आधुनिक समाज के निर्माण में संचार की अहम भूमिका है । सूचनाओं के आदान प्रदान की प्रवृत्ति के साथ साथ इसका दायरा बढना भी विकास के आधारभूत तत्वों में से एक है । सामान्य तौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति का सूचना साझा करना भी संचार है किंतु जब यही प्रवृत्ति एक व्यापक जनसमुदाय और विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र तक विस्तार पाती है इस जनसंचार कहा जाता है । संचार के विभिन्न साधनों का विकास मानव सभ्यता के विकास के समानांतर चलता रहा है । यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह दोनों बातें एक दूसरे की समानार्थी ही हैं । संचार के अभाव में सभ्यता के वर्तमान विकसित स्वरूप की कल्पना नहीं की जा सकती थी । सूचना के महत्व से मनुष्य समाज भली भांति परिचित है और इन सूचनाओं का संप्रेषण ही उसे निरंतर नए विचार की ओर अग्रसर करता है । हम यह कह सकते हैं कि आधुनिक सभ्यता में सूचना से अधिक शक्तिशाली कोई परमाणु हथियार भी नहीं हो सकता । पुरानी व्यवस्थाओं को बदलने से लेकर नए नए वैज्ञानिक आविष्कारों तक सभी प्रकार के परिवर्तनों में सूचनाओं के आदान प्रदान का अहम स्थान है । सूचनाओं के आदान प्रदान की इसी प्रक्रिया को संचार कहा गया है । अनेक माध्यमों से जब सूचनाओं के संचार का क्षेत्र व्यापक हो जाता है तो इसे जनसंचार कहा जाता है । जनसंचार के इस व्यापक उद्देश्य को प्राप्त करने में इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों का बड़ा योगदान है ।
उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में जब तकनीक का विकास हुआ, नए नए आविष्कार हुए तो संचार ने भी नए आयामों की तरफ कदम बढाए । अब तक गांव या कबीले तक सीमित संचार व्यापक क्षेत्र और व्यापक जनसमुदाय तक विस्तार पा गया । छापेखाने के आविष्कार से शुरु हुई संचार क्रांति फोटोग्राफी,टेलीग्राफी,रेडियो और टेलीविज़न के आविष्कारों से समृद्ध होते हुए इंटरनेट तक पहुंच गई है । इंटरनेट से पहले रेडियो और टेलीविज़न ने ही वास्तविक संचार क्रांति को जन्म दिया । अनेक प्रकार की आधुनिक प्रसारण तकनीकों के आविष्कार के कारण रेडियो और टेलीविजन ने सारी दुनिया को एक इकाई के रूप में तब्दील कर दिया । सूचनाओं और विचारों का आदान प्रदान सबसे सशक्त रूप में द्रुत गति से संभव हुआ । रेडियो ने जहां आवाज़ के माध्यम से सूचनाओं को पंख लगाए वहीं टेलीविजन ने इस संचार को दृश्यात्मकता से जोड़कर आंखें प्रदान की ।
समाचार , विचार, शिक्षा और मनोरंजन संचार के क्षेत्र में टेलीविज़न ने अभूतपूर्व कार्य किया है । दरअसल टेलीविजन ने समाचारों में दृश्यों के माध्यम से विश्वसनीयता को सुनिश्चित किया । कहा जाता है कि आंखों से देखी गई घटनाओं या वस्तुओं पर विश्वास करना चाहिए । टेलीविजन ने घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करते हुए इसी कहावत जैसा विश्वास दर्शकों के मन में पैदा किया कि दिखाई दे रहा है इसलिए टेलीविज़न पर दिया गया विवरण या जानकारी सत्य है । टेलीविज़न ने मुद्रित माध्यम की साक्षर होने की शर्त को भी अनावश्यक प्रमाणित कर दिया । टेलीविज़न ने मनोरंजन के क्षेत्र में जबरदस्त क्रांति की और लगभग एक समय दुनियाभर में सिनेमा उद्योग को कड़ी चुनौती पेश की । आज भी यदि भारतीय संदर्भ में भी देखा जाए तो सिनेमा उद्योग भी अपनी फिल्मों के प्रमोशन से लेकर रिएलिटी शोज़ तक टेलीविज़न की तरफ दौड़ता हुआ नजर आता है ।
समाचार माध्यम के रूप में दुनियाभर में टेलीविज़न ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है । विशेषतौर पर प्रकृतिक आपदाओं, युद्धकाल और मानवाधिकारों के क्षेत्र में टेलीविजन समाचारों ने एक सक्षम परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में कार्य किया है । वियतनाम और खाड़ी युद्धों के समाचार कवरेज के दौरान दिखाए गए दृश्यों का दुनिया में युद्ध विरोधी माहौल बनाने में खासा योगदान रहा । भारत में टेलीविज़न फत्रकारिता का इतिहास बहुत पुराना नहीं है । हालांकि भारत में टेलीविज़न प्रसारण 1959 में शुरु हुआ किंतु इसका विकास काफी धीमी गति से हुआ । सरकारी सहायता से चलने वाले दूरदर्शन का ही लगभग तीन दशक तक एकाधिकार रहा । बीसवीं सदी के आखिरी दशक में केबल टीवी के विस्तार और प्राइवेट चैनलों के आने से वास्तव में इसका मौजूदा विकसित रूप में आना संभव हो पाया । देश में प्राइवेट चैनलों पर समाचार की शुरुआत और फिर चौबीस घंटे के समाचार चैनलों की शुरुआत को अभी (2015) करीब दो दशक ही हुए हैं । अत: भारतीय संदर्भों में टेलीविज़न पत्रकारिता की चर्चा करते समय इस बात को ध्यान में रखना बेहद आवश्यक है कि इसकी यात्रा करीब बीस साल की ही है ।
टेलीविज़न पत्रकारिता का अध्ययन करने के लिए सबसे पहले एक समाचार चैनल की कार्यप्रणाली को समझना आवश्यक है । हमारे देश में टेलीविजन समाचार चैनलों का इतिहास बहुत पुराना नहीं है किंतु फिर कम समय में चैनलों ने एक कारगर कार्यप्रणाली विकसित की है । एक समाचार चैनल के विभिन्न विभागों को निम्न प्रकार से बांटा जा सकता है –
- समाचार चैनल
- संपादकीय विभाग (Editorial Dept.)
