- People Around the World Want Political Change
- Eat Your AI Slop or China Wins
- Countries that lack power find a united voice
- Global press freedom suffers sharpest fall in 50 years
- Many Religious ‘Nones’ Around the World Hold Spiritual Beliefs
- Decline of American Power and the Rise of the East: Geopolitics, Technology, and the Future of World Order
- The Rise and Fall of Globalization
- The Rise of Global South
Author: newswriters
डॉ. महर उद्दीन खां |भारत गांवों का देश है। शिक्षा के प्रसार के साथ अब गांवों में भी अखबारों और अन्य संचार माध्यमों की पहुंच हो गई है। अब गांव के लोग भी समाचारों में रुचि लेने लगे हैं। यही कारण है कि अब अखबारों में गांव की खबरों को महत्व दिया जाने लगा है। अखबारों का प्रयास होता है कि संवाददाता यदि ग्रामीण पृष्ठभूमि का हो तो अधिक उपयोगी होगा। हर गांव एक खबर होता है और इस एक खबर के अंदर अनेक खबरें होती हैं। पत्रकार यदि समय समय गांव का दौरा करते रहें और वहां के निवासियों…
अतुल सिन्हा |टेलीविज़न में स्क्रिप्टिंग को लेकर हमेशा से ही एक असमंजस की स्थिति रही है। अच्छी स्क्रिप्टिंग कैसे हो, कौन सी ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया जाए जो दर्शकों को पसंद आए और भाषा के मानकों पर कैसी स्क्रिप्ट खरी उतरे, इसे लेकर उलझन बरकरार है। हम लंबे समय से यही कहते आए हैं कि भारत में टेलीविज़न प्रयोग के दौर से गुज़र रहा है। ये धारणा बना दी गई है कि भाषा से लेकर, स्क्रिप्टिंग और पैकेजिंग तक में हमारे चैनल अभी कच्चे हैं और हमें उन चैनलों से सीखना चाहिए जिन्होंने विदेशों में लंबे समय से अपनी…
अतुल सिन्हा।आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि देश में साहित्य, संस्कृति, विकास से जुड़ी खबरें या लोगों में सकारात्मक सोच भरने वाले कंटेट नहीं दिखाए जा सकते? कौन सा ऐसा दबाव है जो मीडिया को नेताओं के इर्द गिर्द घूमने या फिर रेटिंग के नाम पर जबरन ‘कुछ भी’ परोसनेको मजबूर करता है?आम तौर पर मीडिया जगत में और खासकर टीवी पत्रकारों में ये धारणा बन गई है कि राजनीति या अपराध की ख़बरों के बगैर पत्रकारिता नहीं हो सकती। टीवी चैनलों के तकरीबन 80 फीसदी कंटेंट इन्हीं दो क्षेत्रों के इर्द गिर्द दिखाई पड़ते हैं – नेताओं के बयानों…
प्रियदर्शन।हिन्दी और भाषाई मीडिया के लिए यह विडंबना दोहरी है। जो शासक और नीति-नियंता भारत है, वह अंग्रेजी बोलता है। इस अंग्रेजी बोलने वाले समाज के लिए साधनों की कमी नहीं है। वह इस देश की राजनीति चलाता है, वह इस देश में संस्कृति और साहित्य के मूल्य तय करता है, वह इस देश का मीडिया चलाता है। वह हिन्दी या दूसरी भारतीय भाषाओं को इसलिए जगह देता है कि उसे बाकी भारत से भी संवाद करना पड़ता है। लेकिन वह इन भाषाओं को हिकारत से भी देखता हैसमकालीन हिन्दी मीडिया की चुनौतियां पर इतनी बार और इतनी तरह से…
