शिवप्रसाद जोशी और शालिनी जोशी |
वेब पत्रकारिता कोई कम्प्यूटर पर अख़बार नहीं है. न ही ये ब्राउज़र से संचालित कोई प्रसारण केंद्र है. ये पारंपरिक मीडिया से कई मानों में भिन्न हैः अपनी क्षमता, लचीलेपन, तात्कालिकता, स्थायित्व और पारस्परिकता से.
क्षमताः
अख़बार का एक रिपोर्टर अपनी स्टोरी को पांच सौ या छह सौ शब्दों में समेटने को बाध्य है. फ़ोटोग्राफ़र पूरा दिन इवेंट कवर करता है और प्रिंट में उसकी इक्का दुक्का तस्वीरें ही जा पाती हैं. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रिपोर्टर के पास अपनी रिपोर्ट के लिये दो से तीन मिनट का समय होगा. एक इंटरव्यू सात या आठ सेकंड की साउंड बाइट में तब्दील हो जाएगा. इस तरह प्रिंट, टीवी और रेडियो के पत्रकारों के सामने दो बड़ी खिन्नताएं और सीमाएं पेश आती हैं: टाइम एंड स्पेस. समय और जगह की कमी.
ये मुश्किल वेब में पूरी तरह भले ही दूर न हो पाती हों लेकिन उनसे काफ़ी हद तक पार पाया जा सकता है. मसलन वेब पत्रकार अपनी रिपोर्ट के लिए कितने ही शब्द और कितना ही वक्त ले सकता है. फ़ोटो पत्रकार किसी घटना की महज़ एक नहीं दस फोटुएं तक लगा सकता है. ग्राफ़िक विवरण और प्रस्तुतियों के लिए अच्छी ख़ासी स्पेस ले सकता है.
एक रिपोर्ट को उसकी समस्त समग्रता में वेब पर प्रकाशित या डाउनलोड किया जा सकता है. मसलन किसी व्यक्ति का पूरा भाषण, नक्शे, चार्ट, आंकड़े, फ़ोटो. यहां तक कि घटना का ऑडियो और वीडियो भी डाला जा सकता है. यानी वेब पत्रकार एक साथ प्रिंट, टीवी रेडियो जर्नलिज़्म के औजारों से अपनी वेब रिपोर्ट तैयार कर सकता है. इसीलिए उसे मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट भी कहा जाता है. कई माध्यमों में एक साथ सक्रिय. और इतना ही नहीं रिपोर्ट को हर एंगल और हर रूप से डाउनलोड करने के अलावा बुकमार्किंग और पॉडकास्टिंग के ज़रिए उसका दायरा और फैलाया जा सकता है. फ़ेसबुक ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किग की वेबसाइट्स में रिपोर्ट या उसका अंश भेजा जा सकता है. आईटोंस या आइपॉड जैसे माध्यमों के ज़रिए रिपोर्ट का ऑडियो या वीडियो उपभोक्ता की पसंद और फ़ुरसत के लिए भेजा जा सकता है. वो जब चाहे अपने पसंद की रिपोर्ट को देख पढ़ या सुन सकता है. यानी एक वेब पत्रकार प्रिंट या टीवी पत्रकार की अपेक्षा ज़्यादा तरीक़ों से ज़्यादा सूचना दे सकता है.
ज़ाहिर है वेब की तकनीकी सामर्थ्य है तो उसकी तकनीकी सीमाएं भी हैं. कम्प्यूटरों के सर्वर्स की एक निश्चित क्षमता होती है. एक हद तक फ़ाइल आकार लेने के बाद वो ज़्यादा फाइलें नहीं ले सकता. इन्ही सर्वर्स पर वेबसाइट की सूचना जाती है. लेकिन आमतौर पर ऐसा नहीं होता क्योंकि सर्वर को इस लिहाज़ से काफ़ी सक्षम बनाया जाता है. वेब की एक प्रमुख सीमा उस कम्प्यूटर के आकार से जुड़ी है जिसके ज़रिए वेबसाइट देखी जा रही है. स्क्रीन के आकार पर वेबसाइट को देखे जाने की सहजता या कठिनाई जुड़ी है. सूचना अपलोड करने में जो समय लगता है वो भी एक सीमा है. मल्टीमीडिया संसाधनों से अपनी रिपोर्ट को वेब पर बेहतर से बेहतर बनाने को उत्सुक पत्रकार को इसकी कितनी छूट है. इसी से जुड़ी है फ़्लेक्सिबिलिटी यानी लचीलापन
लचीलापन
वेब से जाने वाली सूचना को अनेकानेक रूपों में पेश किया जा सकता है. साथ ही कई तरीकों से भी. शब्द, तस्वीर, ऑडियो, वीडियो और ग्राफ़िक्स. इस लिहाज़ से ये प्रिंट और टीवी की तुलना में कहीं ज़्यादा लचीला माध्यम है.
