मधुरेन्द्र सिन्हा।
टेक्नोलॉजी ने दुनिया की तस्वीर बदल दी है। ऐसे में पत्रकारिता भला कैसे अछूती रहती। यह टेक्नोलॉजी का ही कमाल है कि दुनिया के किसी भी कोने की घटना की खबर पलक झपकते ही सारे विश्व में फैल जाती है। दरअसल पत्रकारिता संवाद का दूसरा नाम ही तो है। मनुष्य के सभी कुछ जानने की प्रवृति या उसकी जिज्ञासा ने जिस पत्रकारिता को जन्म दिया, आज उसमें बहुआयामी बदलाव हो चुके हैं। कंप्यूटर ने इसमें गज़ब का बदलाव किया और पत्रकारिता के सुर और तेवर सब कुछ बदल गए। आज सिर्फ भारत में हजारों पत्र-पत्रिकाएं निकलती हैं तो सैकड़ों न्यूज चैनल काम कर रहे हैं।
हजारों की तादाद में वेबसाइट पल-पल की खबरों से लोगों को रूबरू करा रहे हैं। यानी हर ओर से समाचारों का प्रवाह हो रहा है। सिर्फ समाचार ही नहीं विचारों का भी प्रसारण तेजी से हो रहा है और हजारों तरह के विचार सामने आ रहे हैं। गए वो दिन जब सुबह अखबार का इंतज़ार रहता था और लोग उसे पढ़े बगैर संतुष्ट नहीं होते थे। अब टीवी चैनल सचित्र समाचार सारी दुनिया में फैला देते हैं। चाहे नेपाल का भूकंप हो या फिर ओसामा बिन लादेन की मौत, हर तरह की खबर मिनटों में सबके सामने होती है। शक्तिशाली सैटेलाइटों के जरिये चित्र कहीं भी पहुंच जाते हैं और दर्शक उन्हें आसानी से देख लेता है। यही हाल वेबासाइटों का भी है। वे भी पल-पल की खबरें दे रहे होते हैं। अब उनमें भी वीडियो की व्यवस्था हो गई है और किसी भी घटना को जब चाहें देख सकते हैं।
बदलते वक्त के साथ पत्रकारिता अगर बदल गई है तो इसमें गलत क्या है? जो लोग इस तरह के आरोप लगाते हैं कि पत्रकारिता एक मिशन नहीं है और यह मूल उद्देश्य से भटक गई है तो वे भूल जाते हैं कि हर पत्रकार को एक बेहतर जिंदगी का हक है। उसे भी अपना पेट उचित तरीके से भरना है। उसका भी परिवार होता है। असल में जिस चीज की जरूरत है तो वह उसके जूझारूपन की। सिर्फ इतने से ही वह काफी कुछ कर सकता है।
इन सभी का परिणाम है कि आज पत्रकारिता का दायरा बहुत बड़ा हो गया है। दुनिया एक छोटे से गांव में तब्दील हो गई है। हर खबर पर हर किसी की नज़र है। समाचार प्रेषण की गति में जो अभूतपूर्व तेजी आई है उसका ही परिणाम है कि सब कुछ आपकी मुट्ठी में है। हर खबर चाहे वो छोटी हो या बड़ी आप तक बिजली की गति से पहुंचती है। टेक्नोलॉजी का यह कमाल है कि पत्रकारिता का दायरा इतना बड़ा हो गया है कि अब समाचारों की बरसात होने लगी है। समाचार माध्यमों की क्षमता विशाल हो गई है और काफी कुछ होता दिखने लगा है।
आज की परिस्थितियां देखकर नई पीढ़ी यकीन नहीं कर सकती कि पुराने ज़माने में एक-एक खबर के लिए पत्रकारों को कितना जूझना पड़ता था और कितने उपाय करने होते थे। उस जमाने के अखबारों में समाचार कम और विचार ज्यादा होते थे और उसका कारण यही था कि समाचार संकलन एक दुरूह और जटिल कार्य था। उसके साधन भी बहुत कम थे और समस्याएं भी जटिल थीं। भारत का पहला अखबार जो अंग्रेजी में था लगभग ढाई सौ साल पहले प्रकाशित हुआ तो उसमें ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजी सरकार की खबरें ही होती थीं क्योंकि वह एक अंग्रेज द्वारा ही निकाला गया था।
