महेंद्र नारायण सिंह यादव।
सामान्य धारणा यह है कि पत्रकारों को बुनियादी जानकारी तकरीबन हर विषय की होनी चाहिए, जो कि सही भी है। हालाँकि कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जिनके लिए विषय विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ती ही है। विज्ञान पत्रकारिता के साथ भी ऐसा ही है। विज्ञान पत्रकारिता के अलग से प्रशिक्षण की सामान्य तौर पर व्यवस्था कम से कम हमारे देश में तो नहीं है, इसलिए विज्ञान में दखल रखने वाले पत्रकार ही इस क्षेत्र में काम करते हैं।
विज्ञान पत्रकारिता के तहत भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान जैसे विषयों पर दखल की आवश्यकता पड़ती है। इन विषयों में कम से कम स्नातक स्तर की पढ़ाई और वैज्ञानिक अभिरुचि विज्ञान पत्रकारिता के लिए बुनियादी आवश्यकता मानी जा सकती है। सबसे ज्यादा आवश्यकता इस क्षेत्र में आसान शब्दों में विज्ञान और वैज्ञानिक घटनाओं की व्याख्या करने की क्षमता की पड़ती है। बेशक, इसमें वैज्ञानिकों का सहयोग लिया जाता है लेकिन असल बात ध्यान में रखने की यह है कि विज्ञान पत्रकारिता के पाठक या दर्शक आवश्यक रूप से विज्ञान के जानकार या विशेषज्ञ नहीं होते। आम पाठक या दर्शक की भी वैज्ञानिक घटनाओं में एक आम दिलचस्पी होती है, लेकिन उसे विज्ञान के नियमों, सिद्धांतों और क्रियाओं की जानकारी नहीं होती। ऐसे में विज्ञान संबंधी लेखों और कार्यक्रमों को आम रुचि का बनाना एक बड़ी चुनौती होती है।
विज्ञान की टीवी पत्रकारिता हो या अखबारी पत्रकारिता, एक बड़ा लाभ इसमें चित्रों, तस्वीरों और रेखा चित्रों के इस्तेमाल का होता है। तमाम स्रोतों से पत्रकारों को ऐसी दृश्यात्मक सामग्री हासिल हो जाती है, जिससे पत्रकारिता संबंधी लेखों को आकर्षक ही नहीं बल्कि समझ में आने योग्य भी बनाने में मदद मिल जाती है। टीवी के लिए वैज्ञानिक घटनाओं की तस्वीरें दर्शकों को बाँधे रखने में बहुत ही सहायक होती हैं और इन्हीं के बल पर विज्ञान से बिलकुल अनभिज्ञ या मामूली जानकारी रखने वाले दर्शक को भी रुचिपूर्वक कार्यक्रम देखते रहने की स्थिति में लाया जा सकता है।
जैसा कि ऊपर बताया गया है, आम दर्शक को विज्ञान के नियमों और सिद्धांतों की कोई गहन जानकारी तो होती नहीं, लेकिन अपनी बात समझाने के लिए इन नियमों और सिद्धांतों का सहारा लेना ही पड़ जाता है। ऐसे में आसान तरीका यही है कि जब जहाँ इस नियम और सिद्धांत की ज़रूरत पड़ रही हो, वहाँ पर संक्षेप में पहले उस नियम या सिद्धांत का भी जिक्र कर दें। संभव हो तो उदाहरण की भी मदद लें और यह सुनिश्चित करें कि जो बड़ी बात आप आगे बताने जा रहे हैं, उसे समझने के लिए दर्शक मानसिक रूप से तैयार हो जाए।
टीवी के विज्ञान संबंधी कार्यक्रमों में अक्सर विज्ञान के विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, प्रोफेसर आदि अतिथि के रूप में आते हैं। उनको भी पहले से यह बात अच्छी तरह से स्पष्ट कर दें कि कार्यक्रम का लक्ष्य हर तबके के दर्शक को बताना या समझाना है, इसलिए ऐसी भाषा और उदाहरण का इस्तेमाल करें जिसे विज्ञान की कम जानकारी रखने वाला भी आसानी से समझ सके। सामान्य तौर पर ऐसे विशेषज्ञ लोग ऐसा काफी अच्छी तरह से कर लेते हैं, बस उन्हें बताने की भर ज़रूरत होती है कि दर्शकों की पृष्ठभूमि विज्ञान की नहीं भी हो सकती है।