इसके लचीलेपन की अपार संभावनाओं का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वेब में जितने रूपों और तरीकों से ख़बर को पेश करने की सुविधा इस किताब के लिखने तक आ गई है, उससे ज़्यादा और विविध रूप और भी हैं जो खोजे जा रहे हैं, कहीं इस्तेमाल में भी आने लगे हैं और जिनके रोज़ाना बदले जाने और नए औजार विकसित करने का जुनून जारी है.
कुछ समय पहले तक प्रमुख वेबसाइट्स में फ़ोटो गैलरी और उसका कटलाइन टेक्स्ट यानी कैप्शन होता था. दर्शक-पाठक क्लिक करते जाते और फोटो देखते जाते. अब फोटो गैलरी के साथ फोटो जर्नलिस्ट का ऑडियो भी डाला जा रहा है. फोटो देखते जाइए और साथ में पत्रकार की आवाज़ भी सुनिए कि उसने फलां तस्वीर कैसे ली या फलां तस्वीर में क्या है.
इसे कहा जाता है ऑडियो पिक्चर गैलरी. वेब पत्रकारिता में ये एक नया आयाम है.
इसी तरह से वीडियो पिक्चर गैलरी है. वीडियो न्यूज़ रिपोर्ट है या वीडियो क्लिप है. ऑडियो न्यूज़ रिपोर्ट या ऑडियो क्लिप है.
बड़े पैमाने पर अब इंटरनेट टीवी और इंटरनेट रेडियो का भी चलन शुरू हो चुका है. समाचार चैनल और प्रसारण केंद्र अब अपनी वेबसाइट्स में इनका इस्तेमाल करते हैं.
वेब संसार में ख़बरों की ऐसी सघन और विविधता भरी उपस्थिति अपनी तमाम हलचलों के साथ पेश की जाती है. पलक झपकते ख़बरें बदल जाती हैं, नई जुड़ जाती हैं और ब्रेकिंग न्यूज़ हमेशा है. प्रिंट और टीवी से पहले बहुत पहले आप वेब पर ख़बर ब्रेक कर सकते हैं.
वेब पत्रकारिता में आने वाले इच्छुक युवा असल में एक ऐसे पेशे से जुड़ रहे होते हैं जहां पारंपरिक दीवारें ढहाई जा रही हैं. नए गलियारे बन रहे हैं और नए प्रयोग हो रहे हैं. ऐसे दौर में अगर कोई ये कहता है कि वो कलमकार है या फो़टोग्राफर है या ग्राफ़िक आर्टिस्ट है तो वो अपनी क्षमता को बांध रहा है. वेब के विभिन्न रूपों का लाभ उठाने से वो वंचित रह जाएगा.
ज़ाहिर है वेब में भी हर काम के लिए विशेषज्ञ होते हैं और तकनीकी के जानकार होते हैं.
लेकिन वेब जर्नलिस्ट के रूप में करियर बनाने वाले युवाओं से अपेक्षा की जाती है कि उन्हें ‘मल्टी स्किल्ड’ यानी कई कौशल में निपुण होना चाहिए. यहां ‘सब’ से अर्थ इस बात से है कि वेब जर्नलिज़्म में उन्हें कॉपी लिखने, फ़ोटो खींचने, ऑडियो-वीडियो रिपोर्ट बनाने, उन्हें डाउनलोड करने, वेब पेज पर उन्हें सही जगह लगाने और मल्टीमीडिया माध्यमों की समझ होना ज़रूरी है. ज़ाहिर है उन्हें कम्प्यूटर का बेसिक ज्ञान होना अनिवार्य और टाइपिंग में तो दक्ष होना ही होगा.
तात्कालिकता
वेब माध्यम की एक बड़ी ख़ूबी है उसकी तात्कालिकता. वो सूचना को तत्काल डिलीवर यानी रवाना कर सकती है. गंतव्य तक यानी पाठक या दर्शक तक चंद पलों में सूचना पहुंच जाती है.
