डॉ. सचिन बत्रा।
अक्सर विद्यार्थियों को यह तो पढ़ाया जाता है कि समाचार क्या है लेकिन उन्हें यह समझने में खासी असुविधा होती है कि आखिर वह क्या है जो समाचार के चुनाव पैमाने के अनुरूप नहीं पाया जाता। यानि समाचार, क्या नहीं है उसे समझना बहुत ज़रूरी है। सच तो यह है कि कौनसी कथा को समाचार के लिए उपयुक्त माना जाएगा या नहीं इस कौशल को विकसित करना अपने आप में एक जटिल काम है। दरअसल सभी समाचार पत्रों के लिए समाचार चयन के पैमाने अलग-अलग हैं। यही नहीं समाचार चयन के लिए उत्तरदायी सम्पादक के अनुभव भिन्न-भिन्न होते हैं, इसका प्रभाव न सिर्फ समाचार चयन पर पड़ता है बल्कि लेखन में भी दिखाई देता है। समाचार, क्या नहीं है उसके कई पैमाने हैं।
छह कक्कार
मोटे तौर पर कहा जाता है कि छह कक्कार यानि फाईव डब्ल्यू और वन एच- क्या, कब, कहां, किसने, कैसे और क्यों आदि सभी पहलुओं का समाचार में होना ज़रूरी है। अगर इनमें से कुछ भी कम होता है तो वह कथा, समाचार के लिए चयनित नहीं होती। हालांकि यह भी माना जाता है कि कई बार संवाददाता के पास, किसने किया का जवाब नहीं होता। ऐसी अपवाद स्थितियों में भी समाचार को प्रकाशित किया जाता है। यानि किसी मामले में कर्ता की पहचान होनी बाकी रह जाती है फिर भी उसे समाचार बनाना मजबूरी हो जाती है। जैसे अपराध समाचारों में आरोपी अज्ञात हो या उसकी पहचान न हो पाई हो। इसी प्रकार कई बार कब हुआ का जवाब पाने के लिए किसी जांच रिपोर्ट का इंतज़ार करना पड़ता है और कैसे किया गया जैसा सवाल तो कई समाचारों में सवाल ही रह जाता है। इसके बावजूद समाचार का मूल्य इतना अधिक होता है कि कैसे हुआ का इंतज़ार किए बिना समाचार बनाया जाता है। अक्सर अपराध समाचारों का संकलन करने वाले संवाददाताओं को कैसे का जवाब पाने के लिए इंतज़ार करना पड़ता है और कैसे हुआ की जानकारी प्राप्त होने पर फौलो-अप समाचार तैयार करते हैं। यही नहीं कई राजनीतिक समाचारों में भी क्यों का उत्तर नहीं होता। यानि किसी फैसले को क्यों लिया गया या किसी योजना को क्यों रोक दिया गया इसके बारे में कोई जानकारी न होने के बाद भी वह विषय समाचार की विषय वस्तु बनता है। लेकिन सामान्य तौर पर एक संवाददाता की पहली न्यूज़ कॉपी में एक संपादक तथ्यों को परखता है, फिर संतुलन को जांचता है और निष्पक्षता का आंकलन करता है तभी समाचार चुना जाता है। लेकिन अगर समाचार में कोई तथ्यात्मक कमीं हो या संतुलन बिगड़ रहा हो तो वह कथा अपनी कमीं के चलते समाचार की दौड़ से बाहर हो जाती है। हालांकि बाद में तथ्य, निष्पक्षता और संतुलन के पैमाने पर खरी उतरने वाली उसी न्यूज कॉपी को समाचार के लिए चुना जा सकता है। यानि न्यूज़ में संपूर्णता की जरूरत है ऐसी खबर जो पाठकों के भीतर पैदा होने वाले सभी सवालों का जवाब दे।
समाचार मूल्य
कई बार आधी अधूरी सूचना, अफवाह या चर्चा के समाचारों में भी सवाल, सवाल ही रह जाते हैं। इसके बावजूद समाचार बनाया जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि समाचार में संक्रामकता यानि वॉयरल इफेक्ट को महत्व दिया जाता है। यानि किसी बात की पुष्टि भले ही न हुई हो लेकिन वह चर्चित है। अगर चर्चित है तो उसमें रूचि है इसीलिए अधिसंख्य लोगों की रूचि भी समाचार का मूल्य बढ़ा देती है। भले ही वह समाचार बाद में सही पाया जाए या गफलत मानकर खारिज हो जाए लेकिन समाचार बनाया जाता है। उदाहरण के लिए किसी रेल हादसे के बाद विपक्ष के हंगामा करने पर अक्सर चर्चाएं शुरू हो जाती हैं कि फलां रेल मंत्री को पद छोड़ना पड़ सकता है। किसी मंत्रालय में भ्रष्टाचार की खबर सार्वजनिक होने के बाद माना जाता है कि अदालती जांच में मंत्री और विभागीय कर्मचारियों पर आंच आएगी ही। ऐसे समाचारों में भी पुख्ता तथ्य न होने के बाद भी समाचार