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Home Contemporary Issues

…सवाल ये कि हम पत्रकार बनें ही क्यों?

…सवाल ये कि हम पत्रकार बनें ही क्यों?

महेंद्र नारायण सिंह यादव।

अगर आप पत्रकारिता कर रहे हैं या पत्रकारिता के क्षेत्र में आना चाहते हैं तो एक सवाल का सामना आपको कहीं न कहीं ज़रूर करना पड़ा होगा या पड़ सकता है कि आप पत्रकार क्यों बनना चाहते हैं। आखिर आप अपने सामने मौजूद तमाम आकर्षक पेशों को छोड़कर पत्रकारिता के क्षेत्र में ही क्यों आना चाहते हैं?

पत्रकारिता के तमाम विद्यार्थियों से अगर ये प्रश्न पूछे जाएं तो सबके अलग-अलग तरह के जवाब आते हैं। कई आदर्शों से भरी बातें और सरोकारों का जिक्र करते हैं, तो कई लेखन और साहित्य में अपनी रुचि का कारण बताते हैं। कई लोगों के अंदर राजनीतिक या सामाजिक नेतृत्व का गुण उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में ले आता है। कई लोगों का इस पेशे की चकाचौंध और ग्लैमर अपनी ओर खींचता है। ऐसा भी होता है कि कुछ लोग इस सवाल को सुनकर अचकचा जाते हैं और कुछ भी स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाते। खैर, ऊपर दिए गए तमाम कारण अपनी अपनी जगह सही हो सकते हैं और कुछ भ्रम भी हो सकते हैं, लेकिन इनके बारे में चर्चा करना रोचक भी हो सकता है और उपयोगी भी।

चलिए, अब ऊपर दिए इन्हीं या कुछ और कारणों की चर्चा थोड़ा विस्तार से करते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर आप लोग या कोई और पत्रकार क्यों बनना चाहते हैं।

देश और समाज की सेवा
पत्रकार बनने का सबसे आम उत्तर समाज की सेवा, दबे-कुचले और वंचित समाज की आवाज़ उठाना बताया जाता है। वो समाज में कहीं भी हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहते हैं, और देश को सही दिशा में ले जाते हुए सजाना-संवारना चाहते हैं। हालाँकि, इसके प्रत्युत्तर में यह कहा जा सकता है कि समाज का हर पेशा अपनी अपनी तरह से देश सेवा करता ही है। डॉक्टर, शिक्षक, वैज्ञानिक, निगम कर्मचारी, सब देश सेवा करते हैं या इन सारे पेशों के जरिए देश सेवा की जा सकती है और किसी भी पेशे को कमतर नहीं आँका जा सकता। ऐसे में समाज या देश की सेवा का कारण पत्रकार बनने के लिए उतना पर्याप्त तो नहीं कहा जा सकता जितना कि आप मानते होंगे।

सच्चाई की पक्षधरता
journalist1पत्रकार बनने के इच्छुक लोग सच्चाई के बहुत बड़े पैरोकार अपने को मानते हैं। और ये सही भी हो सकता है। आरंभ में तो अधिकतर मामलों में ये सत्य होता ही है। ऐसे में सत्य को सामने लाने की क्षमता पत्रकारिता में बहुत बड़ी चुनौती होती है। और, मुश्किल यह भी है कि सच्चाई के बारे में कोई बहुत निश्चित धारणा नहीं है। सच्चाई बहुत प्रचलित शब्द सही, लेकिन बहुत सुपरिभाषित नहीं है। खैर, बहुत गहराई में न जाते हुए, इतना तो समझा जा सकता है कि पत्रकारिता के लिए सच्चाई का मतलब किसी भी घटना से जुड़े सारे पहलुओं को संतुलित ढंग से सामने लाना माना जा सकता है।
पत्रकार के अंदर ये काबिलियत होनी चाहिए कि वह सारे पहलुओं को बाहर खोजकर निकाल सके और सही तथ्य स्थापित कर सके। कभी-कभार पत्रकार इसमें गलती भी कर सकता है, और इसका खामियाज़ा अपनी विश्वसनीयता गंवाकर उसे भी उठाना पड़ सकता है और कई बार खबर से जुड़े पक्षों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। दिल्ली में एक शिक्षिका द्वारा सेक्स रैकेट चलाने और छात्राओं को उसमें शामिल करने के स्टिंग ऑपरेशन को चलाकर रिपोर्टर और चैनल ने जो गलती की थी, वह सच्चाई और सारे पहलुओं की अनदेखी की बात थी, जिस कारण से शिक्षिका बहुत खतरे में पड़ गई थी और भारी हिंसा हुई थी। समाज में उत्पात की स्थिति बन गई थी, जबकि पूरा मामला गढ़ा हुआ था और शिक्षिका किसी भी तरह से सेक्स रैकेट नहीं चला रही थी।

