नीरज कुमार।
वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार बताते हैं कि जब उन्होंने एनडीटीवी ज्वाइंन किया तो चैनल के स्टूडियो में आकर उन्हें लगा कि वो जैसे नासा में आ गए हैं… रवीश कुमार के अनुभव का जिक्र उन युवाओं के लिए हैं, जो टीवी पत्रकार बनना चाहते हैं। लेकिन, न्यूज चैनल के सेट अप से वाकिफ नहीं है। लिहाजा, न्यूज चैनल में काम का फ्लो और बुनियादी तकनीकी जानकारी हो तो शुरुआती दौर में काम आसान हो जाता है।
ख़बर घटनास्थल से टीवी स्क्रीन पर पहुंचने के क्रम में कई स्तरों से गुजरती है। ये सवाल अहम है कि ख़बर न्यूज चैनल तक कैसे पहुंचती है। ख़बर न्यूज चैनल का रिपोर्टर कवर करता है या फिर न्यूज एजेंसियां। न्यूज एजेंसियां तमाम तरह की स्टोरी कवर कर न्यूज चैनलों को बेचती हैं…मसलन, एएनआई, पीटीआई, रॉयटर्स, ब्लूमबर्ग। कोएजेंसिस जैसी एजेंसियां खबरें चैनलों और दूसरे समाचार माध्यमों को उपलब्ध कराती हैं। ये एजेंसियां राजनीति, कारोबार, अंतर्राष्ट्रीय घटनाएं जैसी तमाम तरह की स्टोरी कवर करती हैं…नमूने के तौर पर एएनआई को ले लीजिए, जो न्यूज चैनलों को बाइट, फुटेज समेत स्टोरी मुहैया कराता है। रायटर्स देश-विदेश की खबरें और ऑडियो-वीडियो मुहैया कराता हैं। उसी तरह कोएजेंसिस, ब्लूमबर्ग जैसी एजेंसियां कारोबार जगत से जुड़ी ख़बरें विशेष तौर कवर करती हैं…
फील्ड से असाइनमेंट तक
न्यूज चैनलों में ख़बरें जुटाने का काम असाइनमेंट का होता है तो उन्हें तैयार करने का काम जिम्मा डेस्क यानि की आउटपुट के पास। ख़बरें सीधे डेस्क पर नहीं जाती हैं, बल्कि असाऩमेंट के ज़रिए आती हैं। असाइनमेंट ख़बरों को उनकी मेरिट के आधार पर तभी डेस्क को देता हैं, जब उनकी पुष्टि हो जाए। पुष्टि से मतलब है कि असाइनमेंट अपने स्रोतों से पता करता है कि कहीं ख़बर झूठी या फिर प्लानटेड तो नहीं है। रिपोर्टर मेल, व्हाट्सअप, एसएमएस जैसे माध्यमों से ख़बर भेजता है, ओवी, बैग पैक्स, इंटरनेट जैसे ज़रिए ख़बर से संबंधित फुटेज और बाइट के लिए काम में लाए जाते हैं ।
नए परिप्रेक्ष्य में असाइनमेंट ही रिपोर्टर और स्ट्रिंगरों को किसी विशेष खबर के लिए कहता है और फिर इसके फालोअप के लिए जोर देता है । ऐसी खबरों पर अक्सर आधे घंटे के शोज़ बनाए जाते हैं । जो विशेष या स्पेशल शोज़ के नाम से चलाए जाते हैं ।
असाइनमेंट टू आउटपुट
जो ख़बरें असाइनमेंट के पास आती हैं, वो उन्हें आउटपुट यानी डेस्क को सौंपता है। ख़बरों को किस तरह चलाना है, ये फ़ैसला आउटपुट को लेना होता है। अक्सर ऐसा होता है कि कोई ख़बर ब्रेकिंग न्यूज की तरह चलाई जाती है तो कोई ख़बर विशेष ट्रीटमेंट के साथ किसी ख़ास शो या बुलेटिन में चलाई जाती है। आउटपुट को असाइनमेंट ख़बरें आमतौर पर मेल, व्हाट्सअप जैसे इलेक्ट्रानिक माध्यमों या फिर न्यूज़ मैनेजमेंट सिस्टम के ज़रिए भेजता है। न्यूज़ मैनेजमेंट सिस्टम की न्यूज़ चैनल में काफी अहम भूमिका है। ये एक ऐसा नेटवर्किंग सॉफ्टवेयर है, जिसका इस्तेमाल ख़बर लिखने से लेकर बुलेटिन का रनडाउन बनाने में होता है। इन दिनों चैनलों में ऑक्टोपस, आई न्यूज़ जैसे न्यूज मैनेजमेंट सिस्टम का इस्तेमाल हो रहा है। ऑक्टोपस काफी पॉपुलर है। आज तक, न्यूज़ नेशन, ज़ी न्यूज़, एबीपी, इंडिया न्यूज़ जैसे चैनलों में ऑक्टोपस न्यूज मैनेजमेंट सिस्टम का इस्तेमाल होता है। वहीं सीएनबीसी आवाज़ में आई न्यूज़ का इस्तेमाल होता है।
