– आलोक पुराणिक
1-आर्थिक पत्रकारिता है क्या
2- ये हैं प्रमुख आर्थिक पत्र–पत्रिकाएं औरटीवीन्यूजचैनल
3-बाजार ही बाजार
4- बुल ये और बीयर ये यानी तेजड़िया और मंदड़िया
5- मुलायम, नरम, स्थिर, वायदा
6- शेयर बाजार पहले पेज पर भी
7- रोटी, कपड़ा और मकान से मौजूदा रोटी, कपड़ाऔरमोबाइलतक
8-अमेरिका का बर्गर और चीन का मोबाइल
9- बैंक, बजट, थोड़ा यह भी
10-कंपनी ही कंपनी, शेयर यानी कंपनी के बिजनेस पार्टनर
11-शेयर बाजार यानी कंपनी का शेयर बेचने का बाजार, सेनसेक्स, निफ्टी, मुचुअल फंड
12-संसाधन, लिंक
1-आर्थिक–पत्रकारिता है क्या
आर्थिक–पत्रकारिता शब्द में दो शब्द हैं–आर्थिक और पत्रकारिता। आर्थिक का संबंध अर्थशास्त्र से है। अर्थशास्त्र की बहुत शुरुआती परिभाषाओं में एक परिभाषा एल रोबिंस ने दी है–अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय व्यवहार का अध्ययन उन साध्यों और सीमित साधनों के रिश्ते के रुप में करता है, जिनके वैकल्पिक प्रयोग हैं।
यानी साधन सीमित हैं, उनके कई इस्तेमाल संभव है, उन साधनों से अधिकतम परिणाम कैसे हासिल किये जायें, इस सवाल का जवाब अर्थशास्त्र में खोजने की कोशिश की जाती है।
अर्थशास्त्र के बारे में उन विद्वानों ने भी लिखा है, जो मूलत अर्थशास्त्री नहीं थे। प्रख्यात नाटककार और व्यंग्यकार बर्नार्ड शा ने लिखा है–अर्थशास्त्र जीवन से अधिकतम पाने की कला है।
अर्थशास्त्र में उत्पादन के विभिन्न तत्वों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। उत्पादन के महत्वपूर्ण तत्व हैं–
1-भूमि या प्राकृतिक संसाधन, जैसे–खनिज, कच्चा माल, जो उत्पादन में प्रयुक्त होते हैं।
2-श्रम यानी वह मानवीय प्रयास जो उत्पादन में प्रयुक्त होते हैं। इनमें मार्केटिंग और तकनीकी विशेषज्ञता शामिल है।
3-पूंजी, जिससे मशीन,फैक्टरी इत्यादि खड़ी की जाती है।
4-कारोबारी प्रयास, जिनके चलते शेष सारे तत्व काराबोर को संभव बनाते हैं।
अर्थशास्त्र में मोटे तौर पर उत्पादन, कृषि,सेवा क्षेत्र, उपभोग से जुड़े मसलों पर चिंतन किया जाता है। पत्रकारिता का काम मोटे तौर पर तमाम विषयों पर पाठकों, दर्शकों, श्रोताओं तक सूचनाएं, विचार वगैरह पहुंचाना है।
यानी आर्थिक पत्रकारिता को यूं परिभाषित किया जा सकता है कि आर्थिक पत्रकारिता से आशय पत्रकारिता के उस हिस्से से है, जिसके तहत तमाम आर्थिक गतिविधियों की जानकारियां, विचार पाठकों, दर्शकों, श्रोताओं तक पहुंचायी जाती हैं।
मोटे तौर पर लगभग हर उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं का उपभोक्ता होता है, तो आर्थिक पत्रकारिता में तमाम वस्तुओं के उत्पादन और सेवाओं के अर्थशास्त्र को पकड़ने की कोशिश की जाती है।
2- ये हैं प्रमुख आर्थिक पत्र–पत्रिकाएं–चैनल
प्रमुख आर्थिक पत्र–पत्रिकाएं इस प्रकार हैं–इकोनोमिक टाइम्स, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, बिजनेस स्टैंडर्ड, हिंदू बिजनेस लाइन, मिंट ये तो दैनिक आर्थिक पत्र हैं। इसके अलावा इकोनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली,बिजनेस इंडिया, बिजनेस वर्ल्ड, केपिटल मार्केट जैसी पत्रिकाओं को भी मोटे तौर पर आर्थिक–पत्रकारिता के दायरे में रखा जा सकता है। इसके अलावा हर सामान्य अखबार में भी आर्थिक खबरों के लिए स्थान होता है।
हिंदी में एक वक्त में अमर उजाला कारोबार, भाव–ताव जैसे दैनिक आर्थिक–पत्र होते थे, अब नहीं हैं। अब हिंदी में उल्लेखनीय आर्थिक–पत्र–पत्रिकाओं को चिन्हित करना मुश्किल काम है। दरअसल वे हैं ही नहीं।
हिंदी में आर्थिक खबरों का टीवी न्यूज–चैनल है सीएनबीसी आवाज, जी बिजनेस भी हिंदी का ही आर्थिक खबरों का न्यूज चैनल है। अंगरेजी मे सीएनबीसी टीवी 18, ब्लूमबर्ग, ईटी नाऊ का उल्लेख महत्वपूर्ण न्यूज–चैनलों के तौर पर किया जा सकता है।
3– बाजार ही बाजार
आर्थिक पत्रकारिता खास तौर पर बाजारों को कवर करती है। सोना–चांदी बाजार से लेकर लेबर बाजार से लेकर शेयर बाजार से लेकर तमाम तरह के बाजार।
बाजारों के बगैर गुजारा नहीं है। बाजार जाये बगैर कोई चारा नहीं है।
कबिरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर–कबीरदासजी भी सबकी खैर बाजार में खड़े होकर मांगते थे। कबीरदास शायद समझते थे कि सबको बाजार में आना ही है। देने वाला भी बाजार में आयेगा और लेने वाले को तो बाजार में आना ही है।
सब पैसे के भाई, देता साथ नहीं कोई, खाने–पीने को पैसा हो रे, तो जोरु बंदगी करें, एक दिन खाना नहीं मिले, तो फिर कै जवाब करे–यह बात भी कबीरदास ने ही कही है। पैसा बोले तो बाजार,पैसा बाजार से आयेगा। पैसा बाजार में जायेगा। बल्कि अब तो बाजार इतना स्मार्ट हो गया है कि वह घर से आकर होम डिलीवरी देकर पैसा आपके पास से ले जायेगा।
बाजार घर तक आये, या घर बाजार तक जाये, बाजार चाहिए। खाने–पीने की चीजें बाजार से आयेंगी। बाजार में जायेंगी। आटे से लेकर बर्गर तक के लिए बाजार में जाना पड़ता है या फिर बाजार खुद आ जाता है। खास–खास बाजार ये हैं–
1-सोना–चांदी बाजार
2-धातु बाजार
3-शेयर बाजार
4-फल–सब्जी बाजार
5-शापिंग माल
6-तमाम वस्तुओं के थोक बाजार
7-तमाम वस्तुओं के रिटेल बाजार
8-आनलाइन बाजार–फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, एमेजन जैसी आनलाइन दुकानें
9-अन्य बाजार
आर्थिक पत्रकारिता इन पर फोकस करती है। आइये, देखें पुराने वक्त के बाजार–रिपोर्टिंग के क्या हाल थे।
हिन्दुस्तान 10 अक्तूबर 1950, मंगलवार व्यापार समाचार पेज पर ये रिपोर्टें थीं–
बम्बई शेयर बाजार की रिपोर्ट,-दो कालम
कलकत्ता शेयर बाजार की रिपोर्ट –सिंगल कालम
मद्रास शेयर बाजार की रिपोर्ट–सिंगल कालम
दिल्ली शेयर बाजार की रिपोर्ट–सिंगल कालम
दिल्ली सराफा–सिंगल कालम
दिल्ली के तेल बाजार के भावों की टेबल जिसमें मूंगफली, गोला, अलसी, महुआ, अरंडी, नीम, बिनौला रिफाइंड, तिल के टीन और ड्राम के भाव बताये गये हैं।
हिन्दुस्तान 10 अक्तूबर 1950, मंगलवार व्यापार समाचार पेज की एक रिपोर्ट में सोमवार के विभिन्न मंडियों के भाव बताये गये।
दिल्ली–गल्ला छिलका चना, चूरी चना, गुवार, मूंग, उड़द, मसूर, अरहर, चना कंट्रोल के भाव बताये गये।
तिलहन–सरसों, बिनौला दक्खनी, काला, तिल सफेद,
खल–सरसों, बिनोला, तिल
नया गुड़ के भाव
दिल्ली किराना भाव
भटिंडा भी है
बम्बई का जलवा है, बिलकुल है। इतना है कि वहां के बाजार क्यों बंद रहे, यह भी बताया जाता रहा है– हिन्दुस्तान 10 अक्तूबर 1950, मंगलवार व्यापार समाचार पेज पर दिया गया है–
बम्बई
तिल व तेल के बाजार एक सदस्य की मृत्यु हो जाने के फलस्वरुप बन्द रहे।
मसाले काली मिर्च तैयार,दालचीनी, लोंग, कपूर, पारा के भाव बताये गये।
भटिंडा भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था।
भटिंडा
अनाज व दालें चना, चना आटा, दाल चना, बिल्टीकट प्रति बोरी चना, बेसन, चूरी, गेहूं, गेहूं आटा, जौ नया, मूंग, गुवार तैयार, गुवार बिल्टीकट प्रति बोरी, गुवार वायदा माघ, मोठ बिल्टीकट प्रति बोरी, दाल मूंग, दाल उड़द, दाल मसूर के भाव दिये गये।
रुई भटिंडा
तेल तिलहन, सरसों तैयार, सरसों बिल्टीकट प्रति बोरी, सरसों वायदा असौज, जेष्ठ तारामीरा, शुद्ध तेल सरसों, बिनोला देसी, शक्कर।
सो बाजार तरह–तरह के थे और हैं। रुई से लेकर तेल के बाजार, टेक्सटाइल से लेकर टेक्सटाइल कंपनियों के शेयरों के खेल के बाजार। हल्दी बम्बई से लेकर हल्दी हरोट,हल्दी मच्छली, हल्दी निजामाबादी, हल्दी गठ्ठे तक के बाजार गोला बम्बई बड़ा, गोला बम्बई छोटा, कटोरी, किशमिश, आवजोश से लेकर पिश्ता, बादाम कागजी, बादामी गीरदी, बादाम दुजावी काठा, गोला नं. 18, ईलायची छोटी, ईलायची बड़ी, लौंग, दालचीनी, मिर्च काली, मिर्च लाल, सूंठ एलपाई, जीरा सफेद, सौंफ, धनिया, अमचूर, पोस्तदाना, गूंद मकलाई, कत्था कानपुरी, चाय काली, सुपारी, सींख नारियल, फटकरी सफेद, फटकरी लाल, सज्जी काली, मेंहदी पत्ता, मेंहदी पिस्सी, नारियल, सुतली, गिरी बादाम, काजू के बाजार। ऐसे बाजार–वैसे बाजार, ना जाने कैसे –कैसे बाजार। बाजार के जो हाल–चाल लानेवाली आर्थिक पत्रकारिता है।
हिंदी की बाजार रिपोर्टिंग की भाषा में कमोबेश बहुत फर्क नहीं आया है।
4- बुल ये और बीयर ये यानी तेजड़िया और मंदड़िया
अब भी अकसर ये बुल–बीयर, तेजड़िया–मंदड़िया जैसे शब्द बाजार रिपोर्टिंग में सुनायी पड़ जाते हैं। ये हैं क्या, इन्हे समझने की कोशिश करेंगे कुछ पुरानी रिपोर्टों के माध्यम से–
हिन्दुस्तान 4 नवम्बर, 1954, पेज नंबर नौ पेज शीर्षक–व्यापार और उद्योग
बम्बई सराफा
सोने के भावों में मजबूती :चांदी में ढीलापन
हमारे बम्बई कार्यालय द्वारा
