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संपादक आपसे विज्ञान के किसी मुद्दे पर तत्काल संपादकीय लिखने को कहे तो ?

संपादक आपसे विज्ञान के किसी मुद्दे पर तत्काल संपादकीय लिखने को कहे तो ?

देवेंद्र मेवाड़ी |

विज्ञान के क्षेत्र में बहुत कुछ ऐसा होता रहता है जिस पर वक्र दृष्टि से बात की जा सकती है ताकि वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक नीतिकारों को जगाया जा सके। इसलिए इस विधा में लिखने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान, वैज्ञानिक नीतियों और वैज्ञानिक वर्ग के आचार–व्यवहार पर सीधी मगर पैनी व आड़ी–तिरछी नजर जरूर रखनी चाहिए

संपादकीयः अगर आप समाचारपत्र में काम करते हैं तो संपादक आपसे विज्ञान के किसी ज्वलंत या सामाजिक मुद्दे पर तत्काल संपादकीय लिखने की अपेक्षा कर सकते हैं। संपादकीय ऐसे मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी है। इससे समाचारपत्र द्वारा उस वैज्ञानिक विषय या घटना को दिए गए महत्व का भी पता लगता है। संपादकीय पृष्ठ पर प्रायः तीन या कभी-कभी दो संपादकीय दिए जाते हैं। कई बार ऐसी टिप्पणी या संपादकीय का राजनीतिक, सामाजिक या नैतिक पहलू भी हो सकता है, इसलिए संपादकीय लिखना बहुत जिम्मेदारी का काम है। इसे लिखते समय समाचारपत्र की नीति को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है क्योंकि संपादकीय को समाचारपत्र का वक्तव्य माना जाता है। क्लोनिंग या परमाणु परीक्षणों को ही लें। क्या मानव क्लोनिंग संबंधी प्रयोग किए जाने चाहिए? या इनका विरोध किया जाना चाहिए? देश की परमाणु नीति क्या होनी चाहिए? इसी से संपादकीय दृष्टि का पता लगेगा। इसीलिए संपादकीय में पहले विषय की चर्चा की जाती है, फिर उसका विश्लेषण किया जाता है और समापन संपादकीय दृष्टि से होता है।

व्यंग्यः वैज्ञानिक व्यंग्य का क्षेत्र अभी तक अछूता है। इस विधा में लिखने की बड़ी संभावनाएं हैं। बस, एक ही जरूरत है- थोड़ा वक्र और पैनी दृष्टि ताकि बात तीर की तरह चुभे भी और मर्म को छुए भी। यहां नोबेल पुरस्कार विजेता कृषि वैज्ञानिक डॉ. नार्मन बोरलाग के एक भाषण का समापन अंश बरबस याद आ रहा है। उन्होंने वैज्ञानिकों से कुछ यों कहा: होमो सेपिएंस मतलब आदमी की एक नई नस्ल का विकास करके हमारी सभ्यता की रक्षा कीजिए। उस नस्ल की आंतों में ऐसा एंजाइम हो जो फाइलों के कागजों और लाल फीते के पहाड़ों को पचा सके।

उसमें साथी इंसानों के प्रति सहानुभूति व सहज बुद्धि का जीन होना चाहिए। एक जीन ऐसा भी हो जो संतानोत्पादन घटा सके क्योंकि इतिहास साक्षी है कि आदमी ने बार-बार आबादी बढ़ा कर कंगाली और अकाल आमंत्रित किए हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में बहुत कुछ ऐसा होता रहता है जिस पर वक्र दृष्टि से बात की जा सकती है ताकि वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक नीतिकारों को जगाया जा

सके। इसलिए इस विधा में लिखने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान, वैज्ञानिक नीतियों और वैज्ञानिक वर्ग के आचार-व्यवहार पर सीधी मगर पैनी व आड़ी-तिरछी नजर जरूर रखनी चाहिए।

कई बार अनुसंधान केवल अनुसंधान के नाम पर किया जा रहा होता है।

वह यों भी तो हो सकता हैः ‘केनिस फेमिलिएरिस (कुत्ता) की दुम टेढ़ी क्यों?’ और इसके अनुसंधानकर्त्ता कह सकते हैं- ‘इन अनुसंधानकर्त्ताओं को आश्चर्य है कि केनिस फेमिलिएरिस पर इतना अनुसंधान होने के बावजूद इसकी पूंछ का शाश्वत प्रश्न अछूता ही रह गया। गहन अध्ययन से इस अंग के बारे में केवल एक संदर्भ का पता लगा है। रूस के चेलम इलाके में लेमाक बिन लेकीश नामक महादार्शनिक (!) से किसी ने पूछा- कुत्ता अपनी दुम क्यों हिलाता है? जबाव मिला- क्योंकि वह अपनी दुम की तुलना में ज्यादा ताकतवर है। अगर दुम ज्यादा ताकतवर होती तो वह कुत्ते को हिलाती!’

