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Saturday, March 25, 2023
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टीवी जर्नलिज्म : जरूरत से ज्यादा तथ्य या सूचनाएं मत भरिए

आलोक वर्मा।

एक अच्छी स्क्रिप्ट वही है जो तस्वीरों के साथ तालमेल बनाकर रखे। आपको ये बात तो पता ही होगी कि मानव मस्तिष्क का दांया हिस्सा तस्वीरों को रचता और गढ़ता है जबकि मस्तिष्क का बायां हिस्सा भाषा को संभालता है- दोनों मस्तिष्कों का सही संतुलन कायम रहना एक अच्छी स्क्रिप्ट में झलकता है, अगर तस्वीरों और शब्दों में तालमेल न बैठा तो लोग तस्वीरें ही देखते रहेंगे और आपका स्क्रिप्ट का कोई मोल नहीं होगा

क्या टीवी न्यूज की स्क्रिप्ट सोचे समझे तकनीकी तरीके से लिखी जाती है? क्या स्क्रिप्ट का ढांचा बनाने के लिए शब्दों और वाक्यों को किसी खास तरीके से गढऩा पड़ता है? इन दोनों सवालों का जवाब हां है। हर खबर को कड़ी दर कड़ी जोडक़र एक बड़े ढांचे में बदलना पड़ता है और खबर का ये ढांचा लिखने के लिए तकनीक आना जरूरी है।

कई बार खबर को सीधे तरीके से जैसे-जैसे जो-जो हुआ के अंदाज में लिखना पड़ता है पर कई बार खबर को थोड़ा इधर-उधर घुमाकर रोमांच के अंदाज में भी लिखना पड़ता है (ऐसा इसलिए कि खबर की रोचकता बनी रहे) आप खबर लिखते वक्त चंद बातों का ध्यान जरूर रखें-

• आप खबर सीधे-सीधे लिखें या रोमांच के अंदाज ये-ये जरूर ध्यान रखें कि खबर दर्शकों को बांधे रख पाए। कोशिश कीजिए कि आप अपनी स्क्रिप्ट से दर्शकों की भावनाओं को छूं पाएं।
• कोशिश कीजिए कि आप अपने आइडियाज को अपनी स्क्रिप्ट में किसी नए क्रिएटिव अंदाज में लिख सकें।
• स्क्रिप्ट का तेवर कुछ इस तरह का हो कि दर्शक भी उस स्टोरी से जुड़ा महसूस करें।
• स्क्रिप्ट का साथ देने वाले विजुअल्स भी अलग-अलग ढंग के हो।

ये बात हमेशा ध्यान रखिए
कि अगर आप अपने दर्शकों को अपनी स्टोरी से बांध नहीं सके और वे आपकी स्टोरी देखे बिना किसी और चैनल को देखने लगे तो!!!

तो वो स्टोरी करने का सारा ताम-झाम बेकार गया ही समझिए।

एक अहम बात और, और वो ये कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए खबर लिखना प्रिंट मीडिया के लिए खबर लिखने से बिलकुल अलग काम है। प्रिंट मीडिया के लिए खबर लिखते वक्त ऐसे कई फायदें हैं जो आपको इलेक्ट्रानिक मीडिया में नहीं मिलते। उदाहरण के लिए अखबार में लिखी खबर ठीक से न समझ पाने पर पाठक उस खबर को दोबारा पढक़र समझ सकता है अगर टीवी न्यूज में कोई वाक्य दर्शक समझा नहीं तो उस खबर का कोई मतलब ही नहीं बचा, दूसरा ये कि अगर दर्शक समझ नहीं पाया तो वो उसे समझने के लिए सोचने लगेगा और उसका ध्यान खबर से हट जाएगा। इससे आप समझ सकते हैं कि टीवी में स्क्रिप्ट कितनी महत्वपूर्ण है।

अखबार की स्क्रिप्ट में तमाम चीजें और भी होती हैं जो पाठक को खबर समझने में मदद करती हैं जैसे कि, अलग-अलग अध्याय, पैराग्राफ, सबहेडिंग या तिरछे लिखे शब्द। खबर पढ़ते वक्त पाठक इन चीजों की मदद से खबर को समझते चलते हैं पर जब आप टेलीविजन के लिए खबर लिखते हैं तो सारा मामला बदल जाता है।

टीवी न्यूज में स्क्रिप्ट ज्यादातर बोलचाल की भाषा में लिखी जाती है इसलिए लेखन में इस्तेमाल होने वाले फुल स्टॉप, कॉमा या इन्वरटेड कॉमा जैसी चीजों का कोई खास इस्तेमाल टीवी स्क्रिप्ट में नहीं होता। कॉमा का इस्तेमाल टीवी स्क्रिप्ट में अगर होता भी है तो बस ये बताने भर के लिए स्क्रिप्ट पढऩे वाले को वहां पर थोड़ा रुककर बोलना है। कई बार टीवी स्क्रिप्ट में आधे-अधूरे वाक्य भी लिख दिये जाते हैं- इस स्क्रिप्ट में ये ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि उसे बोला कैसे जाएगा बजाए इसके कि उसे पढ़ा कैसे जाएगा। इस तर की स्क्रिप्ट लिखने में व्याकरण के नियम कई बार तोड़-मरोड़ दिए जाते है। भाषा के विद्वान इस तोड़-मोड़ को भाषा से किया जा रहा खिलवाड़ कह सकते हैं पर टीवी स्क्रिप्ट का सच यही है कि उसमें व्याकरण की तकनीक से ज्यादा स्पष्टता और असर का महत्व ज्यादा है।