(आ) तकनीकी विभाग (Technical Dept.)
(इ) विपणन विभाग (Marketing Dept.)
(ई) वितरण विभाग ( Distribution dept.)
(उ) मानव संसाधन एवं प्रशासन ( HR & Admin
(इ) विपणन विभाग (Marketing Dept.)
(ई) वितरण विभाग ( Distribution dept.)
(उ) मानव संसाधन एवं प्रशासन ( HR & Admin
टेलीविजन पत्रकारिता के अध्ययन में मुख्य रूप से एक समाचार चैनल के संपादकीय विभाग की जानकारी आवश्यक होगी किंतु शेष विभागों के बारे में भी जानकारी होना लाभदायक है । संपादकीय विभाग के बारे में विस्तार से बात करने से पहले हम इन तीनों विभागों के बारे में सामान्य जानकारी साझा करेंगे ।
# तकनीकी विभाग – टेलीविज़न चैनल में समाचारों के लिए दृश्य सामग्री जुटाने के कार्य से लेकर इसके प्रसारण तक के कार्य में तमाम तरह के तकनीकी कार्य तथा इस प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों की देखभाल का कार्य यह विभाग करता है । इसमें कैमरा, वीडियो एडिटिंग, ग्राफिक्स, पीसीआर , एमसीआर , स्टूडियो ऑपरेशन्स , सरवर रूम , ओबी वैन जैसे अंग प्रमुख हैं । इस विभाग से संपादकीय विभाग का सीधा संबंध होता है । यहां तक कि कैमरा, वीडियो एडिटिंग, ग्रफिक्स और पीसीआर जैसे विभागों को तो अर्धसंपादकीय, अर्धतकनीकी विभाग माना जाता है । उम्मीद की जाती है कि इन विभागों में करने वाले लोगों को संपादकीय और पत्रकारीय समझ होनी चाहिए ।
# विपणन विभाग – इस विभाग के अन्तर्गत चैनल के लिए विज्ञापन जुटाने का कार्य होता है । इसका संपादकीय विभाग से सीधा सीधा कोई संबंध नहीं होता है । चैनल में चलने वाले विज्ञापनों की दरें , समय और अवधि तय करने के अतिरिक्त इस विभाग का संपादकीय सामग्री के चयन के मामले में कोई दखल नहीं होता ।
# वितरण विभाग – किसी टेलीविज़न चैनल का यह महत्वपूर्ण विभाग होता है । टीवी चैनल को अधिकांश दर्शकों के घरों में दिखाने का दायित्व इस विभाग का होता है । इस विभाग के लोग केबल नेटवर्क और विभिन्न डीटीएच नेटवर्क के माध्यम से टीवी चैनल के प्रदर्शन को सुनिश्चित करते हैं ।
# मानव संसाधन एवं प्रशासन – मानव संसाधन विभाग चैनल में सभी विभागों में काम करने वाले लोगों की नियुक्तियों , इन्क्रीमेंट्स, छुट्टियों तथा निष्कासन आदि कार्य करता है । इसके अतिरिक्त कर्मचारियों के साथ संवाद, उनकी सुविधाओं और समस्याओं का ध्यान रखना भी मानव संसाधन विभाग के कामों में शामिल है । इसके अलावा प्रशासन के तहत कार्यालय में मूलभूत सुविधाओं को सुनिश्चित करना तथा किसी भी प्रकार के आयोजन के प्रबंध की जिम्मेदारी होती है ।
एक टेलीविज़न चैनल को संचालित करने में इन सभी विभागों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । लेकिन एक समाचार चैनल में सबसे प्राथमिक और महत्वपूर्ण विभाग संपादकीय विभाग होता है । इसका कारण यह है कि समाचार चैनल की पहचान उस पर प्रसारित समाचारों की गुणवत्ता और महत्ता से होती है । टेलीविज़न पत्रकारिता की पहचान स्थापित करने का सारा दारोमदार संपादकीय विभाग पर होता है । दूसरे शब्दों में कहें तो संपादकीय विभाग में होने वाला समस्त कार्य टेलीविजन पत्रकारिता के अन्तर्गत आता है । इस विभाग का प्रमुख चैनल का मुख्य संपादक या संपादक होता है ।
संपादकीय विभाग को दो प्रमुख विभागों में बांटा जा सकता है – 1. इनपुट 2. आउटपुट