बम्बई, 3 नवंबर। स्थानीय सराफे में आज तेजड़ियों की कटान तथा समर्थन की कमी के कारण चांदी वायदे के भावों में गिरावट आई, जबकि मंदड़ियों की पटान से सोना वायदे मजबूत रहे। अन्य बाजारों की सक्रियता की सहानुभूति में सराफे के भावों में सुधार होता दिखाई देता है। कलकत्ता की कमजोर खबरों के कारण चांदी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जबकि पेशेवर समर्थन के फलस्वरुप चांदी के भावों में बंद होते समय सुधार हो गया। चांदी की 15 सिल्लियों की आमद रही, जबकि 8 सिल्लियों उठाई गई। 4,000 तोले सोने की आमद हुई व 3,000 तोले सोना उठाया गया।
मांग अधिक न होने के कारण सोना तैयार के प्रीमियम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। चांदी व सोने की अडजस्टमेंट दरें क्रमश 159) व 88 |- ) की रही।
……
(बोल्ड लेखक ने किया है)
तेजड़ियों से मतलब बाजार में ऐसे कारोबारियों से होता है, जो भविष्य के भावों के बारे में सकारात्मक रुख रखता है यानी उन्हे उम्मीद होती है कि आने वाले दिनों में भाव ऊपर जायेंगे। इस उम्मीद में ये सौदे करते हैं। पर अगर इन्हे भविष्य के बाजार से उम्मीद न हो, तो ये अपने सौदे काटते हैं या कैंसल करते हैं। इसे कटान कहा जाता है। मंदड़िये वे कारोबारी होते हैं, जो इस उम्मीद में कारोबार करते हैं कि आने वाले टाइम में भाव गिरेंगे। मंदड़िये, जैसा कि नाम से साफ है, मंदी की भावना से प्रेरित रहते हैं। मंदड़ियों को जब लगता है कि भविष्य में भाव तेज हो सकते हैं, तो ये अपने भविष्य के सौदों को पटाते हैं या बैलेंस करते हैं। इसे मंदड़ियों की पटान कहा जाता है।
और बाजार भावों से ताल्लुक रखने वाले जानते हैं कि अब की दुनिया में आदमी से आदमी भले ही सहानुभूति न रखे, बाजार परस्पर रखते हैं। बाजार रखते भी थे। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि अन्य बाजारों की सक्रियता की सहानुभूति में सराफे के भावों में सुधार होता दिखाई देता है।
कटान, पटान, सहानुभूति, समर्थन बाजार रिपोर्टिंग में आम तौर पर प्रयुक्त होने वाले शब्द रहे हैं।
समर्थन से आशय मांग के समर्थन से है, जैसे समर्थन के कारण चांदी के भाव बढ़ गये, यानी चांदी में मांग आने के कारण इसके भाव बढ़ गये।
इस रिपोर्ट में गौर की बात यह भी है कि एडजस्टमेंट शब्द का प्रयोग हुआ है। बाजार रिपोर्टिंग ने विशुद्ध हिंदी के प्रति विशेष आग्रह आम तौर पर नहीं रखा है। मिली–जुली भाषा बाजारों की खासियत रही है, मिली–जुली भाषा बाजार रिपोर्टिंग की खासियत रही है। आज भी बाजार रिपोर्टिंग में शुद्धतावादी आग्रह नहीं चलते, हिंदी, इंगलिश का मिला–जुला समन्वय रहता है।
मोटे तौर पर समझना यह चाहिए कि अगर आज रिपोर्ट में यह बताया जाये कि बाजार पर तेजड़िये हावी रहे, तो समझना चाहिए कि बाजार में उन कारोबारियों का असर बहुत रहा, जो भविष्य में भावों में तेजी देख रहे हैं य़ानी बाजार के भावों का रुख ऊपर की ओर है यानी आज बाजार के भाव बढ़कर बंद हुए होंगे। इसके विपरीत मंदड़ियों का असर होने का आशय यह है कि बाजार में मंदी हावी रही और तमाम कारोबारी भविष्य में भावों की गिरावट देख रहे हैं यानी बाजार के भाव गिरकर बंद हुए होंगे।
बुल को हिंदी में तेजड़िया कहा जाता है। बुल यानी सांड़ आक्रामक होकर ऊपर की उछलता है, तेजी ऊपर की ओर उछलती है इसले बुल, सांड़ को तेजी के साथ जोड़कर देखा जाता है। बीयर यानी भालू कंधे झुका कर एकदम ढीले अंदाज में चलता है, जैसे गिर जायेगा। इसलिए मंदी को बीयर य़ानी भालू के साथ जोड़कर देखा जाता है।
5- मुलायम, नरम, स्थिर, वायदा
मुलायम, नरम बाजारों की अवस्थाओं के नाम हैं। स्थिर भी बाजार की स्थिति का नाम है। मुलायम से मतलब कि भाव बढ़े नहीं। नरम का मतलब भी वही है। स्थिर का मतलब यह है कि बाजार में उतार–चढ़ाव नहीं हुआ।
वायदों का बाजार तो वैसे राजनीति में सजता है। हर पांच साल में नेता वोटों की पैठ में वायदों की दुकान सजाता है। पर बाजारों में वायदा बाजार से आशय भविष्य के बाजार के सौदों से होता था। यानी ऐसे सौदे जो भविष्य के लिए किये जाते थे।
एक नमूना देखें– हिन्दुस्तान 4 नवम्बर, 1954, पेज नंबर नौ पेज शीर्षक–व्यापार और उद्योग
दिल्ली सराफा
सोना वायदा स्थिर : चांदी मुलायम
(हमारे व्यापार संवाददाता द्वारा)
दिल्ली , 3 नवम्बर। आज स्थानीय सराफा बाजार में चांदी में मुलायमी रही और सोने के भाव प्राय कल के भावों के स्तर पर घूमते रहे। सौदा अच्छा हुआ और अन्त में चांदी का रुख नरम रहा और सोना कुछ मजबूत रहा, क्योंकि तैयार बाजार में मांग अच्छी थी।
चांदी वायदा कल की तुलना में ||) नीचा खुलकर उत्तरप्रदेश के सटोरियों की बिकवाली के कारण ||=) और नीचा गिरा। ..