एक और चीज भी है जो पढ़ी जाने वाली स्क्रिप्ट और बोली जाने वाली स्क्रिप्ट को काफी अलग-अलग कर देती है। जब हम लिखी गई इबारत को पढ़ते हैं तो हमे कई शब्द एक साथ दिखाई देते हैं, कई वाक्य आप में जुडक़र एक विचार को पैदा करते है और पाठक के लिए अर्थ को समझ पाना आसान होता जाता है। इसके उलट जब दर्शक किसी स्क्रिप्ट को सुनता है तो वो सिर्फ एक-एक शब्द को सुनता है और उससे मायने समझने का प्रयास करता है।

दरअसल, ये शब्दों को पढक़र या सुनकर समझने की मनोवैज्ञानिक चर्चा है पर इस बात को समझना इसलिए जरूरी है कि इससे हमे प्रिंट और टेलीविजन की अलग-अलग लेखन तकनीक को समझने में मदद मिलती है।

किसी वाक्य के शुरूआती शब्द ही दिमाग पर पहला सीधा असर करते हैं, बाद के शब्द उस वाक्य या विचार को पूरा करने थर का काम ही करते हैं। अगर वाक्य जरूरत से ज्याद जटिल या लंबा है तो उसके अर्थ समझने में दिक्कते आ सकती हैं। हालांकि कई बार हुनरमंद लोग (नैरेटर) लंबे वाक्यों को भी इस अंदाज से पढ़ डालते हैं कि सारा का सारा अर्थ समझ में आ जाता है।

फिर भी मेरी सलाह यही रहेगी कि जरूरत से ज्यादा लंबे वाक्यों से बचें।

ब्राडकॉस्ट स्टाइल-ये क्या होता है?

ब्राडकॉस्ट स्टाइल को हम जबरदस्ती हिंदी में कोई नाम न देकर ब्राडकॉस्ट स्टाइल ही कहेंगे (वैसे इसका तर्जुमा ‘प्रसारण अंदाज’ होगा)।

टीवी में स्क्रिप्ट लिखने के अपने अलग तौर-तरीके है और टीवी स्क्रिप्ट लिखने के तौर-तरीकों को ही ब्राडकॉस्ट स्टाइल कहा जाता है।

ब्राडकॉस्ट स्टाइल से संबंधित कई बातें आप पिछले अध्यायों में पढ़ चुके हैं।

चंद बातें और-
टीवी स्क्रिप्ट में छोटे और सीधे सपाट वाक्यों में लिखना ज्यादा पसंद किया जाता है। गैरजरूरी शब्दों को लिखकर वक्त की बर्बादी को रोकना भी जरूरी है।

जैसे कि ये लिखना गैरजरूरी है- ”हालात के इस मोड़ पर सरकार क्या फैसला करेगी।” सीधे-सीधे यूं लिखिए- ”इन परिस्थितियों में सरकार क्या फैसला करेगी।” एक दूसरा उदाहरण लेते हैं- ये लिखना गैरजरूरी है- ”ऐसे घोर संकट के समय..,” आप सीधे-सीधे संकट लिखिए, संकट घोर ही होता है।

जहां तक व्याकरण की बात है, हम आपको पहले ही बात चुके हैं कि पैसिव वायस के बजाय एक्टिव वायस में लिखना बेहतर है। इसका मतलब ये कि घुमाकर लिखने के बजाय सीधे लिखे और ‘द्वारा’, ‘माध्यम से’, ‘जरिए’ जैसे शब्दों से बचिए। जरूरत से ज्यादा विशेषण लगाकर वाक्यों को सजाने की कोशिश न कीजिए और सामान्य शब्दों के बजाय ‘स्पेसिफ्रिक’ शब्दों का इस्तेमाल कीजिए।

कुल मिलाकर यूं समझिए कि तथ्यों पर आधारित रिपोर्ट को मजबूत शब्दों और वाक्यों में ढालना एक कला है और इस कला को समझकर ही आप एक जानदार रिपोर्ट की जानदार स्क्रिप्ट लिख पाएंगे।

टीवी स्क्रिप्ट लिखते वक्त ये बात भी ध्यान से रखिए कि आप या कोई और उस स्क्रिप्ट को पढक़र रिकार्ड करवाएगा। कोशिश कीजिए कि पढ़ने और बोलने में मदद देने के लिए ‘कॉमा’ जैसी चीजों का इस्तेमाल कर दें। इससे पढ़े जाते वक्त बीच-बीच में रुकने या ठहराव देने में मदद मिलेगी।

किसी की कही गई बात को लिखते वक्त पहले बात लिखकर बाद में उस व्यक्ति का जिक्र न करें। इसके उलट पहले बात कहने वाले व्यक्ति का उल्लेख करते हुए बाद में वो बात लिखें। उदाहरण के लिए-‘गरीबों को रोजगार देने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे, ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा है’ के बजाए ‘प्रधानमंत्री ने कहा है कि गरीबों को रोजगार देने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंग’ लिखना बेहतर होगा। हालांकि अखबारों में अकसर पहले तरीके से लिखा जाता है पर टीवी में (ब्राडकॉस्ट स्टाइल) दूसरा तरीका अपनाया जाता है। टीवी स्क्रिप्ट का सिद्धांत ये है कि बात बाद में बताइए, पहले ये बताइए कि बात कही किसने!!