मुंबई शहर में हुए सीरियल बम ब्लास्ट हों या इंडोनेशिया, श्रीलंका और भारत के दक्षिणी तटवर्ती इलाक़ो में आया सूनामी समुद्री तूफ़ान हो या विश्व कप फुटबॉल. उस दौरान लोगों ने वेब संसार में गतिविधि, सूचना और हलचल का असाधारण और अकल्पनीय ज्वार उमड़ता हुआ देखा.
वेब माध्यम की विशेषता है कि एक तरफ़ घटना घटित हो ही रही है दूसरी तरफ़ वो उपभोक्ताओं तक पहुंचाई जाती रह सकती है. ये काम टीवी माध्यम के ज़रिए भी असरदार तरीक़े से संभव है जैसा कि 11 सितंबर 2001 के दिन न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के समय देखा गया था. लेकिन वेब की जो योग्यताएं हैं उनके आधार पर वो कम से कम चार तरीक़ों से तात्कालिकता संभव कराता है जिसका मुक़ाबला टीवी रेडियो या प्रिंट नहीं कर सकता. वे चार तरीके हैं: विविधता, विस्तार, गहराई और संदर्भ.
विविधता
वेब माध्यम में ज़्यादातर ब्रेकिंग न्यूज़ बहुआयामी होती हैं. उसमें सूचनाओं, लोगों, प्रत्यक्षदर्शियों, प्रतिक्रियाओं, घटनाओं, घटनास्थलों, और गतिविधियों की विविधता होती है. 11 सितंबर के आतंकी हमले के दौरान वेब माध्यमों के समाचारों में ये बात देखी जा सकती है. विभिन्न जगहों पर रहने वाले विभिन्न लोग घटना से जुड़े थे, प्रतिक्रिया दे रहे थे, ख़बर का असर उन पर हो रहा था. न्यूयार्क की जुड़वा इमारतें गिर रही थीं और सरकार दूसरे आपात उपाय कर रही थी. हवाई ट्रैफ़िक बंद कर दिया गया था. लोग जहां तहां अटके हुए थे. लोग अपने परिजनों की सुरक्षा के लिए चिंतित थे. इस व्यापक बदहवासी के बीच घटनाएं घट रही थीं. स्कूल, कॉलेज, संस्थान, दफ़्तर, कंपनियां प्रभावित हो रही थीं. स्कूल में अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित लोगों को इस दौरान वेबसाइट पर सूचनाओं से बड़ा सहारा मिला था.
दूसरा उदाहरण लें चुनाव का. माना आपको चुनाव के नतीजो का पता करना है. या कोई दूसरा आंकड़ा तत्काल जानना है. किसी सीट विशेष में कौन कितने मतों से जीता है. या यही जानना है कि पिछले चुनाव में कौन कितने अंतर से जीता था. समाचार चैनल में आप इतनी बारीक़ जानकारी नहीं देख पाएंगें. लेकिन इंटरनेट पर समाचार वेबसाइट में या निर्वाचन आयोग की वेबसाइट में आपको ये जानकारी मिल जाएगी. मानो टीवी पर पंजाब चुनाव का हाल बताया जा रहा है लेकिन आपको उसी वक्त केरल की जानकारी हासिल करनी हो तो वेबसाइट आपको ये सुविधा मुहैया कराती है. टीवी से ज़्यादा और सघन जानकारी आपको वेबसाइट पर मिल जाएगी.
विस्तार
तात्कालिकता का दूसरा बिंदु है विस्तार. वेब में सूचना को संजोए रखने और उसे प्रस्तुत यानी डिसप्ले करने की विशाल सामर्थ्य है. मिसाल के लिए किसी हादसे से जुड़ी कई सूचनाएं हैं जो अलग अलग लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं. किसी को हादसे में मारे गए लोगों की सूची देखनी है. किसी को हादसे की जगह का ब्यौरा. किसी को वहां की ग्राफ़िक डिटेल, किसी को घटना की पृष्ठभूमि जाननी है. किसी को कारणों के बारे में या किसी को उस तरह की अन्य घटनाओं का ब्यौरा चाहिए. तो वेब में एक साथ आप कई सूचनाएं हासिल कर सकते हैं. एक अच्छी न्यूज़ वेबसाइट इस तरह के विस्तार में यक़ीन रखती है और पाठकों को घटना के हर पहलू से लगातार एक ही समय न सिर्फ़ अवगत कराती है बल्कि अपडेट भी करती रहती है. टीवी में जगह और समय की सीमाएं हैं. हालांकि टीवी समाचार चैनल भरसक कोशिश करते हैं कि एक ही बार में कई पहलुओं से और कई परतों में सूचनाएं जाती रहें लेकिन अभी ये नाकाफ़ी है औऱ टीवी की सीमाओं के कारण मुमकिन भी नहीं है.
