- People Around the World Want Political Change
- Eat Your AI Slop or China Wins
- Countries that lack power find a united voice
- Global press freedom suffers sharpest fall in 50 years
- Many Religious ‘Nones’ Around the World Hold Spiritual Beliefs
- Decline of American Power and the Rise of the East: Geopolitics, Technology, and the Future of World Order
- The Rise and Fall of Globalization
- The Rise of Global South
Author: newswriters
शैलेश और डॉ. ब्रजमोहन।टेलीविजन पर दर्शकों को सभी खबरें एक समान ही दिखती हैं, लेकिन रिपोर्टर के लिए ये अलग मायने रखती है। एक रिपोर्टर हर खबर को कवर नहीं करता। न्यूज कवर करने के लिए रिपोर्टर के क्षेत्र (विभाग) जिसे तकनीकी भाषा में ‘बीट’ कहा जाता है, बंटे होते हैं और वो अपने निर्धारित विभाग के लिए ही काम करता है।रिपोर्टिंग दो प्रकार की होती है। एक तो जनरल रिपोर्टिंग या रूटिन रिपोर्टिंग कहलाती है, जिसमें मीटिंग, भाषण, समारोह जैसे कार्यक्रम कवर किए जाते हैं। दूसरी होती है खास रिपोर्टिंग। खास रिपोर्टिंग का दायरा काफी बड़ा है। इसमें राजनीति,…
डॉ. सचिन बत्रा | आज के दौर में किसी भी अनियमितता, गैरकानूनी काम, भ्रष्टाचार या षड़यंत्र को उजागर करने के लिए सुबूतों की ज़रूरत होती है। हमारे देश में मीडिया इसी प्रकार सुबूतों को जुटाने के लिए स्टिंग ऑपरेशन करता है और स्पाय यानी खुफिया कैमरों का इस्तेमाल कर गलत कारगुज़ारियों का पर्दाफाश करता है। मीडिया तो ऐसी अपराधों की पोल खोलता ही रहा है वहीं अदालत भी सुबूतों के आधार पर फैसले दिया करती है। यही नहीं अब तो दिल्ली सरकार भी कहने लगी है कि आप हमें सरकारी महकमों में किसी भी नियम विरूद्ध काम का वीडियो एविडेंस यानी…
फिल्म देखने और समझने के अपने अनुभवों के बीच जब हम ठहर कर अपने आप से पूछते है कि कोई कलाकार, कोई किरदार हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों है या कि उस कलाकार की संपूर्ण कला-यात्रा को कैसे समझा जाए? तो महसूस करते है कि पर्दे पर किसी किरदार, कलाकार की उपस्थिति और हमारे समय और समाज के संबन्ध कितने घनिष्ठ है. ऐसा कहते हुए हम फिल्म ‘आक्रोश’ में ओमपुरी की चुप्पी और फिल्म के अंत मे उस चीख में कही गुम हो जाते है, और कुछ कहने या लिखने की सीमाओं के इतर वह चीख हमें अंदर तक भेद जाती…
आलोक वर्मा | लीड लिखना:लीड की हिंदी मत बनाइए, इसे लीड कहकर ही समझिए क्योंकि इसी शब्द का हर जगह इस्तेमाल होता है। लीड लिखने का मतलब है स्टोरी को शुरू करना…आप कैसे शुरू करें!! कई कापी एडीटर्स का ये मानना है कि अगर आपकी स्टोरी शूरू में ही धड़ाम से दर्शकों के दिल दिमाग पर असर नहीं डालेगी तो दर्शक या तो आपकी खबर में दिलचस्पी नहीं लेगा या देखेगा या तो आपकी खबर में दिलचस्पी नहीं लेगा या देखेगा ही नहीं। लीड दर्शको को ये आइडिया देती है कि खबर कितनी बड़ी या दिलचस्प है। अब लीड एक लाइन की…
शालिनी जोशी,असिस्टेंट प्रोफेसर,मीडिया स्टडीजहरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विवि,जयपुर न्यूज ऐंकर टीवी पर समाचारों को प्रस्तुत करता है और स्टुडियो डिस्कशंस संचालित करता है. टेलीविजन समाचार तैयार करने और उसके प्रसारण के लिये भले ही एक बड़ी टीम होती है लेकिन बड़ा श्रेय न्यूज ऐंकर को ही मिलता है. वो एक तरह से अपने समाचार चैनल का प्रतिनिधि बन जाता है. टीवी के पर्दे पर अपनी प्रस्तुति की शैली और कौशल से दर्शकों में उसकी एक लोकप्रिय और ग्लैमरस शख्सियत बन जात है. प्रसारण पत्रकारिता में कैरियर की चाह रखनेवाले कई छात्र–छात्राएं इसी ग्लैमर की वजह से टीवी न्यूज ऐंकर…