व्यक्तिगत, क्षेत्रीय या जातीय अस्मिता
पत्रकारिता का एक मकसद कई लोग अपने वर्ग या समुदाय की आवाज़ को पुरजोर तरीके से उठाने का भी मकसद मानकर इस क्षेत्र में आ जाते हैं। अपने इलाके के पिछड़ेपन को आवाज़ देने, अपने समुदाय के साथ हो रहे अन्याय या अनदेखी की बात उजागर करने जैसे मकसद भी पत्रकार के अंदर स्वाभाविक हो सकते हैं क्योंकि पत्रकार आखिरकार इंसान ही है। पत्रकारों के साथ क्षेत्र, धर्म, नस्ल, जाति आदि के आधार पर भेदभाव भी हो सकता है और बहुधा होता भी है।

हालाँकि, जब आप पत्रकारिता के क्षेत्र में आ जाते हैं तो आपको निष्पक्ष होना ही पड़ता है। कोई पत्रकार किसी एक धारणा या पूर्वाग्रह को लेकर पेशे में बहुत लंबे समय तक नहीं टिक सकता और टिका भी रहे तो बहुत प्रतिष्ठा अर्जित नहीं कर सकता। आपके अपने निजी सरोकार हो सकते हैं, आपके निजी सामाजिक या वर्गीय दायित्व हो सकते हैं, लेकिन आपकी कलम निष्पक्ष ही दिखनी चाहिए। अपनी निजी सोच को उपदेशों के जरिए पत्रकारिता के माध्यम से जनता तक पहुंचाने की जिद पत्रकारिता में नहीं चल सकती। यह भी तो संभव है कि आपको पत्रकारिता में जगह मिल तो जाए लेकिन उसके अंदर आपको अपने पसंदीदा क्षेत्र में काम करने का मौका आपका संस्थान न दे।

व्यवस्था सुधार
देश के सत्ता प्रतिष्ठानों में बैठे लोगों को ज़मीनी हालत से अवगत कराने का कार्य पत्रकारिता करती है। कई बार अच्छी नीयत वाले राजनेता और अधिकारी भी चापलूसों से घिरकर जमीनी हकीकत से अनजान हो जाते हैं। उनके इर्दगिर्द रहने वाले लोग जी-हुजूरी करते रहते हैं, और वही बातें बताते हैं जो उन्हें आमतौर पर अच्छी लगने वाली होती हैं। ऐसे में पत्रकारिता ही तो उन्हें सच्चाई का बोध कराती है। हालाँकि इसके अपने खतरे भी होते हैं। किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति या अधिकारी से मिलते समय कई बार पत्रकार भी उसी चापलूसी की भावना से ग्रस्त हो जाता है और उन्हें खुश करने में लग जाता है। ऐसा करने की प्रक्रिया में वह भी सच्चाई से उन्हें परिचित नहीं कराता है।

जनहितों से जुड़ाव
journalistपत्रकार तो दरअसल जनता के हितों की रखवाली करने वाला होना चाहिए। जागरूक और सजग पत्रकार जनता तक सच्चाई पहुँचाता है और इस सच्चाई के बल पर जनता सत्ता पर बदलाव और सुधार के लिए दबाव बनाती है। हालाँकि इसके लिए पत्रकार के पास भरोसेमंद जानकारी होनी चाहिए, कि राजनेता और अधिकारी क्या सही और क्या गलत कर रहे हैं। सरकारी नीतियाँ कितनी असरदार और निष्पक्ष हैं? सच्चाई किसी खास अधिकारी या नेता के बारे में भी हो सकती है, मसलन, वह ईमानदार है या नहीं। जनता से जो वादे किए गए थे, उन्हें सही तरह से पूरा किया जा रहा है या नहीं? अगर कहीं कुछ सही नहीं हो रहा है तो उसका कारण क्या है? इस सबकी बेहद निष्पक्ष और विश्वसनीय जानकारी पत्रकार के पास होनी चाहिए।

यही कारण है कि मूल रूप में पत्रकारिता का कार्य खतरों से भरा होता है। जिसके बारे में पत्रकार नकारात्मक खबर देता है, वही उस पर पक्षपात के आरोप लगाने लगता है और कई तरह से ये साबित भी करने में जुट जाता है। राजनेता हों, या अधिकारी या कोई व्यापारी या गैर सरकारी संगठन, सभी अपने खिलाफ खबरें देखकर यही रवैया अपनाने के आदी होते हैं। वैसे भी किसी की बुराई करके उसकी सद्भावना हासिल कर पाना मुमकिन नहीं होता। पत्रकारिता में एक पुरानी कहावत है, “स्वतंत्रता वही है, जब आपसे हर कोई नफरत करने लगे।”