गहनता / गहराई
वेब तात्कालिकता का तीसरा पहलू है गहनता, डेप्थ. गहराई से आशय गुणवत्ता से है. वेबसाइट पर सूचना तत्क्षण उपलब्ध कराई जा सकती है लेकिन इसे तैयार करने से पहले न्यूनतम स्तर के संपादन की ज़रूरत तो पड़ती ही है. वेब चूंकि एक शब्द माध्यम भी है तो वेब पत्रकार को अपनी रिपोर्ट को फिर से देखने और उसे संपादित करने के लिए दूसरी नज़र से गुज़ारने का हमेशा मौका रहता है.
संदर्भ
चौथी बात ये है कि वेब अपनी तात्कालिकता को संदर्भो के साथ पेश कर सकता है. मिसाल के लिए किसी क्रिकेट मैच का लाइव कवरेज. अगर आप इसे टीवी पर देख रहे हैं तो सिर्फ़ उसी दृश्य को देखने को विवश हैं जो सामने स्क्रीन पर दिखाया जा रहा है. एक बार में आप एक ही जगह पर फ़ोकस करते रह सकते हैं या बारी बारी से घटना के अलग अलग स्थानों के आसपास आते जाते रह सकते हैं. ( कई टीवी चैनल अपनी आउटस्टेशन ब्रॉडकास्टिंग वैन्स या फ़्लाईअवेज़ के ज़रिए स्पिल्ट स्क्रीन कर एक साथ चार-पांच जगहों से लाइव यानी सजीव प्रसारण दिखा सकते हैं. ये स्क्रीन पर एक तरह से कई खिड़कियां खोलने जैसा है.)
वेब पर आप मैच स्थल के आसपास की गतिविधियों के बारे में भी सूचना दे सकते हैं. आपसे कोई इवेंट या कोई घटना नहीं छूट सकती. आप एक साथ कई लोकेशन से कई तरह की सूचनाओं के साथ संपूर्ण तस्वीर पेश कर सकते हैं. वेब की ये शक्ति है कि वो घटना या सूचना को समराइज़ कर सकता है, अपडेट कर सकता है, और कवरेज के विभिन्न पहलुओं में सूचनाएं जोड़ते रह सकता है.
स्थायित्व
वेब को एक स्थायी माध्यम माना जाए या नहीं. सुनने में अटपटा लगता है लेकिन यहां उसके स्थायित्व से अर्थ वेब सूचना की प्रासंगिकता से है. वेब एक स्थायी माध्यम इसीलिए है क्योंकि वो नष्ट नहीं होता. वहां कुछ भी गुम नहीं होता. अगर ठीक से संरक्षित और सुव्यवस्थित रखा जाए या उसकी उपयोगिता तय की जाए तो वेब डैटा को अक्षुण्ण बनाया जा सकता है. सूचनाएं चूंकि डिजीटल रूप में है इसलिए बरबाद नहीं हो सकतीं. क़ाग़ज़ नष्ट हो सकता है, वीडियोटेप और ऑडियोटेप नष्ट हो सकते हैं लेकिन वेब में डाली गई सूचना अमिट है, जब तक कि कोई उसे डिलीट न कर दे. यानी मिटा न दे.
वेब माध्यम की अमिटता की इस विशेषता के दो और उप-गुण हैं. दोहराव यानी डुप्लीकेसी और वापस पा लेना यानी रिट्रीइवेबिलिटी.
वेब चूंकि एक खुला माध्यम है और जो तकनीकी इसमें इस्तेमाल हो रही है वो साझा हो रही है लिहाज़ा वेबसाइट का कोई भी हिस्सा या समूची वेबसाइट को, दोहराया जा सकता है और किसी और जगह स्टोर किया जा सकता है. इंटरनेट के असीमित जंगल के किसी भी पेड़ की किसी भी शाखा पर कोई भी और कैसा भी फूल खिलाया जा सकता है.
