डॉ. कीर्ति सिंह |
प्रिंट पत्रकारिता सभी प्रकार की पत्रकारिताओं की जननी है। ऑनलाइन होने के मुकाम तक पहुंचने के लिए इसे सालों का सफर तय करना पड़ा। स्वरूप, प्रस्तुतिकरण, विषय वस्तु में निरंतर बदलाव करके और नई-नई तकनीकों के साथ सामंजस्य स्थापित कर प्रिंट पत्रकारिता सर्वाधिक परिवर्तन के दौर से गुज़री है। इंटरनेट पर सूचनाओं का कारोबार सीधे रूप में प्रारंभ नहीं हुआ और न ही सीधे भारत में पहली बार ई-समाचारपत्र पैदा हुए। साठ के दशक में अमेरिका में इंटरनेट का जन्म हुआ और आमजन में सूचनाओं का दायरा विस्तृत करने में लगभग बीस साल लग गए। समाचारपत्र प्रकाशक समूह लंबे समय तक ऑनलाइन पब्लिशिंग प्लेटफार्म के रूप में इंटरनेट का सही-सही अनुमान ही नहीं लगा पाए। वर्ल्ड वाइड वेब के आगमन के बाद ही तरीके से ई-समाचारपत्रों का पदार्पण इंटरनेट पर हुआ।ई-समाचारपत्रों का उद्भवदुनियाभर में अस्सी के दशक के अंत में ई-समाचारपत्रों का बीजारोपण हुआ था।
इसी दौरान अमेरिका में कुछ समाचारपत्र समूहों ने कंप्यूटर में संभावनाओं को समझा और डायल-अप बुलेटिन बोर्ड की मदद से अपने पाठकों को समाचार उपलब्ध कराने आरंभ किये। इस सेवा में वर्गीकृत विज्ञापन, मनोरंजन व कारोबारी सूचनाएं और समाचार हेडलाइंस शामिल की गयीं। सन् 1991 में शिकागो ट्रिब्यून कंपनी ने अमेरिका ऑनलाइन में निवेश किया। ई-समाचारपत्रों के विकास से कंप्यूटर और विशेषकर इंटरनेट का तकनीकी विकास जुड़ा हुआ है। इंटरनेट के विस्तार में बेहतर ऑपरेटिंग सिस्टम और ग्राफिक्स यूजर इंटरफेस का बड़ा योगदान रहा है। क्योंकि इसके बाद आम ग्राहक भी कंप्यूटर पर आसानी से माऊस की मदद से काम कर सकता था। आरंभ में अधिकांश कंप्यूटर और इंटरनेट कंपनियों ने अपने ग्राहकों के लिए टेक्सट के रूप में समाचार सेवा आरंभ की। नब्बे के दशक के दौरान द् इलेक्ट्रोनिक ट्रिब ने पहली कंप्यूटर आधारित इलेक्ट्रोनिक न्यूज़पेपर सेवा आरंभ की। ये पेपर बीबीएस सॉफ्टवेयर का उपयोग करता था। इसी अवधि में स्विटजरलैंड में टिम बर्नर्स ली ने हाइपर टेक्सट मार्कअप लैंग्वेज (HTML) ईजाद कर ली।
इंटरनेट आधारित सामग्री के लिए यह भाषा एक बड़ा वरदान साबित हुई। मई 1992 में शिकागो ट्रिब्यून ने दुनिया का पहला ई-समाचार पत्र शिकागो ऑनलाइन के नाम से अमेरिका ऑनलाइन (AOL) की वेबसाइट पर समाचार सेवा आरंभ की थी। क्योंकि शुरूआती काल में किसी भी समाचारपत्र की अपनी अलग से वेबसाइट नहीं होती थी। सन् 1992 में ही चारलो ऑब्जर्वर ने कनेक्ट ऑब्जर्वर नाम से एक समाचार सेवा आरंभ की। इसे भी बीबीएस सॉफ्टवेयर की मदद से देखा जा सकता था। सन् 1992 के मध्य तक अमेरिका और कनाडा में 11 समाचार पत्रों ने इंटरनेट पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी थी। यह साल ई-समाचारपत्रों के लिए शानदार साबित हुआ क्योंकि 9 जून, 1992 को अमेरिकी कांग्रेस ने इंटरनेट के व्यावसायिक प्रयोग से पाबंदी हटा दी।