उत्सुकता
पत्रकार के अंदर का सबसे बड़ा गुण उसके अंदर अदम्य उत्सुकता या जिज्ञासा का होना है। अच्छे पत्रकार के अंदर भाँपने की बड़ी अच्छी शक्ति होती है और यह उनके पेशे में बहुत काम आती है। अच्छे पत्रकार से कुछ भी उपयोगी चीज़ या घटना छिप नहीं पाती। वे हर घटना का ब्यौरा जानना चाहते हैं और उसकी तह में जाना चाहते हैं। जो कुछ उन्हें पता चलता है, वो उसे सबको बताना भी चाहते हैं। इस प्रक्रिया का अपना दबाव भी होता है। नया पत्रकार हर हाल में अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता है। तमाम विषयों और क्षेत्रों की जानकारी न होना उनके सामने बड़ी चुनौती होती है। खबर करने से पहले पत्रकार को कई बार संबंधित विषय की अच्छी खासी जानकारी हासिल करनी होती है और कई करते भी हैं। हालाँकि, कई पत्रकार इसकी परवाह किए बिना ही काम पर चल देते हैं।

प्रतिष्ठा और प्रभाव
पत्रकार की अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा भी होता है। यह भी सचाई है कि अनेक लोग केवल इसी कारण ही पत्रकारिता के पेशे में आते हैं। प्रशंसकों का होना अच्छी बात है, लेकिन इसके भी अपने खतरे होते हैं। सत्ता होने का घमंड पत्रकार की निष्पक्षता खत्म कर सकता है और जब कोई पत्रकार किसी सत्ता प्रतिष्ठान के बहुत निकट हो जाता है, तो वह अपनी विश्वसनीयता खो बैठता है। आदरभाव अच्छी पत्रकरिता के लिए उपयोगी नहीं है। जिसके बारे में आप बहुत आदर रखते हैं, उसके बारे में आप जो भी कहेंगे, वह निष्पक्ष नहीं हो सकता। प्रभावशाली लोगों से स्वागत सत्कार कराने की आदत आपकी पत्रकारिता को प्रभावित किए बिना नहीं रह सकती।

प्रसिद्धि की चाह
पत्रकारों के अंदर मशहूर होने की इच्छा भी स्वाभाविक रूप से होती है और आमतौर पर पाई जाती है। पत्रकारिता के क्षेत्र में आने का कई लोगों के लिए यह भी बहुत बड़ा कारण होता है। कोई भी युवा पत्रकार बोफोर्स कांड, तहलका कांड, हाल के स्टिंग ऑपरेशनों से प्रभावित होकर खुद भी इस तरह की प्रसिद्धि पाने की चाह अपने मन में रख सकता है, जैसी कि इन चर्चित खबरों को करने वाले पत्रकारों को मिली। किसी बड़ी घटना को कवर करने वाले पत्रकारों को उस विषय पर किताब लिखने के अनुबंध तुरंत हासिल होने की भी मिसालें हमारे यहां मौजूद हैं। हालाँकि प्रसिद्धि के अपने फायदे हैं तो अपने खतरे भी। प्रसिद्धि के लिए कभी किसी खबर के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। श्रेष्ठ पत्रकार मशहूर होते हैं तो अपनी निष्पक्षता, सच्चाई और लगन के कारण ही मशहूर होते हैं।

पैसा कमाने चाह
पत्रकारिता एक व्यवसाय है और धन कमाने का स्रोत भी। कई बड़े और नामी पत्रकारों ने पत्रकारिता के जरिए अच्छी खासी आर्थिक आमदनी हासिल की है। युद्ध काल में, खासकर जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया किसी क्षेत्र में खबर कवर करने जाता है, तो अनुवादकों, स्थानीय संवाददाताओं और मध्यस्थों को उनके साथ काम करने का मौका मिलता है, और इसके जरिए वो अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं। अगर आप होशियार और जिम्मेदार होने के साथ-साथ अंग्रेजी में अच्छे हैं, तो आपके लिए कमाई के अच्छे अवसर होते हैं।

एक समय हिंदी पत्रकारिता में बहुत पैसा नहीं माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से हालात बहुत तेजी से बदले हैं। अब अनेक हिंदी पत्रकार मोटी मोटी तनख्वाह ले रहे हैं और उनका रहन-सहन अंग्रेजी पत्रकारों के समतुल्य ही हो गया है। हालाँकि शुरुआती स्तर पर बाजार की मजबूरियाँ भी काम करती हैं, और कई पत्रकारों को बहुत कम वेतन पर भी काम करना पड़ जाता है।