एक वेब सूचना यहां से वहां रखी जा सकती है संरक्षित की जा सकती है. और इस तरह सुरक्षित बनी रह सकती है.
और जब ज़रूरत हो तो फिर से निकाला जा सकता है और ये इसकी एक बड़ी ताकत है. वेब जर्नलिज़्म में रिट्रीइवेबिलिटी की अहमियत बहुत है. किसी पुरानी घटना से जुडी़ सूचनाएं अगर सुरक्षित यानी सेव की गई हैं तो वे नए हालात में नए संदर्भों में काम आ सकती हैं. मिसाल के लिए कोई एक साल पुराना मामला किसी वेब पत्रकार ने कवर किया और वो न्यूज़ वेबसाइट में अब नहीं है और उसकी जगह कोई नया पत्रकार आया है और उस घटना में कुछ नई बातें सामने आई हैं जिन्हें अपडेट किया जाना है तो इस नए पत्रकार को पुरानी घटना की उस समय की फ़ाइलें काम आ सकती हैं. वो डैटा अगर सेव किया गया है तो नए संदर्भों में काम आ सकता है और रिपोर्टिंग में वैल्यू एडीशन कर सकता है यानी रिपोर्ट की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है.
पारस्परिकता-संवादात्मकता (इंटरऐक्टिविटी)
उपरोक्त जिन चार वेब गुणों की चर्चा की गई है वे सब जर्नलिज़्म के बदलते स्वरूप के मील के पत्थर हैं. लेकिन वेब सामर्थ्य का सबसे चमकदार पहलू अगर कुछ है तो वो है उसमें इंटरएक्टिविटी का जादू. संवादात्मकता का ये गुण वेब का एक विशिष्ट और सबसे समर्थ गुण है. ये गुण पत्रकार और पाठक, दर्शक या उपभोक्ता के बीच एक नया संबंध विकसित करता है और इस संबंध के उद्घाटन का अर्थ है पत्रकारिता का एक नया रूप.
यूं तो हर समाचार माध्यम किसी न किसी रूप में इंटरएक्टिव होता है. टीवी दर्शक और रेडियो श्रोता अपने सेट खोलकर चैनल का चयन करते हैं. रिमोट कंट्रोल से चैनल सर्फ़िंग की जा सकती है.
जिस समय कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है उस समय इंटरेक्ट करने का दर्शक या श्रोता के सामने न्यूनतम अवसर है. लाइव कवरेज में कुछ हद तक इंटरेक्शन संभव है लेकिन इसकी भी अपनी सीमाएं हैं. फ़ीडबैक की गुंजाइश न के बराबर है. कार्यक्रम पर तत्काल राय संभव नहीं है. लोगों की प्रतिक्रियाएं अब टीवी में टिकर या स्क्रॉल या एक पट्टी के ज़रिए दी जाती हैं लेकिन इसके लिए भी निश्चित समयसीमा और तकनीकी सीमाएं हैं.
इसी तरह प्रिंट माध्यम में भी फ़ीडबैक या इंटरेक्शन की संभावनाएं नदारद हैं. किसी विशेष ख़बर पर पाठकों की राय बाद में ही मिल सकती है लेकिन किसी का रिपोर्टर से सीधा रूबरू होना मुमकिन नहीं होता है.
इनसे इतर वेब माध्यम में फ़ीडबैक या इंटरेक्शन का स्तर काफ़ी ऊंचा और तेज़ है. एक खबर विशेष ही नहीं वेब पेज या किसी और सामग्री पर दर्शक या पाठक राय दे सकते हैं, फ़ोरम के ज़रिए बहस में शामिल हो सकते हैं और इस तरह ख़बर के वैल्यू एडीशन में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इस तरह वेब की नॉन लिनीयरिटी का पता चलता है कि वह कई दिशाओं में कई रूपों में सक्रिय रहता है. वेब पत्रकारिता बहुआयामी है और फ़ीडबैक और फ़ोरम जैसी व्यवस्थाओं से वो और सघन बनता है.
