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वेब जर्नलिज्‍म : नए जमाने के मीडिया को ऐसे समझें

वेब जर्नलिज्‍म : नए जमाने के मीडिया को ऐसे समझें

विजय के. झा। 
प्रिंट और ब्रॉडकास्‍ट के बाद अब जमाना न्‍यू मीडिया का है। जवानी की ओर बढ़ रहे इस मीडिया ने नौजवानों को अपनी ओर खूब खींचा है।

न्‍यू मीडिया यानी क्‍या
परिभाषा के लिहाज से देखें तो न्‍यू मीडिया में वेबसाइट, ऑडियो-वीडियो स्‍ट्रीमिंग, चैट रूम, ऑनलाइन कम्‍युनिटीज के साथ तकनीक-ऑडियो-वीडियो-ग्राफिक के मेल से तैयार कोई भी कंटेंट शामिल है। लेकिन पत्रकारों के लिए न्‍यू मीडिया का मतलब ब्‍लॉगिंग, सिटिजन या ट्रेडिशनल जर्नलिज्‍म, सोशल नेटवर्किंग और वायरल मार्केटिंग (कंटेंट की) तक सीमित माना जा सकता है।

न्‍यू मीडिया की ताकत क्‍या
इंटरएक्टिविटी- आप रीडर तक खबर टेक्‍स्‍ट, साउंड, विजुअल, इंफोग्राफ किसी भी रूप में पहुंचा सकते हैं। यानी जिस भी आसान तरीके से रीडर उसे समझ सके। रीडर आपकी खबर पर फीडबैक भी दे सकता है। यानी दोतरफा संवाद, जो इस माध्‍यम की सबसे बड़ी ताकत है।

पोर्टेबिलिटी- डिजिटल डिवाइस के रूप में आसानी से साथ कैरी कर सकते हैं।

एवेलेविलिटी- कहीं भी, कभी भी उपलब्‍ध … और सबसे बड़ी ताकत
(शायद सबसे बड़ी कमजोरी भी) यही है कि इसमें खबरों का एजेंडा न्‍यूजरूम में बैठे संपादक या पत्रकार तय नहीं करते। यह अधिकार यूजर्स (रीडर्स) के पास चला गया है।

ये ताकत है तो वेब जर्नलिस्‍ट क्‍या करे…
इंटरएक्टिविटी- इंटरएक्टिव मीडियम है, इसलिए आर्टिकल से ज्‍यादा अप्‍लीकेशन पर दिमाग लगाना होगा, ताकि रीडर एंगेज हो सके।

पोर्टेबिलिटी- न्‍यू मीडिया तक पहुंच का जरिया आसानी से कैरी करने लायक डिवाइस हैं, इसलिए कंटेंट प्रेजेंटेशन में मोबाइल फोन यूजर्स की सुविधा का ध्‍यान रखना होगा। यानी आप आर्टिकल प्रेजेंट करने के लिए जो अप्‍लीकेशन यूज कर रहे हैं उसका रिफ्लेक्‍शन मोबाइल स्‍क्रीन पर आसानी से हो। एवेलेविलिटी- कहीं भी, कभी भी उपलब्‍ध है तो रियल टाइम इंफॉर्मेशन देनी होगी। घटना घटी नहीं कि तुरंत एक्‍शन में आना होगा और यूजर तक इसकी जानकारी पहुंचानी होगी। यानी रियल टाइम प्‍लानिंग और डिस्‍ट्रीब्‍यूशन।

…और सबसे बड़ी बात
खबरों का एजेंडा तय करना जब पत्रकारों के हाथ में नहीं रहा तो फिर उन्‍हें ज्‍यादा से ज्‍यादा खबरें अपनी न्‍यूज वेबसाइट पर देनी होंगी, ताकि रीडर्स के पास ज्‍यादा से ज्‍यादा च्‍वॉइस हो।