आडियो और वीडियो का तालमेल
आडियों और वीडियों को हम श्रव्य और दृश्य लिख सकते हैं पर टीवी चैनल्स में आप इन शब्दों के बजाए हमेशा ऑडियो और वीडिया ही सुनेंगे, इसलिए हम भी इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करेंगे।

देखिए बात बड़ी सीधी सी है। आपकी स्टोरी में शूट करके लाए गए विजुअल्स और बाइट्स होते हैं जो दर्शक देखता है, साथ में आपके द्वारा लिखी व बोली गई स्क्रिप्ट दर्शक सुनता भी है, अगर दर्शक स्क्रिप्ट में सुन कुछ और रहा है और टीवी पर देख कुछ और रहा है तो उसकी समझ में कुछ नहीं आएगा और वो भ्रमित हो जाएगा। इसलिए बोली गई कमेंट्री (ऑडियो) और दिखाए जा रहे (विजुअल्स) के बीच एक सही तालमेल होना बेहद जरूरी है।

अब इस तालमेल को स्क्रिप्ट में कैसे लाया जाए? देखिए आप जो स्क्रीन पर विजुअल्स में देख रहे हैं अगर उन्ही विजुअल्स के बारे में आप अपनी स्क्रिप्ट में बोलने लगेंगे तो स्क्रिप्ट में कोई कमाल नहीं रहेगा। जो स्क्रीन पर साफ-साफ दिख रहा है उसी के बारे में बोलना फालतू है, आपके दृश्य खुद बोलते हैं। आप उन दृश्यों से संबंधित वो वाक्य लिखिए जो उन दृश्यों की कहानी तो बता रहे हो पर उन दृश्यों का विवरण न पेश कर रहे हो। इस तरह से लिखते वक्त दृश्यों का विवरण न पेश कर रहे हो। इस तरह से लिखते वक्त दृश्यों से इतना दूर भी न चले जाए कि आपके वाक्यों का कोई सुरताल ही न बैठे दृश्यों के साथ। इस तरह के लेखन के लिए एक खास तरीके का संतुलन बना पाना सीखना पड़ता है टीवी स्क्रिप्ट लिखने के लिए इस संतुलन को सीखना बेहद जरूरी है।

स्टोरी में जरूरत से ज्यादा ठूंसा-ठांसी
आज की दुनिया में खबरों की भी कमी नहीं है और खबर देने वाले माध्यमों की भी कमी नहीं है। देश के कुछ हिस्सो में दो-चार-दस नहीं बल्कि सौ से भी ज्यादा टीवी चैनल देखे जा रहे हैं और इंटरनेट पर जाकर आप करोड़ों जानकारियां पल भर में जुटा सकते हैं। किसी चीज की अति कई समस्याएं पैदा करती हैं। जरूरत से ज्यादा खबरों का आना इस क्षमता से छेड़ाछाड़ी करने जैसा है जो न दर्शक के लिए ठीक है और न माध्यम के लिए।

टीवी न्यूज में अपना उद्देश्य ये मत रखिए कि आपको दर्शकों पर सूचनाओं और तथ्यों की बौछार कर डालनी है, दर्शक बेचारा कुछ समझ ही नहीं पाएगा। एक सफल टीवी रिपोर्टर को प्रयास करना चाहिए कि वो अपनी स्टोरी में उतनी ही सूचनाएं पिरोए जो दर्शक सरलता से हजम कर सकें। ऐसा करने से दर्शक आपकी स्टोरी से जुड़े रहेगे और आपके द्वारा दी गई चुनिंदा सूचनाएं उनका ज्ञान बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें आनंदित भी करेगी, तभी तो वा आपकी स्टोरी देखेंगे!!

याद रखिए कि सूचनाओं को पचा पाने की भी एक क्षमता होती है। जब आपकी स्टोरी टीवी के सामने बैठा दर्शक देख रहा होता है तो उसका ध्यान इधर-उधर भी जाता रहता है। कभी वो दर्शक कुछ सोचने लगता है, कभी कोई फोन बजता है या कभी कोई कमरे में आता या जाता है, ऐसे ये उसका ध्यान बार-बार भटकता है और आपकी जरूरत से ज्यादा ठूंसी-ठांसी की गई स्टोरी को समझना उसके लिए मुश्किल हो सकता है। अगर फिर भी आप दर्शकों की सहनशक्ति की परीक्षा लेंगे तो इस बात के लिए तैयार रहिए कि लाचार परेशान दर्शक अपने रिमोट का इस्तेमाल करेगा और आपकी स्टोरी छोडक़र किसी और चैनल पर चला जाएगा।

तो फैसला आपको करना है!!