लेकिन आज भारत ही नहीं दुनिया भर में पत्रकारिता फल-फूल रही है और यह व्यवसाय अरबों डॉलर का है और इसमें बड़ी-बड़ी कंपनियां काम कर रही हैं जिनके लिए यह मुनाफे और घाटे का काम है। इन कंपनियों की इस व्यवसाय से आय इतनी है कि इसने पत्रकारिता के स्वरूप को बदल दिया है। इसका ही कारण है कि आज कहा जा रहा है कि पत्रकारिता मिशन नहीं रही। यह बात बार-बार उठाई जा रही है। कई आलोचक इसके लिए मार्केट इकोनॉमी को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि इसने विशुद्ध पत्रकारिता को खत्म कर दिया है। इसमें कोई शक नहीं है कि पत्रकारिता अब मिशन नहीं रही है। यशस्वी पत्रकार राजेन्द्र माथुर ने दो टूक शब्दों में कहा था कि पत्रकारिता अब मिशन नहीं है और यह प्रोफेशन है। इस प्रोफेशन को अगर ईमानदारी से निभाया जाए तो यह तब भी समाज और देश का भला कर सकता है।
बदलते वक्त के साथ पत्रकारिता अगर बदल गई है तो इसमें गलत क्या है? जो लोग इस तरह के आरोप लगाते हैं कि पत्रकारिता एक मिशन नहीं है और यह मूल उद्देश्य से भटक गई है तो वे भूल जाते हैं कि हर पत्रकार को एक बेहतर जिंदगी का हक है। उसे भी अपना पेट उचित तरीके से भरना है। उसका भी परिवार होता है। असल में जिस चीज की जरूरत है तो वह उसके जूझारूपन की। सिर्फ इतने से ही वह काफी कुछ कर सकता है। जो लोग इस बात की आलोचना करते हैं तो उन्हें यह पता होना चाहिए कि हर साल दुनिया में दर्जनों पत्रकार समाचार संकलन के दौरान दुनिया भर में मारे जाते हैं, उनकी नृशंस हत्या हो जाती है और उनके घर वालों की तमाम आशाएं उनके साथ ही खत्म हो जाती है। सिर्फ 2014 में समाचार संकलन के दौरान कुल 61 पत्रकारों की हत्या हो गई। कई देशों में समाचार संकलन एक घातक पेशा माना जाता है।
सिर्फ इतना ही नहीं जब समाचार के काम से जुड़ी कंपनियां बंद हो जाती हैं तो पत्रकार सड़क पर आ जाते हैं। उनके सामने खाने-पीने तक की समस्या खड़ी हो जाती है। ईमानदारी से अपना जीवन-यापन करने वाले पत्रकारों के लिए यह बहुत दुखद होता है। उससे समाज की अपेक्षाएं तो बहुत होती हैं लेकिन जब उसकी मदद का वक्त आता है तो कोई भी नहीं खड़ा होता है। लेकिन इसके बावजूद आज भी पत्रकारों में जज़्बे की कमी नही है। अपने-अपने स्तर पर काफी पत्रकारों ने खोजी रिपोर्टिग की है जिसे पाठक और दर्शक समय-समय पर देखते रहते हैं। ऐसे में यह कहना अनुचित होगा कि पत्रकारिता एक मिशन नहीं है। यह अभी भी एक मिशन है लेकिन इसका स्वरूप बदल गया है। यह पहले की तरह नहीं है कि अखबार निकालने वाले सज्जन और उनके साथ काम करने वाले सहयोगी सभी देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत होकर अखबार या पत्रिका निकालते थे। देश को गुलामी की जंजीरों से निकालना या फिर उसके बारे में लोगों को बताना ही उनका परम उद्देश्य था। इसी तरह कुछ पत्र-पत्रिकाएं समाज के सुधार के बारे में समाचार या यूं कहें कि विचार प्रकाशित करते रहते थे।
मधुरेन्द्र सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस वक़्त लाइव इंडिया में कंसल्टिंग एडिटर हैं। वे नवभारत टाइम्स जयपुर और पटना में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं और लम्बे समय तक नवभारत टाइम्स में विशेष संवाददाता रहें हैं। वे इंडिया टीवी और इंडिया न्यूज़ में भी वरिष्ठ पदों पर काम कर चुकें हैं।