आज के दौर में किसी भी अनियमितता, गैरकानूनी काम, भ्रष्टाचार या षड़यंत्र को उजागर करने के लिए सुबूतों की ज़रूरत होती है। हमारे देश में मीडिया इसी प्रकार सुबूतों को जुटाने के लिए स्टिंग ऑपरेशन करता है और स्पाय यानी खुफिया कैमरों का इस्तेमाल कर गलत कारगुज़ारियों का पर्दाफाश करता है। मीडिया तो ऐसी अपराधों की पोल खोलता ही रहा है वहीं अदालत भी सुबूतों के आधार पर फैसले दिया करती है। यही नहीं अब तो दिल्ली सरकार भी कहने लगी है कि आप हमें सरकारी महकमों में किसी भी नियम विरूद्ध काम का वीडियो एविडेंस यानी चलचित्र सुबूत दीजिए, हम कार्रवाई करेंगे। लिहाज़ा देश में अव्यवस्था से खिन्न और अधिकारियों की मनमानी से परेशान मीडिया ही नहीं आम आदमी भी आज गलत काम का चिट्ठा खोलने के लिए स्पॉय कैमरे के ज़रिए स्टिंग कर रहा है। स्टिंग को घात लगाना या डंक मारना भी कहते हैं। यानी जिस अनियमितता को गोपनीय रखा गया उसके वीडियो सुबूत बना लिए गए और बाद में मालूम हुआ कि जो अपराध छिपकर किया जा रहा था उसका खुलासा हो गया है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर स्टिंग ऑपरेशन यानी वीडियो सुबूत जुटाने के लिए सही यंत्र यानी स्पाय कैमरा कौनसा होगा?
पहले स्पाय कैमरे की उपयोगिता समझिए-
आम तौर पर लोग ई-कामर्स यानी ऑनलाइन वेबसाईटों पर दिखाए गए किसी भी स्पॉय कैमरे को उचित मानते हुए उसे खरीद लेते हैं। लेकिन सच तो यह है कि उनमें से कई डिवाइस इस्तेमाल के बाद बेकार, अनुपयोगी या असफल साबित होते हैं। हालांकि लोग इसपर गौर नहीं करते क्योंकि इनकी कीमत आज बहुत ज्यादा नहीं है। दरअसल ज़रूरत इस बात की है कि स्पाय कैमरे यानी खुफिया औज़ार का चुनाव उसकी अधिकतम उपयोगिता, गुणवत्ता, विश्वसनीयता और कौशल के आधार पर किया जाना चाहिए, जिसके बारे में लोगों को पता नहीं होता ऐसे में स्पाय कैमरा खरीदने और उपयोग करने के बाद उनका चुनाव गलत साबित होता है।
वेबसाईट्स पर स्पाय कैमरों की है भरमार-
आज के दौर में ऑनलाईन शॉपिंग के चलन के चलते कंपनियां अपने उत्पाद सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने और उन्हें डिसप्ले से प्रभावित करने में पूरा दमखम आज़मा रही हैं। ऐसे में स्पाय कैमरे की समझ न रखने वाले लोग बाद में खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। आज आपको एक क्लिक में ही कई प्रकार के स्पाय कैमरे देखने को मिल जाएंगे। स्पाय यंत्र के कई अवतार हैं, जिनमें पेन, चश्मा, घड़ी, की-चेन, बटन कैमरा, पेन ड्राइव, मोबाइल, चार्जर, बेल्ट, पॉवर प्लग, लेम्प, केलकूलेटर, जूते, कैप, लाइटर, टॉर्च, क्लॉथ हुक, स्क्रू, आइपैड, कोल्ड ड्रिंक बॉटल, माउस, डिक्शनरी, कैलेण्डर और स्माइली आदि प्रमुख हैं। खास बात यह है कि इसमें भी दो प्रकार की रेंज है। एक रेंज में कम दाम के मेन्युअल स्पाय कैमरे उपलब्ध हैं और दूसरे जो महंगे हैं क्योंकि वायरलेस तकनीक पर काम करते हैं। इन दोनों श्रेणियों का अपना ही नफा -नुक्सान है। पहली श्रेणी वाले सस्ते हैं लेकिन कभी चार्ज समाप्त हो गया या काम करना बंद कर दिया तो उसका पता बाद में चलता है जब रिकार्डिंग की जांच की जाती है। वहीं दूसरी महंगी श्रेणी के हैं जिसमें यह तो सुनिश्चित हो ही जाता है कि स्पाय कैमरा अपना काम कर रहा है या नहीं यानी उसे मॉनीटर किया जा सकता है।