दर्शकों को बोर मत कीजिए

मैंने ऊपर आपको बताया कि अपनी स्टोरी में जरूरत से ज्यादा तथ्य या सूचनाएं मत भरिए। यहां मैं आपको ये समझना चाहता हूं कि ये बात भी बड़ी महत्वपूर्ण होती है कि आप तथ्यों तथा सूचनाओं को कितनी जल्दी-जल्दी या कितनी धीरे-धीरे दर्शकों के सामने रख रहे हैं। आप अपनी स्टोरी में सूचनाएं बेशक दे पर दर्शकों को उन्हें समझ पाने का मौका भी दें। बात ये भी है कि अगर जरूरत से ज्यादा जल्दी-जल्दी आप सब कुछ बोलते गए तो दर्शक कुछ समझेंगे नहीं और चैनल बदल लेगें पर अगर आप जरूरत से ज्यादा धीमी रफ्तार से सूचनाएं देंगे तो दर्शक आपकी स्टोरी से बोर हो जाएंगे, यहां पर भी आपको रफ्तार का संतुलन बनाना सीखना पड़ेगा।

जब कभी टीवी न्यूज में कोई जटिल या गंभीर सूचना देनी हो तो पहले अपनी स्क्रिप्ट में दर्शकों को हल्का सा इशारा दे दीजिए कि वे तैयार रहे। बाद में उस सूचना को बेहद सरल तरीके से समझाने के अंदाज में पेश कीजिए। इसके बाद उसी सूचना को किसी और माएने में दोहरा दीजिए या फिर ग्रॉफिक्स की मदद से समझाइए-दर्शक हमेशा समझदार होते हैं-बस आपको जरा समझदारी से उन्हें समझाना होता है।

अब हम आपको वो सात नियम बताते हैं जो आपको टी.वी के लिए लिखते वक्त ध्यान रखने चाहिए।

सात नियम इस प्रकार है:-

1. छोटे-छोटे वाक्यों का इस्तेमाल करके बातचीत के अंदाज में स्क्रिप्ट लिखिए। रोजाना बोलचाल की और आसानी से समझी जाने वाली शैली में लिखिए।
2. दर्शकों पर जज्बाती पकड़ कायम कीजिए। आपकी स्क्रिप्ट ऐसी हो जो दर्शकों को आपकी स्टोरी के किरदारों से भावनात्मक स्तर पर जोड़ दे।
3. पूरी स्क्रिप्ट दर्शकों से सीधा तालमेल रखकर लिखी गई हो। दर्शकों को समझ में आना चाहिए कि आपकी स्टोरी क्या है, आप कहना क्या चाहते हैं और आप किन मुद्दों पर दर्शको का ध्यान खींचना चाहते हैं। ध्यान रहे कि आपको अपनी स्क्रिप्ट दर्शकों को समझानी न पड़े, दर्शक खुद सब कुछ समझ सकें।
4. अपनी स्क्रिप्ट में महत्वपूर्ण मुद्दे पर थोड़ा ठहरकर उसे ढंग से पेश कीजिए।
5. गागर में सागर भरने की कोशिश मत कीजिए। एक ही स्टोरी में जरूरत से ज्यादा ठूंसा दर्शकों को भ्रमित करेगी।
6. दर्शकों को एक मुद्दा समझ में आने के बाद दूसरे मुद्दे पर बढि़ए। ज्यादा तेज रफ्तार से दर्शकों को समझ में कुछ नहीं आएगा।
7. जैसा पेस वैसा भेस की कहावत को याद रखते हुए अपनी स्टोरी को उन्हीं लोगों के अंदाज में पेश कीजिए जिन लोगों को आप अपनी स्टोरी दिखाना चाहते हैं।

वीडियो ग्रॉमर

थोड़ा सा तकनीकी बातें भी समझ लीजिए।
फेड आउट और फेड इन दो ऐसे शब्द हैं जो आडियो और वीडियो माध्यमों में जमकर इस्तेमाल होते हैं (फेड आउट और फेड इन की हिंदी सोंचिए भी मत)।

फेड इन का मतलब कुछ-कुछ यूं है जैसे कि कही अंद आना और फेड आउट का मतलब है बाहर जाना। अब आप अगर किसी किताब के पड़े जाने में इन शब्दों को समझना चाहें तो यूं समझिए कि किसी चैप्टर या अध्याय का शुरू करना फेड इन है और अध्याय का खाम होना फेड आउट है।

मुश्किल है ना !!

फिर से समझिए-टीवी स्क्रीन पर अक्सर आप देखते हैं कि दिखाई देने वाली तस्वीरे धीमे-धीमे हल्की होकर गायब हो जाती है और स्क्रीन काला हो जाता है-ये फेड आउट है।

कभी-कभी आप आप देखते हैं कि काले स्क्रीन पर धीमे-धीमे तस्वीरें उभरती है और पूरी तस्वीर स्पष्ट होकर आ जाती है, ये फेड इन है।

फेड आउट होने में तस्वीर गायब होकर काले स्क्रीन तक आने में लगभग दो से तीन सेकेंड लगते हैं और इसी तरह से काले स्क्रीन से पूरी तस्वीर बनने तक के फेड इन में भी दो-तीन सेकेंड लगते है। (ये काम मशीन द्वारा आसानी से हो जाता है और आप इसती रफ्तार घटा या बढ़ा भी सकते है, उसी आधार पर इसे स्लो या फास्ट फेड आउट्स या फैड इन्स कहते हैं)।

फेड आउट और फेड इन का इस्तेमाल आपकी सृजनात्मक सोचं पर निर्भर करता है पर सामान्यत: इसका इस्तेमाल विजुअल्स में किसी बड़े बदलाव को इंगित करने के लिए किया जाता है। कई बार ‘टाइम लैप्स’ (समय का घटना) को जताने के लिए भी फेड आउट और फेड इन का प्रयोग किया जाता है।

