Author: newswriters

ओमप्रकाश दास।टेलीविज़न प्रोडक्शन की पटकथा यानी स्क्रिप्ट ही वह हिस्सा है जो विचारों और किसी कहे जाने वाली कहानी को एक ठोस रूप देता है। लेकिन प्रोडक्शन के लिहाज़ से पटकथा में आधारभूत अंतर उसके विषय को लेकर होता है। उदाहरण के लिए किसी काल्पनिक कहानी की स्थिति में पटकथा का स्वरूप अलग होता है तो किसी सचमुच की घटना को प्रस्तुत करने के लिए पटकथा की रूपरेखा बिल्कुल बदल जाती है।टेलीविज़न प्रोडक्शन मूल रुप से किसी घटना या कहानी को शुरु से अंत तक पहुंचाने की प्रक्रिया है। किसी कहानी या किसी घटना को आप कैसे कैमरे में रिकॉर्ड…

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पुण्‍य प्रसून वाजपेयी |लोकतन्‍त्र का चौथा खम्‍भा अगर बिक रहा है तो उसे खरीद कौन रहा है? और चौथे खम्‍भे को खरीदे बगैर क्‍या सत्‍ता तक नहीं पहुँचा जा सकता है? या फिर सत्‍ता तक पहुँचने के रास्‍ते में मीडिया की भूमिका इतनी महत्‍वपूर्ण हो चुकी है कि बगैर उसके नेता की विश्‍वसनीयता बनती ही नहीं और मीडिया अपनी विश्‍वसनीयता अब खुद को बेच कर खतम कर रहा है अगर मी‍डिया भी एक प्रोडक्‍ट है तो यह भी कैसे सम्‍भव है कि मीडिया बिना खबरों के बिक सके। जैसे पंखा हवा ना दें, एसी कमरा ठंडा ना करें। गिजर पानी गरम…

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शैलेश और डॉ. ब्रजमोहन |पत्रकारिता में टीवी रिपोर्टिंग आज सबसे तेज, लेकिन कठिन और चुनौती भरा काम है। अखबार या संचार के दूसरे माध्‍यमों की तरह टीवी रिपोर्टिंग आसान नहीं। टेलीविजन के रिपोर्टर को अपनी एक रिपोर्ट फाइल करने के लिए लम्‍बी मशक्‍कत करनी पड़ती है। रिपोर्टिंग के लिए निकलते वक्‍त उसके साथ होता है कैमरामैन, जो फील्‍ड में घटना के विजुअल और लोगों की प्रतिक्रियाएं शूट करता है। जबरदस्‍त कम्पिटिशन के इस दौर में टीवी रिपोर्टर के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती है कि वो सबसे पहले अपने चैनल में न्‍यूज ब्रेक करे। इसके लिए इसके पास ओबी वैन…

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अजय कुमार मिश्रा। राजनीतिक मामले हो या फिर आर्थिक अथवा सामाजिक मुद्दा, किसी भी टीवी प्रोग्राम के लिए विषयवस्तु अलग अलग हो सकती है लेकिन उसका व्याकरण कमोबेश एक सा होता है… किसी भी टीवी प्रोग्रामिंग के कान्सेप्ट पर निर्भर करता है कि आप कैसे उसको अमली जामा पहनाने के लिए आगे बढ़ते हैं। आजकल लाइव प्रोग्राम या तो किसी विषय पर चर्चा करते नजर आते हैं या फिर एक ही थीम पर पहले से बनी न्यूज स्टोरीज को एकसूत्र में पिरोने का काम करते हैं। फारमेट चाहे जो हो, कई वजहों से बिजिनेस से जुड़े प्रोग्राम करना एक कठिन…

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महेंद्र नारायण सिंह यादव।आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के युग में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से सामान्य तात्पर्य टीवी चैनल ही हो गया है, लेकिन वास्तव में रेडियो भी इसका अभिन्न प्रकार है। सच तो यह है कि टीवी चैनलों का युग शुरू होने से पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का मतलब रेडियो ही रहा। प्रासंगिकता रेडियो की बाद में भी बनी रही और अब भी खत्म नहीं हुई है। ऐसे में रेडियो समाचार में भी पत्रकारों के लिए अवसर और चुनौतियां लगातार बने हुए हैं।रेडियो समाचार प्रसारण में पत्रकारों के लिए मुख्य कार्य रिपोर्टिंग के अलावा, समाचार आलेखन, संपादन और वाचन का है। वास्तव…