वेबसाइटें इस दिशा में और तत्पर और प्रयोगधर्मी हो रही हैं. फ़ीडबैक के नाना रूप सामने आ रहे हैं. मत सर्वेक्षण कराए जा रहे हैं, रायशुमारी रहती है, त्वरित मत संग्रह कराया जाता है. बुलेटिन बोर्ड बना दिए जाते हैं. ईमेल और सोशल नेटवर्किग के ज़रिए संवाद और संचार का संजाल बढ़ाया जाता है. ऑनलाइन बातचीत यानी चैट की सुविधा रहती है. वेब जर्नलिज़्म इस तरह से अपने उपभोक्ता के साथ जुड़कर लगातार सक्रिय और गतिशील बना रहता है. वहां कोई विराम नहीं है. कोई अंतराल नहीं कोई ब्रेक नहीं. निरंतर और निर्बाध सूचना प्रवाह. आज की और भविष्य की पत्रकारिता का ये एक प्रमुख लक्षण है.
वेब की इन विशेषताओं ने उसे एक वर्गविहीन स्वरूप भी दिया है. वो एक वर्ग से संचालित और नियंत्रित नहीं रहता, उस पर एक तरह से सबका अधिकार हो जाता है. रिपोर्टर की ख़बर जितनी उसकी अपनी है उतनी ही वो उसके पाठक या उपभोक्ता की भी है. खबर की गुणवत्ता, उसके परिप्रेक्ष्य को निखारने में उपभोक्ता का भी योगदान जुड़ जाता है. रिपोर्टर सिर्फ आधिकारिक सूत्र के हवाले नहीं रहता, वो अनायास ही उस वर्ग से भी जुड़ जाता है जिसके बारे में ख़बर है या जो ख़बर से प्रभावित हो रहा है.
वेब की इस सक्रियता ने सिटीज़न जर्नलिस्ट की अवधारणा में चार चांद लगा दिए हैं. नागरिक पत्रकारिता वेब जर्नलिज़्म के विशद संसार में एक अनिवार्य उपस्थिति बन गई है.
इंटरेक्शन का ऐसा लेवल किसी और पारंपरिक संचार माध्यम में नहीं देखा गया था.
वेब ने सूचना और समाचार के अभिजात्यवाद यानी इलीटिज़्म को दरकिनार कर उसे सार्वजनिक और आम गलियारा बना दिया है.
इस तरह न सिर्फ़ दर्शक, पाठक या श्रोता वेब से जुड़ा है बल्कि वेब माध्यम भी उनके पास जाने में सफल हुए हैं, उनके बारे में और समझने में उन्हें मदद मिली है. वेबसाइट की लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाना सहज हुआ है, क्लिक्स के ज़रिए, रजिस्ट्रेशन के ज़रिए, ऑनलाइन बहसों के ज़रिए और पेज वि़जिट्स के आंकड़ों के ज़रिए.
कोई यूज़र कितनी देर किसी वेबसाइट के किस पेज पर या किस स्टोरी को देखता या पढ़ता रहा ये भी पता चल जाता है.
इन्हीं आधारों पर समाचार वेबसाइटें अपनी सामग्री की गुणवत्ता में परिवर्तन या सुधार करती हैं, कौनसी सामग्री लोकप्रिय है इसका निर्धारण सहजता से हो जाता है. इसी बिना पर संपादकीय फ़ैसले किए जाने लगे हैं और इसी बिना पर राजस्व के स्रोतों को खंगाला जाता है. विज्ञापन विभाग पेज क्लिक्स, पेज विजिट्स और सामग्री की लोकप्रियता के डैटा का अध्ययन करता रहता है.
उदाहरण के लिये एनडीटीवी की वेबसाइट पर आप उनके रिपोर्टर और एंकर से सीधा संवाद कर सकते हैं, बीबीसी की वेबसाइट पर पाठकों की प्रतिक्रियाएं लगातार आती रहती हैं, इंडिया टुडे की वेबसाइट पर आप रिपोर्टर की स्टोरी को अपनी पसंद के आधार पर अंक दे सकते हैं. इस तरह के बहुत से उदाहरण हैं.
नुकसान और जोख़िम
वेब माध्यम के महत्व, उसकी प्रासंगिकता और प्रभावों के बीच ये देखना भी ज़रूरी है कि आख़िर इसके नुकसान क्या हैं. समग्र वेब की बात करें तो इससे जुड़े क्या जोख़िम हैं या क्या हो सकते हैं.
