मुकुल व्यास |
याकूब मेमन को फांसी दिए जाने के बाद दूसरे दिन कुछ अखबारों के शीर्षक गौर करने लायक थे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा, ‘नाइट विदाउट एंड, डेथ एट डॉन’। हिंदू ने शीर्षक दिया, ‘याकूब मेमन हैंग्ड ऑन बर्थडे’। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक था, ‘एंड दे हैंग्ड याकूब मेमन’ जबकि नवभारत टाइम्स ने कहा, ‘इस रात की सुबह हुई’।
स्पष्ट है कि ये शीर्षक गहन विचार मंथन के बाद ही चुने गए होंगे। खबरों पर शीर्षक लगाना आसान नहीं है, खासकर जब कोई मामला पेचीदगियों से भरा हो, विवादास्पद हो या संवेदनशील हो। बड़े अखबार अक्सर अपने शीर्षकों के जरिए घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त करते हैं, हालांकि इन शीर्षकों की गूढ़ता को समझ पाना हरेक के लिए आसान नहीं होता।
इस संदर्भ में टाइम्स ऑफ इंडिया , हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के उपरोक्त शीर्षकों का जिक्र किया जा सकता है। शीर्षक समाचार के चेहरे जैसा होता है,इसलिए इस चेहरे का साफ सुथरा और सुंदर होना आवश्यक है। अखबारों के कार्यालयों में नियमित रूप से होने वाली संपादकीय बैठकों में मुख्य ख़बरों पर चर्चा होती है और प्रथम लीड का शीर्षक तय करने लिए संपादक और उसके वरिष्ठ सहयोगियों के बीच लंबा विचार विमर्श चलता है। यह दैनिक प्रक्रिया है।
प्रमुख खबरों के लिए सटीक और चुस्त शीर्षकों के चयन के साथ-साथ अखबारों में सामान्य और सपाट खबरों की पैकेजिंग भी आकर्षक शीर्षकों से की जाती है। शीर्षकांकन एक अच्छी खासी दिमागी कसरत है। इसके लिए कुछ कल्पनाशीलता और कुछ सृजनात्मकता की आवश्यकता होती है। कई बार शीर्षकांकन समाचार लेखन से ज्यादा कठिन होता है। यदि ख़बरों के शीर्षकों में चुटीलापन नहीं हो ,उनमे ‘पंच’ नहीं हो तो अखबार पढ़ने में आनंद नहीं आएगा।
दमदार शीर्षकों और साधारण शीर्षकों की तुलना आप मसालेदार चाय और साधारण चाय से कर सकते हैं। शीर्षक कला में हिंदी अखबार इंग्लिश अखबारों से बहुत पिछड़े हुए हैं क्योंकि वे स्वयं को पारंपरिक दायरे में ही रखना पसंद करते हैं और प्रयोग करने से कतराते हैं। कुछ अपवादों को छोड़ कर ज्यादातर हिंदी अखबार अपने शीर्षकों में बहुत ज्यादा प्रयोग नहीं करते। इंग्लिश अखबार अपने शीर्षकों में जम कर प्रयोग करते हैं, इसलिए उनमें नवीनता होती है, ज्यादा तीखापन होता है। एक अखबार का जीवन बहुत अल्पकालिक होता है, अतः अच्छे शीर्षकों को रिकाल करना मुश्किल होता है। पत्रकारिता के विद्यार्थियों को अखबारों के अच्छे शीर्षकों पर अवश्य मनन करना चाहिए और एक डायरी में उन्हें संग्रहीत करना चाहिए। इससे उन्हें खुद अपने समाचार लेखों अन्य पाठ्य सामग्री को अच्छे शीर्षकों से सजाने की प्रेरणा मिलेगी।
लेखक नवभारत टाइम्स में समाचार संपादक रहे चुके हैं.