 इसमें कितना– कुछ देखा जा सकता है। कुत्तों के लिए वातानुकूलित प्रयोगशालाएं, संतुलित मांसाहार, विभिन्न नस्लों के अध्ययन के लिए देश-विदेश की यात्राएं। सच मानिए, कई लाख रूपए भी कम पड़ जाएंगे।

 स्तंभ/कालमः कुछ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञान के नियमित स्तंभ या कालम भी प्रकाशित होते हैं। ये समाचार पत्रिकाएं आपको विज्ञान का नियमित स्तंभ या कालम लिखने का अवसर भी दे सकती हैं। ऐसे स्तंभ प्रायः विज्ञान, स्वास्थ्य, कृषि आदि विषयों से संबंधित होते हैं। इन स्तंभों के संक्षिप्त नाम होते हैं जैसे ज्ञान-विज्ञान, विज्ञान और जीवन, विज्ञान बिंदु, सर्च इंजन, आरोग्य, ओ पी डी, हरा कोना आदि। इनकी शब्द संख्या निर्धारित होती है। विज्ञान में रूचि रखने वाले पाठक बहुत रूचि के साथ इन स्तंभों को पढ़ते हैं। स्तंभ प्रायः सामयिक घटनाओं पर निर्धारित शब्द सीमा के भीतर रोचक शैली में लिखे जाते हैं ताकि पठनीयता बनी रहे।

 भेंटवार्त्ता (इंटरव्यू)- किसी वैज्ञानिक या वैज्ञानिक नीति निर्धारक से भेंट करके समाचार पत्र, पत्रिका या रेडियो व टेलीविजन के लिए वैज्ञानिक विषय पर भेंटवार्त्ता तैयार की जा सकती है। यह साक्षात्कार या इंटरव्यू भी कहलाता है। किसी से बात करना, बात-बात में काम की बात निकाल लेना अपने आप में एक कला है। वार्त्तालाप में कुशल व्यक्ति इस काम को बखूबी अंजाम दे सकते हैं। किसी वैज्ञानिक उपलब्धि या अनुसंधान के बारे में बात करने से पहले अपने-आप को उस विषय के बारे में प्रश्न पूछने के लिए तैयार कर लीजिए। उस बारे में हर संभव जानकारी का पता लगाइए। परमाणु विस्फोट पर प्रश्न पूछने हैं तो देश के परमाणु अनुसंधान कार्यक्रम की यथासंभव जानकारी जरूर होनी चाहिए, तभी तो सवाल पर सवाल पूछ सकेंगे। अगर मात्रा समाचार लिख रहे हैं तो सीमित लेकिन सार रूप में जानकारी का पता रहे। अगर किसी पत्रिका या समाचारपत्र के परिशिष्ट के लिए विचार लेना चाहते हैं तो बातचीत लंबी होगी। आप विषय के भीतर रह कर कितना-कुछ पूछ सकते हैं, यह आपकी बातचीत पर निर्भर करेगा। इस तरह ‘समाचार’ के लिए भेंटवार्त्ता हो सकती है और ‘विचार’ के लिए भी।

कुछ खास बातें जरूर ध्यान में रखिएः भेंट या इंटरव्यू के लिए समय पहले ले लीजिए, स्थान भी तय कर लीजिए, प्रश्नावली बना लीजिए, वैज्ञानिक के बारे में जितना पता लग सके लगा लीजिए, मिलने पर पहले बातचीत का माहौल बनाइए और उसी बहाव में प्रश्न भी पूछते जाइए। आप संक्षेप में पूछिए, वैज्ञानिक को बोलने दीजिए लेकिन विषय से उन्हें भी भटकने न दीजिए। इस विधा में लोकप्रिय विज्ञान लेखन की बड़ी संभावनाएं हैं। इसमें आप सदैव कुछ नया पा और ला सकते हैं।

विज्ञान नाटकः विज्ञान लेखन की यह एक और विधा है जिसमें काफी लिखा जा सकता है। अब तक इस विधा में नाममात्र ही लिखा गया है। विगत कुछ वर्षों में वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक नुक्कड़ नाटक लिखे और खेले जाने लगे हैं। अंधविश्वासों की पोल खोलने के लिए नुक्कड़ नाटक काफी प्रभावशाली रहे हैं। राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद ने आकाशवाणी के सहयोग से नाट्य शैली में अनेक विज्ञान धारावाहिकों का प्रसारण करवाया।