5- शेयर बाजार पहले पेज पर भी
वक्त बदल रहा था। शेयर बाजार से जु़ड़ी खबरों का मिज़ाज भी बदल रहा था। मतलब ये खबरें सिर्फ कुछ निवेशकों तक सीमित नहीं रह गयी थीं। इन खबरों के असर का दायरा बढ़ रहा था। इसी वजह से ये खबरें अब पहले पेज पर भी आने लगी थीं–
राष्ट्रीय सहारा 27 मई, 2000 पहले पेज पर
एयर इंडिया के 60 फीसदी शेयर बेचने का फैसला
विनिवेश पर विश्वस्तरीय सलाहकार की नियुक्ति सहारा समाचार–एजेंसियां
नयी दिल्ली–लंबे समय की रस्साकसी के बाद सरकार ने घाटे में चल रही एयर इंडिया के 60 प्रतिशत शेयरों को अंतत बेचने का महत्वपूर्ण फैसला किया पर इसके लिए किसी समय सीमा का निर्धारण नहीं किया है। इसके साथ ही सरकार ने हिन्दुस्तान टेलीप्रिंटर्स लिमिटेड के 74 प्रतिशत शेयरों को बेचने का फैसला भी किया है। सरकार इसके विनिवेश के बारे में सलाह देने के लिए एक विश्वस्तरीय सलाहकार की नियुक्ति का भी फैसला किया है। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में विनिवेश से संबंधित मंत्रिमंडलीय समिति –सीसीडी–की बैठक में हुए इस निर्णय की जानकारी विनिवेश मंत्री अरुण जेटली ने आज संवाददाताओं को दी।
श्री जेटली ने कहा कि एयर इंडिया में सरकार की 40 प्रतिशत भागीदारी बनी रहेगी। शेष 60 प्रतिशत शेयरों में से 40 प्रतिशत आर्थिक रुप से संपन्न साझेदारों के लिए तथा 10 प्रतिशत घरेलू निवेशकों और वित्तीय संस्थानों तथा शेष दस प्रतिशत एयर इंडिया के कर्मचारियों के लिए निर्धारित किये गये हैं। ………….
राष्ट्रीय सहारा 17 नवम्बर 2000
पहली लीड तीन कालम पहले पेज पर
बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी घटाने के प्रस्ताव को मंजूरी
संसद के शीत सत्र में विधेयक लाने का कैबिनेट का फैसला
सहारा एजेंसियां
नयी दिल्ली 16 नवम्बर । बैंक कर्मचारियों के भारी विरोध और कल हुई देश व्यापी हड़ताल के बावजूद सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी भागीदारी 51 प्रतिशत से घटाकर 33 प्रतिशत करने संबंधी प्रस्ताव को आज मंजूरी दे दी तथा इस आशय के विधेयक को सोमवार से शुरु होने वाले संसद के शीतकालीन अधिवेशन में रखने का फैसला किया है। ………
राष्ट्रीय सहारा 19 नवम्बर 2000 पहले पेज पर तीन कालम की रिपोर्ट
मारुति समेत तीन कंपनियों में अपने शेयर बेचेगी सरकार
विनिवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए कैग से समीक्षा करायी जाएगी
सहारा समाचार–एजेंसियां
नयी दिल्ली 18 नवम्बर। विनिवेश संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति ने मारुति उद्योग लिमिटेड ,इंडियन पेट्रोकेमिकल्स और पारादीप फास्फेट्स में केन्द्र सरकार की शेयर भागीदारी बेचने का निर्णय किया है। …………………
सेनसेक्स यानी मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक–सेन्सिटिव इंडेक्स–सेनसेक्स। इसकी कवजेर पहले पेज पर लगातार आती है। मुंबई शेयर बाजार के संवेदनशील सूचकांक सेनसेक्स का महत्व हाल के सालों में यह हो गया है कि उसके बारे में पहले पेज पर लगातार खबरें छपती हैं। स्थिति यह रही कि किसी महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर सेनसेक्स की प्रतिक्रिया खासी महत्वपूर्ण मानी जाने लगी। उदाहरण के लिए देखें–
–दैनिक भास्कर दिल्ली फरीदाबाद राष्ट्रीय संस्करण 13 जुलाई, 2006 के पहले पेज पर ऊपर दर्ज है–आतंकी को मुंह चिढ़ाकर सेंसेक्स 316 अंक चढ़ा।
–नवभारत टाइम्स 13 जुलाई, 2006 नई दिल्ली संस्करण के पहले पेज की सिंगल कालम की खबर का शीर्षक है–शेयर बाजार को पटरी ने नहीं उतार पाए धमाके
–हिन्दुस्तान 13 जुलाई, 2006 पहले पेज पर सिंगल कालम–विस्फोटों का शेयर बाजार पर असर नहीं
7-रोटी, कपड़ा और मकान से मौजूदा रोटी, कपड़ाऔरमोबाइलतक
रोटी,कपड़ा और मकान एक वक्त की बुनियादी जरुरतें होती थीं, रोटी, कपड़ा तो फौरी जरुरत होती है। मकान को हासिल करना हरेक के लिए आसान नहीं होता। रोटी, कपड़ा और मोबाइल–ये तीनों अब लगभग सबके लिए सहज उपलब्ध हैं। इसे यूं समझ सकते हैं कि अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्र खेती, उद्योग और सेवा क्षेत्र को क्रमश रोटी, कपड़ा और मोबाइल से समझा जा सकता है, सांकेतिक तौर पर।
