Author: newswriters

देवेंद्र मेवाड़ी।मैंने विज्ञान लेखन कैसे शुरू किया?अपने आसपास की घटनाओं को देखा, मन में कुतूहल हुआ, उनके बारे में पढ़ा, लगा कितनी रोचक बात है- मुझे दूसरों को भी बताना चाहिए। सर्दियों की शुरूआत में हमारे गांव का सारा आकाश प्रवासी परिंदों से भर जाता था। मां ने बताया वे ‘मल्या’ हैं। ठंड लगने पर दूर देश से आती हैं। गर्म जगहों को जाती हैं। जाड़ा खत्म होने पर फिर लौट जाती हैं। बिल्कुल हमारी तरह। हमारे गांव के लोग भी सर्दियों में माल-भाबर के गर्म गांव में चले जाते थे। पक्षियों के इस व्यवहार के बारे में पढ़ा और…

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गोविन्‍द सिंह।‘पपराज़ी’ (फ्रेंच में इसे पापारात्सो उच्चारित किया जाता है) यह एक ऐसा स्वतंत्र फोटोग्राफर जो जानी-मानी हस्तियों की तस्वीरें लेता और पत्रिकाओं को बेचता है। ‘ पपराज़ी’ शब्‍द कहां से आया? ‘ पपराज़ी’ की उत्‍पत्ति महान इतालवी फिल्‍मकार फेरेरिको फेलिनी की 1960 में बनी फिल्‍म ‘ला डोल्‍से विटा’ नाम की फिल्‍म के एक पात्र ‘पपराजो’ से हुई। यह एक फ्रीलांस फोटोग्राफर था जो हॉलीवुड के सितारों की निजी जिन्‍दगी के फोटो खींचने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था। फेलिनी को ‘पपराजो’ नाम के इस चरित्र की प्रेरणा भी प्रसिद्ध इतालवी स्‍ट्रीट छायाकार ताजियो सेक्सियारोली से मिली।…

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समकालीन मीडिया परिदृश्य विभाजित दुनिया, विखंडित मीडिया सुभाष धूलियासमकालीन मीडिया परिदृश्य अपने आप में अनोखा और बेमिसाल है। जनसंचार के क्षेत्र में जो भी परिवर्तन आए और जो आने जा रहे है उनको लेकर कोई भी पूर्व आकलन न तो किया जा सका था और ना ही किया जा सकता है। सूचना क्रांति के उपरांत जो मीडिया उभर कर सामने आया है वह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जीवन के केन्द्र में है। आज मानव जीवन का लगभग हर पक्ष मीडिया द्वारा संचालित हो रहा है। आज मीडिया इतना शक्तिशाली और प्रशावशाली हो गया है कि लोकतांत्रिक विमर्श अधिकाधिक मीडिया तक ही…

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प्रियदर्शनहिन्दी पत्रकारिता की दुनिया इन दिनों हलचलों से भरी है। जो कभी छोटे और मझोले अखबार कहलाते थे, उनके कई-कई संस्क रण दिखाई पड़ रहे हैं। वे अपने राज्योंख और जिलों की सीमाएं लांघ रहे हैं और दूर-दराज के इलाकों में फैल-पसर रहे हैं। कई जगहों पर वे राष्ट्री य अखबारों के सामने चुनौती रख रहे हैं और उनके दांत खट्टे कर रहे हैं। कई शहरों में वे पुराने जमे हुए दैनिकों की नींद हराम कर रहे हैं। हिंदी का पाठक पुलक के साथ देख रहा है कि उसके सामने अपने शहर का अखबार पाने के विकल्पक बढ़ गए हैं।…

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प्रियदर्शन‘फेबुलस फोर’ को हिन्दीध में क्या लिखेंगे? ‘यूजर फ्रेंडली’ के लिए क्यों शब्दफ इस्तेकमाल करना चाहिए? क्या ‘पोलिटिकली करेक्ट ‘ के लिए कोई कायदे का अनुवाद नहीं है? ऐसे कई सवालों से इन दिनों हिंदी पत्रकारिता रोज जूझ रही है। अक्सरर उसे बिल्कु ल सटीक अनुवाद नहीं मिलता और वह थक-हार कर अंग्रेजी के शब्दोंल का इस्ते माल करने को बाध्य होती है। इस लेख का उद्देश्ये यह शुद्धतावादी विलाप नहीं है कि हिंदी में अंग्रेजी के शब्द घुल-मिल रहे हैं, बस यह याद दिलाना है कि इन दिनों हमारी पूरी भाषा अंग्रेजी के वाकय विन्या-स और संस्का र से…

