रोशन मस्ताना।
नित नए बदलते परिवेश व तकनीक के साथ ही पत्रकारिता का स्वरूप भी बदला है । आज के परिवेश में समाचार बिजली की गति के साथ एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंच रहा है। जहां आज विश्व में मुद्रित समाचार पत्रों का चलन कम हुआ है । वहीं भारत में समाचार पत्रों की बिक्री व पाठक संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है व भारत में समाचार पत्रों की विश्वसनीयता में कोई कमी नहीं महसूस की जा रही है । पत्रकारिता के इस दौर में इन्टरनेट में अहम् भूमिका निभाई है। आज हमारे पास ऐसे अनगिनत स्त्रोत है जिनसे हमारे अनुकूल जानकारी प्राप्त हो रही है । एक टच से सारी जानकारी सिमट कर हमारी मुट्ठी (मोबाइल रूपी) में आ गई है।
पत्रकारिता के स्वरूप व प्रस्तुतीकरण में निरन्तर बदलाव महसूस किया जा रहा है। विभिन्न मुद्रित समाचार पत्रों में भाषा शैली व प्रस्तुतीकरण के नित्य नए प्रयोग किए जा रहे हैं और इससे वे अपने पाठकों का बांध सकने में सफल होते प्रतीत हो रहे हैं । मीडिया द्वारा विभिन्न मुद्दों के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को भी उठाया जाता है । भारत में बिमारियां निरन्तर पैर प्रसार रही है । जैसे एड्स, शुगर, कैंसर, हृदयघात, स्वाइन फलू, मलेरिया, हैपेटाइटिस – ए, बी, सी, ई आदि । समाचार पत्रों में समय-समय पर इन बीमारियों के प्रति सचेत करने व बचाव के तरीके प्रकाशित होते रहते है। जिससे पाठक वर्ग को इन बीमारियों की जानकारी व बचाव के तरीके पता चलते है ।
हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित रिर्पोट के अनुसार 1990 से 2013 के तथ्यों के आधार पर विश्व में 95 प्रतिशत व्यक्ति न किसी बीमारी से ग्रस्त है । इस शोध में 188 देशों में शामिल किया गया । शोध के अनुसार सिर्फ 20 से एक व्यक्ति (4.3 प्रतिशत) ने माना कि उन्हें किसी भी प्रकार की कोई बीमारी नहीं है । रिर्पोट के अनुसार अधिकतर लोगों ने माना कि उन्हें स्वास्थ्य से सम्बन्धित पांच छोटी मोटी बीमारियां है । (एच.टी. जून 9, 2015 पृष्ठ 12) टाइम्स आॅफ इण्डिया के अनुसार पंजाब व चण्डीगढ़ में एच आई.वी. के नए मामलों में वृद्धि हुई है ।( 23 जून )और भारत में शुगर के मरीजों की संख्या में भी 123 प्रतिशत की वृद्धि हुई है । इसी प्रकार अन्य बीमारियां भी निरन्तर अपने पैर पसार रही है ।(टाइम्स आॅफ इण्डिया, 16 जून 2015)
समाचार पत्रों के विश्वसनीयता व बढ़ते पाठक वर्ग के कारण यह आवश्यकता महसूस की जाने लगी है कि क्यों न स्पैशल हैल्थ रिपोर्टर हो । जो स्वास्थ्य व बीमारियों की बारीकियों को जानते हो व सही से स्वस्थ जानकारी लोगों को उपलब्ध करवाए । ऐसे में स्वाइन फ्लू का यहां जिक्र करने की आवश्यकता महसूस हो रही है । जिस प्रकार स्वाइन फ्लू का डर व आतंक मीडिया के द्वारा लोगों के दिलों व दिमाग पर छा गया था वहीं वास्तविकता कुछ और ही थी । समाचार पत्रों में हेडिंग कुछ इस तरह से प्रस्तुत दिए गए कि लोगों में स्वाइन फ्लू का आतंक घर कर गया । लोग अपने हाथों के साथ कपूर व छोटी इलायची बांध कर चलने लगे । ऐसे में अगर समाचार पत्रों में सरकार द्वारा सही जानकारी व विज्ञापन प्रकाशित करवाएं जाते तो स्थिति कुछ ओर होती ।
दैनिक जागरण भास्कर, द हिन्दू, टाइम्स आॅफ इण्डिया, हिन्दूस्तान टाइम्स आदि में समय-समय पर स्वास्थ्य को लेकर लेख व समाचार प्रकाशित किए जाते है । दैनिक जागरण में सप्ताह में एक बार सप्तरंग पृष्ठ पर स्वास्थ्य सम्बन्धी लेख जिनमें बीमारी व बचने के उपाय भी प्रकाशित किए जाते है । टाइम्स आॅफ इण्डिया में शुषमी डे, द हिन्दू में एन. प्रसाद व हिन्दुस्तान टाइम्स में संचिता शर्मा आदि संवाददाता स्वास्थ्य से सम्बन्धित समाचार, लेख समय समय पर प्रस्तुत कर रहे है ।
निःसंदेह समाचार पत्रों की विश्वसनीयता पर कोई शक नहीं है, वही स्वास्थ्य क्षेत्र की कवरेज पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । स्वास्थ्य रिपोर्टिंग से जुड़े मुद्दे सही व सटीक जानकारी स्वास्थ्य से सम्बन्धित तकनीकी शब्दों का सरल व आसान भाषा में प्रस्तुत करना आदि की तरफ ध्यान दिया जाए तो एड्स, स्वाइन फ्लू, मर्स व अन्य बीमारियों के फैलाव को रोका जा सकता है ।
रोशन मस्ताना, शोधकर्ता व सहायक प्राध्यापक, जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र