कई बदलाव
न्‍यू मीडिया के चलते जर्नलिज्‍म में पॉजिटिव और निगेटिव, दोनों तरह के बदलाव आए हैं। पहले कुछ पॉजिटिव चेंज की बात-

पाठकों से संवाद- रीडर्स से तत्‍काल फीडबैक मिलता है और यह संवाद दोतरफा होता है।

खबरों की परिभाषा बदली- पारंपरिक मीडिया की तरह खबरों की परिभाषा और सीमा बदल गई। न्‍यू मीडिया में चूंकि रीडर अपनी पसंद से खबरें चुनता है, इसलिए प्रिंट या ट्रेडिशनल मीडिया की नजर में जो खबर नहीं है, न्‍यू मीडिया के लिए वह भी अहम खबर हो सकती है। न्‍यू मीडिया के पत्रकारों को अपने रीडर्स के लिए हर नेचर (यहां तक कि ह्यूमर भी) की ज्‍यादा से ज्‍यादा खबरें देनी होती हैं।

जनमानस को प्रभावित करने या बरगलाने की ताकत नहीं- ट्रेडिशनल मीडिया की साख ज्‍यादा है और सशक्‍त संवाद की सुविधा नहीं है, इसलिए वह जनमानस को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। पर न्‍यू मीडिया में ऐसी कोई ताकत अभी तक विकसित नहीं हुई है।

ये निगेटिव चेंज भी आए…
गंभीरता की कमी, अफवाहों और गलत खबरों को बढ़ावा मिलने का खतरा, लेखकों/पत्रकारों में मर्यादा में रह कर लिखने की बाध्‍यता खत्‍म, खबरों को सनसनीखेज बनाने की प्रवृत्ति बढ़ी, निजता का हनन ज्‍यादा, पत्रकारों की पहचान का संकट, क्‍योंकि न्‍यू मीडिया के लिए हर कोई लिख सकता है…

वर्किंग
न्‍यू मीडिया के पत्रकारों का कामकाज मुख्‍यत: तीन चरणों में पूरा होता है

कंटेंट क्रिएशन – प्रेजेंटेशन – डिस्ट्रिब्‍यूशन

कंटेंट क्रिएशन
न्‍यू मीडिया की एक खास बात यह है कि यहां कंटेंट (या न्‍यूज) का एक अहम सोर्स यह मीडिया भी है। ट्विटर, रेड्डि‍ट.कॉम जैसी सोशल वेबसाइटें तो ट्रेडिशनल मीडिया को भी आज न्‍यूज मुहैया करा रही हैं।

वेब के लिए कॉपी
न्‍यूज वेबसाइट के लिए लिखी जाने वाली कॉपी में इस बात का खास ध्‍यान रखना होता है कि वह रीडर को एंगेज कर सके। रियल टाइम मीडियम होने के कारण यह बड़ी चुनौती है कि कॉपी बिना किसी गलती के लिखी जाए। वेब के लिए कॉपी लिखते समय इन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए- वाक्‍य, पैराग्राफ और कॉपी छोटी हो। खबर का सार पहले सौ शब्‍दों में आ जाना चाहिए। जो लिख रहे हैं उसका संदर्भ पूरी तरह स्‍पष्‍ट होना चाहिए और स्‍पष्‍ट तरीके से लिखा गया होना चाहिए। हेडलाइन भ्रामक नहीं हो। यानी हेडलाइन में जो कह रहे हों, वह बात इंट्रो/कॉपी में जरूर होनी चाहिए।

हेडलाइन स्‍पष्‍ट हो और उसमें की-वर्ड्स (व्‍यक्ति, स्‍थान, पार्टी आदि का नाम, जिसके जरिए लोग उससे संबंधित खबर इंटरनेट पर सर्च करते हैं) का प्रयोग जरूर हो। जैसे- प्रधानमंत्री की जगह नरेंद्र मोदी लिखें, ‘चीन जाएंगे नरेंद्र मोदी, भारत से रिश्‍तों पर करेंगे बात।’

