Author: newswriters

नाजिया नाज़ आज पत्रकारिता एक कठिन दौर से गुजर रही है. लोकत्रंत्र और समाज में इसकी जिस भूमिका के अपेक्षा की गयी थी वह धूमिल से हो गयी है. आम नागरिक के लिए ये पता करना मुशिकल हो गया है की क्या सच है और क्या झूठ? सवाल उठ रहे हैं की सूचना के इस युग में लोग किस हद तक सूचित हैं? किस हद तक जानकर हैं और इस सब में मीडिया क्या भूमिका अदा कर रहा है ? फर्जी खबरें नए खतरे के रूप में सामने आई हैं जिनके स्रोत अनेक हैं. पर चिंता तब अधिक होती है…

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मनीष शुक्ल हम आपको विज्ञान की कथा नहीं सुनाने जा रहे हैं बल्कि भविष्य की दुनियां में शामिल होने के लिए शिक्सित करने जा रहे हैं| ये शिक्सा है तकनीक से परिपूर्ण जीवन शैली की जहाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कृत्रिम मेधा का व्यापक उपयोग होगा| जिसमें विकास का रास्ता खुद तलाशना होगा और आशंकाओं का निराकरण भी खुद ही तलाशना होगा| ये सही भी है कि तकनीक अपने साथ विकास और आशंका को भी जन्म देती है है| फिर चाहें रोजी- रोजगार के अवसरों की हो या फिर जीवनशैली पर होने वाले असर की बात हो| सामाजिक, आर्थिक और…

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– आलोक पुराणिक1-आर्थिक पत्रकारिता है क्या2- ये हैं प्रमुख आर्थिक पत्र–पत्रिकाएं  औरटीवीन्यूजचैनल3-बाजार ही बाजार4- बुल ये और बीयर ये यानी तेजड़िया और मंदड़िया5- मुलायम, नरम, स्थिर, वायदा 6- शेयर बाजार पहले पेज पर भी7-  रोटी, कपड़ा और मकान से मौजूदा रोटी, कपड़ाऔरमोबाइलतक8-अमेरिका का बर्गर और चीन का मोबाइल9- बैंक, बजट, थोड़ा यह भी10-कंपनी ही कंपनी, शेयर यानी कंपनी के बिजनेस पार्टनर11-शेयर बाजार यानी कंपनी का शेयर बेचने का  बाजार, सेनसेक्स, निफ्टी, मुचुअल फंड12-संसाधन, लिंक1-आर्थिक–पत्रकारिता है क्याआर्थिक–पत्रकारिता शब्द में दो शब्द हैं–आर्थिक और पत्रकारिता। आर्थिक का संबंध अर्थशास्त्र से है। अर्थशास्त्र की बहुत शुरुआती परिभाषाओं में एक परिभाषा एल रोबिंस ने दी…

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आलोक श्रीवास्तवसंपादक‚ अहा जिंदगी व दैनिक भास्कर मैगजीन डिवीजन.संपादन एक व्यापक शब्द है। अकसर हम संपादन का अर्थ समाचारों के संपादन से लेते हैं। पर संपादन अपने संपूर्ण अर्थों में पत्रकारिता के उस काम का सम्मिलित नाम है‚ जिसकी लंबी प्रक्रिया के बाद कोई समाचार‚ लेख‚ फीचर‚ साक्षात्कार आदि प्रकाशन और प्रसारण की स्थिति में पहुंचते हैं। संपादन कला को ठीक से समझने के लिए जरूरी है कि यह जान लिया जाए कि यह क्या नहीं है:1. लिखित कॉपी को काट-छांट कर छोटा कर देना2. लिखित कॉपी की भाषा बदल देना3. लिखित कॉपी को संपूर्णतः रूपांतरित कर देना4. लिखित कॉपी को हेडिंग व सबहेडिंग…

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नीरज झा | खेल के प्रति जूनून चाहिएखेल आज की तारीख में पत्रकारिता का एक अहम अंग  है. पिछले 15 साल के अपने अनुभव में हमने इसमे काफ़ी बदलाव होतें देखा है. पहले जमाने में ये मुख्य पत्रकारिता का अंश नही माना जाता था, लेकिन समय के साथ इसने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. अब अख़बारो में जहाँ खेल की खबरें पहले पन्ने में भी दिखती है, वही टेलीविज़न में स्पोर्ट्स का अब अलग बुलेटिन भी अनिवार्य हो गया है. इस से पहले की हम इस विषय की गहराई में जाए,  इसकी थोड़ी सी पृष्ठभूमि को जाना ज़रूरी है.“खेल”…

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गोविन्द सिंह | लेखन: स्वरूप एवं अवधारणालेखन का संबंध मानव सभ्यता से जुड़ा है। जब आदमी के मन में अपने आप को अभिव्यक्त करने की ललक जगी होगी, तभी से लेखन की शुरुआत मानी जा सकती है। सवाल यह पैदा होता है कि हम क्यों लिखते हैं? कुछ लोग कहते हैं, अपने मन को हलका करने के लिए लिखते हैं, जैसा कि कविवर सुमित्रानंदन पंत ने कहा, ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान’। आदिकवि वाल्मीकि से जब मैथुनरत क्रौंच पक्षी जोड़े को बहेलिए द्वारा मार गिराए जाने का दृश्य देखा तो वे तड़प उठे. तब अनायास ही…

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कुमार मुकुल।बाजार के दबाव में आज मीडिया की भाषा किस हद तक नकली हो गयी है इसे अगर देखना हो तो हम आज केअखबार उठा कर देख सकते हैं। उदाहरण के लिए कल तक भाषा के मायने में एक मानदंड के रूप में जाने जाने वाले एक अख़बार ही लें। इसमें पहले पन्ने पर ही एक खबर की हेडिंग है- झारखंड के राज्यपाल की प्रेदश में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश। आगे लिखा है- झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी के प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा करने के बाद राज्य में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन की ओर बढ…

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डॉ . सचिन बत्रा।खोजी पत्रकारिता को अन्वेषणात्मक पत्रकारिता भी कहा जाता है। सच तो यह है कि हर प्रकार की पत्रकारिता में समाचार बनाने के लिए किसी न किसी रूप में खोज की जाती है यानि कुछ नया ढूंढने का प्रयास किया जाता है फिर भी खोजी पत्रकारिता को सामान्य तौर पर तथ्यों की खोजने से अलग माना गया है। खोजी पत्रकारिता वह है जिसमें तथ्य जुटाने के लिए गहन पड़ताल की जाती है और बुनी गई खबर में सनसनी का तत्व निहित होता है। विद्वानों का मत है कि जिसे छिपाया जा रहा हो, जो तथ्य किसी लापरवाही, अनियमितता,…

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सुभाष धूलिया |अपने रोजमर्रा के जीवन की एक नितांत सामान्य स्थिति की कल्पना कीजिए। दो लोग आसपास रहते हैं और लगभग रोज मिलते हैं। कभी बाजार में, कभी राह चलते और कभी एक-दूसरे के घर पर। उनकी भेंट के पहले कुछ मिनट की बातचीत पर ध्यान दीजिए। हर दिन उनका पहला सवाल क्या होता है? ‘क्या हालचाल है?’ या ‘कैसे हैं?’ या फिर ‘क्या समाचार है?’ रोजमर्रा के इन सहज प्रश्नों में ऊपरी तौर पर कोई विशेष बात नहीं दिखाई देती। इन प्रश्नों को ध्यान से सुनिए और सोचिए। इसमें आपको एक इच्छा दिखाई देगी। नया और ताजा समाचार जानने…

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