स्पाय कैमरा चुनाव का स्वीकृत नियम-
खुफिया कैमरे का यंत्र चुनने के कुछ स्वीकृत नियम हैं। जिनमें पहला नियम है कि स्पाय कैमरा संदेह के दायरे से बाहर हो यानी जिसके बारे में लोग न जान पाएं और जांच के दौरान पकड़ में नहीं आना चाहिए। दूसरा नियम यह है कि उसका इस्तेमाल सुगमता से किया जा सके यानी चाहे गए गतिमान दृश्यों को कैमरे में कैद करने में सक्षम हो या उपयोग लाए जा सके। तीसरा नियम यह है कि कैमरे में दृश्यों की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए यानी 2 मेगापिक्सल से अधिक होना ही चाहिए। चौथा नियम है कि एक निश्चित दूरी से साफ आवाज़ रिकॉर्ड करने की क्षमता होनी चाहिए। पांचवा नियम यह है कि उसमें लगी बैटरी की क्षमता एक घंटा या उससे अधिक होनी चाहिए। छटा नियम बहुत महत्वपूर्ण है कि उसमें रिकार्डिंग के लिए कम से कम 4 जीबी का स्पेस होना चाहिए। अब अगल-अलग प्रकार के स्पाय कैमरों और उनकी उपयुक्तता के विश्लेषण के बारे में जानना जरूरी है।
पेन स्पाय कैमरा-
पेन कैमरा आसानी से मिल जाता है और इसका इस्तेमाल भी आसान है। लेकिन सबसे बड़ी कमीं यह है कि इसके बारे में लोग जानते हैं और पेन की मोटाई लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। यानी परेशानी यह कि लोग जागरुक हैं और इसमें कैमरे का एक निश्चित स्थान है जिसकी तकरीबन सभी को जानकारी है। लिहाजा यह कैमरा खरीदकर उपयोग में लाने में इच्छित परिणाम संदिग्ध हो जाते हैं। आपको कोई भी टोक सकता है या पेन के बारे में सवाल पूछ सकता है या सावधान होकर अपने आप को नियंत्रित कर सकता है। जिससे आपका उद्देश्य असफल होने की पूरी संभावना रहती है। इसे सुरक्षित यंत्रों की श्रेणी में सबसे निचले स्तर पर रखा जाता है।
घड़ी स्पाय कैमरा- घड़ी कैमरा तीन प्रकार के हैं एक रिस्टवॉच यानी हाथघड़ी, दूसरा टेबल क्लॉक और वॉल क्लॉक यानी दीवार घड़ी कैमरा। जिन्हें कंपनियां इनबिल्ड मेमोरी के साथ उपलब्ध कराती हैं। तीनों ही प्रकार के कैमरे अलग-अलग स्थिति में सफल माने जाते रहे हैं। लेकिन इसमें बहुउपयोगी तो रिस्टवॉच यानी हाथ में पहनी जाने वाली घड़ी ही है। क्योंकि एक तो रिस्टवॉच पर संदेह नहीं होता और दूसरा इसे टेबल पर रखकर भी उपयोग में लाया जा सकता है और हाथ में तो इस्तेमाल किया ही जा सकता है। लेकिन रिस्टवॉच में भी एक कमीं है। अगर आप स्टील स्ट्रेप वाली रिस्टवॉच लेते हैं तो परेशानी यह हो सकती है कि हाथ में मूमेंट यानी गतिमान होने पर रिकार्डिंग में स्ट्रेप की खटखट भी रिकॉर्ड हो जाएगी, जो मूल आवाज़ की रिकॉर्डिंग को अस्पष्ट कर देगी।
इसीलिए लेदर, रेगज़ीन या रबर स्ट्रेप वाली घड़ी का उपयोग किया जाना चाहिए। उसका लाभ यह है कि एक तो वह आपके हाथों पर सही कसी रहती है और दूसरा उसे घुमाने पर वीडियो ज्यादा नहीं हिलता। लिहाज़ा रिकॉर्डिंग बेहतर होती है। इसे सुरक्षित यंत्रों की पहली श्रेणी में रखा जाता है।