मधुरेन्द्र सिन्हा।टेक्नोलॉजी ने दुनिया की तस्वीर बदल दी है। ऐसे में पत्रकारिता भला कैसे अछूती रहती। यह टेक्नोलॉजी का ही कमाल है कि दुनिया के किसी भी कोने की घटना की खबर पलक झपकते ही सारे विश्व में फैल जाती है। दरअसल पत्रकारिता संवाद का दूसरा नाम ही तो है। मनुष्य के सभी कुछ जानने की प्रवृति या उसकी जिज्ञासा ने जिस पत्रकारिता को जन्म दिया, आज उसमें बहुआयामी बदलाव हो चुके हैं। कंप्यूटर ने इसमें गज़ब का बदलाव किया और पत्रकारिता के सुर और तेवर सब कुछ बदल गए। आज सिर्फ भारत में हजारों पत्र-पत्रिकाएं निकलती हैं तो सैकड़ों…
मनोज कुमार |इस समय की पत्रकारिता को सम्पादक की कतई जरूरत नहीं है। यह सवाल कठिन है लेकिन मुश्किल नहीं। कठिन इसलिए कि बिना सम्पादक के प्रकाशनों का महत्व क्या और मुश्किल इसलिए नहीं क्योंकि आज जवाबदार सम्पादक की जरूरत ही नहीं बची है। सबकुछ लेखक पर टाल दो और खुद को बचा ले जाओ। इक्का-दुक्का अखबार और पत्रिकाओं को छोड़ दें तो लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में ‘‘टेग लाइन‘‘ होती है- ‘‘यह लेखक के निजी विचार हैं। सम्पादक की सहमति अनिवार्य नहीं।‘‘इस टेग लाइन से यह बात तो साफ हो जाती है कि जो कुछ भी छप रहा है, वह…
मुकुल व्यास..सुबह चाय की चुस्कियों के साथ आप जिस अखबार का आनंद लेते हैं उसे बंनाने के लिए बहुत परिश्रम की आवश्यकता होती है। संपादक के नेतृत्व में पत्रकारों की एक सुव्यवस्थित टीम इस अखबार का निर्माण करती है। पत्रकारों की टीम को अलग-अलग विभागों में विभाजित किया जाता है। ये विभाग हैं मुख्य डेस्क,समाचार ब्यूरो, स्थानीय ब्यूरो,स्थानीय डेस्क, संपादकीय डेस्क,वाणिज्य डेस्क ,खेल डेस्क, रविवासरीय और फीचर डेस्क। इनके अलावा अखबार के कार्यालय में डिजाइन विभाग, फोटो विभाग और संदर्भ सामग्री विभाग भी होते हैं। समाचार ब्यूरो और स्थानीय ब्यूरो को छोड़ कर हर डेस्क उप-संपादकों द्वारा संचालित किया जाता…
सुरेश नौटियाल।समाचार लिखते समय ऑब्जेक्टिव होना अत्यंत कठिन होता है, चूंकि पत्रकार की निजी आस्था और प्रतिबद्धता कहीं न कहीं अपना असर दिखाती हैं। इसी सब्जेक्टिविटी के कारण एक ही समाचार को दस संवाददाता दस प्रकार से लिखते हैं। पर, उद्देश्य और नीयत खबर को सही प्रकार और सार्वजनिक हित में ही पहुंचाने का उपक्रम होना चाहिए।यह बात सच है कि जब हमारे जुबानी तीर चूक जाते हैं, तब हम मौन का सहारा लेते हैं चूंकि मौन की भाषा अधिक प्रभावशाली और शक्तिशाली मानी जाती है। पर, पत्रकारिता में ऐसा नहीं हो सकता। यह बिना शब्दों और भाषा के हो…
आलोक पुराणिक |1-आर्थिक पत्रकारिता है क्या2- ये हैं प्रमुख आर्थिक पत्र-पत्रिकाएं और टीवी न्यूज चैनल3-बाजार ही बाजार4- बुल ये और बीयर ये यानी तेजड़िया और मंदड़िया5- मुलायम, नरम, स्थिर, वायदा6- शेयर बाजार पहले पेज पर भी7- रोटी, कपड़ा और मकान से मौजूदा रोटी, कपड़ा और मोबाइल तक8-अमेरिका का बर्गर और चीन का मोबाइल9- बैंक, बजट, थोड़ा यह भी10-कंपनी ही कंपनी, शेयर यानी कंपनी के बिजनेस पार्टनर11-शेयर बाजार यानी कंपनी का शेयर बेचने का बाजार, सेनसेक्स, निफ्टी, मुचुअल फंड12-संसाधन, लिंक1-आर्थिक-पत्रकारिता है क्याआर्थिक-पत्रकारिता शब्द में दो शब्द हैं-आर्थिक और पत्रकारिता। आर्थिक का संबंध अर्थशास्त्र से है। अर्थशास्त्र की बहुत शुरुआती परिभाषाओं में…
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