आलोक वर्मा |काम के साथ-साथ ही लिखते जाइएजब डेडलाइन सर पर हो तो टुकड़ो में लिखना सीखिए। जैसे-जैसे काम होता जाए आप स्टोरी लिखते जाएं। मान लीजिए कि आपने किसी से फोन पर अपनी स्टोरी के सिलसिले में कुछ पूछा है और दूसरी तरफ से थोड़ा समय लिया जा रहा है तो उस समय को यूं ही बरबाद न होने दे, उस समय ये आप लिखना शुरू कर दे- क्या पता दूसरी तरफ से फोन कितनी देर में आए! आप उम्मीद के सहारे अपना वक्त बरबाद न करें।जितना मसाला उपलब्ध हो उसी से स्टोरी लिखना शुरू कर देंकई बार आप…
शैलेश एवं ब्रजमोहन |रिपोर्टर के लिए जरूरी नहीं है कि वो खबर में हमेशा अपने सूत्र के नाम का खुलासा करे। रिपोर्टर को अपने सूत्र के बारे में दूसरों को कभी जानकारी नही देनी चाहिए। जरूरी हो, तो रिपोर्टर को अपने सूत्र का नाम छिपाना चाहिए। खासकर तब जब नाम सामने आने पर सूत्र की नौकरी या जीवन पर कोई खतरा हो। सूत्र कोई जूनियर अधिकारी है, तो उसका नाम सामने आने पर बड़े अधिकारी उससे नाराज होकर उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। कोई सूत्र अपराध, आतंकवादी संगठन या माफिया के बारे में कोई जानकारी देता है, तो उसके…
अतुल सिन्हा |टेलीविज़न में स्क्रिप्टिंग को लेकर हमेशा से ही एक असमंजस की स्थिति रही है। अच्छी स्क्रिप्टिंग कैसे हो, कौन सी ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया जाए जो दर्शकों को पसंद आए और भाषा के मानकों पर कैसी स्क्रिप्ट खरी उतरे, इसे लेकर उलझन बरकरार है। हम लंबे समय से यही कहते आए हैं कि भारत में टेलीविज़न प्रयोग के दौर से गुज़र रहा है। ये धारणा बना दी गई है कि भाषा से लेकर, स्क्रिप्टिंग और पैकेजिंग तक में हमारे चैनल अभी कच्चे हैं और हमें उन चैनलों से सीखना चाहिए जिन्होंने विदेशों में लंबे समय से अपनी…
ओमप्रकाश दास।टेलीविज़न प्रोडक्शन की पटकथा यानी स्क्रिप्ट ही वह हिस्सा है जो विचारों और किसी कहे जाने वाली कहानी को एक ठोस रूप देता है। लेकिन प्रोडक्शन के लिहाज़ से पटकथा में आधारभूत अंतर उसके विषय को लेकर होता है। उदाहरण के लिए किसी काल्पनिक कहानी की स्थिति में पटकथा का स्वरूप अलग होता है तो किसी सचमुच की घटना को प्रस्तुत करने के लिए पटकथा की रूपरेखा बिल्कुल बदल जाती है।टेलीविज़न प्रोडक्शन मूल रुप से किसी घटना या कहानी को शुरु से अंत तक पहुंचाने की प्रक्रिया है। किसी कहानी या किसी घटना को आप कैसे कैमरे में रिकॉर्ड…
पुण्य प्रसून वाजपेयी |लोकतन्त्र का चौथा खम्भा अगर बिक रहा है तो उसे खरीद कौन रहा है? और चौथे खम्भे को खरीदे बगैर क्या सत्ता तक नहीं पहुँचा जा सकता है? या फिर सत्ता तक पहुँचने के रास्ते में मीडिया की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण हो चुकी है कि बगैर उसके नेता की विश्वसनीयता बनती ही नहीं और मीडिया अपनी विश्वसनीयता अब खुद को बेच कर खतम कर रहा है अगर मीडिया भी एक प्रोडक्ट है तो यह भी कैसे सम्भव है कि मीडिया बिना खबरों के बिक सके। जैसे पंखा हवा ना दें, एसी कमरा ठंडा ना करें। गिजर पानी गरम…
Subscribe to Updates
Get the latest creative news from FooBar about art, design and business.