चश्मा स्पाय कैमरा- यह कैमरा भी तीन प्रकार का है। पहला सनग्लास है, दूसरा मोटे फ्रेम वाला पारदर्शी और तीसरा पतले फ्रेम वाला पारदर्शी स्पाय कैमरा। जिन्हें कंपनियां इनबिल्ड मेमोरी के बजाए मेमोरी चिप या मेमोरी कार्ड के साथ उपलब्ध कराती हैं और उनकी क्षमता 1 जीबी से 16 जीबी और 32 जीबी तक होती है। इसमें तीसरा पतले फ्रेम वाला पारदर्शी चश्मा कैमरा अधिक उपयुक्त है क्योंकि सनग्लास आप कमरे में लगाकर बैठेंगे तो संदेह की संभावना पैदा करेंगे और मोटे फ्रेम का चश्मे के फ्रेम की मोटाई भी संदेह को आमंत्रित कर सकती है। ऐसे में पतले फ्रेम का चश्मा अधिक उपयुक्त व सुरक्षित होता है। घड़ी कैमरे की तरह ही चश्मा स्पाय कैमरा बहुउपयोगी और बहुउद्देशीय है।
खास बात यह है कि इसे आप पहनकर वीडियो बना सकते हैं और टेबल पर रखकर भी आपके जाने के बाद भी सभी दृश्यों को आवाज़ सहित रिकॉर्ड कर सकता है। इसमें अगर कुछ नकारात्मक है तो वह यह है कि यदि चश्में का फ्रेम खुलने बंद होने वाला हो तो दोनों लेंस के बीच का कैमरा कभी भी दुर्घटना को अंजाम दे सकता है। क्योंकि बार-बार फ्रेम खुलने बंद होने से कैमरे का वायर कट सकता है। यानी घूमने वाले फ्रेम के कोने पर लगा कैमरा अधिक सुरक्षित हो जाता है। हालांकि अधिकांश कंपनियां फिक्स यानी स्थिर फ्रेम वाले ही चश्में बनाती हैं और मोटे फ्रेम वाले असुरक्षित माने जाने वाला चश्मा स्पाय कैमरा कम कीमत में मिल जाता है। ऐसे में कम कीमत के बजाए पतले फ्रेम वाला चश्मा स्पाय कैमरा ही अधिक उपयुक्त माना जाता है। इसे सुरक्षित यंत्रों की पहली श्रेणी में गिना जाता है।
की-चैन स्पाय कैमरा-
यह कई अलग-अलग आकार में मिलते हैं लेकिन मोटे तौर पर की-चेन स्पाय कैमरे कार के रिमोट लॉक जैसे दिखते हैं। यह महंगी गाड़ियों के रिमोट लॉक की हूबहू कॉपी में भी उपलब्ध हैं। जिन्हें कंपनियां इनबिल्ड मेमोरी के बजाए मेमोरी चिप या मेमोरी कार्ड के साथ उपलब्ध कराती हैं और उनकी क्षमता 1 जीबी से 16 जीबी और 32 जीबी तक बढ़ाई जा सकती है। इन्हें भी अधिक सफल माना जाता है क्योंकि यह स्पाय कैमरा चुनाव के सभी आवश्यक पैमानों को पूरा करते हैं। खास बात यह भी है कि इन्हें लेकर आप हाथ में रखेंगे तो शक नहीं किया जा सकता। यह भी बहुउपयोगी हैं क्योंकि इन्हें भी चश्मे कैमरे की ही तरह आप अपने साथ रखकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं और यह आपकी अनुपस्थिति में भी आपके लिए ऑडियो-वीडियो रिकॉर्ड कर सकते हैं। इनकी कीमत भी कम है और सफल हैं साथ ही सुरक्षित और कम संदिग्ध माने जाते हैं। लेकिन अगर आपके पास कार नहीं है और लोग इसे जानते हैं तो इसे खरीदकर उपयोग लाने पर आप संदेह की जद में आ सकते हैं। यह सुरक्षित यंत्रों की पहली श्रेणी में आते हैं।
बटन स्पाय कैमरा- यह सर्वाधिक उपयोगी बहुउद्देशीय यंत्र माना जाता है। बटन स्पाय कैमरा कई अलग-अलग प्रकार के होते हैं, कुछ बहुत छोटे होते हैं जिन्हें शर्ट के बटन के बतौर उपयोग में लाया जाता है वहीं दूसरे बड़े आकार के होते हैं जिन्हें कोट या जैकेट में लगाकर काम में लिया जा सकता है। जिन्हें कंपनियां इनबिल्ड मेमोरी के बजाए मेमोरी चिप या मेमोरी कार्ड के साथ उपलब्ध कराती हैं और उनकी क्षमता 1 जीबी से 16 जीबी और 32 जीबी तक बढ़ाई जा सकती है।