बनाए जाते हैं। इसके अलावा भी ताज़ा घटनाक्रम के चलते किसी स्थान का महत्व बढ़ जाता है यानि कल तक जिस जगह का समाचार से संबंध नहीं था, उसका समाचार मूल्य आज अधिकतम हो। उदाहरण के लिए हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति श्री ए पी जे अब्दुल कलाम का निधन हो गया, ऐसे में उन्होंने जहां जन्म लिया, जहां शिक्षा ली और किसने उन्हें पढ़ाया साथ ही उनके मित्र सभी समाचार में शामिल किए गए। यानि कल तक महत्व नहीं था लेकिन आज समाचार के दृष्टिकोण से उल्लेखनीय हो जाता है। ऐसा तब भी होता है जब हम किसी त्यौहार या दिवस मना रहे होते हैं। जैसे स्वतंत्रता दिवस, स्वाधीनता दिवस, शिक्षक दिवस, पर्यावरण दिवस या होली व दीपावली इत्यादि। किसी व्यक्ति के उल्लेखनीय कार्य और पुरस्कार में भी ऐसा होता है जैसे हाल ही में एक शब्द वॉयरल हुआ, वह था सत्यम, शिवम, सुन्दरम। सभी संवाददाताओं से अपेक्षा की जाती है कि उनकी न्यूज़ कॉपी में समाचार उच्च मूल्य का होना जरूरी है यानि न्यूज़ वैल्यू अधिकतम हो। यदि संवाददाता अपनी न्यूज़ कॉपी में समाचार मूल्य को पैदा करने में कामयाब नहीं होता तो एक अच्छी सटोरी भी प्रकाशित नहीं हो पाती।
समाचार पत्र या चैनल की नीति
क्या समाचार नहीं बनाया जाएगा, इसके लिए समाचार पत्र व न्यूज़ चैनल की अपनी तय नीति भी होती है। उदाहरण के लिए एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में यह नीति रही कि जिस्मफरोशी की खबरों को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी और उन खबरों में दलालों को खुलकर कोसा जाएगा। ऐसे ही एक बार एक विश्वविद्यालय के स्तर को क्रमोन्नत करने के लिए राज्य विधानसभा में चर्चा शुरू हुई तो समाचार के संपादक ने बीट रिपोर्टर को निर्देश दिए कि जब तक विश्वविद्यालय के लिए किए जा रहे सकारात्मक कार्य पूरे नहीं हो जाते तब तक नकारात्मक समाचारों का प्रकाशन न किया जाए। इससे विद्यार्थियों को अध्ययन के लिए बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। यानि यह तय कर दिया गया कि इस समय के लिए क्या समाचार नहीं है। इसी प्रकार न्यूज़ चैनल में भी हिदायत दी गई कि अपराध और दुर्घटना के सभी समाचार राष्ट्रीय चैनल के लिए स्वीकार नहीं किए जा सकते। ऐसे में संवाददाता स्वयं तय करें कि उन घटनाओं में ऐसा क्या है जो बताने लायक है।
विज्ञापनदाता का हित
इसी प्रकार सभी समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों के अपने विज्ञापनदाता होते हैं और चूंकि वे अर्थार्जन का स्त्रोत होते हैं लिहाज़ा उनसे संबंधित नकारात्मक समाचारो का प्रकाशन व प्रसारण नहीं किया जाता है। हालांकि इस प्रकार के व्यापारिक संबंधो और अंदरूनी समझौतों को अनैतिक बताया जाता है लेकिन उद्योग जगत में इसे संधि या करार के बतौर मान्यता दी जाती रही है। हालांकि मुझे इस बात पर बेहद गर्व है कि वरिष्ठ उप संपादक के पद पर कार्य करते समय हमारे संपादक ने पॉलिसी को दरकिनार करते हुए करार के तहत प्रतिबंधित नकारात्मक समाचार को प्रकाशित किया। जिसमें सस्ते लेपटॉप के नाम पर विज्ञापन देकर ग्राहकों को लूटा जा रहा था। उसका असर यह हुआ कि फर्जी कंपनी पर पुलिस थानों में एक ही दिन में 250 से अधिक मामले दर्ज हुए और कंपनी का मालिक गिरफ्तार हुआ। आम तौर पर ऐसा होता नहीं है ऐसे में क्या समाचार नहीं है और उसे कैसे समाचार के पैमाने पर गढ़ा जाना है यह संवाददाता के अनुभव और लेखन कौशल पर निर्भर करता है।
