मधुरेन्द्र सिन्हा।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्वीटर इन दिनों खूब चर्चा में है। सुपरस्टार सलमान खान को अदालत ने सजा क्या सुनाई, इस पर तो जैसे भूचाल आ गया। हजारों लोग ट्वीटर पर आकर अपने-अपने विचार व्यक्त करने लगे। इतनी बड़ी बात पर विचारों में टकराव होना स्वाभाविक है लेकिन इस बार बात दूर तक चली गई। लोग ऐसी-ऐसी बातें ट्वीट करने लगे जो न केवल अशोभनीय है बल्कि अमानवीय भी। इतना ही नहीं कई नामी-गिरामी शख्सियतें तो खुले आम अदालत की तौहीन करने पर उतारू हो गईं। कई लोगों ने तो सीधे इल्जाम कोर्ट पर लगा दिया तो कई सरकार को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराने लगे। मसलन बॉलीवुड की ज्वलेरी डिजाइनर फरहा खान अली ने कहा कि इसके लिए सरकार ही जिम्मेदार है। अगर इन लोगों के लिए आवास की व्यवस्था होती तो ये मरते नहीं। इसी तरह कई और ने ट्वीट किए। लेकिन कुछ दुस्साहसी तो अदालत के इस फैसले पर ही उंगली उठाने लगे। उनका कहना था कि यह सजा बहुत सख्त है तो कई कहने लगे कि यह सजा ही गलत है। यानी जितने मुंह उतनी बात। बढ़-चढ़ कर सलमान खान को खुश करने के लिए ट्वीट किए गए।
ट्वीट करने वालों ने उसकी मर्यादाओं को न तो पालन किया और न ही देश के कानून का। जिसे जो जूझा वह लिखता चला गया। ऐसे लोग इस बात को भूल गए कि देश में कानून भी हैं। आईटी ऐक्ट की एक धारा के रद्द हो जाने का मतलब यह नहीं है कि अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल हो या फिर मर्यादाओं का उल्लंघन हो या फिर अदालतों की तौहीन हो। यह किसी के भले के लिए नहीं है। जिन लोगों ने ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया, बाद में उनमें से ज्यादातर माफी मांगते या अपनी बात से पलटते नज़र आए। यह एक बुरी परंपरा की शुरूआत है। दरअसल यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर काफी बहस की जरूरत है।
सच तो है कि लोकतंत्र ने हमें बहुत ही असहनशील बना दिया है। हम विचारों के मामले में उग्र हो जाते हैं या फिर कुछ खास कर दिखाने की चाहत में ऐसा कुछ कह जाते हैं जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। हमारी यह कमज़ोरी लोकतंत्र को कमज़ोर कर रही है और असहनशीलता को जन्म दे रही है। ट्वीटर एक खुला मंच है और हमें अपनी बात कहने और दूर तक पहुंचाने का मौका देता है। इसने दूरियों की तमाम दीवारें तोड़ दी हैं और देश की सीमाओं को भी लांघ लिया है। यह अभिव्यक्ति और तत्काल सूचना प्रसारित करने का एक बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म बन गया है। इसके जरिये छोटी सी छोटी घटना और विचार सारी दुनिया में पलक झपकते ही प्रसारित हो जाते हैं। लेकिन इस घटना ने ट्वीटर की कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है। या यूं कहे कि इसे कमज़ोर साबित कर दिया है। अब यह सोचना होगा कि आखिर इसे कैसे मर्यादित करें। अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो आने वाले समय में यह मौजमस्ती का एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बन जाएगा। इतना ही नहीं इस पर कानून की तलवार भी लटक सकती है। संयम और मर्यादा किसी भी समाज के लिए जरूरी होते हैं। उनके साथ यह भी जरूरी होता है कि बातचीत सलीके से हो। अब आने वाले समय में इस पर ध्यान देना ही होगा।
मधुरेन्द्र सिन्हा बरिष्ठ पत्रकार हैं और लम्बे समय तक नवभारत टाइम्स में विशेष संवाददाता रहें हैं।