खास बात यह है कि खुफिया बटन कैमरे का इस्तेमाल कई तरीके से किया जा सकता है। जैसे आप किसी प्लास्टिक की बोतल में छेद करके इसे फिट कर सकते हैं, किसी कोल्ड ड्रिंक की बॉटल में भी इसे लगाया जा सकता है, गुलदस्ते में छिपाया जा सकता है, थ्रीपिन या स्विचबोर्ड में लगाया जा सकता है और किसी किताब में पन्ने काटकर इसे फिट किया जा सकता है। इस हिसाब से से यह बहुउपयोगी हो जाता है क्योंकि यह आपकी ज़रूरत के मुताबिक अपना रूप बदलने की क्षमता रखता है। यह सस्ता भी है और कामयाब भी। हालांकि इसे सुरक्षित यंत्रों की दूसरी श्रेणी में रखा जाता है।
कैप स्पाय कैमरा-
टोपी में कैमरा लगाकर तैयार किए गए इस खास स्पाय कैमरे की उपयोगिता भी बहुत है। इन्हें भी कंपनियां इनबिल्ड मेमोरी के बजाए मेमोरी चिप या मेमोरी कार्ड के साथ उपलब्ध कराती हैं और उनकी क्षमता 1 जीबी से 16 जीबी और 32 जीबी तक बढ़ाई जा सकती है। इसमें अगर कोई दिक्कत है तो वह यह है कि अगर कोई कभी भी टोपी का इस्तेमाल नहीं करता तो इसे उपयोग में लाना खुदको ही असहज करने वाला होता है। लेकिन जहां तक इसकी उपयोगिता की बात की जाए तो यह भी बहुत सफल और बहुउपयोगी यंत्र है। उल्लेखनीय यह है कि इसे इस्तेमाल करते समय गर्दन को अधिक हिलाने से वीडियो की क्वालिटी खराब हो सकती है यानी हिलते हुए वीजुअल्स रिकॉर्ड हो सकते हैं। हालांकि घड़ी, चश्मे और बटन कैमरे की ही तरह इसे आप अपनी गैरहाजिरी में भी एक जगह रखकर अपनी वांछित रिकॉर्डिंग कर सकते हैं। इसे भी सुरक्षित यंत्रों की दूसरी श्रेणी में रखा जाता है।
अन्य स्पाय कैमरे- जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि कई और प्रकार के स्पाय कैमरे भी हैं लेकिन कुछ को सुरक्षित और कुछ को बहुउपयोगी नहीं माना जाता जैसे मोबाइल, चार्जर, बेल्ट, पॉवर प्लग, लेम्प, केलकूलेटर, जूते, लाइटर, टॉर्च, क्लॉथ हुक, स्क्रू, आइपैड, कोल्ड ड्रिंक बॉटल, माउस, डिक्शनरी, कैलेण्डर और स्माइली आदि। इनमें पेन ड्राईव कैमरे की उपयोगिता भी बटन कैमरे के जितनी ही है लेकिन बाकी सभी की अपनी-अपनी सीमाओं और अल्प क्षमताओं के चलते इस्तेमाल के लिए अधिक उपयुक्त नहीं माना जाता। उदाहरण के लिए मोबाइल संदेह पैदा करता है, इसी प्रकार आइपैड, टॉर्च, चार्जर व केलकुलेटर हाथ में रखने की चीज नहीं माना जाता, वहीं कोल्ड ड्रिंक बॉटल, कैलेण्डर, क्लॉथ हुक, स्क्रू, पॉवर प्लग व लेम्प स्थिर होते हैं, स्माइली कैमरा दूसरे का ध्यान अपनी ओर खींचता है, माउस हर जगह ले जाना संदेह पैदा करता है और जूते पैर में व बेल्ट कमर में पहनने से खुफिया यंत्र के उपयोग का दायरा कम हो जाता है और वीजुअल्स भी मनमुताबिक प्राप्त नहीं हो पाते।
स्पाय यंत्रों की जांच व कमियां-