1. इनपुट – जैसा कि नाम से ही जाहिर है एक समाचार चैनल में प्रसारित की जाने वाली सामग्री का प्राथमिक स्वरूप में संग्रहण या संकलन करना इस विभाग का कार्य है । जैसे किसी चैनल पर भूमि अधिग्रहण बिल पर आधे घंटे का कार्यक्रम प्रसारित होता है । इस कार्यक्रम में चलने वाली खबर, इस चर्चा में इस्तेमाल की गई शोधपरक जानकारियां , और कार्यक्रम में चर्चा के लिए अतिथि तक सभी उपलब्ध करवाना इनपुट विभाग की जिम्मेदारी है । प्रमुख रूप से इस विभाग के चार हिस्से होते हैं –
1. समाचार ब्यूरो या संवाददाता – किसी भी समाचार चैनल की सबसे अहम और प्रथम कड़ी होती है उसका संवाददाता । संवाददाता या रिपोर्टर औपचारिक और अनौपचारिक सूत्रों से सूचनाओं का संकलन करता है । इन सूचनाओं को अपनी संपादकीय समझ से एक समाचार के रूप में विकसित करता है और चैनल तक पहुंचाता है । चैनल के मुख्यालय के अतिरिक्त जब रिपोर्टर्स किसी राज्य की राजधानी या महत्वपूर्ण स्थान पर रोजाना रिपोर्ट करते हैं तो चैनल की कार्यप्रणाली में इसे ब्यूरो कहा जाता है ।
2. असाइनमेंट डेस्क – यह किसी भी समाचार चैनल में सबसे अधिक हलचल और भागदौड़ वाला विभाग होता है । आमतौर पर यहां किसी छोटे शेयर बाज़ार जैसा माहौल होता है । दरअसल यह कई विभागों के बीच समन्वय स्थापित करने वाला विभाग है . मुख्य रूप से यह विभाग रिपोर्टर्स से आने वाली सूचनाओं एवं समाचारों को आउटपुट विभाग तक पहुंचाता है और आउटपुट की ओर से मांगी गई सूचनाओं, समाचारों की उपलब्धता को सुनिश्चित करता है । रिपोर्टर्स को फील्ड में तकनीकी या अन्य सहयोग पहुंचाना और लाइव प्रसारण इत्यादि व्यवस्थाओं की निगरानी करना भी इसी विभाग का काम होता है ।
3. रिसर्च विभाग – किसी भी विषय पर कार्यक्रम बनाने के लिए प्रोड्यूसर को, किसी कार्यक्रम को प्रस्तुत करते हुए एंकर को और खबरों को कवर करते हुए रिपोर्टर्स को कई विषयों के बारे में बहुत सारी जानकारी की जरूरत पड़ती है । यह तमाम शोधपरक जानकारी उपलब्ध कराने का कार्य रिसर्च विभाग करता है ।
4. गेस्ट कॉर्डिनेशन विभाग – एक चौबीस घंटे के समाचार चैनल में कई प्रकार के प्रासंगिक राजनीतिक, मानवीय, सामाजिक, स्वास्थ्य या कई ताज़ा विवादित विषयों पर कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं । इन कार्यक्रमों में विशेषज्ञ वक्ताओं या विभिन्न पक्षों के प्रवक्ताओं को शामिल करना आवश्यक होता है । इन अतिथियों को सही कार्यक्रम में सही समय पर लाना इस विभाग का कार्य होता है । इसके अतिरिक्त मेहमानों के साथ चैनल के रिश्ते सद्भावनापूर्ण रहे इसको सुनिश्चित करना भी इसी विभाग का काम होता है ।
2. आउटपुट – संपादकीय विभाग का यह दूसरा स्तंभ है । पूरा संपादकीय विभाग इनपुट और आउटपुट नामक स्तंभों पर ही खड़ा होता है । इनपुट विभाग से प्राप्त होने वाली प्राथमिक सामग्री ( Primary content) को संपादन के ज़रिए प्रसारण के लिए उपयुक्त स्वरूप में तैयार करने का कार्य आउटपुट विभाग करता है । इस विभाग के भी विभिन्न अंग हैं –
1. कॉपी लेखन एवं संपादन – रिपोर्टर से प्राप्त सूचना अथवा प्राथमिक स्क्रिप्ट जब असाइनमेंट द्वारा आउटपुट को दी जाती है तो उसको एक प्रसारण योग्य स्क्रिप्ट में बदलने के लिए कॉपी डेस्क के हवाले किया जाता है । कॉपी राइटर समाचार के साथ प्राप्त दृश्यों को देखकर और प्राथमिक जानकारी को लेकर स्टोरी की स्क्रिप्ट लिखता है और फिर कॉपी संपादक उसका संपादन करता है । इसी स्क्रिप्ट पर आधारित एक टेलीविज़न स्टोरी कई चरणों से गुजर कर प्रसारित होती है ।