रोम के दार्शनिक सेनेका ने कहा था, “हर जगह होना असल में कहीं नहीं होना है.” सूचना के महा प्रवाह का सूत्रधार बने इंटरनेट और वेब के बारे में भी कमोबेश यही बात कही जा सकती है. वेब की ख़ामी ये है कि ये किताब से इतर हमें एक बिखरे हुए सूचना आकाश में विचरण के लिए छोड़ देता है. वहां कोई निश्चित प्लेटफ़ॉर्म नहीं है. जैसे किताब में आप जो पढ़ रहे हैं उस पर आप पूरा ध्यान केंद्रित करते हुए पढ़ते रह सकते हैं, अपने मस्तिष्क की ऊर्जा को एक दिशा में बहता छोड़ दे सकते हैं. लेकिन वेब में आप इस ऊर्जा का अनापशनाप दोहन कर रहे होते हैं. ये ऊर्जा की बरबादी है, इस रूप में नहीं कि ये व्यय हो रही है, इस रूप में कि ये आपको रुकने नहीं देती, आपको स्थिरता से सोचने का मौक़ा नहीं देती, मोटे शब्दों में कहें तो वेब आपको मन और मस्तिष्क से चंचल और चलायमान बनाता है, ऐसी आशंका कुछ जानकारों ने व्यक्त की है. उनका कहना है कि इसे सक्रियता कहना जल्दबाज़ी होगी.
कुछ भौतिक कमियां भी हैं. सबसे पहले तो ये एक महंगा माध्यम है. वेबसाइट चलाने वाले के लिए भी और इसे देखने वाले के लिए भी. महंगा किसी टीवी या रेडियो या अख़बार चलाने जैसा नहीं, बल्कि अपनी तकनीक की सुलभ सार्वजनिक उपस्थिति, या राजस्व की संभावनाओं की वजह से. कम्प्यूटर और इंटरनेट सेवा के खर्च तो हैं ही, सामग्री जुटाने उन्हें प्रोसेस करने में भी निवेश करना पड़ता है.
आपके पास वेब तक पहुंचने के लिए एक कम्प्यूटर होना चाहिए और इंटरनेट कनेक्शन.
डायल-अप कनेक्शन की रफ़्तार आज की बहुआयामी वेबसाइट्स के लिए नाकाफ़ी मानी जाता है. ब्रॉ़डबैंड कनेक्शन के जरिए ही आप सुलभता से इंटरनेट सर्फिंग करते रह सकते हैं.
निर्बाध बिजली सप्लाई एक और बड़ी ज़रूरत है और वेब सेवा बिना इसके संभव नहीं.
दूसरे ये माना जाता है कि वेब स्थिर और उटपटांग है. कुछ पुराने लोग कहते हैं कि इसे उठाकर बाथरूम तो नहीं ले जाया जा सकता. फिर चाहे लैपटाप आ गए हैं या वायरलैस कनेक्शन. अखबार पत्रिका या किताब को जहां तहां ले जाया जा सकता है.
तीसरे वेब उपभोक्ता के लिए ये भ्रमित और खिन्न कर देने वाला माध्यम भी हो सकता है.
विकल्पों की इतनी बेशुमार मौजूदगी, इतने सारे पेज, इतनी सारी सूचनाएं इतनी सारी तस्वीरें उपभोक्ता को एक पल के लिए उलझन में डाल सकती हैं, वो झल्ला सकता है कि आखिर सूचना की ये कैसी भीषण बरसात है.
कई वेबसाइटें वादे के मुताबिक ताज़गी-पसंद नहीं रहती. उनकी सामग्री बासी और बोझिल रहती है. वे फ़ीकी और अनाकर्षक होती जाती हैं, सूचनाएं भी मामूली और सतही होती हैं. ये चीज़ें उपभोक्ता को निराश कर सकती हैं.
एक बड़ा नुकसान वेब डेवलेपर्स के सामने हैं. वेब माध्यमों के सर्जकों के सामने मुश्किल ये है कि वेब न तो प्रिंट है न टीवी न रेडियो. यानी ये कोई ‘स्थापित’ माध्यम नहीं बन पाया है. कम लोग होंगे जिनकी वेब ‘हैबिट’ यानी वेब रूझान कहा जा सकता है. सबका ये झुकाव नहीं होता. जैसे हर कोई अख़बार के पन्ने पलट लेता है वैसे हर कोई वेब के लिए कम्प्यूटर खोल नहीं सकता. हर कोई तकनीकी तौर पर इतना सजग समर्थ नहीं हो सकता, न ही उसकी कोई रुचि हो सकती है कि वेब माध्यम को अपने रोज़मर्रा के जीवन में जगह दे पाए.