बंबई की पुरानी फिल्मों को देखें, तो उद्योगपति आम तौर पर कपड़ा उद्योगपति हुआ करता था। 1983 में आयी बी. आर. चोपड़ा की फिल्म मजदूर में उद्योगपति टैक्सटाइल की फैक्ट्री के मालिक थे। हीरो राज बब्बर टेक्सटाइल इंजीनियर थे। जलवा था टेक्सटाइल का। रोटी, कपड़ा और मकान मिल जाये, बहुत था। इससे ज्यादा सपने क्या थे। रोटी, कपड़ा और मकान जहां केंद्र में हों, वहां टेक्सटाइल कंपनियों का जलवा तो स्वाभाविक होगा ही। बम्बई शेयर बाजार की कवरेज में टेक्सटाइल शेयरों के भाव अलग से, अलग श्रेणी में दिये जाते थे। शेयर बाजार पर एक रिपोर्ट यह देखिये–
हिंदुस्तान 23 अगस्त, 1947, आखिरी पेज, छठा पेज
आखिरी कालम , सातवां
व्यापार समाचार
बम्बई शेयर बाजार
बम्बई, 22 अगस्त। बम्बई शेयर बाजार के भाव आज इस प्रकार रहे–
सिक्योरिटीज– …
टेक्सटाइल
अहमदाबाद एडवांस-465)
बाम्बे डाइंग– 1055)
सेंट्रल इंडिया-306)
कोलावा लैण्ड-240)
सेंचूरी मिल्स -980)
गोकाक-317)
इंडिया ब्लिचिंग-158)
कोहीनूर– 578)
फोनिक्स-1,210)
स्वदेशी-596)
शोलापुर-6125)
विष्णु-615)-रिपोर्टखत्म
जरा सीन खींचिये आंखों के सामने, कट टू 1947, आफ कोर्स ब्लैक एंड व्हाईट में ही सही, बम्बई शेयर बाजार में सौदे हो रहे हैं। टेक्सटाइल कंपनियों के बास लोग सिगार मुंह से लगाये, सिर ऊपर की उठाये, मानो यूं कह रहे हों कि शेयर बाजार ही हम चलाते हैं। सो बाजार की रिपोर्टिंग में टेक्सटाइल कंपनियों के भावों को जोरदार भाव देना पड़ेगा–जोरदार भाव– बाम्बे डाइंग 1055 रुपये, 22 अगस्त 1947 केभाव।
ऊपर लिखी टैक्स्टाइल कंपनियों में अधिकांश मुहावरे की भाषा में बोलें, तो काल के गाल में समा गयी हैं। अर्थव्यवस्था रोटी, कपड़ा और मकान से उठकर रोटी, मोबाइल और मकान पर आ गयी। और सिर्फ रिकार्ड के लिए नोट करते चलें कि बांबे डाइंग जो उस दौर में दिलीप कुमार जैसी स्टार होती थी, अब 2015 मेंएक्स्ट्राकीहैसियतमेंमुश्किलसेमानीजातीहै।
8-अमेरिका का बर्गर और चीन का मोबाइल
आर्थिक पत्रकारिता में समझने की बात यह है कि अमेरिका को मैकडोनाल्ड बर्गर जो आसपास दिखता है, और चीन के मोबाइलों को जो सेल फ्लिपकार्ट पर चलती दिखती है, वह ग्लोबलाइजेशन का असर है। ग्लोबलाइजेशन यानी भूमंडलीकरण, प्राइवेटाइजेशन यानी निजीकरण, लिबरलाइजेशनयानीउदारीकण।
यूं इन तीनों विषयों पर सैकड़ों किताबें लिखी गयी हीं, पर संक्षेप में यूं समझे कि 1991 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का रुख मूलत बंद अर्थव्यवस्था वाला यानी विदेशों से आयात आसान नहीं था। उनका आयात आसान किया गया, उदार किया गया। 1991 तक तमाम उद्योग चलाने के लिए लाइसेंस की जरुरत होती थी, उदारीकरण के तहत कई उद्योगों की स्थापना आसान बनायी गयी। कई उद्योगों के लिए जरुरी लाइसेंस ही खत्म कर दिये गये। सरकारी क्षेत्र में चलनेवाली कई कंपनियों को निजी क्षेत्र के हवाले किया गया, इसे निजीकरण का नाम दिया जा सकता है। सरकारी कंपनियों के शेयर आम जनता को बेचे गये, इसेविनिवेशकीसंज्ञादीजासकतीहै।
अब भूमंडलीकरण के फायदे–नुकसान गिनवाने का काम तो लगातार चलता रहता है। पर समझने की बात यह है कि भूमंडलीकरण में यह होता है–
1-एक देश का साज–सामानआसानीसेदूसरेदेशमेंआसानीसेजासकताहै।
2-एक देश की तकनीक दूसरे देश में आसानी से जा सकती है।
3-एक देश की पूंजी दूसरे देश में आसानी से जा सकती है।
4-एक देश के व्यक्ति दूसरे देशमेंआसानीसेजासकतेहैं।
जिस मात्रा में ये चारों तत्व अधिकाधिक पाये जायेंगे, उसीमात्रामेंग्लोबलाइजेशनकोसंपन्नहुआमानाजायेगा।
अमेरिका का मैकडोनाल्ड बर्गर, अमेरिका का डोमिन्नो पिज्जा, जापानी टोयोटा की इन्नोवा कार अब आपके पास मिल जाते हैं। यह सब 1991 केबादग्लोबलाइजेशनकीप्रक्रियाकेतेजहोनेकेपरिणामहैं।
1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में पड़ी थी। इराक–अमेरिका के युद्ध के कारण कच्चे तेल के भाव बहुत ऊपर चले गये थे। भारत विदेशी मुद्रा के संकट से जूझ रहा था। संकट इतना गहन था कि भारत को अपना सोना गिरवी रखकर विदेशी मुद्रा का इंतजाम करना पड़ा था। संकट से निपटने के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से कर्ज लेना पड़ा था, उन्होने कई शर्तें रखीं कर्ज देने की। इन शर्तों के फलस्वरुप ग्लोबलाइजेशन, निजीकरण,उदारीकरण का प्रवाह तेज हुआ।
9-बैंक, बजट, थोड़ा यह भी
आर्थिक पत्रकारिता को करने–समझने के लिए जरुरी है कि थोड़ा–बहुत भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के बारे में भी समझा जाये। बैंक कई तरह के देश में हैं, पर रिजर्व बैंक एक ही है। रिजर्व बैंक सारे बैंकों का बास है। देश का सबसे बड़ा बैंक है–स्टेट बैंक आफ इंडिया, यह सरकारी क्षेत्र में है। निजी क्षेत्र में आईसीआईसीआई, एचडीएफसी बैंक बड़े बैंक हैं।