2. प्रोडक्शन – कॉपी डेस्क द्वारा तैयार की गई लिखित स्क्रिप्ट को टेलीविज़न प्रसारण के योग्य बनाने के लिए उसके अनुसार दृश्य संपादन (video editing) की आवश्यकता होती है । इस स्क्रिप्ट में यदि फॉर्मेट की मांग है तो वॉइस ओवर करवाकर दृश्य संपादन पूरा करने के लिए दिया जाता है । इस सारी प्रक्रिया को संपन्न करवाने का कार्य प्रोडक्शन विभाग का होता है । प्रोडक्शन से जुड़े प्रोफेशनल्स पर एक स्टोरी के प्रसारण योग्य अंतिम स्वरूप में पहुंचने तक सारी प्रक्रिया की देखरेख करनी होती है तथा इसके बाद इसे उचित स्थान पर भेजना होता है ।
3. रनडाउन – यह वह स्थान है जहां एक समाचार बुलेटिन या कार्यक्रम में चलने वाली सभी स्टोरीज़ तथा सामग्री इकट्ठा होती है और उन्हें प्रसारण की योजना के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है । एक प्रकार से यहा एक कार्यक्रम या बुलेटिन का ढांचा खड़ा होता है जो प्रोडक्शन कंट्रोल रूम यानि पीसीआर को भेजा जाता है । रनडाउन प्रसारण के लिए तैयार स्टोरीज के उस व्यवस्थित क्रम को कहते हैं जिसमें विजुअल, ग्राफिक्स इनपुट के साथ साथ लाइव इत्यादि की योजना भी स्पष्ट होती है । इस डेस्क से जुड़े लोग प्रत्येक बुलेटिन के अंतिम प्रारूप के उत्तरदायी होते हैं ।
4. अपडेट और मॉनीटरिंग डेस्क – ये विभाग चैनल की स्क्रीन पर ग्राफिक्स द्वारा चलने वाले लगातार अपडेट को संपन्न करता है तथा अलग अलग चैनलों पर चलने वाली खबरों को मॉनीटर भी करता है । कई चैनलों में इन्हे कुछ दूसरे विभागों के साथ ही जोड़ दिया जाता है । लगातार चलने वाले ग्राफिक अपडेट को टिकर , स्क्रॉल इत्यादि कहा जाता है ।
टेलीविज़न पत्रकारिता का अध्ययन करते हुए हम इसे कुछ प्रश्नों और उनके उत्तर के आधार पर समझ सकते हैं ।
सबसे पहला प्रश्न यह है कि पत्रकारिता को टेलीविज़न या रेडियो या प्रिंट पत्रकारिता कहने की आवश्यकता क्या है ?
इसप्रश्नकेउत्तरकोहमएकउदाहरणकेरूपमेंसमझसकतेहैंकिजैसेपानीपरचलनेवालेजहाज, सड़क पर चलने वाली कार और हवा में उड़ने वाले हवाई जहाज को अलग अलग करके देखने तथा अलग अलग नाम देने की आवश्यकता होती है जबकि तीनों का ही प्रथमिक उद्देश्य परिवहन है । उसी प्रकार अलग अलग माध्यमों के द्वारा की जा रही पत्रकारिता को उन माध्यमों की पहचान के साथ जोड़कर समझना बेहद आवश्यक है । पत्रकारिता के प्राथमिक उद्देश्य के अतिरिक्त प्रत्येक माध्यम की अपनी आवश्यकताएं, सीमाएं तथा शक्तियां हैं ।
टेलीविज़न पत्रकारिता को किस प्रकार परिभाषित करेंगे ?
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका के आधार पर किए गए एक विश्लेषण के अनुसार पत्रकारिता के लिए अंग्रेज़ी में ‘जर्नलिज्म’ शब्द का प्रयोग किया जाता है जो ‘जर्नल’ से निकला है । इसका शाब्दिक अर्थ है ‘दैनिक’ । दिन प्रतिदिन के क्रियाकलापों सरकारी बैठकों आदि का विवरण जर्नल में रहता था । एक दूसरे संदर्भ के मुताबिक ‘जर्नलिज्म’ शब्द फ्रैंच भाषा के शब्द ‘जर्नी’ से निकला है जिसका अर्थ रोजमर्रा के कामों या घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करना । एक शब्द के रूप में पत्रकारिता या जर्नलिज्म शब्द का अर्थ दिन प्रतिदिन की घटनाओं की तथ्यात्मक सूचनाओं का संकलन और संप्रेषण ही है । लेकिन धीरे धीरे व्यवहार रूप में पत्रकारिता की इस परिभाषा का विस्तार होता चला गया और सूचनाओं के संकलन से आगे बढकर यह सूचनाओं के अन्वेषण तथा विश्लेषण तक पहुंच गया । जब पत्रकारिता को टेलीविज़न के साथ जोड़ते हैं तो शाब्दिक अर्थ के अनुसार सूचनाओं अथवा समाचारों का सदृश्य विवरण तथा विश्लेषण प्रस्तुत करना ही टेलीविज़न पत्रकारिता है ।
दूसरे माध्यमों की तुलना में टेलीविजन पत्रकारिता की ताकत क्या है ?