एक न्यूज स्क्रिप्ट-आपके समझने के लिए

11 पी.एम. न्यूज
4/03/02
रिर्पोटर: स्मिता साउथ ब्लॉक रिकार्ड्स फायर-पेज 1/2(17)
स्टूडियो: जॉय
सर्वर: वीडियो
फाइल: एसबी फायर 01 साउथ ब्लॉक के महत्वपूर्ण दस्तावेजों को रखने वाले गोदाम में लगी भयंकर आग पर अब काबू पा लिया गया है। साऊथ ब्लॉक के ये दस्तावेज शास्त्री भवन में बने इस गोदाम में रखे जाते थे। बुधवार देर रात लगी इस आग को बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की चालीस से ज्यादा गाडियां बुलानी पड़ी। टीवी थ्री के संवाददाता जाय ने दिल्ली फार बिग्रेड के आला अफसर मिल्खा सिंह से जानना चाहा कि क्या आग लगने के पीछे किसी आतंकवादी संगठन का हाथ हो सकता है।

सर्वर : वीडियो+आडियो

(फाइल: एस बीफायर, 07) (इन क्यू: ”देखिए, इतनी जल्दी कुछ कहना मुश्किल है पर ऐसा लगता है कि…)

सर्वर सेगमेन्ट : 1:12

(आउट क्यू: ”…और जैसा कि मिल्खा सिंह ने कहा कि अभी ये कहना मुश्किल है कि हादसे पे आतंकवादियों का हाथ हो सकता है या नहीं, जॉय, टीवी थ्री, दिल्ली )

स्टूडियो : जॉय आग लगने की इस घटना में साउथ ब्लॉक के महत्वपूर्ण दस्तावेजों को भी नुकसान पहुंचा है और मामले की नजाकत को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। आज दोपहर टीवी थ्री के सतीश सिंह ने हमारे ब्यूरों चीफ विवेक अवस्थी से पूछा कि सीबीआई के इस मामले में आने के क्या मतलब हो सकते है:

कॉन्टीन्यूड

सफल कॉपी एडीटर बनने के तरीके
किसी चीज को सिखाना हमेशा मुश्किल काम होता है। इस काम के लिए धैर्य की जरूरत होती है। गलती पाने पर उस गलती को खुद अपने हाथों से ठीक करते रहने से गलती करने वाला कभी ये नहीं सीख पाएगा कि वो क्या गलती कर रहा है, मगर ये हम सबकी आदत होती है। जल्दबाजी में इतनी फुर्सत किसे होती है कि वो बैठकर समझाए कि गलती क्यो हो रही है, हम तो बस कॉपी पर नजर डालते हैं, उसकी कमजोरियों को पकड़ते हैं और आनन-फानन में अपने हाथों से फिर से लिख डालते हैं, जाहिर है पहले से बेहतर [मैंने ऐसे लोगों को भी देखा है जो थोड़े बहुत बदलाव करने के बजाए पूरी की पूरी कॉपी ही हमेशा फिर से खुद लिखते हैं] इस तरह से खुद में काम कर डालने से उस वक्त तो वो समस्या हल हो जाती है पर गलती करने वाला फिर वही गलती दोहराते हुए अगले दिन अपनी कॉपी लेकर खड़ा हो जाता है, अब आप क्या करेंगे? कहां तक सही कर करके खुद आप उसकी कॉपी लिखते रहेंगे?

बेहतर रास्ता यही होगा कि आप औरों को अच्छी स्क्रिप्ट लिखना सिखाएं। सिखाने में हमेशा वक्त थोड़ा ज्यादा लगता है पर बाद में आपको इसके अच्छे नतीजे देखने को मिलेंगे।

चलिए, एक टीवी चैनल के न्यूजरूम में बैठकर इस स्थिति को समझते हैं। एक रिपोर्टर ने अपना पैकेज तैयार कर लिया है और वो अपनी स्क्रिप्ट आपसे चेक कराने के लिए आपके पास आता है, सिखाने की जिम्मेदारी आपकी है।

आप नीचे लिखें बिंदुओं के सहारे आगे बढि़ए-
1. सामने वाले को इज्जत दीजिए
हर व्यक्ति अपनी चीज से प्यार करता है और ये बात उस रिर्पोटर या प्रोड्यूसर पर भी लागू होती है जो बड़े जतन से लिखी अपनी स्क्रिप्ट लेकर आपके पास आया है। आप उसे ये एहसास करा दें कि वो स्क्रिप्ट उसी की है। आपका मन करेगा कि आप अपने हिसाब से उस स्क्रिप्ट को लिखें पर कोशिश कीजिए कि आप ऐसा न करें, (कभी-कभी तब ऐसा करना मजबूरी हो जाता है जब सामने डेडलाइन हो। समय की मजबूरी के चलते आपको जल्दबाजी में उस स्क्रिप्ट को फिर से लिखना भी पड़े तो भी उसके मूल लेखक से मुस्कुराकर पूछ लीजिए- क्या मैं तुम्हारी स्क्रिप्ट फिर से लिख दूं?)