व्यावसायिक रंगमंच के लिए विज्ञान नाटक लगभग नहीं लिखे गए हैं। प्रख्यात जर्मन नाटककार बर्तोल्ट ब्रेख्त का एक प्रसिद्ध नाटक है- गैलीलियो, जिसके माध्यम से रूढ़ियों और धार्मिक कट्टरता व अंधविश्वास पर चोट की गई है। भीष्म साहनी का ‘हानूस’ नाटक घड़ी के आविष्कारक कारीगर के संघर्ष को सामने रखता है। हिंदी के सुपरिचित नाटककार प्रताप सहगल ने प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट प्रथम की खोजों को आधार बना कर ‘अन्वेषक’ नाटक की रचना की है जिसमें नाटककार ने प्रगतिकामी और प्रतिगामी शक्तियों का संघर्ष दर्शाया है। रंगमंच पर इस नाटक की अनेक सफल प्रस्तुतियां की जा चुकी हैं। नाटक के संवाद बेहद सशक्त हैं-

 बुधगुप्तः आप अपने अन्वेषण का विस्तार से उल्लेख करें।

आर्यभटः मैं जब बहुत छोटा था सम्राट! तभी, हां, तभी मुझे अच्छी तरह से याद है…..ये नक्षत्र मुझे अपनी ओर आकर्षित करते थे। मुझे लगता जैसे वे मौन स्वरों में मुझे निमंत्रण दे रहे हों- आओ, हमें पढ़ो, आओ, हमें पढ़ो और मैं रात्रि-भर जाग-जागकर उन नक्षत्रों को लाखों योजन दूर बैठा पढ़ने का प्रयास करता। थककर सो जाता। तब भी सूर्य, चंद्रमा, बुद्ध, मंगल और न जाने कितने नक्षत्र और ग्रह मेरे स्वप्नलोक का हिस्सा बनते। मुझे लगता जैसे ब्रह्मांड मुझे चुनौती दे रहा हो- मुझे पढ़ो, मुझे पहचानो और मैंने यह चुनौती स्वीकार कर ली।

चिंतामणिः आर्यभट! लगता है, आप अभिनय कला में भी निष्णात हैं। (कुछ लोग हंसते हैं।)

आर्यभटः हां, भरत, भास, कालिदास, सभी हमारी धमनियों में बहते रक्त का अंश हैं, हमारे हृदय का स्पंदन हैं और परंपरा से मिली विरासत।

चूड़ामणिः परंपरा का ही निषेध करने वाले व्यक्ति को परंपरा की बात शोभा नहीं देती सम्राट!

आर्यभटः अन्वेषण परंपरा का निषेध नहीं, उसका विकास है। कोई भी अन्वेषक तब तक अन्वेषण कर ही नहीं सकता जब तक वह परंपरागत मूल्यों, मानों और निष्कर्षों पर प्रश्नचिह्न न लगाए।

बुधगुप्तः वाह आर्यभट! वाह!

एक बात याद रखिए, हर विधा में गंभीर और समर्पित लेखन ही समय की कसौटी पर खरा उतर कर जीवित रहता है। इसलिए वैज्ञानिक नाटक लिखिए और ऐसे नाटक लिखिए कि वे बार-बार खेले जाएं।

विज्ञान कथाः आपने कई कथा-कहानियां पढ़ी और सुनी होंगीं। तरह-तरह की कथा-कहानियां- परियों की, जादूगरों की, पुराने समय के राजा-रानियों की, शूरवीरों की, पशु-पक्षियों की। और हां, शायद भूत-प्रेतों की और ऐसे काल्पनिक कैप्टनों और शक्तिमानों की जिनकी अकूत शक्ति और चमत्कारी कारनामों को पढ़ कर आप चकित रह गए होंगे। अपने करतब दिखाते-दिखाते कई बार तो वे चांद, शुक्र या बृहस्पति पर भी उछल-कूद रहे होते हैं। कोई जांबाज कैप्टन अंतरिक्ष में छूटे भयानक राक्षसी विलेनों को पकड़ रहा होता है। यह सब पढ़ते हुए कैसा लगता है आपको? क्या आप विश्वास कर लेते हैं कि ऐसा भी हो सकता है? या सोचते हैं कि चांद पर तो हवा ही नहीं है और शुक्र ग्रह भयानक तेजाबी बादलों और सागरों से घिरा है? बृहस्पति द्रव गैसों का गोला है? वहां भला कैसे उछल-कूद करेंगे? और, यह भी कि अगर विशाल ब्रह्मांड के किन्हीं अनजाने ग्रहों में जीवन है तो क्या वे केवल भूत-प्रेत और राक्षस ही होंगे? यह भी तो हो सकता है कि वे बहुत भले हों और हमारी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाएं। हर कथा-कहानी में जो कुछ होता है, घटता है उसके बारे में आप मन में जरूर सोचते होंगे कि ऐसा हो सकता है और ऐसा नहीं हो सकता है।