पत्रकारिता के जरिए धनी बनने की इच्छा कई बार पत्रकारों को गलत रास्ते अपनाने पर भी मजबूर कर देती है। वो लोगों से उपहार और रिश्वत तक लेने लगते हैं। सही पत्रकारिता में ये सब कतई नहीं होना चाहिए क्योंकि जब पत्रकार किसी अनुचित तरीके से धन कमाता है, तो उसकी कीमत वह अपनी कलम बेचकर ही चुकाता है। ऐसे में सबसे अच्छी सलाह तो यही है कि आपका मूल मकसद अगर पैसा कमाना ही है तो आप किसी अन्य ऐसे व्यवसाय में जाएँ, जहाँ आप ज्यादा धन कमा सकें। पत्रकारिता फिर आपके लिए है ही नहीं।

ज़ोखिम उठाने की प्रवृत्ति
ज़ोखिम उठाने की प्रवृत्ति भी कई पत्रकारों को इस पेशे में ले आती है। नियमित 9 से 5 तक की किसी कार्यालयीन नौकरी उन्हें रास नहीं आती। उन्हें हमेशा कुछ नया और उत्तेजनापूर्ण चाहिए होता है और उनका मकसद पत्रकारिता में आकर ही पूरा होता है। इस पेशे में उन्हें लगातार तरह-तरह के लोगों से मिलने का मौका मिलता है, और उन मुलाकातों से मिलने वाले अनुभवों को किसी न किसी रूप में व्यक्त करने का भी मौका मिलता है, जबकि किसी अन्य पेशे में ऐसे अवसर कम ही रहते हैं। पत्रकारिता में भ्रमण करने और कई बार देश की सीमाओं तक पर जाने का अवसर मिलता है।
हालाँकि ऐसा नहीं कि सारे पत्रकारों को ये अवसर मिलते ही हैं। सच्चाई तो यह है कि अधिकतर नहीं, बल्कि बहुत थोड़े पत्रकारों को ही ये अवसर मिलते हैं, लेकिन नए पत्रकारों को वे ही ज्यादा आकर्षित करते हैं। वैसे जिन जोखिमपूर्ण कार्यों या एडवेंचर के प्रति पत्रकार आकर्षित होते हैं, वो कई बार मुश्किल भी होते हैं। कई बार आधी रात को भी किसी घटना को खबर करने जाना पड़ सकता है। कई शहरों में जाने का तो मौका मिलता है, बल्कि विदेशों में भी जाने का मौका मिल सकता है, लेकिन अधिकतर वहाँ पर काम में इतना व्यस्त रहना पड़ता है कि वहाँ के लोगों से मिलने-जुलने या घूमने फिरने का मौका मुश्किल से ही हाथ लग पाता है।

कई बार घर-परिवार से दूर रहना पड़ जाता है। घर-परिवार में पर्याप्त समय न दे पाने की दिक्कत तो अधिकतर पत्रकारों को झेलनी पड़ती है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में अनेक पत्रकार बहुत अधिक तनाव झेलते देखे जाते हैं।

कला प्रेम
अनेक पत्रकारों के इस क्षेत्र में आने का कारण उनका इस पेशे से प्यार करना होता है। रेडियो या टीवी पर कार्यक्रम पेश करने का एक अलग ही आनंद होता है और ये नए लोगों को बेहद आकर्षित करता है। खबरें पढ़ना या खबरों की रिपोर्टिंग करना और टीवी पर दिखना और यह महसूस करना कि हजारों-लाखों लोग आपको देख-सुन रहे हैं, यह एक अलग तरह का आनंद देता है।

साहित्य और भाषा के प्रति प्रेम भी पत्रकारिता की ओर आकर्षित करता है, हालाँकि यह समझना चाहिए कि साहित्य या पुस्तकों की तरह पत्रकारिता का कार्य-अखबार, खबरें, रिपोर्टिंग आदि चिरस्थायी नहीं होता। अधिकतर खबरों का महत्व बहुत कम समय तक कायम रहता है। अखबार भी कुछ घंटों बाद पुराने मान लिए जाते हैं। इसी तरह से टीवी की रिपोर्टिंग की तुलना किसी फीचर फिल्म से नहीं की जा सकती। यह अंतर लेखन या वाचन की शैली में भी दिखता है। पत्रकारिता में बहुत अधिक साहित्यिक या मुहावरेदार भाषा शैली अवांछनीय ही नहीं, अक्सर हास्यास्पद भी मानी जाती है। पत्रकार से अपेक्षा की जाती है कि वह बेहद सरल और आम बोलचाल के शब्दों में अपनी बात को व्यक्त करे।

महेंद्र नारायण सिंह यादव सहारा समय में वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे जाने माने अनुवादक भी हैं।

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