परिणामस्वरूप इंटरनेट पर ई-समाचारपत्रों का तेज़ी से विकास हुआ। सन् 1993 में पहला वेब ब्राउजर मोजैक भी इसके अगले ही साल 1993 में बाज़ार में उतारा गया। ब्राउज़र की मदद से इंटरनेट पर काम करना काफी आसान हो गया था। सर्फिंग सुविधा की तरक्की के एक माह बाद ही फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग ने दुनिया की पहली पत्रकारिता वेबसाईट आरंभ कर दी थी।वैश्विक धरातल परशिकागो ऑनलाइन के लांच होने के दो साल बाद सन् 1994 में अमेरिका ऑनलाइन के ग्राहकों की संख्या छह लाख को पार कर गयी। इसकी लोकप्रियता को देखते हुए द् न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसी साल अमेरिका ऑनलाइन पर @Times लॉंच किया। जल्दी ही मिनियापोलिस स्टार ट्रिब्यून ने भी इंटरनेट पर अपनी शुरूआत कर दी। इसी वर्ष दुनिया का पहला और पूरी तरह से वेब आधारित समाचारपत्र द पॉलो अल्टो वीकली शुरू हुआ (केरेल्सन, 2003)। अगले डेढ़ साल में अधिकतर ऑनलाइन समाचारपत्रों की अपनी वेबसाइट अस्तित्व में आ चुकी थीं (हॉल, 2001)। यह छोटी सी अवधि समाचारपत्रों के लिए चुनौतियों से भरी थी।
जैसे ऑनलाइन समाचारपत्रों का लेआउट डिज़ाइन, प्रकाशक के स्तर पर सांगठनिक ढांचा कैसा हो और पाठकों की प्राथमिकताओं व डेमोग्राफिक्स में होने वाले परिवर्तन को किस प्रकार देखा जाये। (मैकएडम्स,1995)।जल्द ही अमेरिका की मीडिया कंपनी टाइम वार्नर ने वेब पर अपनी अलग साइट पाथफाइंडर के नाम से आरंभ की। धीरे-धीरे अमेरिका के सभी बड़े समाचार पत्र समूहों ने अपने ऑनलाइन संस्करण आरंभ करने की योजना बना ली। लॉस एंजिलेस टाइम्स और न्यूयोर्क न्यूज़टुडे ने अपने ऑनलाइन संस्करण शुरू किये। अमेरिका ही नहीं पूरे यूरोप में मीडिया में ऑनलाइन क्रांति को लेकर समाचारपत्र समूहों में उत्साह दिखाई देने लगा। एक अनुमान के अनुसार सन् 1994 के अंत तक पूरे यूरोप में करीब 200 समाचार पत्र अपना ऑनलाइन संस्करण आरंभ कर चुके थे। (डेविड कैर्लसन 2009)एशिया में प्रसारजल्दी ही एशियाई देशों में भी समाचार पत्रों ने इंटरनेट की तरफ कदम बढ़ाना आरंभ कर दिया। सन् 1995 में सिंगापुर बिज़नेस टाइम्स, मेलबोर्न ऐज़, और सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने अपने ऑनलाइन संस्करण शुरू कर दिये थे। इस साल के अंत तक ऑनलाइन समाचार पत्रों की संख्या इस प्रकार थी – अमेरिका (208), यूरोप (56), लातिन अमेरिका (16), कनाडा (16), एशिया (11), आस्ट्रेलिया और एशियाई देश (11), न्यूज़ीलैंड (5), अफ्रीका (2)। (डेविड कैर्लसन 2009)वर्ष 1995 में ही समाचार समिति एसोसिएटिड प्रैस ने ऑनलाइन समाचारपत्रों को सूचना पहुंचाने के उद्देश्य से द् वायर नामक अपनी वेब सेवा आरंभ की। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भी इसी वर्ष इंटरएक्टिव संस्करण वेब पर चालू किया लेकिन यह एक पेड वेबसाइट थी जिसके लिए वार्षिक शुल्क चुकाना ज़रूरी था। सन् 1996 में शिकागो ट्रिब्यून अमेरिका ऑनलाइन से अलग अपनी नई न्यूज़पेपर साइट आरंभ की। इस वेबसाइट पर शिकागो ट्रिब्यून ने अपने प्रकाशित संस्करण के सभी हिस्से शामिल किये गये।
ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (BBC) ने 1997 में ब्रिटेन में वेब news.bbc.co.uk नाम से अपनी साइट आरंभ की। ऑनलाइन पत्रकारिता की भूमिका एवं महत्व को देखते हुए पुलित्जर बोर्ड ने 1997 में ऑनलाइन प्रकाशित हुई खबरों और लेखों के लिए अलग से पुरस्कारों की घोषणा की। इस समय तक दुनियाभर में अखबारों में इंटरनेट संस्करण आरंभ करने की होड़ शुरू हो चुकी थी। कुछ देशों में ये विकास दर लगभग दो सौ प्रतिशत भी रही है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय शेयर बाज़ार में डॉट कॉम कंपनियों की कीमतें आसमान छू रही थीं। सभी बड़े औद्योगिक समूह, जो अन्य उत्पादों में लगे थे, उन्होंने इस नये उभरते कारोबार में रूचि दिखानी आरंभ कर दी थी।इस प्रकार एकाएक सभी समाचार समूह ऑनलाइन मंच पर अपनी पहचान के लिए आकर्षित होने लगे। इसके पीछे ठोस कारणों की तलाश करने हेतु गंभीर अध्ययन हुए। जिनसे कई महत्वपूर्ण तथ्य निकल कर आए। 1999 में की गय़ी पेंग की शोध यहां विशेषतौर से उल्लेखनीय है। इनके अनुसार परंपरागत समाचारपत्रों के ऑनलाइन संस्करणों को आरंभ करने के पीछे प्रमुख कारण अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचना (40%), अधिक आय अर्जित करना (26%) और अपने प्रिंट संस्करणों का अधिक प्रचार (23.9%) करना था। न्यूज़पेपर एसोसिएशन ऑफ अमेरिका (NAA) के एक अन्य अध्ययन (2002) के मुताबिक अमेरिका में ऑनलाइन समाचारपत्र स्थानीय समाचारों को जानने के लिए मुख्य स्रोत थे। अस्तित्व के लिए संघर्षएक समय के बाद महसूस होने लगा कि इंटनेट संस्करण तेज़ी से आरंभ हो रहे हैं परंतु उनसे आय ना के बराबर हो रही है।
सन् 2001 में अमेरिका और कनाडा में विज्ञापन से होने वाली आय घटने की वजह से बड़े समाचार संगठनों ने अपने ऑनालाइन ऑपरेशन से जुड़े स्टाफ की छंटनी कर दी। अधिक पाठक ना होने के कारण ई-समाचारपत्रों को मिलने वाले विज्ञापन कम होना प्रारंभ हो गये। आय में तेज़ी से आयी इस गिरावट के बाद अनेक ई-समाचारपत्र संकट में घिर गये। इसका एक कारण कंप्यूटर और इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों में संकट की स्थिति भी थी। यही वह समय था जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी के चक्र से घिरी हुई थी। इसके अलावा ई-समाचारपत्रों के पास कोई सफल बिज़नेस मॉडल भी नहीं था।आर्थिक संकट के बावजूद परंपरागत समाचार पत्रों की तुलना में ई-समाचारपत्रों ने अपनी विशेषता और उपयोगिता को निरंतर महसूस करवाया। सन् 2002 में निल्सन की अनेक रिपोर्टों ने साबित किया कि वर्ल्ड ट्रेड सैंटर पर आक्रमण के बाद और इराक पर अमेरिकी व अन्य सेनाओं के आक्रमण के बाद पाठकों ने प्रकाशित अखबारों की तुलना में उनके ऑनलाइन संस्करणों का अधिक सहारा लिया। इस दौरान सीएनएन डॉट कॉम और गूगल न्यूज़ पर रिकॉर्ड क्लिक हुए।
