सुभाष धूलिया।
तथ्य, विश्लेषण और विचार
समाचार लेखन का सबसे पहला सिद्धांत और आदर्श यह है कि तथ्यों से कोई छेड़छाड़ न की जाए। एक पत्रकार का दृष्टिïकोण तथ्यों से निर्धारित हो। तथ्यात्मकता, सत्यात्मकता और वस्तुपरकता में अंतर है। तथ्य अगर पूरी सच्चाई उजागर नहीं करते तो वे सत्यनिष्ठï तथ्य नहीं हैं। लेकिन समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है कि इसका लेखन तथ्यों पर ही केंद्रित होना चाहिए। समाचार में विचारों के लिए कोई स्थान नहीं होता। समाचारों में अगर तथ्य प्रभुत्वकारी होते हैं तो संपादकीय में विचार अहम होते हैं। इस तरह एक तथ्यात्मक समाचार से एक विचारोत्तेजक संपादकीय के बीच अनेक तरह के पत्रकारीय लेखन शामिल हैं। मोटे तौर पर समाचार रिपोर्ट, समाचार विश्लेषण, व्याख्यात्मक रिपोर्टिंग, फीचर और फीजराइज्ड रिपोर्टिंग, इंटरव्यू, टिप्पणी (कमेंट्री), लेख, समीक्षा, समीक्षात्मक लेख आदि अनेक तरह के पत्रकारीय लेखनों का उल्लेख किया जा सकता है। पत्रकारीय लेखन में हमें यह स्पष्टï होना चाहिए कि हम क्या लिख रहे हैं ताकि समाचारों, विचारों और मनोरंजन के बीच का अंतर बना रहे।
मोटे तौर पर चार बुनियादी तत्व हैं जिनसे तय होता है कि हम किसी तरह का पत्रकारीय लेखन कर रहे हैं :
- तथ्य
- विश्लेषण/व्याख्या
- टिप्पणी
- विचार
‘समाचारों’ में तथ्यों का प्रभुत्व होना चाहिए। लोगों को सूचना देने के लिए समाचार मुख्य रूप से उत्तरदायी होते हैं। मीडिया के कार्यों को इस प्रकार निर्धारित किया गया है:
- सूचना
- शिक्षा
- मनोरंजन
इसके अलावा अब एजेंडा निर्धारण भी इसमें शामिल हो गया है। इससे आशय यह है कि मीडिया ही सरकार और जनता का एजेंडा तय करता है- मीडिया में जो होगा वह मुद्दा है और जो मीडिया से नदारद है वह मुद्दा नहीं रह जाता। एजेंडा निर्धारण में मीडिया की भूमिका एक अलग और व्यापक बहस का विषय है।
यहां हम मीडिया के मुख्य कार्यों पर निगाह डालें तो हम यह कह सकते हैं कि तथ्यों का सबसे अधिक संबंध समाचार से हैं और समाचार का सबसे अहम कार्य लोगों को सूचित करना है। सूचित करने की इस प्रक्रिया में लोग शिक्षित भी होते हैं और लोगों को समाचार अपने-अपने ढंग से मनोरंजन भी लग सकते हैं। दूसरे छोर पर अगर हम विचार को लें तो इसका संपादकीय और लेखों में प्रभुत्वकारी स्थान होता है और निश्चय ही हम कह सकते हैं कि विचारशील लेखन निर्णायक रूप से लोगों को शिक्षित करने में अहम भूमिका अदा करता है हालांकि इस प्रक्रिया में वह सूचित भी कर रहा है और लोगों की रुचियों के अनुसार उनके मनोरंजन का साधन भी हो सकता है।
दरअसल, मीडिया के हर उत्पाद तीनों ही कार्य करता है। अंतर केवल यह है कोई-कोई मीडिया उत्पाद एक कार्य को अधिक, तो कोई दूसरा दूसरे कार्य को अधिक करता है। काफी समय पहले समाचारपत्रों का ढांचा एक जैसा सा था। पृष्ठ भी कम और समान होते थे। पहला पन्ना समाचार, तीसरा पन्ना सॉफ्ट न्यूज़ और सातवां पन्ना संपादकीय इसीलिए पत्रकारिता में भी ‘पेज वन’, ‘पेज थ्री’ और ‘पेज सेवन’ अवधारणाओं का उदय हुआ। ( हालाँकि आज पेजों के अनुसार इन अवधारणाओं को परिभाषित नहीं कर सकते पर इनका अर्थ नहीं बदला है ।गडमगड्ड जरूर हो गयी है) ‘पेज वन’ पत्रकारिता से आशय समाचारों की दुनिया है। एक दैनिक समाचारपत्र के संदर्भ में लोगों को यह बताना कि पिछले 24 घंटों में देश-दुनिया की महत्त्वपूर्ण घटनाएं क्या हैं यानि लोगों को सूचित करना। ‘पेज सेवन’ पत्रकारिता से आशय है संपादकीय, लेख और अन्य तरह का वैचारिक लेखन। लोगों को घटनाओं के अर्थ से अवगत कराना यानि लोगों को शिक्षित करना।
‘पेज थ्री’ पत्रकारिता से आशय सेलेब्रिटी, लाइफ स्टाइल, फिल्मी पत्रकारिता से संबंधित कुछ हल्का-फुल्का, चुलबुला फीचर लेखन है। पत्रकारिता की इस धारा का मुख्य कार्य है मनोरंजन। इन दिनों गड़बड़ यह हो रही है कि पत्रकारिता में इन तीनों धाराओं के बीच घालमेल होता दिखाई दे रहा है। लेकिन पत्रकारिता की समूची दुनिया को समझने तथा इस दुनिया में समाचार के स्थान को निर्धारित करने के लिए इन मूलभूत अवधारणाओं के बारे में समझ विकसित करना आवश्यक है।
लेखक उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में कुलपति हैं। वे इग्नू और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन में जर्नलिज्म के प्रोफेसर रह चुके हैं। एकेडमिक्स में आने से पहले वे दस वर्ष पत्रकार भी रहे हैं।