2. स्टोरी के मुद्दे पर बातचीत कीजिए
रिर्पोटर से उसकी स्टोरी के मुद्दों पर खुलकर बातचीत कीजिए। रिर्पोटर को सब कुछ बताने का मौका दीजिए। ध्यान से सुनिए कि वो क्या बता रहा है। उसने सबसे पहले क्या बताया और कि क्रम में बताया। उसकी बताई स्टोरी में दर्शकों के लिए क्या-क्या झटके थे। दर्शक उसकी स्टोरी में किस भावना से जुड़ा महसूस करेंगे और उसने अपनी स्टोरी के बारे में सबसे आखिरी बात क्या बताई।

3. दोतरफा अंदाज से स्टोरी को पढि़ए
स्टोरी को तराश कर चमकाने के लिए उसे दोतरफा अंदाज से पढि़ए। पहले ये सोचिए कि आपको उस स्टोरी का हर आगा-पीछा पता है (क्योंकि रिर्पोटर ने आपको सब बताया है) और फिर ये सोचकर स्टोरी पढि़ए कि आप सिर्फ उतना ही जानते है जितना आपने स्क्रिप्ट में पढ़ा है। ये एक मुश्किल काम है पर कॉपी एडिटर्स इस काम को लंबे अनुभव के बाद सीख लेते हैं।

4. खुद से सवाल पूछिए
आपने स्टोरी रिर्पोटर से सुनी भी है और उसकी स्क्रिप्ट में पढ़ी भी है। अब तुलना करके देखिए, क्या लिखी गई स्टोरी भी उतनी ही दमदार है जितनी कि सुनाई गई स्टोरी, कई बार ऐसा होता है कि जब हम किसी स्टोरी पर बात करें तो वो स्टोरी बड़ी जानदार लगती है पर जब उसी स्टोरी की स्क्रिप्ट पढ़ते है तो मजा नहीं आता। इसकी वजहें ढूंढऩे की कोशिश कीजिए- हुआ क्या? क्या स्टोरी में जरूरत से ज्यादा चीजे ठूंस दी गई थी? क्या सूचनाएं कम थी? क्या स्टोरी मुद्दे से भटक गई? या फिर स्टोरी में लोगों को जकड़ पाने की सामर्थ्‍य नहीं थी?

5. अब रिर्पोटर से सवाल पूछिए
अब आप रिर्पोटर से सवाल पूछेंगे पर ध्यान रखिए कि रिर्पोटर इस वक्त बड़ा नर्वस होगा। उसकी नर्वसनेस को ध्यान में रखते हुए उससे उन बातों पर सवाल पूछिए जो स्टोरी में कमी के रूप में नजर आ रही हैं, मसलन स्टोरी में कई जगह भ्रम क्यों लगता है या स्टोरी में विरोधाभासी बातें क्यों नजर आ रही हैं। इतना ध्यान रखिए कि रिर्पोटर ने जो भी लिखा है अपनी मेहनत से लिखा है इसलिए बड़ी तहजीब से प्यार के साथ बातचीत कीजिए।

6. रिर्पोटर की हालत समझिए
स्क्रिप्ट लेकर आया रिर्पोटर लंबे समय से उस स्टोरी के साथ जी रहा होता है। ऐसा कई बार होता है कि स्टोरी के कई महत्वपूर्ण बिंदु वो स्क्रिप्ट में लिखना भूल जाता है जबकि उसे लगता यही है कि उसने दो बिंदु भी स्क्रिप्ट में डाल दिए है। याद रखिए कि स्टोरी कागज के साथ-साथ रिर्पोटर के दिमाग में भी होती है और इस तरह का भ्रम होना संभव है। इस हालत में कॉपी एडिटर के सवाल जवाब ही रिर्पोटर को ये एहसास कराते हैं कि वो क्या लिखना भूल गया है। (कॉपी एडिटर का दोतरफा पढ़ने का अंदाज ही कॉपी एडीटर को इस भूल की याद दिलाता है)

7. फोटोजर्नलिस्ट को भी बुलाइए
अगर संभव हो तो स्क्रिप्ट पर चर्चा करते वक्त फोटोजर्नलिस्ट को भी बुला लीजिए। किसी भी अच्छे न्यूज रूम में रिर्पोटर और कैमरामैन मिलकर ही स्टोरी को गठते हैं। कई बार कैमरामैन स्क्रिप्ट के लिए कई नायाब चीजें बता पाता है क्योंकि उसने वो सब कुछ कैमरे की आंख से देखा होता है। कैमरामैन के साथ मिलकर स्टोरी लिखने से स्टोरी को एक नया नजरिया मिलता है। याद रखिए- कैमरामैन विजुअल्स उतारता है, इन विजुअल्स की कहानी लिखने में बहुत कुछ उससे भी सीखा जा सकता है।

8. नैतिक सवालों को ध्यान में रखकर स्क्रिप्ट पर निर्णय कीजिए
आपकी और रिर्पोटर की बातचीत में तमाम ऐसे सवाल आएंगे जिनसे आप स्टोरी की निष्पक्षता, संतुलन, सच्चाई और नजरियों पर एक राय कायम कर पाएंगे। याद रखिए कि स्टोरी को सही और सच्चे ढंग से पेश किया जाना जरूरी है। इस बात पर फिर से गौर कीजिए कि कहीं कोई बात छूट तो नहीं रही है, स्टोरी में सब कुछ सही होना चाहिए।

9. तारीफ करना सीखिए
तारीफ मिलने से हौसला बढ़ता है। एक अच्छे कॉपी एडीटर को रिर्पोटर की तारीफ करना भी आना चाहिए। स्टोरी कितनी भी खराब क्यों न लिखी गई हो, उसमें कुछ तो ऐसा होगा जो तारीफ के काबिल हो। रिर्पोटर भले ही उस स्टोरी को अच्छा लिख नहीं पाया हो पर उसने उन तथ्यों को बंटोरने में मेहनत तो की न! इस बात के लिए रिर्पोटर की तारीफ कीजिए और तारीफ भी जरा ढंग से कीजिए। रिर्पोटर को ये बताइए कि उसने क्या-क्या अच्छा किया है- इसके रिर्पोटर सीखेगा और आपकी तारीफ को भी यूं ही कर दी गई तारीफ न मानकर उसे उसके सही अर्थों में लेगा।

