निभा सिन्हा |
महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार को लेकर लंबे समय से वैश्विक स्तर पर चिंता व्यक्त की जा रही है और समय समय पर इसके लिए कदम भी उठाए गए हैं। देश में आजादी के बाद से नीति निर्माताओं ने मुख्यघारा की मीडिया, रेडियो, टेलीविजन, और समाचार पत्रों से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार लाने की उम्मीद की। लेकिन इस मीडिया ने यथास्थिति को ही बनाए रखा और महिलाओं की सामाजिक स्थिति में बहुत सकारात्मक परिणाम आते हुए नहीं दिखे। आज डिजिटल क्रांति के युग में नई मीडिया से एक नई उम्मीद बनी है कि यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिससे महिलाओं की स्थिति में सुधार की संभावना काफी हद तक की जा रही है। इस आलेख में यह जानने का प्रयास किया गया है कि क्या नई मीडिया महिलाओं के लिए वाकई सामाजिक परिवर्तन का माध्यम साबित हो रहा है। इस नए माध्यम से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार आने की क्या संभावनाएं और चुनौतियां है? इस अध्ययन के लिए विषय वस्तु विश्लेषण और कुछ अनौपचारिक साक्षात्कार एवं निरीक्षण विधि का इस्तेमाल कर प्राप्त तथ्यों का गुणात्मक विश्लेषण करके एक निष्कर्ष पर पहुँचने की कोशिश की गयी है।
नई मीडिया स्वामित्व संरचना एवं भागीदारी के लिहाज से पारंपरिक मीडिया से बिलकुल अलग है और मीडिया के पारंपरिक निर्माताओं का जनसंचार पर उनके एकाधिपत्य को सीधे तौर पर चुनौती देता है। (विलियम्सन, 2009) यह एक ऐसा माध्यम है जहां कोई किसी की पहुँच या अभिव्यक्ति की आजादी को सीमित नहीं कर सकता है। नई मीडिया इंटरनेट आधारित एक ऐसा संचार है जिसमें इसे इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति ऑनलाइन समुदाय बनाकर उनके साथ किसी भी तरह के सूचना, विचार, व्यक्तिगत संवाद, वीडियो या ऑडियो शेयर कर सकता है। ब्लॉग, वेबसाईट, फेसबुक, ट्विटर, हाइक, इंसटाग्राम, वाट्सएैप आदि प्रचलित नई मीडिया हैं।
‘बेशक आज की तारीख में नई मीडिया हम महिलाओं के प़क्ष में बहुत प्रभावकारी हथियार के रूप में उभरा है। इसकी पारदर्षिता और सत्यता ने हम औरतों को उनकी बुनियाद दी है। हमें आईना दिया है, जिसमें हम दुनिया को उसकी असलियत दिखा सकते हैं। नई मीडिया ने हमें वह जरिया उपलब्ध कराया है जहां सामाजिक परिवर्तन के लिए हम अपनी सोच को आवाज दे सकते है। पूरी कौम के सामने खड़े होकर अपनी आजादी, अपने अधिकार की लडाई लड़ सकते है और इसकी शुरूआत हो चुकी है।‘ ऐसा मानना है एक महिला स्वतंत्र पत्रकार का, जो बहुत ही आशावादी नजरों से देखती है नई मीडिया को। उन्हें लगता है कि इस माध्यम से महिलाएं अपनी आवाज दुनिया के सामने उठा सकती है जिसकी जिम्मेदारी पहले कोई दूसरी मीडिया नहीं ले पाई। समाज में महिलाओं की स्थिति को हमेशा दूसरे लोग अपने तरीके से प्रस्तुत करते रहे लेकिन नई मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां महिलाएं अपनी सोच को स्वयं ही प्रस्तुत कर सकती है जो उनकी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
दूसरी तरफ एक मीडिया प्रशिक्षक नई मीडिया क बारे में कहते है, ‘मैं निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि सोशल मीडिया महिलाओं के लिए सामाजिक परिवर्तन में कितनी मदद कर रहा है लेकिन यह मीडिया सूचना, जागरूकता और कुछ हद तक सामाजिक चेतना अवश्य सुनिश्चित करता है। इस मीडिया से वास्तव में जमीनी स्तर पर परिवर्तन आया होता तो महिलाओं की स्थिति में कुछ हद तक सुधार होता।‘ भारत में अब भी नई मीडिया का इस्तेमाल काफी कम लोग कर रहे है और जिस स्तर पर मीडिया का इस्तेमाल हो रहा है उसके आधार पर शायद यह नहीं कहा जा सकता कि महिलाओं के सामाजिक स्तर में बहुत सुधार हुआ है। आज भी बहुत कम ही महिलाएं है जिन तक इस मीडिया की पहुंच है और वे इसका इस्तेमाल कर पाती है।