- 1. दृश्य – टेलीविजन पत्रकारिता की परिभाषा का जिक्र करते हुए हमने सूचनात्मक विवरण के साथ दृश्य की अनिवार्यता को समझा है । एक पुरानी कहावत के अनुसार आंखों से देखी गई घटना में सत्य की सर्वाधिक संभावना होती है इसलिए यह दर्शकों का यही आखों देखा वाला विश्वास टेलीविज़न पत्रकारिता की सबसे बड़ी ताकत है । टेलीविजन पत्रकारिता में दृश्य सहित विवरण के कारण दर्शकों का उसमें ना केवल विश्वास बढ़ता है बल्कि समाचारों के प्रति उनकी रुचि, उत्साह और रोमांच भी बढ़ता है ।
- 2. शीघ्र या तत्काल संप्रेषण – टेलीविज़न पत्रकारिता में सूचनाओं का प्रसारण शीघ्रता से होता है । तकनीक के प्रभाव और इस माध्यम के स्वभाव के कारण संकलन के साथ ही अथवा संकलन के तत्काल बाद समाचार का प्रसारण टेलीविज़न पत्रकारिता की प्राथमिकता है । जैसे ही किसी संवाददाता को किसी घटना की जानकारी मिलती है वह उसे सबसे कम समय में प्रसारित किए जा सकने वाले फॉर्मेट में प्रसारित करवाने की कोशिश करता है । उदाहरण के तौर पर दिल्ली के समीप गाज़ियाबाद में किसी ट्रेन का एक्सीडेंट हुआ है और संवाददाता घटनास्थल से दूर है किंतु उसे उसके स्रोत से जानकारी मिली है । इस जानकारी के बाद प्रिंट माध्यम का पत्रकार घटनास्थल के लिए रवाना होगा और पूरे इत्मिनान के साथ सूचनाएं जुटाएगा तथा रात तक अपनी पूरी खबर प्रकाशन के लिए दे देगा जो कि अगले दिन समाचार पत्र में प्रकाशित होगी । लेकिन दूसरी ओर टेलीविजन रिपोर्टर को खबर मिलते ही वह घटनास्थल के लिए निकलने के साथ साथ अपने न्यूज़रूम को जानकारी देगा और सर्वप्रथम फोन के द्वारा ही इस समाचार को प्रसारित करवाएगा । इसके बाद चैनल से घटना के लाइव कवरेज की व्यवस्था की जाएगी और लगभग घटनास्थल पर रिपोर्टर के पहुंचने साथ ही दृश्यों सहित खबर का प्रसारण सुनिश्चित हो जाएगा । अत: टेलीविज़न पत्रकारिता में यह तात्कालिकता और लाइव तत्व उसकी बड़ी ताकत हैं ।
- 3. सरल संप्रेषण – मुद्रित माध्यम की पत्रकारिता में पाठक के लिए पहली शर्त यह होती है कि वह पढ़ा लिखा होना चाहिए ताकि शब्दों को पढकर समझ सके । टेलीविज़न पत्रकारिता की यह ताकत है कि बिना पढ़ा लिखा व्यक्ति भी दृश्यों और ध्वनि के इस संगम से देख सुनकर समाचार अथवा सूचना को समझ सकता है । उदाहरण के लिए मौसम विभाग की ओर से किसी क्षेत्र में समुद्री तूफान की आशंका जताई गई है और मछुआरों को कुछ दिनों तक समुद्र में ना जाने की चेतावनी दी गई है । समाचार पत्रों में प्रकाशित इस सामग्री को पढ़कर सभी मछुआरों तक कम समय में इस पूरी जानकारी का पहुंचना मुश्किल होगा । लेकिन यदि टोलीविजन रिपोर्टर इस आशंका पर दृश्यों और मौसम विभाग के बयान (बाइट) सहित खबर दिखाएगा तो इसका तुरंत असर होगा । अत: टेलीविज़न अत्य़धिक आधुनिक तकनीक वाला माध्यम होते हुए भी जन साधारण के लिए अधिक सुविधाजनक है ।
- 4. रुचि जगाने वाला माध्यम – आमतौर पर किसी गांव या कस्बे या शहर में समाचारों के प्रति रुचि रखने वाले और पूरे समाचार पत्र को गंभीरता से पढ़ने वाले लोग कम होते हैं । खास तौर पर भागमभाग वाली अतिव्यस्त और धन केन्द्रित जीवन शैली में पूरा समय लगाकर समाचारों को पढना और समझना कठिन हो रहा है । ऐसे में टेलीविज़न पत्रकारिता के द्वारा समाचारों के संपर्क में रहना और अपने ज़रूरी काम निपटाते हुए भी इस माध्यम से जानकारियां जुटाना सबसे आसान है । आप सुबह का नाश्ता करते हुए, दफ्तर में कुछ ज़रूरी फाइलें निपटाते हुए, शाम को दोस्तों के साथ चाय पीते हुए कहीं भी चौबीस घंटे टेलीविजन समाचार देख सकते हैं । अर्थात सूचनाओं और समाचारों के लिए आपका कम से कम समय खर्च करवाने की सुविधा टेलीविज़न पत्रकारिता की एक और महत्वपूर्ण ताकत है ।
- टेलीविज़न पत्रकारिता की सीमाएं क्या हैं ?