10. थोड़े समझदार बनिए
शुरू में हर कॉपी एडिटर रिर्पोटर की स्क्रिप्ट को काट-पीट कर फिर से दोबारा लिखता है और मानिए या न मानिए पर इसमें कही पर अपने हुनर का जौहर दिखाने की प्रवत्ति तो होती ही है। बाद में अक्सर ऐसा होता है कि रिर्पोटर आपसे ही सीखकर इतनी अच्छी स्क्रिप्ट खुद लिखने लगे कि उसे ढेरों तारीफे मिलने लगे। आप इस बात का बुरा न माने कि अब आपकी तारीफ क्यों नहीं हो रही। आपका काम था कि आप अपने सहयोगियों को कामकाज सीखने में मदद करे और आपको ये काम बखूबी करने पर संतोष होना चाहिए। वैस आपने जो काम किया है उसके लिए रिर्पोटर्स तो आपको गाहे-बगाहे शुक्रिया बोलते ही रहेंगे-इतना काफी है।

याद रखिए कि एक अच्छे न्यूजरीम वही है जहां अच्छी स्क्रिप्ट लिखने वाले हों और अच्छी स्क्रिप्ट लिखने वाले वहीं होंगे जहां अच्छा सिखाने वाले कॉपी एडिटर्स होंगे।

लिखने में पेश आने वाली कुछ सामाय समस्याएं और उनके हल
टीवी न्यूज की स्क्रिप्ट लिखते वकत कई बार ऐसी सामान्य समस्याओं से जूझना पड़ता है जिनके कारण भाषा शैली के न होकर तकनीकी होते हैं।

क. समस्याएं
1. स्टोरी की गहराई में न जाना- हर चीज को बिना गहराई से समझे तब ही रिर्पोटिंग करना।
• इस तरह की समस्या वाली स्टोरी में होता ये है कि तथ्य सही तो होते हैं पर स्टोरी में दम नजर नहीं आता। स्टोरी बड़ी खाली-खाली सी महसूस होती है। अगर आप दर्शकों को स्टोरी में बताए जा रह तथ्यों की गहराई में नहीं जाएंगे तो दर्शकों को आपकी स्टोरी में क्या दिलचस्पी!!

2. साउंड बाइट्स की मारामारी- जरूरत से ज्यादा साउंड बाइट्स
• स्क्रिप्ट की अपनी महत्ता होती है और साउंड बाइट्स की अपनी। रिर्पोटर की अपनी दृष्टि उसकी स्क्रिप्ट के रूप में झलकनी चाहिए और उसकी स्क्रिप्ट में जहां भी बात को आगे बढ़ाने के लिए इंटरव्यू किए गए लोगों की जरूरत हो वहां पर साउंड बाइट बड़े करीने से लगाई जानी चाहिए। अगर आप ढेर सारी साउंड बाइट्स एक दूसरे से चिपका कर लगा देंगे तो आपकी स्टोरी अपनी राह से भटको हुई सी लगेगी।

3. बेनजरिया स्क्रिप्ट- तथ्यों की भरमार मगर नजरिये का नामें निशान नहीं।
• जिस प्रकार से एक घर बनाने के लिए ईट,पत्थर, गारे के अलावा एक कुशल मिस्त्री की पैनी नजर की भी जरूरत होती है उसी तरह से एक अच्छी स्क्रिप्ट को तथ्यों के अलावा रिर्पोटर के नजरिए, अंदाज और दिशा की भी जरूरत होती है। बिना नजरिए के लिखी गई स्क्रिप्ट बेअसर होगी।

4. कामचलाऊ ढंग की हैंडलिंग -स्टोरी में कौन क्या कर रहा है- समझना मुश्किल।
• कई बार स्टोरी को इतने कामचलाऊ ढंग से बना दिया जाता है कि सब कुछ होते हुए भी स्टोरी का कोई मतलब नहीं बनता। ऐसी स्टोरी की स्क्रिप्ट में आप तमाम लोगों के इंटरव्यू लगे देखेंगे पर न तो कोई ढंग से अपनी बात रख पाएगा और न ही मुद्दा समझ में आएगा। सब कुछ बेमेल आधा-अधूरा सा लगेगा।

5. कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना – तस्वीरें कुछ, शब्द कुछ।
• ये हम आपको पहले भी बात चुके हैं कि एक अच्छी स्क्रिप्ट वही है जो तस्वीरों के साथ तालमेल बनाकर रखे। आपको ये बात तो पता ही होगी कि मानव मस्तिष्क का दांया हिस्सा तस्वीरों को रचता और गढ़ता है जबकि मस्तिष्क का बायां हिस्सा भाषा को संभालता है- दोनों मस्तिष्कों का सही संतुलन कायम रहना एक अच्छी स्क्रिप्ट में झलकता है, अगर तस्वीरों और शब्दों में तालमेल न बैठा तो लोग तस्वीरें ही देखते रहेंगे और आपका स्क्रिप्ट का कोई मोल नहीं होगा।