अतीत में शिक्षिका रह चुकी एक गृहिणी कहती हैं,‘ नहीं, मैं नहीं मानती कि नई मीडिया महिलाओं की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन का कोई माध्यम साबित हो रहा है क्यों कि यह मीडिया अभी शहरी क्षेत्रों में प्रचलित है और जहां तक महिलाओं की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन की बात है ग्रामीण इलाकों में उसकी जरूरत ज्यादा है।‘ लेकिन यहां सवाल तो यह है कि क्या शहरी इलाकों में भी जिन महिलाओं तक इसकी पहुंच है, उन महिलाओं के लिए क्या यह सामाजिक स्थिति में सुधार का माध्यम साबित हो रहा है ? क्या वे महिलाएं इनका लाभ उठाकर अपनी स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए क्या कुछ कर पा रही है। वाट्सएैप जैसे सोशल साइट्स पर सखी सहेली, महिलाएं, घरेलू महिलाएं जैसे ग्रुप पर दिन भर आदान प्रदान होने वाले संदेशों को देखा जाए तो वे ज्यादातर मनोरंजन का साधन के रूप में दिखाई देते हैं। इन पर कई बार ऐसे संदेश भी होते हैं जो उनको निश्चित रूप से जागरूक कर रहे हैं। लेकिन उन महिलाओं के ग्रुप में वैसे संदेशों के आदान प्रदान बहुत कम हो रहे हैं जिनसे सामाजिक स्थिति में परिवर्तन की गुंजाइश है।
जो महिलाएं व्यावसायिक रूप से दक्ष और रोजगारपरक है उन्होंने काफी हद तक इन मीडिया का इस्तेमाल मनोरंजन के अलावा महिलाओं के सामाजिक स्तर में सुधार के लिए भी किया है लेकिन वो सिर्फ सूचनाएं प्राप्त कर रही हैं और अपने स्तर पर अपनी स्थिति को सुधारने के लिए कोई ज्यादा प्रयास नही कर रहीं। परिवर्तन की गुंजाइश तब ज्यादा होगी जब महिलाएं अपनी बातें स्वयं कहना आरंभ करेंगी और इस मीडिया के माध्यम से आगे आएंगी। मुख्यधारा की मीडिया (रेडियो टेलीविजन और समाचार पत्र) अब तक महिलाओं की स्थिति में ज्यादा सुधार नही कर पाई तो कहीं न कहीं इसकी वजह यही रही कि महिलाओं की समस्याएं दूसरे लोग अपने तरीके से उठाते रहे और उनका समाधान करते रहे लेकिन जब तक महिलाएं अपनी समस्याएं स्वयं आगे लेकर नहीं आ पाएंगी तब तक सामाजिक स्तर में परिवर्तन की बहुत गुंजाइश नहीं बनती।
प्रबंधन के क्षेत्र में लगभग बारह वर्षों का अनुभव रखने वाली महिला कहती हैं, ‘इस मीडिया ने महिलाओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है। इस मीडिया के कारण लोगों की रूढिवादी सोच में काफी हद तक बदलाव आ रहा है।’ स्कूल में छात्रों के काउंसेलिंग का काम कर चुकी महिला कहती हैं कि ‘नई मीडिया महिलाओं के सामाजिक परिवर्तन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। महिलाओं के बारे में जो सामाजिक सच्चाइयां अब तक सामने नहीं आ पाई थी, नई मीडिया उसे लोगों के समक्ष लाने का काम कर रही है। इस तरह यह लोगों में जागरूकता लाने का काम कर रही है जो अब तक नहीं आ पाया था।’
दस वर्षों से जनसंचार एवं पत्रकारिता का प्रशि क्षण देने वाली एक असिसटेंट प्रोफेसर मानना है कि ‘महिलाओं की सामाजिक स्थिति में बदलाव के लिए नई मीडिया एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है। पहला तो यह मीडिया सभी तरह की महिलाओं के समक्ष सभी तरह की सूचनाएं ला रहा है । आधुनिक समय में हम इस बात को बखूबी समझते हैं कि सूचना ही शक्ति है। एक बार जब आप अपने आस पास होने वाली गतिविधियों, अपने अधिकारों और जरूरतों के बारे में वाकिफ होते है तो आप उसे पाने की कोशिश करते है। अब तक सीमित सामाजिक’ सांस्कृतिक परिस्थितियों में जो ज्ञान और सूचनाएं महिलाओं तक पहुंचती थी वो भी सीमित होता था। कई बार यह जानबूझकर महिलाओं को नियंत्रित करने के लिए भी होता था। लेकिन नई मीडिया अनियंत्रित एवं असीमित है। नई मीडिया तक पहुंचने के लिए आज बहुत संसाधन की भी जरूरत नहीं है। फोन के माध्यम से भी जुड सकते है। इस तरह इस माध्यम ने सूचना को लोकतांत्रिक बनाने का काम किया है जो कि महिलाओं की समाजिक स्थिति में सुधार के लिए प्रेरक शक्ति का काम कर रही है।’