वेब निर्माताओं के सामने अभी एक जोख़िम इसकी सस्टेनेबिलिटी से जुड़ा है. कितना टिकाऊ हो सकती है कोई वेबसाइट ये निर्भर करता है उसके कंटेट पर और उसे मिलने वाले विज्ञापनों पर. कंटेट तो एकबारगी जुटा भी लिया जाए लेकिन विज्ञापन के ज़रिए राजस्व जुटाने का काम आसान नहीं, ये स्पष्ट भी नहीं है और इसका कोई स्पष्ट बिजनेस मॉडयूल भी विकसित नहीं हुआ है. ऐसे में वेबसाइटें कुछ समय चलकर दम तोड़ देती हैं, कुछ शौकिया चलती रहती हैं लेकिन आगे कंटेंट के लिहाज़ से कमज़ोर पड़ सकती हैं. आप उधारी का कंटेट नहीं डालते रह सकते हैं. साभार कंटेट भी एक सीमा तक चल सकता है. वेबसाइट्स को यूज़र फ्रेंडली बनाने की चुनौती रहती है और राजस्व के लिए अगर वेबसाइट को पेड किया जाता है यानी उसका इस्तेमाल करने के लिए पाठकों को कोई शुल्क अदा करना पड़ता है तो वेबसाइट को धक्के खाने पड़ सकते हैं. क्योंकि एक स्थापित माध्यम न होने का नुकसान भी उसे उठाना पड़ता है. कोई अख़बार ख़रीद लेगा या किताब या केबल कनेक्शन लगा लेगा लेकिन वेबसाइट के लिए शुल्क देना उसे गंवारा नहीं है.
21वीं सदी के पहले दशक के इस दौर में तो यही रुझान है. संभावना है कि आने वाले दिनों में वेब माध्यम में उपभोक्ता वास्तविक उपभोक्ता बन सके. यानी वेब का उपभोग करने की कीमत अदा करें. वेब भी शहरी गलियारों से बढ़कर गांव देहातों की चौपालों तक जा पहुंचे.
स्थापित मीडिया कंपनियों और संगठनों की वेबसाइटें इसलिए टिकी रह सकती हैं क्योंकि उनके पास वेबसाइट चलाने के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं लेकिन इस दिशा में वैयक्तिक कोशिशें अभी कारगर नहीं हो पा रही हैं. हालांकि कुछ समाचार वेबसाइटें इसका अपवाद हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय समाचार जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है. और जिनका बड़ा रसूख है. इसी तरह की एक वेबसाइट दक्षिण कोरिया से निकल रही है जिसका नाम है, ओहमाईन्ज़ूज़ डॉट कॉम. www.ohmynews.com
वेब का ये संसार खुला और मगन है. इसमें अपार विलक्षणताएं और संभावनाएं हैं, लिहाज़ा जिन कमियों की चर्चा ऊपर की गई है. उनके बारे में कोई घोषणापरक बात कहने के बजाय ये कहना ज़्यादा मुफ़ीद होगा कि भविष्य का मीडिया तो बदलेगा ही, वेब इस मीडिया के केंद्र में रहेगा और उन हलचलों का गवाह बनेगा जिसके छिटपुट नज़ारे इसकी बीस वर्ष की युवा उम्र में हम देख चुके हैं या देख रहे हैं.
शालिनी जोशी ज़ीटीवी, आज तक टीवी समाचार चैनलों और बीबीसी रेडियो में 18 साल के पत्रकारीय अनुभव के बाद इन दिनों मीडिया अध्यापन, लेखन और शोध से जुड़ी हैं. वो फिलहाल जयपुर स्थित हरिदेव जोशी जनसंचार और पत्रकारिता विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं.
शिव प्रसाद जोशी का ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म में लम्बा अनुभव है। वे बीबीसी, जर्मनी के रेडियो डॉयचे वैल्ली में काम कर चुके हैं। ज़ी टीवी में भी उन्होंने काफी समय काम किया। इसके आलावा कई अन्य टीवी चैनलों से भी जुड़े रहे हैं।