रिजर्व बैंक की वैबसाइट पर एक बार जाइये, पता लगेगा कि वह क्या–क्या करता है–
http://www.rbi.org.in/home.aspx
रिजर्व बैंक मोटे तौर पर बैंकों की ब्याज दरें तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक जैसे बैंकों का कारोबार यह है कि पब्लिक से डिपाजिट लेकर उनके खाते खोलकर पब्लिक से रकम लेकर उन्हे आगे उद्योगपतियों, जरुरतमंदों को ब्याज पर देते हैं। पब्लिक को उनके डिपाजिट के अगर आठ प्रतिशत सालाना ब्याज दिया जाना है, तो जाहिर की बैंक उस रकम को आगे ब्याज पर चढ़ाकर उससे तेरह–चौदह प्रतिशत सालाना ब्याज वसूलने की कोशिश करेंगे।
इस देश में लगभग हर महत्वपूर्ण बैंक की वैबसाइट है, वहां जाकर देखा जा सकता है कि बैंक असल में करते क्या–क्या हैं।
बजट देश का भी वैसा ही होता है, जैसा आपका–हमारा घर का होता है। बस सरकार को घाटा दिखाने की छूट होती है, आम आदमी अपने बजट में लगातार लंबे समय तक घाटा नहीं दिखा सकता। बजट खर्च–आय का हिसाब–किताब होता है। आर्थिक पत्रकारिता करनेवाले हर पत्रकार के लिए साल में एक महत्वपूर्ण इवेंट होता है–बजट–प्रस्तुतीकरण, जो हर साल तय तारीख 28 फरवरी को पेश किया जाता है। वित्त–मंत्री के सामने चुनौती होती कि अपनी आय कैसे बढायी जाये और खर्च कम से कम कैसे किया जाये।
10-कंपनी ही कंपनी, शेयर यानी कंपनी के बिजनेस पार्टनर
आर्थिक पत्रकारिता करनेवाले या ना करनेवाले कंपनी से डील करते ही हैं।
जी सुबह से शाम तक आपके इर्द–गिर्द कंपनियां ही हैं, सुबह कोलगेट टूथपेस्ट से अगर टूथपेस्ट करते हैं, तो आपके बाथरुम में कोलगेट लिमिटेड कंपनी बैठी है, अगर पेप्सोडेंट का टूथपेस्ट यूज करते हैं, तो हिंदुस्तान यूनीलीवर लिमिटेड कंपनी आपके बाथरुम में है और अगर बाबा रामदेव का टूथपेस्ट दंतकांति यूज करते हैं, तो भी जान लीजिए, इसकी निर्माता कंपनी–पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड कंपनी आपके बाथरुम में है। घर में पेंट करना है, तो एशियन पेंट्स कंपनी का पेंट आयेगा और अगर पिज्जा खाना है, तो डोमिनो पिज्जा बनाने–बेचनेवाली कंपनी जुबिलियेंट फूट वर्क्स लिमिटेड आपके घर आ जायेगी।
कंपनी यानी कारोबारी संगठन, एकल व्यापार में बंदा अकेले कारोबार करता है। साझेदारी में कारोबार साझेदारी से होता है। एक से अधिक बंदे साझीदार हो जाते हैं। साझीदार कम से दो होते हैं अधिकतम बीस हो सकते हैं, पर बैंकिंग कारोबार में साझीदार दस से अधिक नहीं हो सकते। सोचिये, बीस लोग कितनी रकम ला सकते हैं, ज्यादा नहीं। बड़े बिजनेस के लिए बड़ी रकम चाहिए होती है। सो वह कंपनी ही ला सकती है, क्योंकि अधिक लोगों से रकम जुटा सकती है। इसलिए आप देख सकते हैं, सारे बड़े कारोबार कंपनियो दवारा ही चलाये जाते हैं।
कंपनियां मोटे तौर पर दो प्रकार की हो सकती हैं–
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी– इस कंपनी में न्यूनतम सदस्य संख्या दो होती है, अधिकतम 200 हो सकती है। प्राइवेट कंपनी पब्लिक से रकम नहीं ले सकती, प्राइवेट कंपनियों के शेयरों को शेयर बाजारों में खरीदा–बेचा नहीं जा सकता।
पब्लिक लिमिटेड कंपनी– इस कंपनी में न्यूनतम सदस्य संख्या सात होती है, अधिकतम की कोई सीमा नहीं है, पब्लिक लिमिटेड कंपनी चाहे जितने सदस्य रख सकती है। पब्लिक कंपनी चाहे, तो पब्लिक को शेयर जारी करके पब्लिक से पूंजी उगाह सकती है, उससे कारोबार चला सकती है। मोटे तौर पर यूं समझें कि रिलायंस इंडस्ट्री ने कभी पब्लिक को शेयर जारी किये थे, उसके बदले रकम उगाही थी। यानी मोटे तौर पर हर शेयरधारक कंपनी का बिजनेस पार्टनर हो जाता है, ऐसा बिजनेस पार्टनर, जिसका बिजनेस कंपनी का प्रबंधन उसकी तरफ से देखता है। बिजनेस पार्टनर कंपनी में शेयर रखता है, इस शेयर को ही कंपनी शेयर कहते हैं, जिसे निवेशक जब चाहे, बाजार में बेच सकता है। जिस बाजार में यह शेयर बेचा जाता है, उसे शेयर बाजार कहा जाता है। मुंबई शेयर बाजार और नेशनल स्टाक एक्सचेंज इस देश के महत्वपूर्ण शेयर बाजार हैं।