- 1. दृश्यों की अनिवार्यता – टेलीविज़न समाचार की सबसे बड़ी ताकत ही टेलीविजन पत्रकारिता की सबसे बड़ी सीमा भी बन जाती है । टेलीविज़न समाचार बाकी माध्यमों के मुकाबले दृश्यों की उपलब्धता के कारण सबसे अधिक प्रभावी है । टेलीविजन पत्रकारिता के लिए यह ताकत कई बार एक चुनौती के रूप में सामने आती है । किसी और माध्यम में पत्रकार को सूचना या जानकारी मिलने पर वह खबर लिखना शुरु करता है और उसे अपने पाठक या श्रोता तक पहुंचाता है । टेलीविजन पत्रकार के लिए महज सूचना या जानकारी मिलने पर काम पूरा नहीं होता । अपितु यह कहना चाहिए कि सूचना मिलने के बाद उसका काम शुरु होता है । टेलीविजन समाचार की दृश्य की शर्त को पूरा करने के लिए टेलीविज़न पत्रकार को समय और शक्ति लगानी पड़ती है ।
समाचार की सामग्री के अनुसार दृश्यों को जुटाना कई बार बेहद कठिन कार्य हो जाता है । साथ ही दृश्यों के साथ साथ संबंधित लोगों के बयान (बाइट) लेना भी आवश्यक होता है । ऐसे में आमतौर पर समाचार पत्रों के पत्रकारों का फोन पर बात करने से काम चल जाता है लेकिन टेलीविजन पत्रकार के लिए यह पर्याप्त नहीं है । संबंधित व्यक्ति कहां, किस वक्त उपलब्ध होगा यह तय करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है । जिस व्यक्ति के लिए समाचार नकारात्मक होता है वह बयान(बाइट) देने से बचने की कोशिश करता है । जिस व्यक्ति से बयान लेना समाचार की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक होता है उसको बाइट के लिए तैयार करना तथा उसके अनुसार तय किए गए समय एवं स्थान पर पहुंचना पड़ता है । इस कवायद के साथ साथ खबर की विस्तृत जानकारी जुटाना, दृश्यों को शूट करना तथा उपलब्ध जानकारी को न्यूज़ रूम के साथ साझा करना भी जारी रहता है । इसलिए जानकारियों के साथ साथ दृश्यों और बयानों को जुटाने का कार्य काफी चुनौतीपूर्ण होता है ।
कई बार कुछ दस्तावेज आधारित या सूत्र आधारित खबरों में यह समस्या और दुष्कर होती है जब बयान और दृश्य दोनों मिलना असंभव हो जाता है । ऐसे में संवाददाता को तमाम जानकारी के बावजूद खबर को छोड़ना पड़ता है या फिर कुछ समय के लिए स्थगित करना पड़ता है । उदाहरण के तौर पर किसी संवेदनशील सरकारी विभाग में कोई घोटाला चल रहा है । आपका अपना सूत्र इसकी जानकारी आपको दे रहा है लेकिन वह इतना सक्षम नहीं है कि इसके दृश्य आपको शूट करवा सके । प्रिंट माध्यम में संवाददाता सूत्र की जानकारी को आधार बनाकर समाचार लिख सकते हैं और सक्षम अधिकारी से उसका बयान भी फोन पर या मिलकर ले सकते हैं । लेकिन टेलीविजन पत्रकार के लिए संबंधित दृश्य और दस्तावेज जुटाए बिना समाचार चला पाना कठिन होगा । सक्षम अधिकारी से भी कैमरे समक्ष बयान लेने के लिए अतिरिक्त प्रयास की जरूरत होगी । अत: टेलीविजन समाचार में जो दृश्य तत्व उसे प्रभावी बनाता है उसी दृश्य तत्व की अनिवार्यता कई बार टेलीविजन पत्रकारिता की सीमा बन जाती है ।
टेलीविजन पत्रकारिता को समझने के लिए समाचार चैनल की कार्यप्रणाली से परिचय कितना जरूरी है और इसे किस प्रकार समझा जा सकता है ?
किसी भी माध्यम के लिए पत्रकारिता करते समय उस माध्यम की सामान्य जानकारी आवश्यक है । लेकिन टेलीविज़न पत्रकारिता के लिए टेलीविज़न समाचार चैनल की कार्यप्रणाली की अच्छी समझ जरूरी है । जैसे एक समाचार पत्र के लिए काम करने वाले पत्रकार को यह जानना ज़रूरी नहीं है उस अख़बार की प्रिंटिंग कहां होती है और कौन करता है लेकिन किसी चैनल में काम करने वाले रिपोर्टर को यह पता होना चाहिए चैनल का फाइनल आउटपुट कहां से जाता है । उसे चैनल के अलग अलग विभागों और उनमें काम करने वाले लोगों की जानकारी होनी चाहिए । क्योंकि एक टेलीविज़न पत्रकार को खबर कवर करने के साथ साथ उसके प्रोडक्शन पार्ट का भी हिस्सा बनना होता है । जैसे रिपोर्टर अपनी खबर के दृश्यों का प्रीव्यू करता है, उसकी वीडियो एडिटिंग और स्क्रिप्टिंग में सहयोग करता है । खबर कवर करने के बाद भी उसे खबर के प्रसारण के साथ विभिन्न भूमिकाओं में उपस्थित रहना पड़ता है । खबर के फॉलोअप के लिए उसका लाइव इनपुट लिया जा सकता है । एक टेलीविज़न पत्रकार के लिए खबर एक बच्चे की तरह होती है , प्रत्येक स्तर पर जिसकी ठीक परवरिश को सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी होती है । जैसे बच्चे को स्कूल तो भेजा जाता है लेकिन सिर्फ टीचर के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता वैसे ही टेलीविजन रिपोर्टर अपनी स्टोरी को किसी वीडियो एडिटर, स्क्रिप्ट राइटर या फिर अंत में एंकर के भरोसे नहीं छोड़ सकता । उसे हर विभाग और हर प्रकार के व्यक्ति से समन्वय स्थापित करते हुए स्टोरी के सफल प्रसारण को संभव बनाना पड़ता है ।
- टेलीविजन पत्रकारिता में उपयोग होने वाले महत्वपूर्ण तकनीकी शब्द एवं विभिन्न जिम्मेदारियों के अनुसार पदनाम क्या हैं ?