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सुधीर चौधरीइस बार श्रीदेवी को लेकर इतनी आलोचना हो गई थी कि एक बारगी सबको लग रहा था कि कहीं सोशल मीडिया की आलोचना टीआरपी ना खा जाए। लेकिन बीते गुरुवार को सुबह जैसे ही टीआरपी आई, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दिग्गज हैरान रह गए। इतना बड़ा उलटफेर पिछले कई सालों में पहली बार देखा गया है। ऐसा लगा जैसे कोई सुनामी आई है और इसकी मुख्य वजह बनी फिल्म अभिनेत्री श्रीदेवी की मौत की कवरेज। इसी मुद्दे को जी न्यूज के एडिटर सुधीर चौधरी ने अपने लोकप्रिय प्रोग्राम ‘डीएनए’ में उठाया और बताया कि कैसे श्रीदेवी की मृत्यु पर देश…

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संतोष भारतीय प्रधान संपादक, चौथी दुनियावे कैसे संपादक हैं, जो सामने आई स्क्रिप्ट में से सत्य नहीं तलाश सकते या ये नहीं तलाश सकते कि इसमें कहां मिर्च-मसाला मिला हुआ है। आप भारतीय जनता को, भारत के दर्शक को वो दे रहे हैं, जो नहीं देना चाहिए। ये सिर्फ सामाजिक जिम्मेदारी की बात नहीं है, ये पत्रकारीय जिम्मेदारी की बात है कि जो सत्य नहीं, उसे आप सत्य बनाकर पेश कर रहे हैं। इसका मतलब आप लोगों को ये प्रेरणा दे रहे हैं कि आप दूध पीने के बजाय शराब पीएं। बिल्कुल ऐसा ही हो रहा हैश्रीदेवी का पार्थिव शरीर…

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महेंद्र नारायण सिंह यादवसामान्य तौर पर अनुवाद को पत्रकारिता से अलग, और साहित्य की एक विशिष्ट विधा माना जाता है,जो कि काफी हद तक सही भी है। हालाँकि हिंदी पत्रकारिता में अनुवाद कार्य एक आवश्यक अंग के रूपमें शामिल हो चुका है और ऐसे में हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाई पत्रकारों के लिए अनुवाद कार्य मेंनिपुणता काफी हद तक आवश्यक हो चुकी है। भारतीय भाषाई पत्रकारों के लिए अनुवाद कार्य में दक्षताएक विशिष्ट योग्यता तो हर हाल में है ही।अनुवाद कार्य के लिए यह तो सामान्य तौर पर यह माना ही जाता है कि स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा,दोनों में…

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नीरज कुमार।वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार बताते हैं कि जब उन्होंने एनडीटीवी ज्वाइंन किया तो चैनल के स्टूडियो में आकर उन्हें लगा कि वो जैसे नासा में आ गए हैं… रवीश कुमार के अनुभव का जिक्र उन युवाओं के लिए हैं, जो टीवी पत्रकार बनना चाहते हैं। लेकिन, न्यूज चैनल के सेट अप से वाकिफ नहीं है। लिहाजा, न्यूज चैनल में काम का फ्लो और बुनियादी तकनीकी जानकारी हो तो शुरुआती दौर में काम आसान हो जाता है।ख़बर घटनास्थल से टीवी स्क्रीन पर पहुंचने के क्रम में कई स्तरों से गुजरती है। ये सवाल अहम है कि ख़बर न्यूज चैनल…

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देवेंद्र मेवाड़ी।इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरते समय मन में सिर्फ मुंबई था। वहां दो दिन तक बच्चों के लिए क्रिएटिव विज्ञान लेखन पर दूसरे रचनाकारों को सुनना और अपने अनुभव सुनाना था। लेकिन, विमान ज्यों-ज्यों हजार-दर-हजार फुट की ऊंचाइयां पार कर ऊपर उठता गया, पता लगा हम धरती से बहुत ऊपर बादलों के देश में पहुंच चुके हैं।जहां पहले केवल नीला आसमान और दूर गोलाई में क्षितिज की रेखा दिखाई दे रही थी, वहां अब आसमान में बादलों के झुंड तैर रहे थे। कहीं हलकी सफेद कोहरे की चादर-सी दिखती तो बाबा नागार्जुन कानों में गुनगुनाने लगतेः…

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