भारतीय ई-समाचारपत्रों का सफ़रसन् 1995 में भारत में इंटरनेट का आगमन हुआ और भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कंप्यूटरों से जुड़ने का पहली बार अवसर प्राप्त हुआ। डेविड केर्लसन की टाइमलाइन के अनुसार 1995 के अंत तक आस्ट्रेलिया और एशियाई देशों में कुल मिलाकर केवल 11 समाचारपत्र ऑनलाइन थे। जबकि सन् 1998 में पूरे एशिया में 223 समाचारपत्र ऑनलाइन हो चुके थे (Meyer, 1998)। भारत में समाचार-पत्रों को सीधे ऑनलाइन करने की बजाय सर्वप्रथम नये माध्यम में संभावनाओं की तलाश की गई। बेनेट एंड कॉलमेन जैसी बड़ी कंपनियों ने सूचनाओं के कारोबार के उद्देश्य से इंटरनेट प्रकाशन में हाथ आज़माने की कोशिश की। हालांकि भारतीय परिवेश की सूचनाएं भारत में इंटरनेट आने के पहले ही ऑनलाइन थीं। ये सूचनाएं केवल ग़ैर प्रवासी भारतीयों को ही उपलब्ध होती थी। राजेश जैन नामक् एक भारतीय युवक ने 1995 में भारत में इंटरनेट प्रारंभ होने से पांच महीने पहले यानी मार्च में एक वेब पोर्टल लांच किया। इस पोर्टल के लिए अमेरिका के सर्वर की मदद ली। वेब पोर्टल का नाम indiaworld.com रखा गया।राजेश जैन के अनुसार यह भारत का पहला वेब पोर्टल था।
पहले पहल इस पर समाचारों व सूचनाओं का प्रकाशन होता था। सूचनाओं के लिए विषय सामग्री अलग-अलग मीडिया स्रोतों से जुटाई जाती थी। ये स्रोत थे द इंडियन एक्सप्रेस, इंडिया टुडे, डाटाक्वेस्ट, रिडर्स डाइजेस्ट, केनसोर्स, क्रिसिल, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकॉनोमी, डीएसपी फाइनेंशियल इत्यादि। पोर्टल के लांच होने के दो दिन बाद ही यूनियन बजट को लाइव कवर किया गया। टेलीविज़न सैट लगे एक कमरे में विश्लेषकों और पत्रकारों के एक समूह को बैठाया गया ताकि टेलीविज़न पर बजट देखकर वे तुरंत अपनी टिप्पणियां दे सकें। जैसे ही टिप्पणियां प्राप्त होती, तुरंत प्रभाव से टाइप कर वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया । धीरे-धीरे पोर्टल के मालिक ने ग़ैर समाचार वेबसाइट भी आरंभ की। सबसे पहले khoj.com नाम से अपना सर्च इंजन शुरू किया। उसके बाद खेल, मनपसंद, इंडियालाइन, समाचार, धन, बावर्ची, इतिहास, और न्यूज़एशिया (एशियन क्षेत्रों से समाचार) आदि सेवाएं भी देनी प्रारंभ कर दी। सन् 1999 में सत्यम इंफोवे ने इस पोर्टल को खरीद लिया। वर्तमान में ऑनलाइन समाचारों का उत्पादन एक व्यवसाय की भांति फल-फूल रहा है।
महानगरों, छोटे शहरों और क़स्बों हर कहीं से प्रकाशित एक छोटा सा समाचारपत्र और स्थानीय टेलीविज़न चैनल भी इंटरनेट पर अपनी मौजूदगी बनाए हुए हैं। इंटरनेट पर सूचनाओं के स्थानीयकरण का चलन 2000 के बाद तेज़ी से बढ़ा है। इससे पहले वेब पोर्टल के माध्यम से सभी प्रकार की सामग्री एक ही साइट पर मिलती थी। वेब पोर्टल के माध्यम से सूचनाओं के वितरण का एक उद्देश्य कहीं-न-कहीं इंटरनेट की लोकप्रियता का अनुमान लगाना भी था। इस तरह से 1995 में इंटरनेट में निहित संभावनाओं के मद्देनज़र सभी प्रकार की विषय-सामग्री पोर्टल के