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कहाँ होती है असली ख़बर?

कहाँ होती है असली ख़बर?

क़मर वहीद नक़वी।

एक पत्रकार में सबसे बड़ा गुण क्या होना चाहिए? बाक़ी बातें तो ठीक हैं कि विषय की समझ होनी चाहिए, ख़बर की पकड़ होनी चाहिए, भाषा का कौशल होना चाहिए आदि-आदि। लेकिन मुझे लगता है कि एक पत्रकार को निस्सन्देह एक सन्देहजीवी प्राणी होना चाहिए, उसके मन में निरन्तर सवाल उठते रहने चाहिए। जो चीज़ दिख रही है, वह तो दिख ही रही है, सबको दिख रही है, लेकिन जो चीज़ नहीं दिख रही है या ‘नहीं दिखायी’ जा रही है, वह क्या है?

जो बात बतायी जा रही है, वह तो बतायी ही जा रही है, लेकिन जो बात ‘नहीं बतायी’ जा रही है, वह क्या है? और जो बात बतायी भी जा रही है, आख़िर वही बात क्यों बतायी जा रही है, उसके बताये जाने के पीछे क्या कारण है? और जो बात नहीं बतायी जा रही, उसके न बताये जाने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? कोई राजनेता बयान दे रहा है, वह ऐसा बयान क्यों दे रहा है? वह आज ही ऐसा बयान क्यों दे रहा है? और यह बयान उसी से क्यों दिलाया जा रहा है, किसी और से क्यों नहीं, इन सब बातों में कई बार समाचारों के बड़े गहरे अर्थ छिपे होते हैं, जिन्हें समझना और पकड़ना ज़रूरी होता है।

आपके सामने जो बात लायी जाये, जो तथ्य रखे जायें, जो कहानी बतायी जाये, जो तर्क दिये जायें, उनमें से लगभग हरेक के पीछे कुछ ऐसा होता है, जिसे बताने वाला ‘हाईलाइट’ कर दिखाता/ बताता है, लेकिन उसमें कुछ ऐसा भी होता है, जिसे या तो बताया/ दिखाया नहीं जाता (अकसर जानबूझकर तो कभी-कभार अनजाने में भी), या छिपाया जाता है या छिपाने की कोशिश होती है या उससे कन्नी काटने की, टाल देने की चेष्टा होती है। बस असली ख़बर इसी के बीच होती है कि जो ‘हाईलाइट’ किया गया, वह क्यों किया गया और जिस तरफ़ ध्यान नहीं दिया गया या ध्यान नहीं जाने दिया गया, उसके पीछे बात क्या है?

अच्छा पत्रकार बनने के लिए ज़रूरी है कि सन्देह का कीड़ा हमेशा मन के भीतर कुलबुलाता रहे। आजकल इसकी कुछ कमी-सी महसूस होती है। हम पत्रकार लोग अब सवाल करना भूल गये हैं!

क़मर वहीद नक़वी : स्वतंत्र स्तम्भकार। पेशे के तौर पर 35 साल से पत्रकारिता में। आठ साल तक (2004-12) टीवी टुडे नेटवर्क के चार चैनलों आज तक, हेडलाइन्स टुडे, तेज़ और दिल्ली आज तक के न्यूज़ डायरेक्टर। 1980 से 1995 तक प्रिंट पत्रकारिता में रहे और इस बीच नवभारत टाइम्स, रविवार, चौथी दुनिया में वरिष्ठ पदों पर काम किया। 1995 में डीडी मेट्रो पर शुरू हुए 20 मिनट के न्यूज़ बुलेटिन को ‘आज तक’ नाम तो नक़वी ने दिया ही, उसे ज़िन्दा भाषा भी दी, जिसने ख़बरों को यकायक सहज बना दिया, उन्हें समझना आसान बना दिया और ‘अपनी भाषा’ में आ रही ख़बरों से दर्शकों का ऐसा अपनापन जोड़ा कि तब से लेकर अब तक देश में हिन्दी न्यूज़ चैनलों की भाषा कमोबेश उसी ढर्रे पर चल रही है! नक़वी ने अपने दो कार्यकाल में ‘आज तक’ के साथ साढ़े तेरह साल से कुछ ज़्यादा का वक़्त बिताया। इसमें दस साल से ज़्यादा समय तक वह ‘आज तक’ के सम्पादक रहे। पहली बार, अगस्त 1998 से अक्तूबर 2000 तक, जब वह ‘आज तक’ के ‘एक्ज़िक्यूटिव प्रोड्यूसर’ और ‘चीफ़ एक्ज़िक्यूटिव प्रोड्यूसर’ रहे। ‘आज तक’ के साथ अपना दूसरा कार्यकाल नक़वी ने फ़रवरी 2004 में ‘न्यूज़ डायरेक्टर’ के तौर पर शुरू किया और मई 2012 तक इस पद पर रहे। इस दूसरे कार्यकाल में उन्होंने ‘हेडलाइन्स टुडे’ की ज़िम्मेदारी भी सम्भाली और दो नये चैनल ‘तेज़’ और ‘दिल्ली आज तक’ भी शुरू किये। ‘टीवी टुडे मीडिया इंस्टीट्यूट’ भी शुरू किया। अक्टूबर 2013 में वह इंडिया टीवी के एडिटोरियल डायरेक्टर बने। उनकी ‘राग देश’ वेबसाइट है! (यह टिप्पणी इसी वेबसाइट से साभार है)।

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