एक स्वतंत्र महिला पत्रकार को भी नई मीडिया से बहुत उम्मीदें हैं क्यों कि यह बहुत बड़े दर्शक वर्ग के साथ महिलाओं को त्वरित रूप से जोड़ने का माध्यम उपलब्ध कराता है। वे मानती है कि यह मीडिया हमारे विचारों के विस्तार का अवसर उपलब्ध कराता हैं। यदि इस्तेमाल तर्कसंगत तरीके से होता तो नतीजे ऑैर बेहतरीन होते।’
अपना प्रोडक्शन हाउस चला रहे कंटेंट राइटर भी नई मीडिया से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार की बहुत संभावनाएं देखते है। वे कहते हैं, ‘निश्चित रूप से नई मीडिया महिलाओं की स्थिति में सुधार का एक माध्यम साबित हो रहा है। इनका मानना है कि सोशल मीडिया से घरेलू हिंसा तक को रोकने में बहुत मदद मिल रही है। लोग संबंधित वीडियो देखकर काफी प्रभावित होते है और फिर बाद में उस पर अमल भी करते हैं। महिलाओं के बारे में आने वाले सकारात्मक संदेशों का भी लोगों पर अच्छा प्रभाव होता है और यह लोगों की सोच बदलने में बहुत कारगर साबित हो रहा है।‘ यदि इस तरह धीरे धीरे भी नई मीडिया में सकारात्मक संदेशों को बढावा दिया जाता रहा तो आने वाले समय में महिलाओं की स्थिति में और बदलाव की काफी गुंजाइश है । लेकिन पिछले चौदह वर्षों से पत्रकारिता कर रही महिला का मानना है कि ‘नई मीडिया बहुत सशक्त माध्यम बन सकता है महिलाओं को जागरूक और सशक्त करने के लिए। लेकिन अभी तक वो इस्तेमाल और असर दोनों ही नहीं दिखा है जो दीख सकता था। रोटी, कपडा और मोबाइल का जुमला तो आज बिलकुल सटीक बैठ चुका है लेकिन आज भी ज्यादातर मोबाइल पर इंटरनेट द्वारा पूरी दुनिया से जुडने के बाद भी महिलाओं का एक बडा तबका पुरुषों द्वारा दी जा रही सेकेंड हैंड जानकारी पर ही ज्यादा भरोसा करता है।‘
मुख्यधारा की मीडिया भी महिलाओं के विकास के लिए ज्यादातर पुरूषों के द्वारा दिए गए ज्ञान पर ही भरोसा करती रही और इसका परिणाम यह हुआ कि उद्देश्य आज तक पूरा नहीं हुआ। नई मीडिया में इस बात की गुंजाइश है कि महिलाएं अपनी बाते इस प्लेटफॉर्म पर स्वयं ही रख सकती है। इसके लिए उन्हें किसी मध्यस्थ की जरूरत नहीं होती। इसीलिए नई मीडिया अन्य मीडिया से अलग है। लेकिन इसके लिए महिलाओं को जागरूक होना पडेगा। उन्हें इस बात को समझना होगा कि उनके विकास और सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए उन्हें स्वयं भी आगे आना होगा। जब तक निर्भरता दूसरों पर बना रहेगी तब तक स्थिति को बदलने का दावा कोई नहीं कर सकता।
डेल स्पेंडर (1995) के अनुसार इंटरनेट महिलाओं के व्यक्तिक और सामूहिक नेटवर्किंग के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माध्यम है। यह व्यक्ति निर्मित ऐसा माध्यम नहीं है जिसमें किसी तरह के जोड़ तोड़ की गुंजाइश हो। इसमें व्यक्ति की इच्छानुसार सामाजिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संचार एवं सूचना तकनीकी की सुविधा उपलब्ध है लिन (2000)। एक बडा पुरूष वर्ग भी नई मीडिया को महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में देखता है। प्रबंधन के क्षेत्र में लगभग बीस वर्षों का अनुभव रखने वाले एक कंपनी के मुख्य प्रबंधक मानते है कि ‘नई मीडिया महिलाओं से संबंधित सभी तरह के सामाजिक, सांस्कृतिक मुद्दों को बहुत आसानी से सबके सामने लाने का काम कर रहा है। इस मीडिया के कारण अनजाने में समाज पर एक तरह का दबाव भी बना है कि वे महिलाओं के साथ अपने व्यवहार को बदले। इसके अलावा महिलाओं को भी अवसर मिला है जिसे जानबूझ कर कोई अपने फायदे के लिए नियंत्रित भी नहीं कर सकता। लेकिन नई मीडिया का इस्तेमाल यदि जिम्मेदारी के साथ की जाय तभी इसके बेहतर नतीजे समाने आएंगे।‘