माध्यम से उपलब्ध करवाने का चलन शुरू हुआ। इसी क्रम में 1995 में रिडिफ्यूज़न विज्ञापन एजेंसी के सह संस्थापक अजीत बालकृष्णन ने रेडिफ डॉट कॉम नाम से एक वेब पोर्टल बनाया। रिडिफ अपनी ई-मेल सेवा के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। सन् 1996 में बैनेट एंड कॉलमैन लिमिटेड कंपनी ने इंटरनेट की दुनिया में आने का फैसला किया। टाइम्स इंटरनेट के प्रेज़ीडेंट सुनील राजशेखर के अनुसार उनकी कंपनी नए माध्यमों में छिपी संभावनाओं को खोजना चाहती थी।
इसलिए इसने अपने सभी ब्रांडों को ऑनलाइन करने का फैसला लिया। कंपनी का एकमात्र लक्ष्य आर्थिक लाभ कमाना था। सबसे पहले उसने फेमिना और फिल्मफेयर मनोरंजन पत्रिकाओं को ऑनलाइन किया। उसके बाद कंपनी के सर्वाधिक बिक्री होने वाले समाचारपत्रों टाइम्स ऑफ इंडिया और द इकोनोमिक टाइम्स को भी इंटरनेट पर डाल दिया। हालांकि डिजीटल स्वरूप मे इंटरनेट पर दिखने वाले इन समाचारपत्रों की विषय-वस्तु व समाचार प्रकाशित संस्करणों से ही उठायी जाती थी। नये माध्यम में संभावनाओं की तलाश के बाद बीसीसीएल ने भी 1998-99 में आख़िरकार इंडियाटाइम्स डॉट कॉम नाम से एक पोर्टल शुरू कर दिया। आरंभिक भारतीय ई-समाचारपत्रभारत में ऑनलाइन पत्रकारिता का प्रारंभिक चरण नब्बे के दशक का मध्य माना जाता है। जबकि इस दशक के अंतिम वर्षों को नेट पत्रकारिता के दूसरे चरण की संज्ञा दी गई है। क्योंकि दूसरे चरण में हिंदी समाचारपत्रों ने भी इंटरनेट पर आना शुरू कर दिया था। इंटरनेट हिंदी पट्टी के समाचारपत्र प्रकाशकों के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर आया था। ये बड़ी चुनौती थी हिंदी फोंट का उपलब्ध न होना।
विदेशों से तकनीक तो आयात कर ली गई थी पर उसे अपने परिवेश के अनुरूप ढालकर प्रयोग करने की ज़िम्मेदारी स्वयं भारत की थी। भारत में ई-समाचारपत्रों की शुरूआत 1995 से ही मानी गई है। जहां तक वेब पत्रकारिता की शुरुआत की बात है तो, 1992 में वर्ल्ड वाइड वेब जारी होने के बाद 1995 तक विश्व में यूजनेट पर करीब ढाई हजार समाचार ग्रुप छा गये। 1995 में चेन्नई से प्रकाशित दैनिक अंग्रेजी पत्र ‘हिन्दू’ ने नेट संस्करण शुरू किया। इसी के साथ देशी वेब पत्रकारिता ने जोर पकड़ा और 1996 में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया और ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’ ने अपना इंटरनेट संस्करण शुरू किया। और आज इनकी संख्या में दिनों दिन बढ़ोतरी हो रही है। सन् 1997 में दैनिक जागरण ने ‘जागरण डॉट कॉम’, 1998 में अमर उजाला ने ‘अमरउजाला डॉट कॉम’, दैनिक भास्कर ने ‘भास्कर डॉट कॉम’, 1999 में ‘वेबदुनिया डॉट कॉम’ और 2000 में प्रभात खबर ने ‘प्रभातखबर डॉट कॉम’ नाम से अपनी समाचार साइट लॉंच कर दी।जनवरी, 2011 में जागरण समूह ने अंग्रेज़ी में जागरणपोस्ट डॉट कॉम नाम से अपनी नई वेबसाइट लांच की।