टेलीविजन पत्रकारिता में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले शब्द इस प्रकार हैं –
स्टोरी कवरेज, इनजस्ट, शूट , ट्राइपॉड, पोटा किट, लाइव, पीटीसी, वॉक थ्रू, वॉक्सपॉप, पैकेज, बाइट, पीसीआर, एमसीआर, सिमसैट, एंकर रीड, वॉइस ओवर, रिकॉर्डिंग, ब्रेक, क्लोज़िंग, रनऑर्डर, रनडाउन इत्यादि ।
समाचारचैनलमेंविभिन्नजिम्मेदारियोंकेलिएपदनामइसप्रकारहैं –
एडिटर इन चीफ , एक्जीक्यूटिव एडिटर , टेक्नीकल हेड , आउटपुट एडिटर, इनपुट एडिटर , एक्ज़ीक्यूटिव प्रोड्यूसर, सीनियर प्रोड्यूसर, प्रोटरड्यूसर, एसोसिएट प्रोड्यूसर, असिस्टेंट प्रोड्यूसर, प्रोडक्शन एक्ज़िक्यूटिव, वीडियो एडिटर, ग्राफिक आर्टिस्ट, कैमरा मैन, पैनल प्रोड्यूसर या स्टूडियो डायरेक्टर, ऑनलाइन एडिटर, ऑडियो मैनेजर आदि ।
हम जनसंचार माध्यम के रूप में टेलीविजन की भूमिका की चर्चा करें इससे पूर्व संचार के इतिहास को विभिन्न परिभाषाओं के माध्यम से संक्षिप्त में समझने का प्रयास करेंगे ।
संचार का शाब्दिक अर्थ होता है– किसी सूचना या संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाना या सम्प्रेषित करना। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति तक अपनी बात या विचार तभी संप्रषित कर सकता है जब वे एक दूसरे के लिए परिचित संकेतों या भाषा का प्रयोग करें । सामान्य प्रवृत्ति के रूप में संचार प्रक्रियाओं का विकास निरंतर होता रहा किंतु एक विषय के रूप में इस पर अध्ययन काफी देर से शुरु हुआ । फिर भी अनेक विद्वानों ने अपने अपने अध्ययन और शोध के आधार पर संचार को परिभाषित करने का प्रयास किया है । संचार का मूल तत्व विचारों अथवा सूचनाओं का संप्रेषण और उनकी प्राप्ति है इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन इस पूरी प्रक्रिया अगल अलग दृष्टि से व्याख्यायित किया जाता रहा है और इस प्रकार के अध्ययन अब भी लगातार जारी हैं । अत: निम्न लिखित परिभाषाओं को संचार के विषय में हम अपनी समझ को अधिक परिष्कृत करने में उपयोग कर सकते हैं ।
- विचारों, जानकारी वगैरह का विनिमय, किसी और तक पहुंचाना या बांटना, चाहे वह लिखित, मौखिक या सांकेतिक हो, संचार है। – ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी
- संचार उन सभी क्रियाओं का योग है जिनके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे के साथ समझदारी स्थापित करना चाहता है। संचार अर्थों का एक पुल है। इसमें कहने, सुनने और समझने की एक व्यवस्थित तथा नियमित प्रक्रिया शामिल है। – लुईस ए. एलेन
- एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना भेजने तथा समझने की विधि है। यह आवश्यक तौर पर लोगों में अर्थ का एक पुल है। पुल का प्रयोग करके एक व्यक्ति आराम से गलत समझने की नदी को पार कर सकता है। – कैथ डैविस
- संचार से तात्पर्य उन समस्त तरीकों से है, जिनको एक व्यक्ति अपनी विचारधारा को दूसरे व्यक्ति की मस्तिष्क में डालने या समझाने के लिए अपनाता है। यह वास्तव में दो व्यक्तियों के मस्तिष्क के बीच की खाई को पाटने वाला सेतु है। इसके अंतर्गत् कहने, सुनने तथा समझने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया सदैव चालू रहती है। – ऐलन
- मनोवैज्ञानिक दृष्टि से संचार से तात्पर्य व्यक्तियों के बीच विचारों और अभिव्यक्तियों के आदान–प्रदान से है। – मैकडेविड और हरारी
- आम तौर पर संचार तब होता है, जब एक सिस्टम या स्रोत किसी दूसरे या गंतव्य को विभिन्न प्रकार के संकेतों के माध्यम से प्रभावित करें ।– चार्ल्स ई. ऑसगुड
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि संचार प्रक्रिया में चार अंग प्रमुख हैं –
- 1.प्रेषक अर्थात संदेश भेजने वाला
- 2.संदेश
- 3.माध्यम
- 4.प्राप्तकर्ता
इनचारोंअंगोंकीभूमिकाकेद्वारासंचारप्रक्रियाकोनिम्नप्रकारसमझाजासकताहै –
प्रेषक—-संदेश—-माध्यम—–प्राप्तकर्ता