ग्राफिक्स विभाग की भूमिका विज्ञान के कार्यक्रमों को रोचक और सुग्राह्य बनाने में काफी महत्वपूर्ण होती है। कार्यक्रम के निर्माता या लेखक को चाहिए कि वह अपनी अवधारणा ग्राफिक्स विभाग को अच्छी तरह से समझा दे। उनकी सीमाओं को भी समझना चाहिए और उसी के हिसाब से उन्हें अपनी अपेक्षाएं बतानी चाहिए। इसी तरह से टीवी कार्यक्रमों के एंकर भी विज्ञान की पृष्ठभूमि के चुने जाने चाहिए और ऐसा नहीं मानना चाहिए कि सामान्य तौर पर अच्छी समझ रखने वाला कोई भी एंकर अपनी वाक्पटुता के सहारे कार्यक्रम को रोचक तरीके से पेश कर ही लेगा। वाक्पटुता तो जरूरी है ही, लेकिन एंकर ऐसा हो जिसे विज्ञान की, खासकर संबंधित विषय की अच्छी जानकारी हो। सबसे अच्छा उपाय तो यह है कि ग्राफिक्स विभाग की ही तरह, एंकर के साथ भी बैठकर ठीक से कार्यक्रम पर चर्चा कर ली जाए। जहाँ कहीं भी उन्हें कुछ संदेह हो, उसे समय रहते ही दूर कर दिया जाए। हालाँकि, लाइव कार्यक्रम में अगर वह कोई गलती करता भी हो तो अनुभवी गेस्ट बात को अच्छी तरह से संभालकर सही जानकारी दर्शकों को दे सकता है, लेकिन फिर भी एंकर की छवि तो खराब होती ही है। इसके अलावा, उस गेस्ट को भी यह अच्छा नहीं लगता कि किसी गंभीर विषय पर कम समझ वाले एंकर को जिम्मेदारी सौंपी गई।
हालाँकि, सामान्य मुख्य धारा के अखबारों और टीवी चैनलों में विज्ञान पत्रकारिता के ज्यादा अवसर नहीं होते, लेकिन महत्वपूर्ण वैज्ञानिक घटनाएं होने पर विज्ञान पत्रकार का दायित्व बढ़ जाता है। ऐसे पत्रकारों को सामान्य तौर पर अपने कार्यालय में उतनी अहमियत न भी मिल पाती हो, लेकिन महत्वपूर्ण मौकों पर उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका मिल जाती है, जिसे कुशलता से निष्पादित करके वे अपना महत्व साबित कर सकते हैं।
इनके अलावा, विज्ञान पत्रिकाएं भी होती हैं जिनमें विषय की अच्छी जानकारी के साथ-साथ पत्रकारिता की उपाधि या अनुभव विज्ञान पत्रकारों के लिए नए अवसरों का द्वार खोलने में सक्षम हो सकता है। फर्क यह है कि उन पत्रिकाओं के लिए विज्ञान की विशेषज्ञता अच्छी खासी होनी चाहिए। इसके अलावा विज्ञान में अभिरुचि भी जबरदस्त होनी चाहिए। केवल सामान्य दिलचस्पी के सहारे विज्ञान पत्रकारिता करेंगे तो जल्द ही आपको आपका काम बोझिल लगने लगेगा।
विज्ञान पत्रकारों के अन्य रोजगार के अवसरों के बारे में बात करें तो डिस्कवरी चैनल, नेशनल जियोग्रॉफिक चैनल जैसे चैनलों में काफी मौके मिल सकते हैं। अगर अंग्रेजी और हिंदी में दक्षता है तो मूल रूप से अंग्रेजी में निर्मित कार्यक्रमों का हिंदी अनुवाद करने का भी मौका रहता है और अगर आपकी पृष्ठभूमि विज्ञान पत्रकारिता की है तो जाहिर है, आपसे सुयोग्य कोई और उम्मीदवार नहीं होगा।
लेखक परिचय : परिचय
महाराजा कॉलेज छतरपुर (म.प्र.) से स्नातक और भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, तथा गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर। विगत 20 वर्षों से रेडियो, टेलीविज़न की पत्रकारिता तथा अनुवाद और संपादन कार्य में संलग्न। चिल्ड्रंस बुक ट्रस्ट के हिंदी संपादक के रूप में भी कार्य किया। संप्रति दिल्ली में समाचार चैनल ‘समय म.प्र. छत्तीसगढ़’ में पत्रकारिता।
अब तक करीब 20 पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया है, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम की खुशहाल व समृद्ध विश्व (Target 3 Billion), और भारत भाग्य विधाता (Governance for Growth in India)। प्रेरक नेपोलियन हिल की मनचाही सफलता कैसे पाएं (Magic Ladder to Success), मेट्रोमेन ई श्रीधरन और भरत वाकलु की संपादित सशक्त मूल्यों का तेजस्वी भारत (Restoring Values-Keys to Integrity, Ethical Behaviour and Good Governance), Edited by E. Sreedharan and Bharat Waklu. प्रिया कुमार की एक सुपर हीरो की शानदार कहानी (An Insprinig Journey of O P Munjal, विक्रम अकुला की माइक्रोफाइनेंसिंग से गरीबी हटाएं (A Fistful of Rice), इंटरनेट विशेषज्ञ अंकित फाड़िया की कैसे इंटरनेट पर सबकुछ करें अनब्लॉक (How to unblock everything on Internet), पॉल मैकजी की सूमो, कामयाबी का अचूक मंत्र, राजेश कुमार ठाकुर की विद्यार्थियों हेतु वैदिक गणित, नीरजा राघवन की आओ इसका पता लगाएं (I wonder why) प्रमुख हैं।