न्यूज़ मैनेजमेंट सिस्टम ( आक्टोपस) में ख़बर लिखने और संपादित करने की सुविधा होती है। अच्छी बात ये है कि इसे ऑनलाइन अपडेट किया जा सकता है। इस साफ्टवेयर के जरिए बुलेटिन के बीच में कोई ख़बर आसानी से अपडेट होती है। फौरन नया विजुअल, ग्राफिक्स लगाया जा सकता है या फिर स्क्रिप्ट में बदलाव किया जा सकता है। माउस के एक क्लिक के साथ स्टूडियो तक अपडेट सामग्री पहुंच जाती है। जिसे ऑनएयर किया जाता है। ऑन-एयर किए जाने के पहले स्टोरी कई स्तरों से गुजरती हैं। सबसे पहले असाइनमेंट से आउटपुट के पास जो रॉ सूचनाएं आती हैं, उसे कैसे दिखाना है। ये तय किया जाता है। स्टोरी अलग-अलग फॉरमेट में दिखाई जा सकता है। मसलन, उसका पैकेज बनाया सकता है या फिर एंकर विजुअल/बाइट/ग्राफिक के फॉर्म में दिखाई जा सकती है।
आउटपुट टू प्रोडक्शन स्टोरी का फॉरमेट तय होने के बाद स्क्रिप्ट लिखी जाती है। कॉपीराइटर चैनल की स्टाइल शीट को फालो करते हुए स्क्रिप्ट लिखता है। वैसे तो विजुअल के हिसाब से स्क्रिप्ट लिखने की पंरपरा है । लेकिन कई बार स्क्रिप्ट के मुताबिक विजुअल और बाइट काटे जाते हैं। पैकेज के लिए स्क्रिप्ट का वाइस-ओवर किया जाता है। वाइसओवर के अनुसार पैकेज बनाते वक्त विजुअल और बाइट और ग्राफिस फिट किए जाते हैं। ये सारे काम एडिटिंग और ग्राफिक्स डिपार्मेंट के सहयोग से होता है।
एडिटिंग डिपार्मेंट के पास ऑडियो-वीडियो एडिटिंग मशीन होती है। क्यू प्रो, वेलोसिटी, जैसी मशीनें ऑडियो-वीडियो एडिटिंग में काम आती हैं। पैकेज बनाने या फिर फटाफट किसी ख़बर को ऑनएयर करने ग्राफिक डिपार्टमेंट की अहम भूमिका होती है। ग्राफिक्स डिपार्टेमेंट दो तरह के ग्राफिक बनाता है। पहला, ऑनलाइन ग्राफिक और दूसरा ऑफलाइन ग्राफिक। ऑनलाइन ग्राफिक्स में सिर्फ स्टोरी लिखने की ज़रुरत होती है, और वो ऑनएयर के लिए तैयार होता है। जबकि ऑफलाइन ग्राफिक्स पैकेज में लगाने के लिए तैयार कराए जाते हैं। ब्रेकिंग न्यूज़ जब आप देखते हैं, तो समझिए कि उसके लिए ऑनलाइन ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया गया है। और जब किसी पैकेज में कोई ग्राफिक्स नज़र आए तो समझिए कि वो ऑफलाइन बनाया गया है। पैकेज कट जाता है यानि कि तैयार हो जाता है तो उसे प्राथमिकता के अनुसार रनडाउन में लगाते हैं। प्रोड्यूसर खबरों का क्रम तय करता है, जिसे रनडाउन। रनडाउन बनने के बाद बुलेटिन ऑनएयर के लिए तैयार होता है।
प्रोडक्शन टू पीसीआर
रनडाउन तैयार होने के बाद पीसीआर की भूमिका शुरू होती है, जिसके जिम्मे खबरों का प्रसारण होता है। पीसीआर ही एंकर को कमांड देता है कि बुलेटिन में अभी क्या जाएगा या फिर कौन सी ख़बर कितनी देर चलनी है। पीसीआर ही अलग-अलग ख़बरों पर लाइव रिपोर्टर से एंकर की बात कराता है। ख़बर से संबंधित गेस्ट थ्रू कराता है। एंकर को टीपी यानि टेलीप्राम्पटर पर लिखी हुई स्टोरी का स्क्रिप्ट मिलता है, जिसे वो पढ़ता है। रिपोर्टर लाइव या फिर किसी गेस्ट से चर्चा के दौरान के रनडाउन प्रोड्यूसर एंकर के संपर्क में रहता है ताकि उसे ख़बर से संबंधित जानकारी मुहैया करा सके। पीसीआर से ही एंकर को कमांड मिलता है कि उसे किस वक्त किस कैमरे की तरफ देखना या फिर कब ब्रेक लेना है। दरअसल, स्टूडियो में कई कैमरों का इस्तेमाल होता है। किसी एक कैमरे से मास्टर शॉट लिया जाता है तो किसी कैमरे से पूरे स्टूडियो का पैन व्यू दिखाया जाता है तो किसी से एंकर का क्लोजअप। अलग-अलग कैमरे से मिलने वाले शॉट्स को ऑनलाइन स्विचिंग के जरिए मिक्स किया जाता है। पीसीआर में ऑडियो मिक्सर और स्विचिंग मशीन के लिए ऑडियो-मिक्स किया जाता है। और खबरें ऑन एयर की जाती हैं। इस तरह ग्राउंड जीरो से ख़बर कई आंखों और हाथों से गुजरते हुए टीवी स्क्रीन तक पहुंचती है।
नीरज कुमार इस वक़्त ज़ी बिजनेस में प्रोड्यूसर हैं। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन से 2005 में डिप्लोमा करने के बाद उन्होंने दैनिक भास्कर, इंडिया न्यूज़ और न्यूज़ नेशन में काम किया। नीरज जर्नलिज्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं।