- People Around the World Want Political Change
- Eat Your AI Slop or China Wins
- Countries that lack power find a united voice
- Global press freedom suffers sharpest fall in 50 years
- Many Religious ‘Nones’ Around the World Hold Spiritual Beliefs
- Decline of American Power and the Rise of the East: Geopolitics, Technology, and the Future of World Order
- The Rise and Fall of Globalization
- The Rise of Global South
Author: newswriters
ओमप्रकाश दास (भाग-2) दुनिया के बेहतरीन प्रसारकों में से एक ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन यानी बीबीसी अपने टेलीविज़न प्रसारण को लेकर कई मानक स्थापित कर चुका है। जिसे दुनिया भर के पेशेवर एक पैमाना मानकर सीखते – अपनाते हैं। इस लेख श्रृंखला के पहले भाग में हमने देखा कि कैसे बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक तक रेडियो प्रसारण में स्थापित हो चुकी बीबीसी टेलीविज़न प्रसारण को लेकर न सिर्फ भारी असमंजस में थी बल्कि टेलीविज़न पर प्रयोग करने वाले जॉन बेयर्ड को हतोत्साहित भी कर रही थी। फिलहाल आगे बढ़ते हैं और देखते हैं कि कैसे बीबीसी के टेलीविज़न प्रसारण को…
Om Prakash Das It is the dominant political message which works through the dominant images and it is pushed by a streak of aspirations of the great mass. Now, we need to understand the relation between future aspirations and so called ‘golden past’. In India ‘golden past’ describes a tradition of ruling classes’ hegemonyOne can say that it is an incarnation of ‘Ramayan’ in the age of multi television channel, ‘over the top’ web series, YouTube and many more entertainment audio-visual platforms. Since its first telecast ‘Ramayan’ (from January 1987 to August 1989) has been discussed and analyzed in the…
स्वर्णताभ कुमार। हजारों वर्षों से जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को हमेशा से दबाया और कुचला जाता रहा है जिससे उनकी जिन्दगी अभावग्रस्त ही रही है। इनका खुले मैदान के निवासियों और तथाकथित सभ्य कहे जाने वाले लोगों से न के बराबर ही संपर्क रहा है। केंद्र सरकार आदिवासियों के नाम पर हर साल हजारों करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में करती है। इसके बाद भी 6-7 दशक में उनकी आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वास्थ्य सुविधाएं, पीने का साफ पानी आदि मूलभूत सुविधाओं के लिए वे आज भी तरस रहे हैं।…
श्याम कश्यप हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता हिन्दी साहित्य के विकास का अभिन्न अंग है। दोनों परस्पर एक-दूसरे का दर्पण हैं। इस दृष्टि से दोनों में द्वन्द्वात्मक (डायलेक्टिकल) और आवयविक (ऑर्गेनिक) एकता सहज ही लक्षित की जा सकती है। वस्तुतः हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता हमारे आधुनिक साहित्यिक इतिहास का अत्यंत गौरवशाली स्वर्णिम पृष्ठ है। स्मरणीय है कि हिन्दी के गद्य साहित्य और नवीन एवं मीलिक गद्य-विधाओं का उदय ही हिन्दी पत्रकारिता की सर्जनात्मक कोख से हुआ था। यह पत्रकारिता ही आरंभकालीन हिन्दी समाचार पत्रों के पृष्ठों पर धीरे-धीरे उभरने वाली अर्ध-साहित्यिक पत्रकारिता से क्रमश: विकसित होते हुए, भारतेन्दु युग में साहित्यिक…
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