खुफिया कैमरे वाले यंत्रों में से कई ऐसे हैं जिनमें वीडियो रिकॉर्डिंग के समय मिनी एलइडी जलती रहती है यानी ब्लिंक होती है। यदि ऐसा है तो यह खतरनाक है क्योंकि इससे सामने वाला सतर्क हो जाता है और उलटे आपको दिक्कत हो सकती है। कई यंत्रों में कैमरे का मेगापिक्सल बताने के बजाए एमपी ही लिखा जाता है। अब यह जानने की ज़रूरत है कि एमपी का मतलब क्या है। कई बार कंपनियां एमपी लिख देती हैं लेकिन उसे मिनीपाइंट कहती हैं लेकिन बताती नहीं हैं, और वीजीए कैमरा लगाकर 2एमपी लिखकर उत्पाद बेच देती हैं। ऐसे में वीजीए कैमरे से प्राप्त वीज्युअल्स आपके संतोष के पैमाने पर खरे नहीं उतर सकते। आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि जब भी आप स्पाय कैमरे को अपने कंप्यूटर या लेपटॉप से कनेक्ट करें तो सबसे पहले स्पाय कैमरा स्विच ऑफ होना चाहिए और दूसरा यह कि उसमें एंटीवायरस हों। अगर आपका कंप्यूटर वायरेस से सुरक्षित नहीं है तो यह आपके स्पाय यंत्र और वीडियो को खराब कर सकता है।
अभ्यास कर खुद को प्रशिक्षित करें –
स्पाय कैमरे का चुनाव करने के बाद बारी आती है स्व-प्रशिक्षण की। इसमें सबसे अधिक आवश्यक यह है कि स्पाय कैमरा इस्तेमाल करते समय आप अपने आपको सहज रखने का प्रशिक्षण दें। इसके अलावा स्पाय कैमरे को कई बार उपयोग में लाते हुए लक्षित वीडियो बनाने का प्रयास कर अपनी गलतियों से सीखें और कैमरे को सही दिशा में रखने का कौशल विकसित करें। आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि आपका ध्यान बार-बार अपने खुफिया कैमरे के यंत्र की ओर नहीं जाना चाहिए। इसके अलावा यह भी ज़रूरी है कि बातचीत के दौरान कैमरे को लक्ष्य की दिशा में घुमाने की सहजता सीखें और काम पूरा होने पर चतुराई से रिकॉर्डिंग बंद करने वाले बटन को ऑपरेट करने की कला सीखें।
डॉ. सचिन बत्रा शारदा विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, उन्होंने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में एमए और किया है और हिन्दी पत्रकारिता में पीएचडी की है, साथ ही फ्रेंच में डिप्लोमा भी प्राप्त किया है। उन्होंने आरडब्लूजेयू और इंटरनेश्नल इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म, ब्रेडनबर्ग, बर्लिन के विशेषज्ञ से पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया है। वे दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और दैनिक नवज्योति जैसे समाचार पत्रों में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं और उन्होंने राजस्थान पत्रिका की अनुसंधान व खोजी पत्रिका नैनो में भी अपनी सेवाएं दी हैं। इसके अलावा वे सहारा समय के जोधपुर केंद्र में ब्यूरो इनचार्ज भी रहे हैं। इस दौरान उनकी कई खोजपूर्ण खबरें प्रकाशित और प्रसारित हुई जिनमें सलमान खान का हिरण शिकार मामला भी शामिल है। उन्होंने एक तांत्रिका का स्टिंग ऑपरेशन भी किया था। डॉ. सचिन ने एक किताब और कई शोध पत्र लिखे हैं, इसके अलावा वे अमेरिका की प्रोफेशनल सोसाइटी ऑफ़ ड्रोन जर्नलिस्टस के सदस्य हैं। सचिन गृह मंत्रालय के नेशलन इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ास्टर मैनेजमेंट में पब्लिक इंफार्मेशन ऑफिसर्स के प्रशिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध हैं। उन्होंने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक इमीडिया में 14 वर्ष काम किया और पिछले 5 वर्षों से मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।