपोर्ट (1982), यूनेस्को
10. विभिन्न सरकारी योजनाओं और साक्षरता, परिवार नियोजन, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए पारंपरिक माध्यम जैसे कि दीवार लेखन, गांव-गांव में नुक्कड़ सभाएं, नौटंकी, डुगडुगी, मेले के जरिये प्रचार किया गया।
11. यूएनआई के 10वें स्थापना दिवस समारोह में, 4 मई,1971, ‘प्रगति की ओर’, इंदिरा गांधी के भाषण का संग्रह, अगस्त, 1969 से अगस्त 1972, प्रकाशन विभाग
12. पी.सी.जोशी, संचार और राष्ट्र निर्माणः नजरिया और नीति, भाग 2, जन मीडिया अंक 33 दिसं. 2014
13. विष्णु राजगढ़िया, जनसंचारः सिद्धांत व अनुप्रयोग, राजकमल प्रकाशन दिल्ली,
14. वही
15. Professor William H. Dutton, The Concept of a Fifth Estate, Oxford Internet Institute, http://www.oii.ox.ac.uk/research/projects/?id=57
16. http://www.bhaskar.com/article/UT-DEL-NEW-government-office-facilities-4677454-NOR.html
17. http://www.punjabkesari.in/news/article-304251
18. http://www.punjabkesari.in/news/article-296229
19. http://www.bhaskar.com/news-crh/UT-DEL-NEW-MAT-latest-new-delhi-news-022502-739890-NOR.html
20. http://khabar.ibnlive.in.com/news/96289/6/
21. http://test.peoplessamachar.co.in/index.php/bpl/47470-2014-06-08-21-02-45
22. भाषा का सच, सं. सपना चमड़िया/अवनीश, एमएसजी बुक्स, पेज 20

विजय प्रताप ने आईआईएमसी से पत्रकरिता का अध्ययन किया। मीडिया के शोधार्थी और मासिक शोध पत्रिका जन मीडिया / मास मीडिया के सहायक संपादक हैं।

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