हेडलाइन स्‍पेसिफिक हो, जेनरलाइज्‍ड नहीं। उदाहरण- बॉलीवुड के खान सुपरस्‍टार्स से मिले प्रधानमंत्री के बजाय यह हेडलाइन सटीक है कि सलमान, आमिर, शाहरुख से मिले नरेंद्र मोदी। लाखों, करोड़ों के बजाय 15 लाख या 50 करोड़ यानी सटीक नंबर का इस्‍तेमाल करें।

हेडलाइन में इनवर्टेड कौमा का इस्‍तेमाल नहीं करें।

विजुअल अपील के लिए स्‍टोरी से मैच करती तस्‍वीर लगाएं।

कंटेंट प्रेजेंटेशन
न्‍यूज वेबसाइट में कंटेंट का कम से कम समय में अच्‍छा से अच्‍छा प्रेजेंटेशन बड़ी चुनौती है और इसका रोल बेहद अहम है।

वेबसाइट पर अखबार की तरह लंबी कॉपी पढ़ना सुविधाजनक नहीं होता। इसलिए बेहतर प्रेजेंटेशन के लिए पहले लेवल पर तो कॉपी लिखने का पारंपरिक स्‍टाइल छोड़ना होता है।

सौ शब्‍दों के भीतर खबर का सार बता कर बाकी बातें सवाल-जवाब के रूप में बता सकते हैं। सवाल वे होंगे जो उस खबर को लेकर बतौर रीडर आपके मन में उठ रहे हों। जैसे- क्‍या हुआ, कब हुआ, क्‍यों हुआ, कैसे हुआ, जिम्‍मेदार कौन, अब आगे क्‍या हो सकता है, असर क्‍या होगा…। जवाब भी बिल्‍कुल छोटे-छोटे वाक्‍यों में और नंबरिंग करके (1, 2, 3…) देने चाहिए।

किसी का कोट हो या कोई बात ज्‍यादा हाईलाइट किए जाने लायक हो तो उसे एक बॉक्‍स में दिखाया जा सकता है। यह सुविधाजनक तरीके से खबर प्रेजेंट करने का बेसिक तरीका है। अगले चरण में आप कंटेंट को ऑडियो, वीडियो, इंफोग्राफ, इंटरएक्टिव इंफोग्राफ, इलस्‍ट्रेशन आदि किसी भी तरीके से प्रेजेंट कर सकते हैं।

मल्‍टीमीडिया तकनीक के जरिए कहानी को बेहद प्रभावी ढंग से कहा जा सकता है।

कंटेंट डिस्ट्रिब्‍यूशन
वेब जर्नलिस्‍ट जो कंटेंट तैयार करता है उसे प्रेजेंट करने के साथ-साथ डिस्ट्रिब्‍यूट करने (रीडर्स तक पहुंचाने) में भी उसकी अहम भागीदारी होती है। वेब कंटेंट को डिस्‍ट्रीब्‍यूट करने का एक बड़ा जरिया सर्च इंजन (गूगल, बिंग, याहू आदि) और सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, व्‍हाट्सएप, यूट्यूब आदि) है। इनके जरिए कंटेंट ज्‍यादा से ज्‍यादा रीडर्स तक पहुंच सके, यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ बुनियादी बातों का ध्‍यान रखना चाहिए-

की-वर्ड्स: की-वर्ड्स वे शब्‍द हैं जिन्‍हें टाइप कर रीडर इंटरनेट पर किसी टॉपिक को सर्च करता है। वेबसाइट पर कंटेंट अपलोड करते वक्‍त इस बात का पूरा ख्‍याल रखना चाहिए कि उससे संबंधित सही और सटीक की-वर्ड्स भरे जाएं। इससे इंटरनेट पर सर्च करने वाले रीडर्स को आपकी खबर स्‍क्रीन पर पहले दिखने की संभावना बढ़ जाती है। इसे सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन (एसईओ) कहते हैं।