पहले तक लोग अंध विश्वास करते थे लेकिन विज्ञान ने हमारे सामने सच्चाई को साबित किया। क्यों और कैसे का जबाव दिया। हमें तर्क करना सिखाया। जब यों सोचा जाने लगा कि क्या ऐसा हो सकता है तो कथा-कहानी में विज्ञान ने एक नई जान डाल दी। नई खोजों और नई तकनीकों से क्या-कुछ हो सकता है-यह सोच कर नए प्रकार की कथा-कहानियां लिखी जाने लगीं। इन्हें ‘विज्ञान गल्प’ अर्थात् ‘साइंस फिक्शन’ या विज्ञान-कथाएं कहा गया। यों समझ लीजिए कि ‘कहानी की कला’ टॉर्च का खोल है और उसमें बैटरी ‘साइंस’ है। जब दोनों मिल जाते हैं तो ‘साइंस फिक्शन’ या विज्ञान गल्प का प्रकाश पैदा होता है।

विज्ञान कथा-शिल्पी विज्ञान की आत्मा के साथ कथा की काया का सृजन करता है। अगर उस काया में से विज्ञान की आत्मा निकाल दी जाए तो वह निष्प्राण हो जाएगी। इसलिए विज्ञान कथाकार में दुहरी योग्यता का होना आवश्यक है। एक ओर तो उसके पास संवेदनशील साहित्यकार का हृदय होना चाहिए और दूसरी ओर उसे विज्ञान की जानकारी भी होनी चाहिए। विज्ञान की पर्याप्त जानकारी न होने पर कथा केवल काल्पनिक तथ्यों पर आधारित होगी और उस कथा में तथा किसी परीकथा अथवा तिलिस्म-कथा में अंतर नहीं रह जाएगा। और, अगर साहित्य का ज्ञान नहीं होगा, लेखकीय संवेदना नहीं होगी तथा केवल वैज्ञानिक जानकारी को कथा के रूप में संजोने की कोशिश की जाएगी तो वह मात्रा वैज्ञानिक तथ्यों का संकलन होगा। इसलिए इस अंतर को साफ और बहुत गहराई से अनुभव किया जाना चाहिए।

विज्ञान कथा लिखने के लिए कहानी के स्वरूप और उसकी सीमाओं का ज्ञान आवश्यक है क्योंकि विज्ञान कथाओं पर भी साहित्यिक कहानी और उपन्यास के ही नियम लागू होते हैं। कथानक, पात्र और उनका चरित्र चित्रण, भाषा-शैली और उद्देश्य कथा के प्रमुख तत्व हैं। विज्ञान कथा लिखते समय यह जरूर ध्यान में रखा जाना चाहिए कि वह ‘कथा’ हो, रोचक शैली में लिखा हुआ सरस वैज्ञानिक लेख नहीं। हिंदी में विज्ञान कथाएं लिखी तो गई हैं और लिखी भी जा रही हैं लेकिन कुल मिला कर इस विधा में बहुत कम काम हुआ है। इसलिए इस क्षेत्र में लेखन की बड़ी संभावनाएं हैं। जूल्स वर्न, एच. जी. वेल्स, आइजैक असीमोव, आर्थर क्लार्क, रे ब्रेडबरी आदि अनेक प्रख्यात विदेशी विज्ञान कथाकार हैं।

एक बात और, प्रिंट मीडिया में आप कॉमिक्स कथाएं लिख सकते हैं। साथ ही अपने शब्दों को दीर्घ जीवन देने के लिए पुस्तकों की भी रचना कर सकते हैं। वे पुस्तकों की अलमारी में सजेंगीं और पाठकों को बार-बार पढ़ने के लिए आकर्ड्ढित करती रहेंगी। और हां, इलैक्ट्रानिक मीडिया व फिल्में भी तो आपका इंतजार कर रही हैं। (शेष अगली किस्त में)

देवेंद्र मेवाड़ी जाने–माने विज्ञान लेखक हैं. संपर्क : फोनः 28080602, 9818346064, E-mail: dmewari@yahoo.com

Tags: देवेंद्र मेवाड़ीव्यंग्यसंपादकीय
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