कई पब्लिक लिमिटेड कंपनियां ऐसी हो सकती हैं, जो शेयर जारी करके पैसा ना उगाहना चाहें, जैसे बेनेट एंड कोलमैन कंपनी यह कंपनी पब्लिक कंपनी है, पर इसके शेयर बाजार में उपलब्ध ना होंगे, क्योंकि इसने पब्लिक से पैसा ना जुटाया है, पब्लिक को शेयर बेचकर। पर दैनिक जागरण अखबार छापनेवाली कंपनी जागरण प्रकाशन लिमिटेड के शेयर बाजार में उपलब्ध हैं, क्योंकि इसने पब्लिक से पैसा उगाहा है, उन्हे शेयर जारी करके।
पब्लिक कंपनियां जब पहले–पहल शेयर जारी करके पूंजी उगाहती हैं पब्लिक से, तब शेयरों के ऐसे जारी करने को आईपीओ यानी इनीशियल पब्लिक आफर यानी शुरुआती पूंजी प्रस्ताव कहते हैं। जिन निवेशकों को कंपनी शेयर जारी कर देती है, उन्हे शेयरधारक कहा जाता है। ये शेयरधारी जब मर्जी हो, इन शेयरों को बाजार में यानी शेयर बाजार में बेच सकते हैं, उन भावों पर, जिन भावों पर ये शेयर उस वक्त खरीदे–बेचे जा रहे हों।
जिन कंपनियों के नाम में प्राइवेट लिखा हो, वह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी होगी। जिन कंपनियों के नाम में प्राइवेट ना लिखा हो, सिंपल ऐसा हो एशियन पेंट्स लिमिटेड तो समझिये कि पब्लिक लिमिटेड कंपनी होगी।
बड़े बिजनेस बड़ी पूंजी चाहते हैं। बड़ी पूंजी लाखों शेयरधारकों से जुटायी जा सकती है। भारत में यह काम बहुत जोरदारी से एक वक्त में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने किया था(गुरु फिल्म देखिये, यह कमोबेश रिलायंस इंडस्ड्रीज के संस्थापक स्वर्गीय धीरुभाई अंबानी की जिंदगी पर आधारित है)। बड़ी कंपनियों के शेयरधारक हजारों–लाखों में हो सकते हैं।
कंपनियां शेयर जारी करती हैं, निवेशकों को। निवेशक उन्हे बाजार में बेच सकते हैं, जिन बाजारों में वह बिकते हैं, उन्हे बोलते हैं–शेयर बाजार।
11-शेयर बाजार यानी कंपनी का शेयर बेचने का बाजार, सेनसेक्स, निफ्टी
देश के दो सबसे महत्वपूर्ण शेयर बाजार हैं– नेशनल स्टाक एक्सचेंज-http://www.nseindia.com/ , बांबे स्टाक एक्सचेंज-http://www.bseindia.com/
इन बाजारों में तमाम कंपनियों के शेयर खरीदे बेचे जाते हैं। बाजार का रुख भांपने के लिए सूचकांकों का सहारा लिया जाता है। सूचकांक यानी हवा के रुख का अंदाज लगाने की कोशिश। और साफ समझिये–जैसे आपकी क्लास में 50 बच्चे–बच्चियां हैं, और आपके टीचर को आपकी क्लास की परफारमेंस का अंदाज लगाना है। हर बच्चे की परफारमेंस ट्रेक करने के बजाय यूं हो सकता है कि पचास में पांच बच्चे छांट लिये जायें, जो पूरी क्लास का प्रतिनिधित्व करते हों। इनमें टाप परफारमेंस वाले बच्चे हों, औसत बच्चे हों, कमजोर बच्चे हों, ताकि पूरी क्लास का मोटा–मोटा अंदाज हो जाये।
ऐसे ही शेयर बाजार सैकड़ों कंपनियों के शेयरों को खरीदा–बेचा जाता है। इनमें से कुछ चुनिंदा कंपनियां चुन ली जाती हैं, सूचकांक के लिए। मुंबई शेयर बाजार के सूचकांक को सेनसेक्स बोला जाता है, सेनसेक्स यानी सेंसिटिव इंडेक्स संवेदी सूचकांक। इसमें तीस कंपनियां शामिल हैं–
1 APRIL, 2015, All Prices in | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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मोटे तौर पर देखें, तो हर उद्योग की बड़ी कंपनी इस सूची में है। इन कंपनियों के शेयरों के भावों के रुख से पूरे शेयर बाजार का रुख पता लगता है।
मुंबई शेयर बाजार के सूचकांक का आधार 1978-79 का वर्ष है। इस वर्ष सेनसेक्स में शामिल तीस कंपनियों के शेयरों की बाजार कीमत को 100 रुपये का माना गया है, इस आधार पर सेनसेक्स का कैलकुलेशन होता है। जैसे एक अप्रैल, 2015 को बंद हुए कारोबार में सेनसेक्स बंद हुआ-28,260 बिंदुओं पर, इसे यूं समझें कि 1978-79 में जिस आइटम की वैल्यू 100 रुपये थी, वह 1 अप्रैल, 2015 में 28,260 रुपये की हो गयी यानी 36 सालों में इसकी वैल्यू 282.60 यानी करीब 283 गुना हो गयी। सेनसेक्स कब कितने स्तर पर रहा, यह मुंबई स्टाक बाजार की वैबसाइट पर जाकर देखा जा सकता है।
सेनसेक्स में हर उद्योग की बड़ी कंपनियों को जगह दी गयी है, ताकि देश के हर महत्वपूर्ण उद्योग और सेवा क्षेत्र की कंपनी को यहां जगह मिल सके। सेनसेक्स के उतरने–चढ़ने से अर्थव्यवस्था की गति–प्रगति का अंदाज लगाया जाता है। उसकी वजह यह है कि इसमें शामिल कंपनियों के रुख से संकेत मिलते हैं कि अर्थव्यवस्था से बेहतरी की उम्मीद करें या निराशा के बादल छाने की।
सेनसेक्स में शामिल कंपनियों के उद्योग–सेवा क्षेत्र इस प्रकार हैं–
यह चार्ट बताता है कि सेनसेक्स में करीब 32.3 प्रतिशत हिस्सा बैंकों और वित्तीय सेवा क्षेत्र की कंपनियों का है। इनफोर्मेशन टेक्नोलोजी की कंपनियों का हिस्सा 15.8 प्रतिशत है।