इस रूप में संचार प्रक्रिया सम्पन्न होती है लेकिन इसमें कुछ बातों का विचार और आवश्यक है । सफल संचार वही है जिसमें प्रेषक द्वारा दिए गए संदेश का वही अर्थ प्राप्तकर्ता प्राप्त कर सके जो प्रेषक प्रषित करना चाहता है । इसके लिए संदेश की कोडिंग और डिकोडिंग को समझना आवश्यक है । इसका अर्थ यह है कि संचार के लिए प्रेषक और प्राप्तकर्ता के बीच समान अनुभूति या समझ का होना आवश्यक है । यह समान समझ की सबसे अधिक संभावना भाषा औऱ शब्दों के द्वारा संभव है । उदाहरण के तौर पर प्रेषक किसी वस्तु को “कम्प्यूटर” कहता है तो प्राप्तकर्ता के लिए उसके शब्द का अर्थ समझने के लिए पहले इस कोड अर्थात भाषा से परिचय जरूरी है । कोडिंग और डिकोडिंग के आधार पर ही संचार के इतिहास को भी समझा जा सकता है । मनुष्य आदिमानव था तो अनेक प्रकार की समान अनुभूतियों को संकेतों में एक दूसरे से बांटता था धीरे धीरे भाषाओं और लिपियों का विकास हुआ और संचार एक व्यवस्थित रूप में संभव हुआ । इससे अधिकांश अन्तरवैयक्तिक संचार ही संभव हुआ । उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में जब तकनीक का विकास हुआ, नए नए आविष्कार हुए तो संचार ने भी नए आयामों की तरफ कदम बढाए । अब तक गांव या कबीले तक सीमित संचार व्यापक क्षेत्र और व्यापक जनसमुदाय तक विस्तार पा गया । छापेखाने के आविष्कार से शुरु हुई संचार क्रांति फोटोग्राफी,टेलीग्राफी,रेडियो और टेलीविज़न के आविष्कारों से समृद्ध होते हुए इंटरनेट तक पहुंच गई है । इंटरनेट से पहले रेडियो और टेलीविज़न ने ही वास्तविक संचार क्रांति को जन्म दिया । अनेक प्रकार की आधुनिक प्रसारण तकनीकों के आविष्कार के कारण रेडियो और टेलीविजन ने सारी दुनिया को एक इकाई के रूप में तब्दील कर दिया । सूचनाओं और विचारों का आदान प्रदान सबसे सशक्त रूप में द्रुत गति से संभव हुआ । रेडियो ने जहां आवाज़ के माध्यम से सूचनाओं को पंख लगाए वहीं टेलीविजन ने इस संचार को दृश्यात्मकता से जोड़कर आंखें प्रदान की ।
प्रेषक—-संदेश—-माध्यम—–प्राप्तकर्ता
इस रूप में संचार प्रक्रिया सम्पन्न होती है लेकिन इसमें कुछ बातों का विचार और आवश्यक है । सफल संचार वही है जिसमें प्रेषक द्वारा दिए गए संदेश का वही अर्थ प्राप्तकर्ता प्राप्त कर सके जो प्रेषक प्रषित करना चाहता है । इसके लिए संदेश की कोडिंग और डिकोडिंग को समझना आवश्यक है । इसका अर्थ यह है कि संचार के लिए प्रेषक और प्राप्तकर्ता के बीच समान अनुभूति या समझ का होना आवश्यक है । यह समान समझ की सबसे अधिक संभावना भाषा औऱ शब्दों के द्वारा संभव है । उदाहरण के तौर पर प्रेषक किसी वस्तु को “कम्प्यूटर” कहता है तो प्राप्तकर्ता के लिए उसके शब्द का अर्थ समझने के लिए पहले इस कोड अर्थात भाषा से परिचय जरूरी है । कोडिंग और डिकोडिंग के आधार पर ही संचार के इतिहास को भी समझा जा सकता है । मनुष्य आदिमानव था तो अनेक प्रकार की समान अनुभूतियों को संकेतों में एक दूसरे से बांटता था धीरे धीरे भाषाओं और लिपियों का विकास हुआ और संचार एक व्यवस्थित रूप में संभव हुआ । इससे अधिकांश अन्तरवैयक्तिक संचार ही संभव हुआ । उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में जब तकनीक का विकास हुआ, नए नए आविष्कार हुए तो संचार ने भी नए आयामों की तरफ कदम बढाए । अब तक गांव या कबीले तक सीमित संचार व्यापक क्षेत्र और व्यापक जनसमुदाय तक विस्तार पा गया । छापेखाने के आविष्कार से शुरु हुई संचार क्रांति फोटोग्राफी,टेलीग्राफी,रेडियो और टेलीविज़न के आविष्कारों से समृद्ध होते हुए इंटरनेट तक पहुंच गई है । इंटरनेट से पहले रेडियो और टेलीविज़न ने ही वास्तविक संचार क्रांति को जन्म दिया । अनेक प्रकार की आधुनिक प्रसारण तकनीकों के आविष्कार के कारण रेडियो और टेलीविजन ने सारी दुनिया को एक इकाई के रूप में तब्दील कर दिया । सूचनाओं और विचारों का आदान प्रदान सबसे सशक्त रूप में द्रुत गति से संभव हुआ । रेडियो ने जहां आवाज़ के माध्यम से सूचनाओं को पंख लगाए वहीं टेलीविजन ने इस संचार को दृश्यात्मकता से जोड़कर आंखें प्रदान की ।