ऐसी ही उम्मीद इंजीनियरिंग के फाइनल इयर के छात्र को भी है जो मानते हैं कि ‘नई मीडिया सभी को लोकतांत्रिक मंच प्रदान करता है। निश्चित तौर पर नई मीडिया उन महिलाओं की सामाजिक स्थिति को बदलने की क्षमता रखता है जिनकी पहुंच इस मीडिया तक है लेकिन यहां यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि यह कितनी प्रभावकारी साबित हो रही है। विडंबना यह है कि जिन महिलाओं की इस मीडिया तक पहुंच है उनकी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन की ज्यादा जरूरत नहीं है क्यों कि वे अपने लिए उपलब्ध संसाधनों को लेने का अधिकार जानती है। और दुर्भाग्यपूर्ण रूप से एक बडी महिला आबादी जिन्हें वाकई इस मीडिया की आवश्यकता है उन्हें कभी इन माध्यमों तक पहुंचने की जरूरत ही महसूस नहीं होती।
यह माध्यम सामाजिक स्थिति में सुधार लाएगा लेकिन सुधार लाने के लिए मीडिया तक पहुंचना पहली जरूरत है और जरूरतमंद उन तक पहुंच नहीं पा रहे या पहुंच सकते है लेकिन उसकी जरूरत ही महसूस नहीं कर रहे। ‘ यदि देखा जाए तो वाकई उन महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार की काफी जरूरत है लेकिन उनकी पहुंच या रूचि इन माध्यमों में नहीं है। इसलिए उम्मीदें तब तक बहुत परिणाम नहीं दे पाएगी जब इन सभी को सार्थक रूप से इन माध्यमों से जोड़कर इनके महत्व को नहीं बताया जाता।
इस तरह कहा जा सकता है कि आज की तारीख में लगभग सब लोग यह तो मान रहे हैं कि नई मीडिया आज लोगों को सूचनाएं उपलब्ध करा रहा है और यह एक ऐसा लोकतांत्रिक मंच है जहां महिलाएं अपनी बातें आसानी से एक बडी जनसंख्या के सामने बगैर किसी प्रतिबंध के रख सकती है।
यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां बहुत ही तेजी से सूचनाएं वैश्विक रूप से लोगों तक पहुंच रही है और इसका फायदा निश्चित रूप से महिलाओं को मिल रहा है और वे इन सूचनाओं से कम से कम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी हो रही है। बदलाव की शुरूआत हो चुकी है और निश्चित रूप से समय के साथ महिलाओं की सामाजिक स्थिति में बदलाव के उपकरण के तौर पर नई मीडिया का और भी इस्तेमाल होगा। लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि इस मीडिया का इस्तेमाल संयम और जिम्मेदारी के अलावा तर्कसंगत रूप से किया जाय तो नतीजे बेहतर होंगे और उद्देश्यों को पूरा करना आसान होगा। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आज नई मीडिया के रूप में महिलाओं को एक ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध हुआ है जहां वे पहल करके अपनी सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव ला सकती हैं।
संदर्भ सूची
- स्पेंडर, डी (1995), नैटरिंग ऑन द नेट- वूमन, पावर एंड साइबर स्पेस, नॉर्थ मेलबॉर्न, स्पीनीफेक्स प्रेस।
- स्पेंडर, डी (1981), मेन्स स्टडीस मॉडिफाइड -द इंपैक्ट ऑफ फेमिनीज्म ऑन एकेडिमिक डिसिप्लीन।
- लिन, कैरोलिन ए एंड अट्किन जे डेविड, कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी एंड सोशल चेंज: थ्योरी एंड इम्प्लिकेशन्स, रूटलेज, न्यूयॉर्क एंड लंदन, 2011
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निभा सिन्हा, स्वतंत्र पत्रकार एवं गेस्ट लेक्चरर ; समाचारपत्रों के संपादकीय विभाग में काम करने एवं पत्रकारिता संस्थानों में लगभग पंद्रह वर्षों का अनुभव। जे-3109, गौड़ ग्रीन सिटी, इंदिरापुरम, गाजियाबाद, फोन नंबर-9810935325, ईमेलःsinha _nibha @yahoo.com