6. खुद ही सोचा, खुद ही समझा- रिर्पोटर को ये लगता है कि उसने सब कुछ लिख डाला पर असल में ऐसा होता नहीं।
• ऐसा अक्सर होता है कि रिर्पोटर स्टोरी से संबंधित ढेरों तथ्य अपने विभाग में रखता है पर उनमें से तमाम तथ्य स्क्रिप्ट में लिखना भूल जाता है हालांकि उसे ऐसा लगता नहीं। ये जरूरी है कि रिर्पोटर और कॉपी एडीटर दोनों ही अपने को अलग करके एक दर्शक की नजर से स्क्रिप्ट को देखना सीखें।

7. लफ्फाजी- बड़ी-बड़ी बातों में छोटी-छोटी सच्चाइयों को गुमा देना।
• कई बार लफफाजी की आदत स्क्रिप्ट में भी झलकने लगती है। बड़े-बड़े वाक्यों को इतना जटिल अंदाज से लिखा जाएगा कि कुछ समझ में ही न आए। पैराग्राफ्स जाने कहां से शुरू होकर जाने कहां पहुंच जाते है और मानो ये कम हो तो साथ में बड़े-बड़े विशेषणों की भरमार-तथ्य कहां हैं? स्क्रिप्ट किधर है?

इन समस्याओं से बचने के रास्ते

• सोच समझकर और इंवॉल्व होकर स्टोरी कीजिए।
• स्टोरी पर एक अपना भी दृष्टिकोण बनाइए।
• इंटरव्यू किए गए लोगों की बातों को मुद्दा बनाकर स्टोरी में लाइए, उन्हें मात्र साउंड बाइट बनाकर काम न चलाइए।
• कम में ज्यादा कहिए।
• जो सच है वो सच है।
• जरा अलग हटकर अपनी स्टोरी का जायजा लीजिए। क्या स्टोरी की तस्वीरे और स्क्रिप्ट सही तालमेल में हैं!!
• गड़बड़ी हो तो फौरन कहिए।
• विशेषणों को तो ताले में बंद करके रख दीजिए।
• स्टोरी को देखकर सबसे पहले खुद से सवाल कीजिए कि आपको क्या समझ में आ रहा है!!
• पैराग्राफ्स में एक दूसरे से जुड़ाव रखिए।
• स्टोरी का ढांचा सही बनाइए।

आलोक वर्मा के पत्रकारिता जीवन में पन्द्रह साल अखबारेां में गुजरे हैं और इस दौरान वो देश के नामी अंग्रेजी अखबारों जैसे कि अमृत बाजार पत्रिका, न्यूज टाइम, लोकमत टाइम्स, और आनंद बाजार पत्रिका के ही विजनूस वर्ल्‍ड के साथ तमाम जिम्मेदारियां निभाते रहे है और इनमे संपादक की जिम्मेदारी भी शामिल रही है। बाद के दिनों में वो टेलीविजन पत्रकारिता में आ गए। उन्होंने 1995 में भारत के पहले प्राइवेट न्यूज संगठन जी न्यूज में एडीटर के तौर पर काम करना शुरू किया। वो उन चंद टीवी पत्रकारों में शामिल है जिन्होने चौबीस घंटे के पूरे न्यूज चैनल को बाकायदा लांच करवाया। आलोक के संपादन काल के दौरान 1998 में ही जी न्यूज चौबीस घंटे के न्यूज चैनल में बदला। जी न्यूज के न्यूज और करेंट अफेयर्स प्रोग्राम्स के एडीटर के तौर पर उन्होंने 2000 से भी ज्यादा घंटो की प्रोग्रामिंग प्रोडूसर की। आलोक वर्मा ने बाद में स्टार टीवी के पी सी टीवी पोर्टल और इंटरएक्टिव टीवी क्षेत्रों में भी न्यूज और करेंट अफेयर्स के एडीटर के तौर पर काम किया। स्टार इंटरएक्टिव के डीटीएच प्रोजेक्ट के तहत उन्होंने न्यूज और करेंट अफेयर्स के बारह नए चैनलो के लिए कार्यक्रमों के कान्सेप्युलाइजेशन और एप्लीकेशन से लेकर संपादकीय नीति निर्धारण तक का कामो का प्रबंध किया। आलोक वर्मा ने लंदन के स्काई बी और ओपेन टीवी नेटवक्र्स के साथ भी काम किया है। अखबारों के साथ अपने जुड़ाव के पंद्रह वर्षों में उन्होंने हजारों आर्टिकल, एडीटोरियल और रिपोर्ट्स लिखी हैं। मीडिया पर उनका एक कालम अब भी देश के पंद्रह से अधिक राष्ट्रीय और प्रदेशीय अखबारों में छप रहा है। आलोक वर्मा इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन दिल्ली, दिल्ली विश्वविद्यालय, माखनलाल चर्तुवेदी विश्वविद्यालय और गुरु जेवेश्वर विश्व विद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर जुड़े हुए हैं। फिलहाल वो मीडिया फॉर कम्यूनिटी फाउंडेशन संस्था के डायरेक्टर और मैनेजिंग एडीटर के तौर पर काम कर रहे हैं। ये संगठन मीडिया और बाकी सूचना संसाधनों के जरिए विभिन्न वर्गों के आर्थिक-सामाजिक विकास हेतु उनकी संचार योग्यताओं को और बेहतर बनाने का प्रयास करता है। वे अभी Newzstreet Media Group www.newzstreet.tv and www.nyoooz.com and www.i-radiolive.com का संचालन कर रहे हैं .

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