उदाहरण के लिए एक निजी कॉलेज कई अखबारों और न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन देता था, इसीलिए उसका कोई भी नकारात्मक समाचार प्रकाशित नहीं होता था। ऐसे में एक वरिष्ठ संवाददाता ने बड़ी ही चतुराई के साथ नकारात्मक समाचार को सकारात्मक बनाकर प्रस्तुत किया। उस समाचार में लिखा गया कि फलां कॉलेज फिर पहले नंबर पर, कॉलेज ने अपने एडमीशन फार्म और ब्रॉशर बेचकर कमाए 8 करोड़ रूपए। उस समाचार को देखकर संपादकीय टीम के लोगों ने प्रकाशन के लिए योग्य मान लिया। उस समाचार का असर यह हुआ कि आयकर विभाग ने कॉलेज को ऑडिट किया और प्रवेश फार्म व अन्य मदों से अर्जित धन का उल्लेख न मिलने पर उस कॉलेज पर करोड़ों का बकाया निकाल दिया। बहरहाल यह कहा जा सकता है कि क्या समाचार नहीं है और क्यों नहीं है जानने के बाद तो संवाददाता की लेखनी की परीक्षा होती है। यदि उसमें दमखम है तो कई बार वह रोके जा सकने वाले समाचार को भी प्रकाशन और प्रसारण के योग्य बना लेता है।
इसके अलावा यह ज़रूरी नहीं कि जो समाचार पत्र मे प्रकाशित हुआ है वह टीवी न्यूज़ के लिए भी समाचार होगा। क्योंकि दोनों माध्यमों में स्थान और समय का एक बड़ा अंतर है। एक बार ऐसा ही हुआ समाचार पत्र के ऐसे वरिष्ठ व्यक्ति को टीवी न्यूज़ की जिम्मेदारी दे दी गई जो टीवी माध्यम की सीमाओं और प्राथमिकताओं को नहीं जानता था। ऐसे में संवाददाता परेशान हो गए क्योंकि वह संपादक समाचार पत्र की खबरो को बताते हुए उन्हीं पर समाचार करने को कहता था। इसी प्रकार टीवी के सभी समाचार अखबारों के लिए भी विषय वस्तु नहीं बनाए जा सकते। जैसे अदालत ने एक अपराधी को जेल भेज दिया और समाचार पत्र ने उससे बातचीत को प्रकाशित किया।
ऐसे में वह समाचार टीवी के लिए नहीं बनाया जा सकता क्यांेकि आप जेल में जाकर किसी का साक्षात्कार नहीं कर सकते। इसीलिए दोनों के लिए कई विषय समाचार हैं भी और नहीं भी। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि समाचार पत्र में 12 से 40 तक पृष्ठ हो सकते हैं। यानि वह बहुत सारे समाचार दे सकता है। लेकिन टीवी पर बुलेटिन का समय तय है लिहाज़ा कई समाचार प्राथमिकता से बाहर हो जाते हैं। हालांकि चैनलों ने इसका एक हल भी निकाला है जिसमें एक घंटे में 100 खबरे छोटी करके या उनकी झलकियां दिखाई जाने लगी हैं।
लेखक परिचय- डॉ. सचिन बत्रा शारदा विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, उन्होंने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में एमए और किया है और हिन्दी पत्रकारिता में पीएच-डी की है, साथ ही फ्रेंच में डिप्लोमा भी प्राप्त किया है। उन्होंने आरडब्लूजेयू और इंटरनेश्नल इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म, ब्रेडनबर्ग, बर्लिन के विशेषज्ञ से पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया है। वे दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और दैनिक नवज्योति जैसे समाचार पत्रों में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं और उन्होंने राजस्थान पत्रिका की अनुसंधान व खोजी पत्रिका नैनो में भी अपनी सेवाएं दी हैं। इसके अलावा वे सहारा समय के जोधपुर केंद्र में ब्यूरो इनचार्ज भी रहे हैं। इस दौरान उनकी कई खोजपूर्ण खबरें प्रकाशित और प्रसारित हुई जिनमें सलमान खान का हिरण शिकार मामला भी शामिल है। उन्होंने एक तांत्रिका का स्टिंग ऑपरेशन भी किया था। डॉ. सचिन ने एक किताब और कई शोध पत्र लिखे हैं, इसके अलावा वे अमेरिका की प्रोफेशनल सोसाइटी ऑफ़ ड्रोन जर्नलिस्टस के सदस्य हैं। सचिन गृह मंत्रालय के नेशलन इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ास्टर मैनेजमेंट में पब्लिक इंफार्मेशन ऑफिसर्स के प्रशिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध हैं। उन्होंने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक इमीडिया में 14 वर्ष काम किया और पिछले 5 वर्षों से मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
संपर्कः 9540166933 ईमेलः drsachin.journalist@gmail.com