लेकिन बेहतर प्रदर्शन न कर पाने के कारण वेबसाइट की काफी आलोचना हुई। जागरण पोस्ट के नाम से लांच यह वेबसाइट हिंदी पट्टी के अख़बारों की दूसरी अंग्रेज़ी वेबसाइट बन गई है। क्योंकि इसके पहले भास्कर समूह ने भी अपनी अंग्रेज़ी सेवा वाली अलग से समाचार वेबसाइट लांच कर दी थी। लगभग एक साल के भीतर ही जागरण समूह ने अपने ई-समाचारपत्र के रंग-रूप, डिज़ाइनिंग को लेकर भी काम किया। याहू कंपनी के साथ किये करार की समाप्ति की घोषणा के साथ ही नए यूआरएल पते के साथ इंटरनेट पर अपनी पुराने ई-समाचारपत्र को नए कलेवर मे प्रस्तुत किया। जनवरी 2012 में जागरण ने नए नाम से www.jagran.com इंटरनेट पर अपना हिंदी ई-समाचारपत्र चालू कर दिया। फ़िलवक्त जागरण समूह का पुराना ई-समाचारपत्र भी www.in.jagran.yahoo.com यूआरएल के साथ इंटरनेट पर देखने को मिल सकता है।
बेहतरी की तरफ कदम
मई, 2011 में प्रवासी भारतीयों को लक्ष्य कर अमरउजाला ने news.amarujala.com नाम से अंग्रेज़ी में अपना ई-समाचारपत्र चालू किया। इस तरह से एक-एक करके फरवरी, मार्च और अप्रैल में अमर उजाला समाचार समूह ने एजूकेशन, क्रिकेट और कॉमपेक्ट नाम से तीन वेबसाइट शुरू की। (एक्सचेंज फॉर मीडिया.कॉम, 19 मई, 2011) जबकि अमर उजाला का हिंदी ई-समाचारपत्र इससे पहले से ही वेब पर उपलब्ध था। अंग्रेज़ी पत्रकारिता के क्षेत्र में पहला ई-समाचारपत्र द हिंदू ने भी साल 2006 में अपने ऑनलाइन संस्करण में कुछ परिवर्तन किए। अपने ई-समाचारपत्र के साथ अपने प्रकाशित दैनिक का पीडीएफ वर्ज़न अर्थात् ई-पेपर संस्करण भी पाठकों को उपलब्ध करवाया।
इसी तर्ज़ पर राजस्थान पत्रिका ने 2008 में अपनी वेबसाइट का पहले से अधिक इंटरएक्टिव एवं वेब आधारित सुविधाओं से भरपूर बनाते हुए नए आकर्षक स्वरूप में पुन: लोकार्पण किया। इंटरनेट पर आगमन के बाद भारतीय ई-समाचारपत्रों के विकास का यह दूसरा दौर कहा जा सकता है। जब समाचार वेबसाइट अपनी प्रस्तुति पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही हैं। अधिकाधिक यूज़र, हिट रेट्स एवं विज्ञापन जुटाने की प्रतिस्पर्धा में अपने ऑनलाइन संस्करणों को अधिक समृद्ध बनाने मे लगी हैं। यूज़र की सुविधानुरूप मोबाइल संस्करण हेतु अपने अख़बारों के हल्के स्वरूप उपलब्ध करवा रही हैं। ई-समाचारपत्र इस मुक़ाम तक पहुंच चुके हैं कि अब यह कहा जा सके कि लंबे इंतज़ार के बाद इन्होंने अपने लिए पाठक जुटा लिए हैं। परंतु ये नहीं कहा जा सकता कि भारतीय ई-समाचारपत्रों की चुनौतियां ख़त्म हो गई हैं।
यूनिकोड फोंट व क्षेत्रीय भाषाओं पर आधारित नए सॉफ्टवेयर प्रोग्राम ने भाषा संबंधी समस्या को सुलझाया है। विदेशों में ई-समाचारपत्रों की पठनीयता पर हुए शोध बताते हैं कि समाचारपत्रों की प्रकाशित प्रति ऑनलाइन समाचारपत्रों की अपेक्षा पाठकों को अधिक सुविधाजनक लगती हैं। अत: डेस्कटॉप, लैपटॉप, ई-रीडर, मोबाइल स्क्रीन पर असुविधाजनक अनुभव के मद्देनज़र विशेष डिस्पले तकनीक पर काम प्रारंभ हो चुका है। निस्संदेह भारतीय ई-समाचारपत्रों को भी अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए समय के साथ ख़ुद को संवर्द्धित करने की आवश्यकता महसूस होती रहेगी। और ई-समाचारपत्रों में परिष्कर्ण, संवर्द्धन का ये सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। नये माध्यम की निरंतर परिवर्तनशील प्रकृति की बदौलत ई-समाचारपत्रों के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ होना बाक़ी है। विकास की ये प्रक्रिया यहीं थमी नहीं है। बीबीसी हिंदी डॉट कॉम की संपादक सलमा ज़ैदी का मानना है कि ऑनलाइन पत्रकारिता अभी पूरी तरह ज़मीनी स्तर से नहीं जुड़ पायी है। महंगी तकनीक एवं कंप्यूटर, ब्रॉडबैंड कनैक्शन में उच्च क्षमता का अभाव ये तमाम कारण उनके अनुसार ऑनलाइन पत्रकारिता के फैलाव में बाधक हैं। इस तथ्य में सौ प्रतिशत सच्चाई है।
ई-समाचारपत्रों का भविष्य
आज जिस स्वरूप में ई-समाचारपत्र दुनिया भर मे दिखाई दे रहे हैं, वह अत्यधिक संवर्द्धित एवं परिष्कृत स्वरूप है। निरंतर सालों तक कई फेर-बदल के बाद ई-समाचारपत्रों ने मानक शक़्ल अख़्तियार की है। मानक शक्ल से अभिप्राय ई-समाचारपत्रों का ले-आउट, स्वरूप एवं डिज़ाइनिंग, समाचारों का प्रस्तुति का तरीक़ा, नेवीगेश्नल सुविधाएं इत्यादि से है। ठीक इसी दृष्टिकोंण से पश्चिम में अनेक शोधों हुए हैं। ये शोध यह स्पष्ट करते हैं कि ऑनलाइन समाचार सामग्री तीन स्तरों पर जाकर विकसित हुई है। पहले स्तर पर प्रकाशित समाचारपत्र की सामग्री को ही ऑनलाइन संस्करणों के लिए ज्यों का त्यों उपलब्ध करवाया जाता था। ई-समाचारपत्रों का दूसरा चरण वह आया जब विषय-सामग्री को इंटरएक्टिव सुविधाओं जैसे सर्च इंजन, हाइपरलिंक्स और उपयोगकर्ता अपने अनुसार सामग्री को ढाल कर प्रयोग कर सके आदि सुविधाओं के साथ उपलब्ध करवाया जाने लगा। तीसरे स्तर पर जाकर ऑनलाइन समाचारपत्रों के लिए प्रकाशित समाचारपत्र सामग्री से अलग मौलिक सामग्री का निर्माण किया जाने लगा।
पिछले कुछ सालों के दौरान बाज़ार में विज्ञापनों के बंटवारे पर नज़र डालें तो ये स्पष्ट हो जाता है कि ई-समाचारपत्रों के पाठकों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ उनकों मिलने वाले विज्ञापनों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है। आय बढ़ने के साथ ही समाचारपत्र समूह अपने इंटरनेट संस्करण कार्यालय में कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ा रहे हैं। निसंदेह कहा जा सकता है कि ई-समाचारपत्रों का भविष्य उज्ज्वल है और ई-समाचारपत्रों की संख्या के साथ-साथ इनके पाठकों की संख्या में भी निरंतर बढोतरी होगी। दिनोंदिन ई-समाचारपत्रों पर उपलब्ध सामग्री की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ रही है। अपने पाठकों की पसंद के अनुरूप ई-समाचारपत्र नये प्रयोग कर रहे हैं और पहले से बेहतर और सुंदर बन रहे हैं। भारत में भले ही आज ई-समाचारपत्रों के प्रसार का कोई असर प्रकाशित संस्करणों पर नहीं दिखाई दे रहा लेकिन ऐसा भविष्य में नहीं होगा ये अभी दावे से नहीं कहा जा सकता।