कुछ कीवर्ड तो सामान्‍य होते हैं, पर कुछ गूगल (सबसे बड़ा सर्च इंजन) और सोशल मीडिया पर ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों के इस्‍तेमाल के चलते ट्रेंड कर गए होते हैं। सामान्‍य की-वर्ड्स के अलावा इन ट्रेंडिंग की-वर्ड्स का इस्‍तेमाल जरूरी है। गूगल पर किसी टॉपिक से संबंधित सामान्‍य की-वर्ड टाइप करते ही उससे जुड़े ट्रेंडिंग की-वर्ड्स स्‍क्रीन पर दिखाई दे जाते हैं। वैसे ही सोशल मीडिया पर ट्रेडिंग टॉपिक्‍स की लिस्‍ट फ्लैश होती है। इनका इस्‍तेमाल करने से कंटेंट ज्‍यादा से ज्‍यादा रीडर्स तक पहुंचने की संभावना बढ़ जाती है।

शेयरिंग: कंटेंट अपलोड करते ही उसे सोशल मीडिया पर शेयर करना जरूरी है। भारत में कंटेंट डिस्ट्रिब्‍यूशन के लिहाज से फेसबुक सोशल मीडिया का सबसे बड़ा प्‍लैटफॉर्म (वीडियो कंटेंट के लिए यूट्यूब) है। शेयरिंग के दौरान संबंधित हैशटैग और टैगिंग फीचर का इस्‍तेमाल करना फायदेमंद रहता है।

ब्‍लॉग, माइक्रोवेबसाइट्स, सोशल कम्‍युनिटीज आदि के जरिए भी कंटेंट को ज्‍यादा से ज्‍यादा रीडर्स तक पहुंचाया जा सकता है।

वेब एनालिटिक्‍स…सबसे बड़ा टूल
वेब एनालिटिक्‍स: इसके बिना वेब जर्नलिस्‍ट अपना काम कर ही नहीं सकता। इसके जरिए उसे यह पता लगता है कि रीडर्स क्‍या और किस तरह का (मसलन, राजनीति में भी किस नेता या पार्टी के बारे में) कंटेंट पढ़ना चाहते हैं। वे आपकी वेबसाइट पर कितना एंगेज (एक बार साइट पर आने के बाद कितने पेज पढ़ रहे हैं) हो रहे हैं, कितना समय दे रहे हैं सब पता चलता है।

  • एनालिटिक्‍स के जरिए ये जानकारियां मिलती हैं-
  • कितने रीडर्स आ रहे हैं कहां से आ रहे हैं।
  • किस समय आ रहे हैं ।
  • क्‍या पढ़ रहे हैं।
  • कितनी देर पढ़ रहे हैं।
  • क्‍या उन्‍हें सबसे अच्‍छा लग रहा है।
  • वे क्‍या सबसे ज्‍यादा शेयर कर रहे हैं।
  • वे किस खबर के बारे में सबसे ज्‍यादा बात कर रहे हैं और भी बहुत कुछ…

वेब एनालिटिक्‍स का जितना गहराई से अध्‍ययन करेंगे, रीडर्स की रुचि का उतना बारीक आकलन कर सकेंगे। इसके आधार पर आप अपनी कंटेंट स्‍ट्रैटजी तय कर सकते हैं। पर ध्‍यान रहे, यहां एक स्‍ट्रैटजी लंबे समय तक काम नहीं करती। कुछ सप्‍ताह भी नहीं। इसलिए रियल टाइम प्‍लानिंग की सबसे ज्‍यादा जरूरत है। न्‍यू मीडिया हर रोज बदलता है। कल इसका स्‍वरूप कैसा होगा, इसका अंदाजा आज नहीं लगाया जा सकता। पर एक बात तय है कि न्‍यू मीडिया काफी तेज रफ्तार से मजबूत हो रहा है और लगातार होगा।

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