सेनसेक्स से पता चलता है कि 32.3 प्रतिशत और 15.8 प्रतिशत हिस्सा यानी 48.1 प्रतिशत हिस्सा वित्तीय क्षेत्र और इनफोरमेशन टेक्नोलोजी की कंपनियों को जाता है। यानी समूची अर्थव्यवस्था में वित्तीय क्षेत्र और इनफोरमेशन टेकनोलोजी क्षेत्र की अहमियत बहुत महत्वपूर्ण है।
निफ्टी के बारे चर्चा अगले पेज से–
ऐसे ही नेशनल स्टाक बाजार का सूचकांक है, जिसने निफ्टी कहा जाता है यानी नेशनल स्टाक एक्सचेंज इंडेक्स आफ फिफ्टी शेयर। निफ्टी में पचास शेयर हैं–
ACC Limited | |
Ambuja Cements Ltd. | |
Asian Paints Ltd. | |
Axis Bank Ltd. | |
Bajaj Auto Ltd. | |
Bank of Baroda | |
Bharat Heavy Electricals Limited | |
Bharat Petroleum Corporation | |
Bharti Airtel Ltd. | |
Cairn India Ltd. | |
Cipla Ltd. | |
Coal India Ltd. | |
DLF Limited | |
Dr. Reddy’s Laboratories Ltd. | |
GAIL (India) Ltd. | |
Grasim Industries Ltd. | |
HCL Technologies Ltd. | |
HDFC Bank Ltd. | |
Hero MotoCorp Ltd. | |
Hindalco Industries Ltd. | |
Hindustan Unilever Ltd. | |
Housing Development Finance Corporation Ltd. | |
ITC Limited | |
ICICI Bank Ltd. | |
IDFC Ltd. | |
IndusInd Bank Ltd. | |
Infosys Ltd. | |
Jaiprakash Associates Ltd. | |
Jindal Steel & Power Ltd. | |
Kotak Mahindra Bank Ltd. | |
Larsen & Toubro Ltd. | |
Lupin Limited | |
Mahindra & Mahindra Ltd. | |
Maruti Suzuki India Ltd. | |
NMDC Limited | |
NTPC Limited | |
Oil & Natural Gas Corporation Ltd. | |
PowerGrid Corporation of India Ltd. | |
Punjab National Bank | |
Ranbaxy Laboratories Ltd. | |
Reliance Industries Ltd. | |
Sesa Sterlite Limited | |
State Bank of India | |
Sun Pharmaceutical Industries Ltd. | |
Tata Consultancy Services Ltd. | |
Tata Motors Ltd. | |
Tata Power Co. Ltd. | |
Tata Steel Ltd. | |
UltraTech Cement Ltd. | |
Wipro |
नेशनल स्टाक एक्सचेंज की निफ्टी का आधार अवधि– 3 नवंबर, 1995 है, इस दिन नेशनल स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध निफ्टी पचास कंपनियों की कुल बाजार वैल्यू को 1,000 रुपये माना गया। 1 अप्रैल, 2015 को निफ्टी 8586 बिंदु पर बंद हुआ, इसका मतलब यह हुआ कि करीब बीस साल में निफ्टी 1000 से उठकर 8586 बिंदु पर आया, यानी करीब बीस साल में निफ्टी करीब साढ़े आठ गुना हो गया।
निफ्टी और सेनसेक्स में सीधी तुलना नहीं की जा सकती है निफ्टी का आधार वर्ष 1995 है और आधार–वैल्यू 1000 है, जबकि सेनसेक्स की आधार वैल्यू 100 है और आधार वर्ष 1978-79 है।
पर देखने में यह आता है कि निफ्टी और सेनसेक्स की दिशा लगभग एक ही होती है, यानी अगर बढ़ोत्तरी दोनों में एक साथ दिखायी पड़ती है और गिरावट भी दोनों में एक साथ दिखायी पड़ती है।
निफ्टी सेनसेक्स के बढ़ने–गिरने के मुख्य कारण–
–राजनीतिक कारण–राजनीतिक अनिश्चितता, वामपंथी राजनीति की भूमिका, गठबंधन राजनीति आदि
–आर्थिक कारण–महंगाई दर, ब्याज दर, सोने के भाव, डालर के भाव, ग्लोबल अर्थव्यवस्था की हालत, रोजगार दर, विकास दर, कच्चे तेल के भाव आदि
–कंपनीगत कारण–प्रबंधन की गुणवत्ता, कंपनी की उद्योग, कंपनी का भविष्य आदि
–अन्य कारण
12-संसाधन
आर्थिक पत्रकारिता में लगातार कुछ करने के लिए निम्नलिखित वैबसाइटों, संस्थानों की वैबसाइटों को लगातार देखना बहुत जरुरी है, इनमें कुछ के हिंदी संस्करण भी उपलब्ध हैं–
–रिजर्व बैंक
–सेबी– सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इंडिया–शेयर बाजार की नियामक संस्था
–नेशनल स्टाक एक्सचेंज
–मुंबई स्टाक एक्सचेंज
–वित्त मंत्रालय
-ECONOMIC TIMES, दैनिक अखबार
-BUSINESS STANDARD , दैनिक आर्थिक अखबार
-FINANCIAL EXPRESS, दैनिक आर्थिक अखबार
-MINT,दैनिक आर्थिक अखबार
-HINDU BUSINESS LINE, दैनिक आर्थिक अखबार
-CAPITAL MARKET, मैगजीन
-BUSINESS TODAY, मैगजीन
-WWW.MONEYCONTROL.COM, वैबसाइट
टीवी चैनल–
सीएनबीसी टीवी 18, इंगलिश आर्थिक चैनल
सीएनबीसी आवाज, हिंदी आर्थिक चैनल
जी बिजनेस, हिंदी आर्थिक चैनल
ब्लूमबर्ग, इंगलिश आर्थिक चैनल
ईटी नाऊ, इंगलिश आर्थिक चैनल
किताब–आर्थिक पत्रकारिता–लेखक आलोक पुराणिक, प्रभात प्रकाशन, 2007