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उदय चंद्र सिंहटीवी की दुनिया में खूब अजब-गजब होता है। कभी नोएडा को बंदर खा जाता हैतो कभी तेल लगाने के मुद्दे पर हैदराबाद में  सैकड़ों किसान गिरफ्तारी देते हैं । गजब तो तब हो गया जब एक न्यूज चैनल की  ब्रेकिंग न्यूज की पट्टी पर-  “हीथ्रो हवाई अड्डे पर विमान से कुचलकर पायलट की मौत” चलते देखा ।  खूब माथा-पच्ची करने पर भी समझ नहीं आया कि  आखिर पायलट ने खुदकुशी की या फिर वह रनवे पर दौड़ लगाते जहाज से ही कूद गया ।पत्रकार मन बेचैन हो रहा था। जिस चैनल पर खबर देखी, वो भी विस्तार से कुछ नहीं बता…

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संदीप कुमारटीवी न्यूज का फॉर्मेट, प्रिंट मीडिया के मुकाबले बिल्कुल अलग होता है। यहां शब्दों, कॉलम, पेज में बात नहीं होती बल्कि फ्रेम्स, सेकंड्स, मिनट्स का खेल होता है। प्रिंट में कहा जाता है कि इस खबर को दो कॉलम में ले लो, सिंगल कॉलम में रख लो, तीन कॉलम में ले लो, लीड बना लो, बैनर बना लो, बॉटम एंकर ले लो, बॉक्स में रख लो आदि–आदि।प्रिंट में खबरों को पेश करने के इनफॉर्मेट्स से अलग टीवी न्यूज के फॉर्मेट होते हैं।टीवी मीडिया के न्यूज फॉर्मेट पर हम अलग–अलग और विस्तार से चर्चा करेंगे।हेडलाइंसहेडलाइंस टीवी मीडिया का फ्रंट पेज…

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आलोक वर्मा।खबर को अगर आम लोगों के बीच की आम भावनाओं में डालकर आप लिख सकें तो आपकी खबर का असर बढ़ जाएगा। देखिए खबरों में भी कहानियां ही होती हैं- घर वापसी की खबर, जीत की खबर, हार की खबर, मुश्किलों की खबर- ये सब खबरें कहीं न कहीं भावनाएं रखती हैं- इन भावनाओं को पकडक़र न्यूज लिखना एक कला है पर अगर आपने ये सीख लिया तो आप एक शानदार पत्रकार तो रहेंगे ही, एक शानदार लेखक भी कहलाएंगेटीवी न्यूज के पर्दे पर दिखाई पड़ती है, इसे पर्दे तक पहुंचाने के लिए एक कैमरे की जरूरत पड़ती है,…

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नीरज कुमार।वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार बताते हैं कि जब उन्होंने एनडीटीवी ज्वाइंन किया तो चैनल के स्टूडियो में आकर उन्हें लगा कि वो जैसे नासा में आ गए हैं… रवीश कुमार के अनुभव का जिक्र उन युवाओं के लिए हैं, जो टीवी पत्रकार बनना चाहते हैं। लेकिन, न्यूज चैनल के सेट अप से वाकिफ नहीं है। लिहाजा, न्यूज चैनल में काम का फ्लो और बुनियादी तकनीकी जानकारी हो तो शुरुआती दौर में काम आसान हो जाता है।ख़बर घटनास्थल से टीवी स्क्रीन पर पहुंचने के क्रम में कई स्तरों से गुजरती है। ये सवाल अहम है कि ख़बर न्यूज चैनल…

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मनोरंजन भारती |मैनें उन गिने चुने लोगों में से जिसने अपने कैरियर की शुरूआत टीवी से की। हां, आईआईएससी में पढ़ने के दौरान कई अखबारों के लिए फ्री लांसिंग जरूर की। लेकिन संस्‍थान से निकलते ही विनोद दुआ के परख कार्यक्रम में नौकरी मिल गई। यह कार्यक्रम दूरदर्शन पर हफ्ते में एक बार प्रसारित होता था। कहानी से पहले तीन दिन रिसर्च करना पड़ता था। बस या ऑटो से लेकर लाइब्रेरी की खाक छाननी पड़ती थी वो गूगल का जमाना तो था नहीं। फिर इंटरव्‍यू वगैरहा करने के बाद पहले कहानी को डिजिटल एडिटिंग की जाती थी और तब स्क्रिप्‍ट…

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